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1. الم
अलिफ़ लाम मीम
2. ذَلِكَ الْكِتَابُ لَا رَيْبَ فِيهِ هُدًى لِلْمُتَّقِينَ
वह बुलन्द रूत्बा किताब (कुरान) कोई शक की जगह नहीं इसमें हिदायत है डर वालों को
3. الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْغَيْبِ وَيُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ
वो जो बे देखे ईमान लाएं और नमाज़ क़ायम रखें और हमारी दी हुई रोज़ी में से हमारी राह में उठाएं
4. وَالَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ وَبِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ
और वो कि ईमान लाएं उस पर जो ए मेहबूब तुम्हारी तरफ़ उतरा और जो तुम से पहले उतरा और आख़िरत पर यक़ीन रखें
5. أُولَئِكَ عَلَى هُدًى مِنْ رَبِّهِمْ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
वही लोग अपने रब की तरफ़ से हिदायत पर हैं और वही मुराद को पहुंचने वाले
6. إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا سَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنْذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنْذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ
बेशक वो जिन की क़िसमत में कुफ़्र है उन्हें बराबर है चाहे तुम उन्हें डराओ या न डराओ वो ईमान लाने के नहीं
7. خَتَمَ اللَّهُ عَلَى قُلُوبِهِمْ وَعَلَى سَمْعِهِمْ وَعَلَى أَبْصَارِهِمْ غِشَاوَةٌ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ
अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानों पर मुहर कर दी और आँखों पर घटा टोप है और उनके लिये बड़ा अज़ाब
8. وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَقُولُ آمَنَّا بِاللَّهِ وَبِالْيَوْمِ الْآخِرِ وَمَا هُمْ بِمُؤْمِنِينَ
और कुछ लोग कहते हैं कि हम अल्लाह और पिछले दीन पर ईमान लाए और वो ईमान वाले नहीं
9. يُخَادِعُونَ اللَّهَ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَمَا يَخْدَعُونَ إِلَّا أَنْفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ
फ़रेब दिया (धोका देना) चाहते हैं अल्लाह और ईमान वालों को और हक़ीक़त में फ़रेब (धोखा) नहीं देते मगर अपनी जानों को और उन्हें शऊर (आभास) नहीं
10. فِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ فَزَادَهُمُ اللَّهُ مَرَضًا وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ بِمَا كَانُوا يَكْذِبُونَ
उनके दिलों में बीमारी है तो अल्लाह ने उनकी बीमारी और बढ़ाई और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है बदला उनके झूठ का
11. وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ لَا تُفْسِدُوا فِي الْأَرْضِ قَالُوا إِنَّمَا نَحْنُ مُصْلِحُونَ
और जो उनसे कहा जाए ज़मीन में फ़साद न करो तो कहते हैं हम तो संवारने वाले हैं
12. أَلَا إِنَّهُمْ هُمُ الْمُفْسِدُونَ وَلَكِنْ لَا يَشْعُرُونَ
सुनता है। वही फ़सादी हैं मगर उन्हें शऊर नहीं
13. وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ آمِنُوا كَمَا آمَنَ النَّاسُ قَالُوا أَنُؤْمِنُ كَمَا آمَنَ السُّفَهَاءُ أَلَا إِنَّهُمْ هُمُ السُّفَهَاءُ وَلَكِنْ لَا يَعْلَمُونَ
और जब उनसे कहा जाए ईमान लाओ जैसे और लोग ईमान लाए हैं तो कहें क्या हम अह़मक़ों (मूर्खों) की तरह ईमान लाएं सुनता है?वही अह़मक़ (मूर्ख) हैं मगर जानते नहीं
14. وَإِذَا لَقُوا الَّذِينَ آمَنُوا قَالُوا آمَنَّا وَإِذَا خَلَوْا إِلَى شَيَاطِينِهِمْ قَالُوا إِنَّا مَعَكُمْ إِنَّمَا نَحْنُ مُسْتَهْزِئُونَ
और जब ईमान वालों से मिलें तो कहें हम ईमान लाए और जब अपने शैतानों के पास अकेले हों तो कहें हम तुम्हारे साथ हैं, हम तो यूं ही हंसी करते हैं
15. اللَّهُ يَسْتَهْزِئُ بِهِمْ وَيَمُدُّهُمْ فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ
अल्लाह उनसे इस्तहज़ा फ़रमाता है (जैसा उसकी शान के लाएक़ है)और उन्हें ढील देता है कि अपनी सरकशी में भटकते रहें.
16. أُولَئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الضَّلَالَةَ بِالْهُدَى فَمَا رَبِحَتْ تِجَارَتُهُمْ وَمَا كَانُوا مُهْتَدِينَ
ये वो लोग हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही ख़रीदी तो उनका सौदा कुछ नफ़ा न लाया और वो सौदे की राह जानते ही न थे
17. مَثَلُهُمْ كَمَثَلِ الَّذِي اسْتَوْقَدَ نَارًا فَلَمَّا أَضَاءَتْ مَا حَوْلَهُ ذَهَبَ اللَّهُ بِنُورِهِمْ وَتَرَكَهُمْ فِي ظُلُمَاتٍ لَا يُبْصِرُونَ
उनकी कहावत उसकी तरह है जिसने आग रौशन की तो जब उससे आसपास सब जगमगा उठा, अल्लाह उनका नूर ले गया और उन्हें अंधेरियों में छोड़ दिया कि कुछ नहीं सूझता
18. صُمٌّ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَرْجِعُونَ
बहरे, गूंगे, अन्धे, तो वो फिर आने वाले नहीं
19. أَوْ كَصَيِّبٍ مِنَ السَّمَاءِ فِيهِ ظُلُمَاتٌ وَرَعْدٌ وَبَرْقٌ يَجْعَلُونَ أَصَابِعَهُمْ فِي آذَانِهِمْ مِنَ الصَّوَاعِقِ حَذَرَ الْمَوْتِ وَاللَّهُ مُحِيطٌ بِالْكَافِرِينَ
या जैसे आसमान से उतरता पानी कि उसमें अंधेरियां हैं और गरज और चमक अपने कानों में उंगलियां ठूंस रहे हैं,कड़क के सबब (कारण) मौत के डर से और अल्लाह काफ़िरों को घेरे हुए है
20. يَكَادُ الْبَرْقُ يَخْطَفُ أَبْصَارَهُمْ كُلَّمَا أَضَاءَ لَهُمْ مَشَوْا فِيهِ وَإِذَا أَظْلَمَ عَلَيْهِمْ قَامُوا وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَذَهَبَ بِسَمْعِهِمْ وَأَبْصَارِهِمْ إِنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
बिजली यूं मालूम होती है कि उनकी निगाहें उचक ले जाएगी जब कुछ चमक हुई उस में चलने लगे और जब अंधेरा हुआ, खड़े रह गए और अल्लाह चाहता तो उनके कान और आँखें ले जाता बेशक अल्लाह सब कुछ कर सकता है
21. يَا أَيُّهَا النَّاسُ اعْبُدُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُمْ وَالَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ
ऐ लोगो अपने रब को पूजो जिसने तुम्हें और तुम से अगलों को पैदा किया ये उम्मीद करते हुए कि तुम्हें परहेज़गारी मिले
22. الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ فِرَاشًا وَالسَّمَاءَ بِنَاءً وَأَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجَ بِهِ مِنَ الثَّمَرَاتِ رِزْقًا لَكُمْ فَلَا تَجْعَلُوا لِلَّهِ أَنْدَادًا وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ
जिसने तुम्हारे लिये ज़मीन को बिछौना और आसमान को इमारत बनाया और आसमान से पानी उतारा तो उससे कुछ फल निकाले तुम्हारे खाने को तो अल्लाह के लिये जानबूझ कर बराबर वाले न ठहराओ
23. وَإِنْ كُنْتُمْ فِي رَيْبٍ مِمَّا نَزَّلْنَا عَلَى عَبْدِنَا فَأْتُوا بِسُورَةٍ مِنْ مِثْلِهِ وَادْعُوا شُهَدَاءَكُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ
और अगर तुम्हें कुछ शक हो उसमें जो हमने अपने ख़ास बन्देपर उतारा तो उस जैसी एक सूरत तो ले आओऔर अल्लाह के सिवा अपने सब हिमायतियों को बुला लो अगर तुम सच्चे हो
24. فَإِنْ لَمْ تَفْعَلُوا وَلَنْ تَفْعَلُوا فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِي وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ أُعِدَّتْ لِلْكَافِرِينَ
फिर अगर न ला सको और हम फ़रमाए देते हैं कि हरगिज़ न ला सकोगे तो डरो उस आग से जिसका ईंधन आदमी और पत्थर हैं तैयार रखी है काफ़िरों के लिये
25. وَبَشِّرِ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ كُلَّمَا رُزِقُوا مِنْهَا مِنْ ثَمَرَةٍ رِزْقًا قَالُوا هَذَا الَّذِي رُزِقْنَا مِنْ قَبْلُ وَأُتُوا بِهِ مُتَشَابِهًا وَلَهُمْ فِيهَا أَزْوَاجٌ مُطَهَّرَةٌ وَهُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
और ख़ुशख़बरी दे उन्हें जो ईमान लाए और अच्छे काम किये कि उनके लिये बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें रवां जब उन्हें उन बागों से कोई फल खाने को दिया जाएगा सूरत देखकर कहेंगे यह तो वही रिज़्क़ (जीविका) है जो हमें पहले मिला था और वह सूरत में मिलता जुलता उन्हें दिया गया और उनके लिये उन बाग़ों में सुथरी बीबियां हैं और वो उनमें हमेशा रहेंगे
26. إِنَّ اللَّهَ لَا يَسْتَحْيِي أَنْ يَضْرِبَ مَثَلًا مَا بَعُوضَةً فَمَا فَوْقَهَا فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا فَيَعْلَمُونَ أَنَّهُ الْحَقُّ مِنْ رَبِّهِمْ وَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُوا فَيَقُولُونَ مَاذَا أَرَادَ اللَّهُ بِهَذَا مَثَلًا يُضِلُّ بِهِ كَثِيرًا وَيَهْدِي بِهِ كَثِيرًا وَمَا يُضِلُّ بِهِ إِلَّا الْفَاسِقِينَ
बेशक अल्लाह इस से हया नहीं फ़रमाता कि मिसाल समझाने को कैसी ही चीज़ का जि़क्र (वर्णन) फ़रमाए मच्छर हो या उससे बढ़कर तो वो जो ईमान लाए वो तो जानते हैं कि यह उनके रब की तरफ़ से हक़ (सत्य) है रहे काफ़िर वो कहते हैं ऐसी कहावत में अल्लाह का क्या मक़सूद है, अल्लाह बहुतेरों को इससे गुमराह करता है और बहुतेरों को हिदायत फ़रमाता है और उससे उन्हें गुमराह करता है जो बे हुक्म हैं
27. الَّذِينَ يَنْقُضُونَ عَهْدَ اللَّهِ مِنْ بَعْدِ مِيثَاقِهِ وَيَقْطَعُونَ مَا أَمَرَ اللَّهُ بِهِ أَنْ يُوصَلَ وَيُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ أُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ
वह जो अल्लाह के अहद (इक़रार) को तोड़ देते हैं पक्का होने के बाद और काटते हैं उस चीज़ को जिसके जोड़ने का ख़ुदा ने हुक्म दिया है और ज़मीन में फ़साद फैलाते हैं वही नुक़सान में हैं
28. كَيْفَ تَكْفُرُونَ بِاللَّهِ وَكُنْتُمْ أَمْوَاتًا فَأَحْيَاكُمْ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيكُمْ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ
भला तुम क्योंकर ख़ुदा के मुन्किर होगे हालांकि तुम मुर्दा थे उसने तुम्हें जिलाया (जीवंत किया) फिर तुम्हें मारेगा फिर तुम्हें ज़िलाएगा फिर उसी की तरफ़ पलटकर जाओगे
29. هُوَ الَّذِي خَلَقَ لَكُمْ مَا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ثُمَّ اسْتَوَى إِلَى السَّمَاءِ فَسَوَّاهُنَّ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ وَهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
वही है जिसने तुम्हारे लिये बनाया जो कुछ ज़मीन में है फिर आसमान की तरफ़ इस्तिवा (क़सद, इरादा) फ़रमाया तो ठीक सात आसमान बनाए और वह सब कुछ जानता हैं
30. وَإِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلَائِكَةِ إِنِّي جَاعِلٌ فِي الْأَرْضِ خَلِيفَةً قَالُوا أَتَجْعَلُ فِيهَا مَنْ يُفْسِدُ فِيهَا وَيَسْفِكُ الدِّمَاءَ وَنَحْنُ نُسَبِّحُ بِحَمْدِكَ وَنُقَدِّسُ لَكَ قَالَ إِنِّي أَعْلَمُ مَا لَا تَعْلَمُونَ
और याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से फ़रमाया मैं ज़मीन में अपना नायब बनाने वाला हूं बोले क्या ऐसे को नायब करेगा जो उसमें फ़साद फैलाए और ख़ूनरेज़ीयां करे और हम तुझे सराहते हुए तेरी तस्बीह (जाप) करते और तेरी पाकी बोलते हैं फ़रमाया मुझे मालूम है जो तुम नहीं जानते
31. وَعَلَّمَ آدَمَ الْأَسْمَاءَ كُلَّهَا ثُمَّ عَرَضَهُمْ عَلَى الْمَلَائِكَةِ فَقَالَ أَنْبِئُونِي بِأَسْمَاءِ هَؤُلَاءِ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ
और अल्लाह तआला ने आदम को तमाम अशया के (चीज़ों के) नाम सिखाए फिर सब क्या मलाएका पर पेश करके फ़रमाया सच्चे हो तो उनके नाम तो बताओ
32. قَالُوا سُبْحَانَكَ لَا عِلْمَ لَنَا إِلَّا مَا عَلَّمْتَنَا إِنَّكَ أَنْتَ الْعَلِيمُ الْحَكِيمُ
बोले पाकी है तुझे हमें कुछ इल्म नहीं मगर जितना तूने हमें सिखाया बेशक तू ही इल्म व ह़िकमत वाला है
33. قَالَ يَا آدَمُ أَنْبِئْهُمْ بِأَسْمَائِهِمْ فَلَمَّا أَنْبَأَهُمْ بِأَسْمَائِهِمْ قَالَ أَلَمْ أَقُلْ لَكُمْ إِنِّي أَعْلَمُ غَيْبَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَأَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا كُنْتُمْ تَكْتُمُونَ
फ़रमाया ऐ आदम बता दे उन्हें सब अश्या(चीज़ों) के नाम जब आदम ने उन्हें सब के नाम बता दिये फ़रमाया मैं न कहता था के मैं जानता हूं आसमानों और ज़मीन की सब छुपी चीज़ें और मैं जानता हूँ जो कुछ तुम ज़ाहिर करते और जो कुछ तुम छुपाते हो
34. وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ أَبَى وَاسْتَكْبَرَ وَكَانَ مِنَ الْكَافِرِينَ
और याद करो जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सिजदा करो तो सबने सिजदा किया सिवाए इबलीस (शैतान) के कि मुन्किर हुआ और गुरूर किया और काफ़िर हो गया
35. وَقُلْنَا يَا آدَمُ اسْكُنْ أَنْتَ وَزَوْجُكَ الْجَنَّةَ وَكُلَا مِنْهَا رَغَدًا حَيْثُ شِئْتُمَا وَلَا تَقْرَبَا هَذِهِ الشَّجَرَةَ فَتَكُونَا مِنَ الظَّالِمِينَ
और हमने फ़रमाया ऐ आदम तू और तेरी बीवी इस जन्नत में रहो और खाओ इसमें से बे रोक टोक जहां तुम्हारा जी चाहे मगर उस पेड़ के पास न जाना कि हद से बढ़ने वालों में हो जाओगे
36. فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ عَنْهَا فَأَخْرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِيهِ وَقُلْنَا اهْبِطُوا بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ وَلَكُمْ فِي الْأَرْضِ مُسْتَقَرٌّ وَمَتَاعٌ إِلَى حِينٍ
तो शैतान ने जन्नत से उन्हें लग़ज़िश (डगमगाहट) दी और जहां रहते थे वहां से उन्हें अलग कर दिया और हमने फ़रमाया नीचे उतरो आपस में एक तुम्हारा दूसरे का दुश्मन और तुम्हें एक वक्त़ तक ज़मीन में ठहरना और बरतना है
37. فَتَلَقَّى آدَمُ مِنْ رَبِّهِ كَلِمَاتٍ فَتَابَ عَلَيْهِ إِنَّهُ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ
फिर सीख लिये आदम ने अपने रब से कुछ कलिमे (शब्द) तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़ुबूल की बेशक वही है बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान
38. قُلْنَا اهْبِطُوا مِنْهَا جَمِيعًا فَإِمَّا يَأْتِيَنَّكُمْ مِنِّي هُدًى فَمَنْ تَبِعَ هُدَايَ فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ
हमने फ़रमाया तुम सब जन्नत से उतर जाओ फिर अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से कोई हिदायत आए तो जो मेरी हिदायत का पैरु हुआ उसे न कोई अन्देशा न कुछ ग़म
39. وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
और वो जो कुफ्र करें और मेरी आयतें झुटलांएगे वो दोज़ख़ वाले हैं उनको हमेशा उस में रहना -
40. يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اذْكُرُوا نِعْمَتِيَ الَّتِي أَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَأَوْفُوا بِعَهْدِي أُوفِ بِعَهْدِكُمْ وَإِيَّايَ فَارْهَبُونِ
ऐ याक़ूब की औलाद याद करो मेरा वह एह़सान जो मैं ने तुम पर किया और मेरा अहद पूरा करो मैं तुम्हारा अहद पूरा करूंगा और ख़ास मेरा ही डर रखो
41. وَآمِنُوا بِمَا أَنْزَلْتُ مُصَدِّقًا لِمَا مَعَكُمْ وَلَا تَكُونُوا أَوَّلَ كَافِرٍ بِهِ وَلَا تَشْتَرُوا بِآيَاتِي ثَمَنًا قَلِيلًا وَإِيَّايَ فَاتَّقُونِ
और ईमान लाओ उस पर जो मैं ने उतारा उसकी तस्दीक़ (पुष्टि) करता हुआ जो तुम्हारे साथ है और सबसे पहले उसके मुनकिर न बनो और मेरी आयतों के बदले थोड़े दाम न लो और मुझी से डरो
42. وَلَا تَلْبِسُوا الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُوا الْحَقَّ وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ
और ह़क़ (सत्य) से बातिल (झूठ) को न मिलाओ और दीदह व दानिस्ता(जान बूझकर) ह़क़ न छुपाओ
43. وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَارْكَعُوا مَعَ الرَّاكِعِينَ
और नमाज़ क़ायम रखो और ज़कात दो और रूकू करने वालों (झुकने वालों) के साथ रूकू करो
44. أَتَأْمُرُونَ النَّاسَ بِالْبِرِّ وَتَنْسَوْنَ أَنْفُسَكُمْ وَأَنْتُمْ تَتْلُونَ الْكِتَابَ أَفَلَا تَعْقِلُونَ
क्या लोगों को भलाई का हुक्म देते हो और अपनी जानों को भूलते हो हालांकि तुम किताब पढ़ते हो तो क्या तुम्हें अक़्ल नहीं
45. وَاسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ وَالصَّلَاةِ وَإِنَّهَا لَكَبِيرَةٌ إِلَّا عَلَى الْخَاشِعِينَ
और सब्र और नमाज़ से मदद चाहो और बेशक नमाज़ ज़रूर भारी है मगर उन पर (नही) जो दिल से मेरी तरफ़ झुकते हैं
46. الَّذِينَ يَظُنُّونَ أَنَّهُمْ مُلَاقُو رَبِّهِمْ وَأَنَّهُمْ إِلَيْهِ رَاجِعُونَ
जिन्हें यक़ीन है कि उन्हें अपने रब से मिलना है और उसी की तरफ़ फिरना
47. يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اذْكُرُوا نِعْمَتِيَ الَّتِي أَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَأَنِّي فَضَّلْتُكُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ
ऐ औलादे याक़ूब याद करो मेरा वह अह़सान जो मैंने तुम पर किया और यह कि इस सारे ज़माने पर तुम्हें बड़ाई दी
48. وَاتَّقُوا يَوْمًا لَا تَجْزِي نَفْسٌ عَنْ نَفْسٍ شَيْئًا وَلَا يُقْبَلُ مِنْهَا شَفَاعَةٌ وَلَا يُؤْخَذُ مِنْهَا عَدْلٌ وَلَا هُمْ يُنْصَرُونَ
और डरो उस दिन से जिस दिन कोई जान दूसरे का बदला न हो सकेगी और न क़ाफिर के लिये कोई सिफ़ारिश मानी जाए और न कुछ लेकर उसकी जान छोड़ी जाए और न उनकी मदद हो
49. وَإِذْ نَجَّيْنَاكُمْ مِنْ آلِ فِرْعَوْنَ يَسُومُونَكُمْ سُوءَ الْعَذَابِ يُذَبِّحُونَ أَبْنَاءَكُمْ وَيَسْتَحْيُونَ نِسَاءَكُمْ وَفِي ذَلِكُمْ بَلَاءٌ مِنْ رَبِّكُمْ عَظِيمٌ
और (याद करो) जब हमने तुमको फ़िरऔन वालों से नजात बख्श़ी (छुटकारा दिलाया) कि तुम पर बुरा अजा़ब करते थे तुम्हारे बेटों को ज़िब्ह करते और तुम्हारी बेटियों को ज़िन्दा रखते और उसमें तुम्हारे रब की तरफ़ से बड़ी बला थी या बड़ा इनाम
50. وَإِذْ فَرَقْنَا بِكُمُ الْبَحْرَ فَأَنْجَيْنَاكُمْ وَأَغْرَقْنَا آلَ فِرْعَوْنَ وَأَنْتُمْ تَنْظُرُونَ
और जब हमने तुम्हारे लिये दरिया फ़ाड़ दिया तो तुम्हें बचा लिया और फ़िरऔन वालों को तुम्हारी आंखों के सामने डुबो दिया
51. وَإِذْ وَاعَدْنَا مُوسَى أَرْبَعِينَ لَيْلَةً ثُمَّ اتَّخَذْتُمُ الْعِجْلَ مِنْ بَعْدِهِ وَأَنْتُمْ ظَالِمُونَ
और जब हमने मूसा से चालीस रात का वादा फ़रमाया फिर उसके पीछे तुमने बछड़े की पूजा शुरू कर दी और तुम ज़ालिम थे
52. ثُمَّ عَفَوْنَا عَنْكُمْ مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
फिर उसके बाद हमने तुम्हें माफ़ी दी कि कहीं तुम अहसान मानो
53. وَإِذْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَالْفُرْقَانَ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ
और जब हमने मूसा को किताब दी और सत्य और असत्य में पहचान कर देना कि कहीं तुम राह पर आओ
54. وَإِذْ قَالَ مُوسَى لِقَوْمِهِ يَا قَوْمِ إِنَّكُمْ ظَلَمْتُمْ أَنْفُسَكُمْ بِاتِّخَاذِكُمُ الْعِجْلَ فَتُوبُوا إِلَى بَارِئِكُمْ فَاقْتُلُوا أَنْفُسَكُمْ ذَلِكُمْ خَيْرٌ لَكُمْ عِنْدَ بَارِئِكُمْ فَتَابَ عَلَيْكُمْ إِنَّهُ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ
और जब मूसा ने अपनी कौ़म से कहा ऐ मेरी कौ़म तुमने बछड़ा बनाकर अपनी जानों पर ज़ुल्म किया तो अपने पैदा करने वाले की तरफ़ रुजू लाओ तो आपस में एक दूसरे को क़त्ल करो यह तुम्हारे पैदा करने वाले के नज्द़ीक तुम्हारे लिये बेहतर है तो उसने तुम्हारी तौबह क़ुबूल की, बेशक वही है बहुत तौबह क़ुबूल करने वाला मेहरबान
55. وَإِذْ قُلْتُمْ يَا مُوسَى لَنْ نُؤْمِنَ لَكَ حَتَّى نَرَى اللَّهَ جَهْرَةً فَأَخَذَتْكُمُ الصَّاعِقَةُ وَأَنْتُمْ تَنْظُرُونَ
और जब तुमने कहा ऐ मूसा हम हरगिज़ तुम्हारा यक़ीन न लाएंगे जब तक ऐलानिया ख़ुदा को न देख लें तो तुम्हें कड़क ने आ लिया और तुम देख रहे थे
56. ثُمَّ بَعَثْنَاكُمْ مِنْ بَعْدِ مَوْتِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
फिर मेरे पीछे हमने तुम्हें ज़िन्दा किया कि कहीं तुम एहसान मानो
57. وَظَلَّلْنَا عَلَيْكُمُ الْغَمَامَ وَأَنْزَلْنَا عَلَيْكُمُ الْمَنَّ وَالسَّلْوَى كُلُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ وَمَا ظَلَمُونَا وَلَكِنْ كَانُوا أَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ
और हमने अबर को तुम्हारा सायबान किया और तुमपर मन्न और सलवा उतारा, खाओ हमारी दी हुई सुथरी चीज़ें और उन्होंने कुछ हमारा न बिगाड़ा, हां अपनी ही जानों का बिगाड़ करते थे
58. وَإِذْ قُلْنَا ادْخُلُوا هَذِهِ الْقَرْيَةَ فَكُلُوا مِنْهَا حَيْثُ شِئْتُمْ رَغَدًا وَادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا وَقُولُوا حِطَّةٌ نَغْفِرْ لَكُمْ خَطَايَاكُمْ وَسَنَزِيدُ الْمُحْسِنِينَ
और जब हमने फ़रमाया उस बस्ती में जाओ फिर उसमें जहां चाहो, बे रोक टोक खाओ और दरवाज़ें में सजदा करते दाख़िल हो और कहो हमारे गुनाह माफ़ हों हम तुम्हारी ख़ताएं बख्श़ देंगे और क़रीब है कि नेकी वालों को और ज्य़ादा दें
59. فَبَدَّلَ الَّذِينَ ظَلَمُوا قَوْلًا غَيْرَ الَّذِي قِيلَ لَهُمْ فَأَنْزَلْنَا عَلَى الَّذِينَ ظَلَمُوا رِجْزًا مِنَ السَّمَاءِ بِمَا كَانُوا يَفْسُقُونَ
तो ज़ालिमों ने और बात बदल दी जो फ़रमाई गई थी उसके सिवा तो हमने आसमान से उन पर अज़ाब उतारा बदला उनकी बे हुकमी का
60. وَإِذِ اسْتَسْقَى مُوسَى لِقَوْمِهِ فَقُلْنَا اضْرِبْ بِعَصَاكَ الْحَجَرَ فَانْفَجَرَتْ مِنْهُ اثْنَتَا عَشْرَةَ عَيْنًا قَدْ عَلِمَ كُلُّ أُنَاسٍ مَشْرَبَهُمْ كُلُوا وَاشْرَبُوا مِنْ رِزْقِ اللَّهِ وَلَا تَعْثَوْا فِي الْأَرْضِ مُفْسِدِينَ
और जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिये पानी मांगा तो हमने फ़रमाया इस पत्थर पर अपना अ़सा मारो फ़ौरन उस में से बारह चश्में बह निकले हर गरूह ने अपना घाट पहचान लिया, खाओ और पियो ख़ुदा का दिया और ज़मीन में फ़साद उठाते न फिरो
61. وَإِذْ قُلْتُمْ يَا مُوسَى لَنْ نَصْبِرَ عَلَى طَعَامٍ وَاحِدٍ فَادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُخْرِجْ لَنَا مِمَّا تُنْبِتُ الْأَرْضُ مِنْ بَقْلِهَا وَقِثَّائِهَا وَفُومِهَا وَعَدَسِهَا وَبَصَلِهَا قَالَ أَتَسْتَبْدِلُونَ الَّذِي هُوَ أَدْنَى بِالَّذِي هُوَ خَيْرٌ اهْبِطُوا مِصْرًا فَإِنَّ لَكُمْ مَا سَأَلْتُمْ وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الذِّلَّةُ وَالْمَسْكَنَةُ وَبَاءُوا بِغَضَبٍ مِنَ اللَّهِ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ كَانُوا يَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللَّهِ وَيَقْتُلُونَ النَّبِيِّينَ بِغَيْرِ الْحَقِّ ذَلِكَ بِمَا عَصَوْا وَكَانُوا يَعْتَدُونَ
और जब तुमने कहा ऐ मूसा हम से तो एक खाने पर हरगिज़ सब्र न होगा तो आप अपने रब से दुआ कीजिये कि ज़मीन की उगाई हुई चीज़ें हमारे लिये निकाले कुछ साग और ककड़ी और गेंहूं और मसूर और प्याज़. फ़रमाया क्या अदना चीज़ को बेहतर के बदले मांगते हो अच्छा मस्रफ या किसी शहर में उतरो वहां तुम्हें मिलेगा जो तुमने मांगा और उनपर मुक़र्रर कर दी गई ख्व़ारी (ज़िल्लत) और नादारी और ख़ुदा के ग़ज़ब में लौटे ये बदला था उसका कि वो अल्लाह की आयतों का इन्कार करते और अम्बिया को नाहक़ शहीद करते ये बदला था उनकी नाफ़रमानियों और हद से बढ़ने का
62. إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَادُوا وَالنَّصَارَى وَالصَّابِئِينَ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَهُمْ أَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ
बेशक ईमान वाले नेज़ यहूदियों और नस्रानीयों और सितारा परस्तों में से वो कि सच्चे दिल से अल्लाह और पिछले दीन पर ईमान लाएं और नेक काम करें उन का सवाब (पुण्य) उनके रब के पास है और न उन्हें कुछ अन्देशा (आशंकाद) हो और न कुछ ग़म
63. وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَكُمْ وَرَفَعْنَا فَوْقَكُمُ الطُّورَ خُذُوا مَا آتَيْنَاكُمْ بِقُوَّةٍ وَاذْكُرُوا مَا فِيهِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ
और जब हमने तुमसे एहद लिया और तुम पर तूर (पहाड़) को ऊंचा किया लो जो कुछ हम तुमको देते हैं ज़ोर से और उसके मज़मून याद करो इस उम्मीद पर कि तुम्हें परहेज़गारी मिले
64. ثُمَّ تَوَلَّيْتُمْ مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ فَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ لَكُنْتُمْ مِنَ الْخَاسِرِينَ
फिर उसके बाद तुम फिर गए तो अगर अल्लाह का फज़ल और उसकी रहमत तुम पर न होती तो तुम टोटे वालों में हो जाते
65. وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ الَّذِينَ اعْتَدَوْا مِنْكُمْ فِي السَّبْتِ فَقُلْنَا لَهُمْ كُونُوا قِرَدَةً خَاسِئِينَ
और बेशक ज़रूर तुम्हें मालूम है तुम में के वो जिन्होंने हफ्ते (शनिवार) में सरकशी की तो हमने उनसे फ़रमाया कि हो जाओ बन्दर धुत्कारे हुए
66. فَجَعَلْنَاهَا نَكَالًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهَا وَمَا خَلْفَهَا وَمَوْعِظَةً لِلْمُتَّقِينَ
तो हमने उस बस्ती का ये वाक़िया (घटना) उसके आगे और पीछे वालों के लिये इबरत कर दिया और परहेज़गारों के लिये नसीहत
67. وَإِذْ قَالَ مُوسَى لِقَوْمِهِ إِنَّ اللَّهَ يَأْمُرُكُمْ أَنْ تَذْبَحُوا بَقَرَةً قَالُوا أَتَتَّخِذُنَا هُزُوًا قَالَ أَعُوذُ بِاللَّهِ أَنْ أَكُونَ مِنَ الْجَاهِلِينَ
और जब मूसा ने अपनी क़ौम से फ़रमाया खुदा तुम्हें हुक्म देता है कि एक गाय ज़िब्ह करो बोले की आप हमें मसख़रा बनाते हैं फ़रमाया ख़ुदा की पनाह कि मैं जाहिलों से हूं
68. قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّنْ لَنَا مَا هِيَ قَالَ إِنَّهُ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٌ لَا فَارِضٌ وَلَا بِكْرٌ عَوَانٌ بَيْنَ ذَلِكَ فَافْعَلُوا مَا تُؤْمَرُونَ
बोले अपने रब से दुआ कीजिये कि वह हमें बता दे गाय कैसी? कहा, वह फ़रमाता है कि वह एक गाय है न बूढ़ी और न ऊसर, बल्कि उन दोनों के बीच में, तो करो जिसका तुम्हें हुक्म होता है
69. قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّنْ لَنَا مَا لَوْنُهَا قَالَ إِنَّهُ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٌ صَفْرَاءُ فَاقِعٌ لَوْنُهَا تَسُرُّ النَّاظِرِينَ
बोले अपने रब से दुआ कीजिये हमें बता दे उसका रंग क्या है? कहा वह फ़रमाता है वह एक पीली गाय है जिसकी रंगत डहडहाती, देखने वालों को ख़ुशी देती
70. قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّنْ لَنَا مَا هِيَ إِنَّ الْبَقَرَ تَشَابَهَ عَلَيْنَا وَإِنَّا إِنْ شَاءَ اللَّهُ لَمُهْتَدُونَ
बोले अपने रब से दुआ कीजिये कि हमारे लिये साफ़ बयान करे वह गाय कैसी है? बेशक गायों में हमको शुबह पड़ गया और अल्लाह चाहे तो हम राह पा जाएंगे
71. قَالَ إِنَّهُ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٌ لَا ذَلُولٌ تُثِيرُ الْأَرْضَ وَلَا تَسْقِي الْحَرْثَ مُسَلَّمَةٌ لَا شِيَةَ فِيهَا قَالُوا الْآنَ جِئْتَ بِالْحَقِّ فَذَبَحُوهَا وَمَا كَادُوا يَفْعَلُونَ
कहा वह फ़रमाता है कि वह एक गाय है जिससे ख़िदमत नहीं ली जाती कि ज़मीन जोते और न खेती को पानी दे. बे ऐब है, जिसमें कोई दाग़ नहीं. बोले अब आप ठीक बात लाए तो उसे ज़िब्ह किया और ज़िब्ह करते मालूम न होते थे
72. وَإِذْ قَتَلْتُمْ نَفْسًا فَادَّارَأْتُمْ فِيهَا وَاللَّهُ مُخْرِجٌ مَا كُنْتُمْ تَكْتُمُونَ
और जब तुमने एक ख़ून किया तो एक दूसरे पर उसकी तोहमत (आरोप) डालने लगे और अल्लाह को ज़ाहिर करना था जो तुम छुपाते थे
73. فَقُلْنَا اضْرِبُوهُ بِبَعْضِهَا كَذَلِكَ يُحْيِي اللَّهُ الْمَوْتَى وَيُرِيكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
तो हमने फ़रमाया उस मक्त़ूल को उस गाय का एक टुकड़ा मारो अल्लाह यूं ही मुर्दें जिलाएगा और तुम्हें अपनी निशानियां दिखाता है कि कहीं तुम्हें अक्ल़ हो
74. ثُمَّ قَسَتْ قُلُوبُكُمْ مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ فَهِيَ كَالْحِجَارَةِ أَوْ أَشَدُّ قَسْوَةً وَإِنَّ مِنَ الْحِجَارَةِ لَمَا يَتَفَجَّرُ مِنْهُ الْأَنْهَارُ وَإِنَّ مِنْهَا لَمَا يَشَّقَّقُ فَيَخْرُجُ مِنْهُ الْمَاءُ وَإِنَّ مِنْهَا لَمَا يَهْبِطُ مِنْ خَشْيَةِ اللَّهِ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ
फिर उसके बाद तुम्हारे दिल सख्त़ हो गये तो वह पत्थरों की मिष्ल हैं बल्कि उनसे भी ज्य़ादा कर्रे और पत्थरों में तो कुछ वो हैं जिनसे नदियां बह निकलती हैं और कुछ वो हैं जो फट जाते हैं तो उनसे पानी निकलता है और कुछ वो हैं कि अल्लाह के डर से गिर पड़ते हैं और अल्लाह तुम्हारे कौतुकों से बेख़बर नहीं
75. أَفَتَطْمَعُونَ أَنْ يُؤْمِنُوا لَكُمْ وَقَدْ كَانَ فَرِيقٌ مِنْهُمْ يَسْمَعُونَ كَلَامَ اللَّهِ ثُمَّ يُحَرِّفُونَهُ مِنْ بَعْدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمْ يَعْلَمُونَ
तो ऐ मुसलमानों, क्या तुम्हें यह तमअ़ है कि यह यहूदी तुम्हारा यक़ीन लाएंगे और उनमें का तो एक गरुह वह था कि अल्लाह का कलाम सुनते फिर समझने के बाद उसे जान दानिस्ता बदल देते
76. وَإِذَا لَقُوا الَّذِينَ آمَنُوا قَالُوا آمَنَّا وَإِذَا خَلَا بَعْضُهُمْ إِلَى بَعْضٍ قَالُوا أَتُحَدِّثُونَهُمْ بِمَا فَتَحَ اللَّهُ عَلَيْكُمْ لِيُحَاجُّوكُمْ بِهِ عِنْدَ رَبِّكُمْ أَفَلَا تَعْقِلُونَ
और जब मुसलमानों से मिलें तो कहें हम ईमान लाए और जब आपस में अकेले हो तो कहें वह इल्म जो अल्लाह ने तुम पर खोला मुसलमानों से बयान किये देते हो कि उससे तुम्हारे रब के यहाँ तुम्हीं पर हुज्जत (तर्क) लाएं, क्या तुम्हें अक्ल़ नहीं
77. أَوَلَا يَعْلَمُونَ أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ
क्या नहीं जानते कि अल्लाह जानता है जो कुछ वो छुपाते हैं और जो कुछ वो ज़ाहिर करते हैं
78. وَمِنْهُمْ أُمِّيُّونَ لَا يَعْلَمُونَ الْكِتَابَ إِلَّا أَمَانِيَّ وَإِنْ هُمْ إِلَّا يَظُنُّونَ
और उनमें कुछ अनपढ़ हैं कि जो किताब को नहीं जानते मगर ज़बानी पढ़ लेना या कुछ अपनी मनघड़त और वो निरे गुमान (भ्रम) में हैं
79. فَوَيْلٌ لِلَّذِينَ يَكْتُبُونَ الْكِتَابَ بِأَيْدِيهِمْ ثُمَّ يَقُولُونَ هَذَا مِنْ عِنْدِ اللَّهِ لِيَشْتَرُوا بِهِ ثَمَنًا قَلِيلًا فَوَيْلٌ لَهُمْ مِمَّا كَتَبَتْ أَيْدِيهِمْ وَوَيْلٌ لَهُمْ مِمَّا يَكْسِبُونَ
तो ख़राबी है उनके लिये जो किताब अपने हाथ से लिखें फिर कह दें ये ख़ुदा के पास से है कि इसके अवज़ थोड़े दाम हासिल करें तो ख़राबी है उनके लिये उनके हाथों के लिखे से और ख़राबी उनके लिये उस कमाई से
80. وَقَالُوا لَنْ تَمَسَّنَا النَّارُ إِلَّا أَيَّامًا مَعْدُودَةً قُلْ أَتَّخَذْتُمْ عِنْدَ اللَّهِ عَهْدًا فَلَنْ يُخْلِفَ اللَّهُ عَهْدَهُ أَمْ تَقُولُونَ عَلَى اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ
और बोले हमें तो आग न छुएगी मगर गिन्नती के दिन तुम फ़रमादों क्या ख़ुदा से तुमने कोई एहद (वचन) ले रखा है? जब तो अल्लाह हरगिज़ अपना एहद ख़िलाफ़ न करेगा या ख़ुदा पर वह बात कहते हो जिसका तुम्हें इल्म नहीं
81. بَلَى مَنْ كَسَبَ سَيِّئَةً وَأَحَاطَتْ بِهِ خَطِيئَتُهُ فَأُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
हाँ क्यों नहीं, जो गुनाह कमाए और उसकी ख़ता उसे घेर ले वह दोजख़ वालों में है, उन्हें हमेशा उसमें रहन
82. وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَئِكَ أَصْحَابُ الْجَنَّةِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
और जो ईमान लाए और अच्छे काम किये वो जन्नत वाले हैं, उन्हें हमेशा उसमें रहना
83. وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ لَا تَعْبُدُونَ إِلَّا اللَّهَ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَذِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينِ وَقُولُوا لِلنَّاسِ حُسْنًا وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ ثُمَّ تَوَلَّيْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا مِنْكُمْ وَأَنْتُمْ مُعْرِضُونَ
और जब हमने बनी इस्राईल से एहद लिया कि अल्लाह के सिवा किसी को न पूजो और माँ बाप के साथ भलाई करो और रिश्तेदारों और यतीमों (अनाथों) और मिस्कीनों (दरिद्रों) से और लोगों से अच्छी बात कहो और नमाज़ क़ायम रखों और ज़कात दो, फिर तुम फिर गए मगर तुम में के थोड़े और तुम रो गरदान हो
84. وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَكُمْ لَا تَسْفِكُونَ دِمَاءَكُمْ وَلَا تُخْرِجُونَ أَنْفُسَكُمْ مِنْ دِيَارِكُمْ ثُمَّ أَقْرَرْتُمْ وَأَنْتُمْ تَشْهَدُونَ
और जब हमने तुमसे एहद लिया कि अपनों का ख़ून न करना और अपनों को अपनी बस्तियों से न निकालना फिर तुमने उसका इक़रार किया और तुम गवाह हो
85. ثُمَّ أَنْتُمْ هَؤُلَاءِ تَقْتُلُونَ أَنْفُسَكُمْ وَتُخْرِجُونَ فَرِيقًا مِنْكُمْ مِنْ دِيَارِهِمْ تَظَاهَرُونَ عَلَيْهِمْ بِالْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَإِنْ يَأْتُوكُمْ أُسَارَى تُفَادُوهُمْ وَهُوَ مُحَرَّمٌ عَلَيْكُمْ إِخْرَاجُهُمْ أَفَتُؤْمِنُونَ بِبَعْضِ الْكِتَابِ وَتَكْفُرُونَ بِبَعْضٍ فَمَا جَزَاءُ مَنْ يَفْعَلُ ذَلِكَ مِنْكُمْ إِلَّا خِزْيٌ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يُرَدُّونَ إِلَى أَشَدِّ الْعَذَابِ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ
फिर ये जो तुम हो अपनों को क़त्ल करने लगे और अपने मे एक गरुह को उनके वतन से निकालते हो उनपर मदद देते हो (उनके मुख़िलाफ या दुश्मन को) गुनाह और ज्य़ादती में और अगर वो क़ैदी होकर तुम्हारे पास आएं तो बदला देकर छुड़ा लेते हो और उनका निकालना तुम पर हराम है तो क्या ख़ुदा के कुछ हुक़्मों पर ईमान लाते हो और कुछ से इन्कार करते हो? तो जो तुम ऐसा करे उसका बदला क्या है, मगर यह कि दुनिया में रूसवा (ज़लील) हो, और क़यामत में सख़्ततर अज़ाब की तरफ़ फेरे जाएंगे और अल्लाह तुम्हारे कौतुकों से बेख़बर नहीं
86. أُولَئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا بِالْآخِرَةِ فَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنْصَرُونَ
ये हैं वो लोग जिन्होंने आख़िरत के बदले दुनिया की ज़िन्दग़ी मोल ली, तो न उनपर से अज़ाब हल्का हो और न उनकी मदद की जाए
87. وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَقَفَّيْنَا مِنْ بَعْدِهِ بِالرُّسُلِ وَآتَيْنَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ الْبَيِّنَاتِ وَأَيَّدْنَاهُ بِرُوحِ الْقُدُسِ أَفَكُلَّمَا جَاءَكُمْ رَسُولٌ بِمَا لَا تَهْوَى أَنْفُسُكُمُ اسْتَكْبَرْتُمْ فَفَرِيقًا كَذَّبْتُمْ وَفَرِيقًا تَقْتُلُونَ
और बेशक हमने मूसा को किताब अता की और उसके बाद पै दर पै रसूल भेजे और हमने ईसा बिन मरयम को खुली निशानियाँ अता फ़रमाई और पाक रुह सेउसकी मदद की तो क्या जब तुम्हारे पास कोई रसूल वह लेकर आए जो तुम्हारे नफ़्स (मन) की ख्वाहिश नहीं, तकब्बुर करते हो तो उन (नबियों) में एक गिरोह (समूह) को तुम झुटलाते हो और एक गिराह को शहीद करते हो
88. وَقَالُوا قُلُوبُنَا غُلْفٌ بَلْ لَعَنَهُمُ اللَّهُ بِكُفْرِهِمْ فَقَلِيلًا مَا يُؤْمِنُونَ
और यहूदी बोले हमारे दिलों पर पर्दें पड़े हैं बल्कि अल्लाह ने उनपर लानत की उनके कुफ़्र के सबब तो उनमें थोड़े ईमान लाते हैं
89. وَلَمَّا جَاءَهُمْ كِتَابٌ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ مُصَدِّقٌ لِمَا مَعَهُمْ وَكَانُوا مِنْ قَبْلُ يَسْتَفْتِحُونَ عَلَى الَّذِينَ كَفَرُوا فَلَمَّا جَاءَهُمْ مَا عَرَفُوا كَفَرُوا بِهِ فَلَعْنَةُ اللَّهِ عَلَى الْكَافِرِينَ
और जब उनके पास अल्लाह की वो किताब (क़ुरआन) आई जो उनके साथ वाली किताब (तौरात) की तस्दीक़ (पुष्टि) फ़रमाती है और इससे पहले वो इसी नबी के वसीले (ज़रिये) से काफ़िरों पर फ़त्ह मांगते थे तो जब तशरीफ़ लाया उनके पास वह जाना पहचाना, उस से मुन्किर हो बैठे तो अल्लाह की लानत मुन्किरों पर
90. بِئْسَمَا اشْتَرَوْا بِهِ أَنْفُسَهُمْ أَنْ يَكْفُرُوا بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ بَغْيًا أَنْ يُنَزِّلَ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ عَلَى مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ فَبَاءُوا بِغَضَبٍ عَلَى غَضَبٍ وَلِلْكَافِرِينَ عَذَابٌ مُهِينٌ
किस बुरे मोलों उन्होंने अपनी जानों को ख़रीदा कि अल्लाह के उतारे से मुन्किर हों इस की जलन से कि अल्लाह अपनी फज़ल से अपने जिस बन्दे पर चाहे वही (देव वाणी) उतारे तो ग़ज़ब पर ग़ज़ब (प्रकोप) के सज़ावार (अधिकारी) हुए और काफ़िरों के लिये ज़िल्लत का अज़ाब है
91. وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ آمِنُوا بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ قَالُوا نُؤْمِنُ بِمَا أُنْزِلَ عَلَيْنَا وَيَكْفُرُونَ بِمَا وَرَاءَهُ وَهُوَ الْحَقُّ مُصَدِّقًا لِمَا مَعَهُمْ قُلْ فَلِمَ تَقْتُلُونَ أَنْبِيَاءَ اللَّهِ مِنْ قَبْلُ إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ
और जब उनसे कहा जाए कि अल्लाह के उतारे पर ईमान लाओ तो कहते है वह जो हम पर उतरा उसपर ईमान लाते हैं और बाक़ी से मुन्क़िर होते हैं हालांकि वह हक़ है उनके पास वाली की तस्दीक़ (पुष्टि) फ़रमाता हुआ तुम फ़रमाओ कि फिर अगले अम्बिया को क्यों शहीद किया अगर तुम्हें अपनी किताब पर ईमान था
92. وَلَقَدْ جَاءَكُمْ مُوسَى بِالْبَيِّنَاتِ ثُمَّ اتَّخَذْتُمُ الْعِجْلَ مِنْ بَعْدِهِ وَأَنْتُمْ ظَالِمُونَ
और बेशक तुम्हारे पास मूसा खुली निशानियाँ लेकर तशरीफ़ लाया फिर तुमने उसके बाद बछड़े को माबूद (पूजनीय) बना लिया और तुम ज़ालिम थे
93. وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَكُمْ وَرَفَعْنَا فَوْقَكُمُ الطُّورَ خُذُوا مَا آتَيْنَاكُمْ بِقُوَّةٍ وَاسْمَعُوا قَالُوا سَمِعْنَا وَعَصَيْنَا وَأُشْرِبُوا فِي قُلُوبِهِمُ الْعِجْلَ بِكُفْرِهِمْ قُلْ بِئْسَمَا يَأْمُرُكُمْ بِهِ إِيمَانُكُمْ إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ
और याद करो जब हमने तुमसे पैमान (वादा) लिया और कोहे तूर को तुम्हारे सरों पर बलन्द किया, लो जो हम तुम्हें देते हैं ज़ोर से और सुनो. बोले हम ने सुना और न माना और उनके दिलों में बछड़ा रच रहा था उनके कुफ़्र के सबब तुम फ़रमादो क्या बुरा हुक्म देता है तुमको तुम्हारा ईमान अगर ईमान रखते हो
94. قُلْ إِنْ كَانَتْ لَكُمُ الدَّارُ الْآخِرَةُ عِنْدَ اللَّهِ خَالِصَةً مِنْ دُونِ النَّاسِ فَتَمَنَّوُا الْمَوْتَ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ
तुम फ़रमाओ अगर पिछला घर अल्लाह के नज़दीक ख़ालिस तुम्हारे लिये हो न औरों के लिये तो भला मौत की आरज़ू तो करो अगर सच्चे हो
95. وَلَنْ يَتَمَنَّوْهُ أَبَدًا بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِالظَّالِمِينَ
और हरगिज़ कभी उसकी आरज़ू न करेंगे उन बंद आ़मालियों के सबब जो आगे कर चुके और अल्लाह ख़ूब जानता है ज़ालिमों को
96. وَلَتَجِدَنَّهُمْ أَحْرَصَ النَّاسِ عَلَى حَيَاةٍ وَمِنَ الَّذِينَ أَشْرَكُوا يَوَدُّ أَحَدُهُمْ لَوْ يُعَمَّرُ أَلْفَ سَنَةٍ وَمَا هُوَ بِمُزَحْزِحِهِ مِنَ الْعَذَابِ أَنْ يُعَمَّرَ وَاللَّهُ بَصِيرٌ بِمَا يَعْمَلُونَ
और बेशक तुम ज़रूर उन्हें पाओगे कि सब लोगों से ज़्यादा जीने की हवस रखते हैं और मुश्रिको (मूर्तिपूजको) से एक को तमन्ना है कि कहीं हज़ार बरस जिये और वह उसे अज़ाब से दूर न करेगा इतनी उम्र दिया जाना और अल्लाह उनके कौतुक देख रहा है
97. قُلْ مَنْ كَانَ عَدُوًّا لِجِبْرِيلَ فَإِنَّهُ نَزَّلَهُ عَلَى قَلْبِكَ بِإِذْنِ اللَّهِ مُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهِ وَهُدًى وَبُشْرَى لِلْمُؤْمِنِينَ
तुम फ़रमादो जो कोई जिब्रील का दुश्मन हो तो उस (जिब्रील) ने तो तुम्हारे दिल पर अल्लाह के हुक्म से यह कुरआन उतारा अगली किताबों की तस्दीक़ फ़रमाता और हिदायत व बशारत (ख़ुशख़बरी) मुसलमानों को
98. مَنْ كَانَ عَدُوًّا لِلَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَرُسُلِهِ وَجِبْرِيلَ وَمِيكَالَ فَإِنَّ اللَّهَ عَدُوٌّ لِلْكَافِرِينَ
जो कोई दुश्मन हो अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों आैर जिब्रील और मीकाईल का तो अल्लाह दुश्मन है काफ़िरों का
99. وَلَقَدْ أَنْزَلْنَا إِلَيْكَ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ وَمَا يَكْفُرُ بِهَا إِلَّا الْفَاسِقُونَ
और बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ रौशन आयतें उतारीं और उनके मुन्किर न होंगे मगर फ़ासिक़ (कुकर्मी) लोग
100. أَوَكُلَّمَا عَاهَدُوا عَهْدًا نَبَذَهُ فَرِيقٌ مِنْهُمْ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ
और क्या जब कभी कोई एहद करते हैं उनमें एक फ़रीक़ (पक्ष) उसे फेंक देता है बल्कि उन में बहुतेरों को ईमान नहीं
101. وَلَمَّا جَاءَهُمْ رَسُولٌ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ مُصَدِّقٌ لِمَا مَعَهُمْ نَبَذَ فَرِيقٌ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ كِتَابَ اللَّهِ وَرَاءَ ظُهُورِهِمْ كَأَنَّهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
और जब उनके पास तशरीफ़ लाया अल्लाह के यहां से एक रसूल उनकी किताबों की तस्दीक़ फ़रमाता तो किताब वालों से एक गिरोह (दल) ने अल्लाह की किताब अपने पीठ पीछे फेंक दी गौया वो कुछ इल्म ही नही रखते
102. وَاتَّبَعُوا مَا تَتْلُو الشَّيَاطِينُ عَلَى مُلْكِ سُلَيْمَانَ وَمَا كَفَرَ سُلَيْمَانُ وَلَكِنَّ الشَّيَاطِينَ كَفَرُوا يُعَلِّمُونَ النَّاسَ السِّحْرَ وَمَا أُنْزِلَ عَلَى الْمَلَكَيْنِ بِبَابِلَ هَارُوتَ وَمَارُوتَ وَمَا يُعَلِّمَانِ مِنْ أَحَدٍ حَتَّى يَقُولَا إِنَّمَا نَحْنُ فِتْنَةٌ فَلَا تَكْفُرْ فَيَتَعَلَّمُونَ مِنْهُمَا مَا يُفَرِّقُونَ بِهِ بَيْنَ الْمَرْءِ وَزَوْجِهِ وَمَا هُمْ بِضَارِّينَ بِهِ مِنْ أَحَدٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ وَيَتَعَلَّمُونَ مَا يَضُرُّهُمْ وَلَا يَنْفَعُهُمْ وَلَقَدْ عَلِمُوا لَمَنِ اشْتَرَاهُ مَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِنْ خَلَاقٍ وَلَبِئْسَ مَا شَرَوْا بِهِ أَنْفُسَهُمْ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ
और उसके पैरो हुए जो शैतान पढ़ा करते थे सल्तनत ए सुलैमान के ज़माने में और सुलैमान ने क़ुफ़्र न किया हाँ शैतान काफ़िर हुए लोगों को जादू सिखाते हैं और वह (जादू) जो बाबुल में दो फ़रिश्तों हारूत और मारूत पर उतरा और वो दोनों किसी को कुछ न सिखाते जब तक यह न कह लेते कि हम तो निरी आज़मायश हैं तू अपना ईमान न खो तो उनसे सीखते वह जिससे जुदाई डालें मर्द और उसकी औरत में और उस से ज़रर (हानि) नहीं पहुंचा सकते किसी को मगर ख़ुदा के हुक्म से और वो सीखते हैं जो उन्हें नुक़सान देगा नफ़ा न देगा और बेशक ज़रूर उन्हें मालूम है कि जिसने यह सौदा लिया आख़िरत में उसका कुछ हिस्सा नहीं और बेशक क्या बुरी चीज़ है वह जिसके बदले उन्होंने अपनी जानें बेचीं किसी तरह उन्हें इल्म होता
103. وَلَوْ أَنَّهُمْ آمَنُوا وَاتَّقَوْا لَمَثُوبَةٌ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ خَيْرٌ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ
और अगर वो ईमान लाते और परहेज़गारी करते तो अल्लाह के यहां का सवाब बहुत अच्छा है किसी तरह उन्हें ईल्म होता
104. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقُولُوا رَاعِنَا وَقُولُوا انْظُرْنَا وَاسْمَعُوا وَلِلْكَافِرِينَ عَذَابٌ أَلِيمٌ
ऐ ईमान वालों “राइना” न कहो और यूं अर्ज़ करो कि हुज़ूर हम पर नज़र रख़ें और पहले ही से बग़ौर सुनो और काफ़िरों के लिये दर्दनाक अज़ाब है
105. مَا يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَلَا الْمُشْرِكِينَ أَنْ يُنَزَّلَ عَلَيْكُمْ مِنْ خَيْرٍ مِنْ رَبِّكُمْ وَاللَّهُ يَخْتَصُّ بِرَحْمَتِهِ مَنْ يَشَاءُ وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ
वो जो काफ़िर हैं किताबी या मुश्रिक वो नहीं चाहते कि तुम पर कोई भलाई उतरे तुम्हारे रब के पास से और अल्लाह अपनी रहमत से ख़ास करता है जिसे चाहे और अल्लाह बड़े फ़ज्ल़(अनुकम्पा) वाला
106. مَا نَنْسَخْ مِنْ آيَةٍ أَوْ نُنْسِهَا نَأْتِ بِخَيْرٍ مِنْهَا أَوْ مِثْلِهَا أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
जब कोई आयत हम मन्सूख़ (निरस्त) फ़रमाएं या भुला दें तो उससे बेहतर या उस जैसी ले आएंगे, क्या तुझे ख़बर नहीं कि अल्लाह सब कुछ कर सकता है
107. أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا لَكُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ
क्या तुझे ख़बर नहीं कि अल्लाह ही के लिये है आसमानों और ज़मीन की बादशाही और अल्लाह के सिवा तुम्हारा न कोई हिमायती न मददगार
108. أَمْ تُرِيدُونَ أَنْ تَسْأَلُوا رَسُولَكُمْ كَمَا سُئِلَ مُوسَى مِنْ قَبْلُ وَمَنْ يَتَبَدَّلِ الْكُفْرَ بِالْإِيمَانِ فَقَدْ ضَلَّ سَوَاءَ السَّبِيلِ
क्या यह चाहते हो कि अपने रसूल से वैसा सवाल करो जो पहले मूसा से हुआ था और जो ईमान के बदले कुफ़्र लें वह ठीक रास्ता बहक गया
109. وَدَّ كَثِيرٌ مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ لَوْ يَرُدُّونَكُمْ مِنْ بَعْدِ إِيمَانِكُمْ كُفَّارًا حَسَدًا مِنْ عِنْدِ أَنْفُسِهِمْ مِنْ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمُ الْحَقُّ فَاعْفُوا وَاصْفَحُوا حَتَّى يَأْتِيَ اللَّهُ بِأَمْرِهِ إِنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
बहुत किताबियों ने चाहा काश तुम्हें ईमान के बाद कुफ़्र की तरफ़ फेर दें अपने दिलों की जलन से बाद इसके कि हक़ उनपर ख़ूब ज़ाहिर हो चुका है, तो तुम छोड़ो और दरगुज़र (क्षमा) करो यहां तक कि अल्लाह अपना हुक्म लाए बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर (शक्तिमान) है
110. وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَمَا تُقَدِّمُوا لِأَنْفُسِكُمْ مِنْ خَيْرٍ تَجِدُوهُ عِنْدَ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
और नमाज़ क़ायम रखो और ज़कात दो और अपनी जानों के लिये जो भलाई आगे भेजोगे उसे अल्लाह के यहां पाओगे बेशक अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है
111. وَقَالُوا لَنْ يَدْخُلَ الْجَنَّةَ إِلَّا مَنْ كَانَ هُودًا أَوْ نَصَارَى تِلْكَ أَمَانِيُّهُمْ قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ
और अहले किताब बोले हरगिज़ जन्नत में न जाएगा मगर वह जो यहूदी या नसरानी (ईसाई) हो ये उनकी ख्य़ालबंदिया हैं, तुम फ़रमाओ लाओ अपनी दलील अगर सच्चे हो
112. بَلَى مَنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُ لِلَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَلَهُ أَجْرُهُ عِنْدَ رَبِّهِ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ
हाँ क्यों नहीं जिसने अपना मुंह झुकाया अल्लाह के लिये और वह नेकोकार है तो उसका नेग उसके रब के पास है, और उन्हें न कुछ अन्देशा हो और न कुछ ग़म
113. وَقَالَتِ الْيَهُودُ لَيْسَتِ النَّصَارَى عَلَى شَيْءٍ وَقَالَتِ النَّصَارَى لَيْسَتِ الْيَهُودُ عَلَى شَيْءٍ وَهُمْ يَتْلُونَ الْكِتَابَ كَذَلِكَ قَالَ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ مِثْلَ قَوْلِهِمْ فَاللَّهُ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ
और यहूदी बोले नसरानी (ईसाई) कुछ नहीं और नसरानी बोले यहूदी कुछ नहीं हालांकि वो किताब पढ़ते हैं इसी तरह जाहिलों ने उनकी सी बात कही तो अल्लाह क़यामत के दिन उनमें फ़ैसला कर देगा जिस बात में झगड़ रहे हैं
114. وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنْ مَنَعَ مَسَاجِدَ اللَّهِ أَنْ يُذْكَرَ فِيهَا اسْمُهُ وَسَعَى فِي خَرَابِهَا أُولَئِكَ مَا كَانَ لَهُمْ أَنْ يَدْخُلُوهَا إِلَّا خَائِفِينَ لَهُمْ فِي الدُّنْيَا خِزْيٌ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह की मस्जिदों को रोके उनमें खुदा का नाम लिये जाने से और उनकी वीरानी मे कोशिश करे उनको न पहुंचता था कि मस्जिदों में जाएं मगर डरते हुए उनके लिये दुनिया में रूस्वाई है और उनके लिये आख़िरत में बड़ा अज़ाब
115. وَلِلَّهِ الْمَشْرِقُ وَالْمَغْرِبُ فَأَيْنَمَا تُوَلُّوا فَثَمَّ وَجْهُ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ وَاسِعٌ عَلِيمٌ
और पूरब पश्चिम सब अल्लाह ही का है तो तुम जिधर मुंह करो उधर वज्हुल्लाह (ख़ुदा की रहमत तुम्हारी तरफ़ मुतवज्जेह) है बेशक अल्लाह वुसअत (विस्तार) वाला इल्म वाला है
116. وَقَالُوا اتَّخَذَ اللَّهُ وَلَدًا سُبْحَانَهُ بَلْ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ كُلٌّ لَهُ قَانِتُونَ
और बोले ख़ुदा ने अपने लिये औलाद रखी, पाकी है उसे बल्कि उसीकी मिल्क (संपत्ति) है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है सब उसके हुज़ूर (प्रत्यक्ष) गर्दन डाले है
117. بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَإِذَا قَضَى أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ
नया पैदा करने वाला आसमानों और ज़मीन का और जब किसी बात का हुक्म फ़रमाए तो उससे यही फ़रमाता है कि हो जा और वह फ़ौरन हो जाती है
118. وَقَالَ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ لَوْلَا يُكَلِّمُنَا اللَّهُ أَوْ تَأْتِينَا آيَةٌ كَذَلِكَ قَالَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ مِثْلَ قَوْلِهِمْ تَشَابَهَتْ قُلُوبُهُمْ قَدْ بَيَّنَّا الْآيَاتِ لِقَوْمٍ يُوقِنُونَ
और जाहिल बोले अल्लाह हम से क्यों नहीं कलाम करता या हमें कोई निशानी मिले उनसे अगलों ने भी एेसी ही कही उनकी सी बात. इनके उनके दिल एक से है बेशक हमने निशानियाँ खोल दीं यक़ीन वालों के लिये
119. إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ بِالْحَقِّ بَشِيرًا وَنَذِيرًا وَلَا تُسْأَلُ عَنْ أَصْحَابِ الْجَحِيمِ
बेशक हमने तुम्हें हक़ के साथ भेजा ख़ुशख़बरी देता और डर सुनाता और तुमसे दोज़ख़ वालों का सवाल न होगा
120. وَلَنْ تَرْضَى عَنْكَ الْيَهُودُ وَلَا النَّصَارَى حَتَّى تَتَّبِعَ مِلَّتَهُمْ قُلْ إِنَّ هُدَى اللَّهِ هُوَ الْهُدَى وَلَئِنِ اتَّبَعْتَ أَهْوَاءَهُمْ بَعْدَ الَّذِي جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ مَا لَكَ مِنَ اللَّهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ
और हरगिज़ तुमसे यहूद और नसारा (ईसाई) राज़ी न होंगे जब तक तुम उनके दीन की पैरवी न करो तुम फ़रमा दो की अल्लाह ही की हिदायत हिदायत है और (ऐ सुनने वाले, किसे बाशिन्द) अगर तू उनकी ख्वाहिशों का पैरो हुआ बाद इसके कि तुझे इल्म आचुका तो अल्लाह से तेरा कोई बचाने वाला न होगा और न मददगार
121. الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَتْلُونَهُ حَقَّ تِلَاوَتِهِ أُولَئِكَ يُؤْمِنُونَ بِهِ وَمَنْ يَكْفُرْ بِهِ فَأُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ
जिन्हें हमने किताब दी है वो जैसी चाहिये उसकी तिलावत (पाठ) करते है वही उस पर ईमान रखते है और जो उसके मुन्किर हुए तो वही ज़्या कार हैं
122. يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اذْكُرُوا نِعْمَتِيَ الَّتِي أَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَأَنِّي فَضَّلْتُكُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ
ऐ यअक़ूब की सन्तान, याद करो मेरा एहसान जो मैं ने तुमपर किया और वह जो मैंने उस ज़माने के सब लोगों पर तुम्हें बड़ाई दी
123. وَاتَّقُوا يَوْمًا لَا تَجْزِي نَفْسٌ عَنْ نَفْسٍ شَيْئًا وَلَا يُقْبَلُ مِنْهَا عَدْلٌ وَلَا تَنْفَعُهَا شَفَاعَةٌ وَلَا هُمْ يُنْصَرُونَ
और डरो उस दिन से कि कोई जान दूसरे का बदला न होगी और न उसको कुछ लेकर छोड़े और न क़ाफ़िर को कोई सिफ़ारिश नफ़ा दे और न उनकी मदद हो
124. وَإِذِ ابْتَلَى إِبْرَاهِيمَ رَبُّهُ بِكَلِمَاتٍ فَأَتَمَّهُنَّ قَالَ إِنِّي جَاعِلُكَ لِلنَّاسِ إِمَامًا قَالَ وَمِنْ ذُرِّيَّتِي قَالَ لَا يَنَالُ عَهْدِي الظَّالِمِينَ
और जब इब्राहिम को उसके रब ने कुछ बातों से आज़माया तो उसने वो पूरी कर दिखाईं फ़रमाया मैं तुम्हें लोगों का पेशवा बनाने वाला हूँ अर्ज़ की और मेरी औलाद से फ़रमाया मेरा एहद ज़ालिमों को नहीं पहुंचता
125. وَإِذْ جَعَلْنَا الْبَيْتَ مَثَابَةً لِلنَّاسِ وَأَمْنًا وَاتَّخِذُوا مِنْ مَقَامِ إِبْرَاهِيمَ مُصَلًّى وَعَهِدْنَا إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ أَنْ طَهِّرَا بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْعَاكِفِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ
और याद करो जब हमने उस घर को लोगों के लिये मरजअ (शरण स्थल) और अमान बनाया और इब्राहीम के खड़े होने की जगह को नमाज़ का मक़ाम बनाओ और हमने ताक़ीद फ़रमाई इब्राहीम व इस्माईल को कि मेरा घर ख़ूब सुथरा करो तवाफ़ वालो (परिक्रमा वालों) और एतिक़ाफ़ वालों (मस्जिद में बैठने वालों) और रूकू व सजुद वालों के लिये
126. وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ اجْعَلْ هَذَا بَلَدًا آمِنًا وَارْزُقْ أَهْلَهُ مِنَ الثَّمَرَاتِ مَنْ آمَنَ مِنْهُمْ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ قَالَ وَمَنْ كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُ قَلِيلًا ثُمَّ أَضْطَرُّهُ إِلَى عَذَابِ النَّارِ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ
और जब अर्ज़ की इब्राहीम ने कि ऐ मेरे रब इस शहर को अमान वाला कर दे और इसके रहने वालों को तरह तरह के फलो से रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और पिछले दीन पर ईमान लाएं फ़रमाया और जो क़ाफिर हुआ थोड़ा बरतने को उसे भी दूंगा फिर उसे अज़ाबे दोज़ख की तरफ़ मजबूर करूं गा और बहुत बुरी जगह पलटने की
127. وَإِذْ يَرْفَعُ إِبْرَاهِيمُ الْقَوَاعِدَ مِنَ الْبَيْتِ وَإِسْمَاعِيلُ رَبَّنَا تَقَبَّلْ مِنَّا إِنَّكَ أَنْتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
और जब उठाता था इब्राहीम उस घर की नींव और इस्माईल यह कहते हुए ऐ रब हमारे हम से क़ुबूल फ़रमा बेशक तू ही है सुनता जानता
128. رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِنْ ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُسْلِمَةً لَكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبْ عَلَيْنَا إِنَّكَ أَنْتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ
ऐ रब हमारे और कर हमें तेरे हुज़ूर गर्दन रखने वाले और हमारी औलाद में से एक उम्मत (जन समूह) तेरी फ़रमाँबरदार (आज्ञाकारी) और हमें हमारी इबादत के क़ायदे बता और हम पर अपनी रहमत के साथ रूजू (तवज्जुह) फ़रमा बेशक तू ही है बहुत तौबह क़ुबूल करने वाला मेहरबान
129. رَبَّنَا وَابْعَثْ فِيهِمْ رَسُولًا مِنْهُمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِكَ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَيُزَكِّيهِمْ إِنَّكَ أَنْتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
ऐ रब हमारे और भेज उनमें एक रसूल उन्हीं में से कि उन पर तेरी आयतें तिलावत फ़रमाए और उन्हें तेरी किताब और पुख़्ता (पायदार) इल्म सिखाए और उन्हें ख़ूब सुथरा फ़रमा दे बेशक तू ही है ग़ालिब हिक़मत वाला
130. وَمَنْ يَرْغَبُ عَنْ مِلَّةِ إِبْرَاهِيمَ إِلَّا مَنْ سَفِهَ نَفْسَهُ وَلَقَدِ اصْطَفَيْنَاهُ فِي الدُّنْيَا وَإِنَّهُ فِي الْآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ
और इब्राहीम के दीन से कौन मुंह फेरे सिवा उसके जो दिल का अहमक़ है और बेशक ज़रूर हम ने दुनिया में उसे चुन लिया और बेशक वह आख़िरत में हमारे ख़ास कुर्ब (समीपता) की का़बलियत वालों में हैं
131. إِذْ قَالَ لَهُ رَبُّهُ أَسْلِمْ قَالَ أَسْلَمْتُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ
जबकि उससे उसके रब ने फ़रमाया गर्दन रख, अर्ज़ की मैंने गर्दन रखी उस के लिए जो रब है सारे जहान का
132. وَوَصَّى بِهَا إِبْرَاهِيمُ بَنِيهِ وَيَعْقُوبُ يَا بَنِيَّ إِنَّ اللَّهَ اصْطَفَى لَكُمُ الدِّينَ فَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنْتُمْ مُسْلِمُونَ
और उसी दीन की वसीयत की इब्राहीम ने अपने बेटों को और यअक़ूब ने कि ऐ मेरे बेटो बेशक अल्लाह ने यह दीन तुम्हारे लिये चुन लिया तो न मरना मगर मुसलमान
133. أَمْ كُنْتُمْ شُهَدَاءَ إِذْ حَضَرَ يَعْقُوبَ الْمَوْتُ إِذْ قَالَ لِبَنِيهِ مَا تَعْبُدُونَ مِنْ بَعْدِي قَالُوا نَعْبُدُ إِلَهَكَ وَإِلَهَ آبَائِكَ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ إِلَهًا وَاحِدًا وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ
बल्कि तुम में के ख़ुद मौजूद थे जब यअक़ूब को मौत आई जबकि उसने अपने बेटों से फ़रमाया मेरे बाद किसकी पूजा करोगे बोले हम पूजेंगे उसे जो ख़ुदा है आपका और आपके वालिदों (पूर्वज) इब्राहीम व इस्माईल व इस्हाक़ का एक ख़ुदा और हम उसके हुज़ूर गर्दन रखे हैं
134. تِلْكَ أُمَّةٌ قَدْ خَلَتْ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَلَكُمْ مَا كَسَبْتُمْ وَلَا تُسْأَلُونَ عَمَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ
यह एक उम्मत है कि गुजर चुकी उनके लिये जो उन्होंने कमाया और तुम्हारे लिये है जो तुम कमाओ और उनके कामों की तुम से पुरसिश न होगी
135. وَقَالُوا كُونُوا هُودًا أَوْ نَصَارَى تَهْتَدُوا قُلْ بَلْ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ
और किताबी बोले यहूदी या नसरानी हो जाओ राह पाओगे, तुम फ़रमाओ बल्कि हम तो इब्राहीम का दीन लेते हैं जो हर बातिल (असत्य) से जुदा थे और मुश्रिकों से न थे
136. قُولُوا آمَنَّا بِاللَّهِ وَمَا أُنْزِلَ إِلَيْنَا وَمَا أُنْزِلَ إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالْأَسْبَاطِ وَمَا أُوتِيَ مُوسَى وَعِيسَى وَمَا أُوتِيَ النَّبِيُّونَ مِنْ رَبِّهِمْ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِنْهُمْ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ
यूं कहो कि हम ईमान लाए अल्लाह पर और उसपर जो हमारी तरफ़ उतरा और जो उतारा गया इब्राहीम व इस्माईल व इस्हाक़ व यअक़ूब और उनकी औलाद पर और जो अता किये गए मूसा व ईसा और जो अता किये गए बाक़ि अन्बिया अपने रब के पास से हम उन में किसी पर ईमान में फ़र्क़ नहीं करते और हम अल्लाह के हुज़ूर गर्दन रखे हैं
137. فَإِنْ آمَنُوا بِمِثْلِ مَا آمَنْتُمْ بِهِ فَقَدِ اهْتَدَوْا وَإِنْ تَوَلَّوْا فَإِنَّمَا هُمْ فِي شِقَاقٍ فَسَيَكْفِيكَهُمُ اللَّهُ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
फिर अगर वो भी यूंही ईमान लाए जैसा तुम लाए जब तो वो हिदायत पा गए और अगर मुंह फेरें तो वो निरी ज़िद में हैं तो ऐ मेहबूब अन्करीब अल्लाह उनकी तरफ़ से तुम्हें किफ़ायत करेगा (काफ़ी होगा) और वही है सुनता जानता
138. صِبْغَةَ اللَّهِ وَمَنْ أَحْسَنُ مِنَ اللَّهِ صِبْغَةً وَنَحْنُ لَهُ عَابِدُونَ
हमने अल्लाह की रैनी ली और अल्लाह से बेहतर किसकी रैनी, और हम उसी को पूजते हैं
139. قُلْ أَتُحَاجُّونَنَا فِي اللَّهِ وَهُوَ رَبُّنَا وَرَبُّكُمْ وَلَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ وَنَحْنُ لَهُ مُخْلِصُونَ
तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह के बारे में हम से झगड़ते हो हालांकि वह हमारा भी मालिक है और तुम्हारा भी और हमारी करनी हमारे साथ और तुम्हारी करनी तुम्हारे साथ और हम निरे उसी के हैं
140. أَمْ تَقُولُونَ إِنَّ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالْأَسْبَاطَ كَانُوا هُودًا أَوْ نَصَارَى قُلْ أَأَنْتُمْ أَعْلَمُ أَمِ اللَّهُ وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنْ كَتَمَ شَهَادَةً عِنْدَهُ مِنَ اللَّهِ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ
बल्कि तुम यूं कहते हो कि इब्राहीम व इस्माईल व इस्हाक़ व यअक़ूब और उनके बेटे यहूदी या नसरानी थे तुम फ़रमाओ क्या तुम्हें इल्म ज़्यादा है या अल्लाह को और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जिसके पास अल्लाह की तरफ़ की गवाही हो और वह उसे छुपाए और ख़ुदा तुम्हारे कौतुकों से बेख़बर नहीं
141. تِلْكَ أُمَّةٌ قَدْ خَلَتْ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَلَكُمْ مَا كَسَبْتُمْ وَلَا تُسْأَلُونَ عَمَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ
वह एक गिरोह (समूह) है कि गुज़र गया उनके लिये उनकी कमाई और तुम्हारे लिये तुम्हारी कमाई और उनके कामों की तुमसे पूरसिश न होगी
142. سَيَقُولُ السُّفَهَاءُ مِنَ النَّاسِ مَا وَلَّاهُمْ عَنْ قِبْلَتِهِمُ الَّتِي كَانُوا عَلَيْهَا قُلْ لِلَّهِ الْمَشْرِقُ وَالْمَغْرِبُ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ
अब कहेंगे बेवकूफ़ लोग किसने फेर दिया मुसलमानों को, उनके इस क़िबले से, जिसपर थे तुम फ़रमा दो कि पूरब पश्चिम सब अल्लाह ही का है जिसे चाहे सीधी राह चलाता है
143. وَكَذَلِكَ جَعَلْنَاكُمْ أُمَّةً وَسَطًا لِتَكُونُوا شُهَدَاءَ عَلَى النَّاسِ وَيَكُونَ الرَّسُولُ عَلَيْكُمْ شَهِيدًا وَمَا جَعَلْنَا الْقِبْلَةَ الَّتِي كُنْتَ عَلَيْهَا إِلَّا لِنَعْلَمَ مَنْ يَتَّبِعُ الرَّسُولَ مِمَّنْ يَنْقَلِبُ عَلَى عَقِبَيْهِ وَإِنْ كَانَتْ لَكَبِيرَةً إِلَّا عَلَى الَّذِينَ هَدَى اللَّهُ وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُضِيعَ إِيمَانَكُمْ إِنَّ اللَّهَ بِالنَّاسِ لَرَءُوفٌ رَحِيمٌ
और बात यूं ही है कि हमने तुम्हें किया सब उम्मतों में अफ़ज़ल, कि तुम लोगों पर गवाह हो और ये रसूल तुम्हारे निगहबान व गवाह और ऐ मेहबूब तुम पहले जिस क़िबले पर थे हमने वह इसी लिये मुक़र्रर (निश्चित) किया था कि देखें कौन रसूल की पैरवी करता है और कौन उल्टे पांव फिर जाता है और बेशक यह भारी थी मगर उनपर, जिन्हें अल्लाह ने हिदायत की, और अल्लाह की शान नहीं कि तुम्हारा ईमान अकारत करे बेशक अल्लाह आदमियों पर बहुत मेहरबान, मेहर (कृपा) वाला है
144. قَدْ نَرَى تَقَلُّبَ وَجْهِكَ فِي السَّمَاءِ فَلَنُوَلِّيَنَّكَ قِبْلَةً تَرْضَاهَا فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَحَيْثُ مَا كُنْتُمْ فَوَلُّوا وُجُوهَكُمْ شَطْرَهُ وَإِنَّ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ لَيَعْلَمُونَ أَنَّهُ الْحَقُّ مِنْ رَبِّهِمْ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا يَعْمَلُونَ
हम देख रहे हैं बार बार तुम्हारा आसमान की तरफ़ मुंह करना तो जरूर हम तुम्हें फेर देंगे उस क़िबले की तरफ़ जिसमें तुम्हारी ख़ुशी है अभी अपना मुंह फेर दो मस्जिदे हराम की तरफ़, और ऐ मुसलमानों तुम जहां कहीं हो अपना मुंह उसी की तरफ़ करो और वो जिन्हें किताब मिली है ज़रूर जानते कि यह उनके रब की तरफ़ से हक़ है और अल्लाह उनके कौतुकों से बेख़बर नहीं
145. وَلَئِنْ أَتَيْتَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ بِكُلِّ آيَةٍ مَا تَبِعُوا قِبْلَتَكَ وَمَا أَنْتَ بِتَابِعٍ قِبْلَتَهُمْ وَمَا بَعْضُهُمْ بِتَابِعٍ قِبْلَةَ بَعْضٍ وَلَئِنِ اتَّبَعْتَ أَهْوَاءَهُمْ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ إِنَّكَ إِذًا لَمِنَ الظَّالِمِينَ
और अगर तुम उन किताबियों के पास हर निशानी लेकर आओ वो तुम्हारे क़िबले की पैरवी (अनुकरण) न करेंगे और न तुम उनके क़िबले की पैरवी करो और वह आपस में भी एक दूसरे के क़िबले के ताबे(फ़रमाँबरदार) नहीं और ( ऐ सुनने वाले किसे बाशिद ) अगर तू उनकी ख़्वाहिशों पर चला बाद इसके कि तुझे इल्म मिल चुका तो उस वक़्त तू ज़रूर सितमगार (अन्यायी) होगा
146. الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَعْرِفُونَهُ كَمَا يَعْرِفُونَ أَبْنَاءَهُمْ وَإِنَّ فَرِيقًا مِنْهُمْ لَيَكْتُمُونَ الْحَقَّ وَهُمْ يَعْلَمُونَ
जिन्हें हमने किताब अता फ़रमाई वो उस नबी को ऐसा पहचानते हैं जैसे आदमी अपने बेटों को पहचानता है और बेशक उनमें एक गिरोह (समूह) जान बूझकर हक़ (सच्चाई) छुपाते हैं
147. الْحَقُّ مِنْ رَبِّكَ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ الْمُمْتَرِينَ
(ऐ सुनने वाले) ये हक़ है तरे रब की तरफ़ से (या हक़ वही है जो तेरे रब की तरफ़ से हो) तो ख़बरदार तू शक ना करना
148. وَلِكُلٍّ وِجْهَةٌ هُوَ مُوَلِّيهَا فَاسْتَبِقُوا الْخَيْرَاتِ أَيْنَ مَا تَكُونُوا يَأْتِ بِكُمُ اللَّهُ جَمِيعًا إِنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
और हर एक के लिये तवज्जोह की एक सम्त (दिशा) है कि वह उसी की तरफ़ मुंह करता है तो ये चाहो कि नेकियों में औरों से आगे निकल जाएं तुम कहीं हो अल्लाह तुम सब को इकट्ठा ले आएगा बेशक अल्लाह जो चाहे करे
149. وَمِنْ حَيْثُ خَرَجْتَ فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَإِنَّهُ لَلْحَقُّ مِنْ رَبِّكَ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ
और जहां से आओ अपना मुंह मस्जिदे ह़राम की तरफ़ करो और वह जरुर तुम्हारे रब की तरफ से ह़क़ है और अल्लाह तुम्हारे कामो से ग़ाफील नहीं
150. وَمِنْ حَيْثُ خَرَجْتَ فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَحَيْثُ مَا كُنْتُمْ فَوَلُّوا وُجُوهَكُمْ شَطْرَهُ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَيْكُمْ حُجَّةٌ إِلَّا الَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْهُمْ فَلَا تَخْشَوْهُمْ وَاخْشَوْنِي وَلِأُتِمَّ نِعْمَتِي عَلَيْكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ
और ऐ मेहबूब तुम जहां से आओ अपना मुंह मस्जिदे ह़राम की तरफ़ करो और ऐ मुसलमानों तुम जहां कहीं हो अपना मुंह उसी की तरफ़ करो कि लोगों को तुम पर कोई हु़ज्जत (तर्क) न रहे मगर जो उनमें ना इन्साफ़ी करें तो उनसे न डरो और मुझसे डरो और यह इसलिये है कि मैं अपनी नेअ़मत (अनुकम्पा) तुमपर पूरी करू और किसी तरह तुम हिदायत पाओ
151. كَمَا أَرْسَلْنَا فِيكُمْ رَسُولًا مِنْكُمْ يَتْلُو عَلَيْكُمْ آيَاتِنَا وَيُزَكِّيكُمْ وَيُعَلِّمُكُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَيُعَلِّمُكُمْ مَا لَمْ تَكُونُوا تَعْلَمُونَ
जैसे कि हमने तुममें भेजा एक रसूल तुम में से कि तुम पर हमारी आयतें तिलावत फरमारता है (पढ़ता है) और तुम्हें पाक करता और किताब और पुख़्ता इ़ल्म सिखाता है और तुम्हें वह तालीम फ़रमाता है जिसका तुम्हें इल्म न था
152. فَاذْكُرُونِي أَذْكُرْكُمْ وَاشْكُرُوا لِي وَلَا تَكْفُرُونِ
तो मेरी याद करो, मैं तुम्हारा चर्चा करूंगा और मेरा हक़ मानो और मेरी नाशुक्री ना करो
153. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ وَالصَّلَاةِ إِنَّ اللَّهَ مَعَ الصَّابِرِينَ
ऐ ईमान वालो सब्र और नमाज़ से मदद चाहो बेशक अल्लाह साबिरों (सब्र करने वालों) के साथ है
154. وَلَا تَقُولُوا لِمَنْ يُقْتَلُ فِي سَبِيلِ اللَّهِ أَمْوَاتٌ بَلْ أَحْيَاءٌ وَلَكِنْ لَا تَشْعُرُونَ
और जो ख़ुदा की राह में मारे जाएं उन्हें मुर्दा न कहो बल्कि वो ज़िन्दा हैं, हाँ तुम्हें ख़बर नहीं
155. وَلَنَبْلُوَنَّكُمْ بِشَيْءٍ مِنَ الْخَوْفِ وَالْجُوعِ وَنَقْصٍ مِنَ الْأَمْوَالِ وَالْأَنْفُسِ وَالثَّمَرَاتِ وَبَشِّرِ الصَّابِرِينَ
और ज़रूर हम तुम्हें आज़माएंगे कुछ डर और भूख से और कुछ मालों और जानों और फलों की कमी से और ख़ुशख़बरी सुना उन सब्र वालों को
156. الَّذِينَ إِذَا أَصَابَتْهُمْ مُصِيبَةٌ قَالُوا إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ
कि जब उन पर कोई मुसीबत पड़े तो कहें हम अल्लाह के माल हैं और हमको उसी की तरफ़ फिरना
157. أُولَئِكَ عَلَيْهِمْ صَلَوَاتٌ مِنْ رَبِّهِمْ وَرَحْمَةٌ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُهْتَدُونَ
ये लोग हैं जिनपर उनके रब की दुरूदें हैं और रहमत, और यही लोग राह पर हैं
158. إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِنْ شَعَائِرِ اللَّهِ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ أَنْ يَطَّوَّفَ بِهِمَا وَمَنْ تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ
बेशक सफ़ा और मर्वा (पहाड़ियां) अल्लाह के निशानों से हैं तो जो उस घर का हज या उमरा करे उस पर कुछ गुनाह नहीं कि इन दोनों के फेरे करे और जो कोई भली बात अपनी तरफ़ से करे तो अल्लाह नेकी का सिला (इनाम) देने वाला ख़बरदार है
159. إِنَّ الَّذِينَ يَكْتُمُونَ مَا أَنْزَلْنَا مِنَ الْبَيِّنَاتِ وَالْهُدَى مِنْ بَعْدِ مَا بَيَّنَّاهُ لِلنَّاسِ فِي الْكِتَابِ أُولَئِكَ يَلْعَنُهُمُ اللَّهُ وَيَلْعَنُهُمُ اللَّاعِنُونَ
बेशक वो हमारी उतारी हुई रौशन बातों और हिदायत को छुपाते हैं बाद इसके कि लोगों के लिये हम उसे किताब में वाज़ेह़ (स्पष्ट) फ़रमा चुके हैं उन पर अल्लाह की लअ़नत है और लअ़नत करने वालों की लअ़नत
160. إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا وَأَصْلَحُوا وَبَيَّنُوا فَأُولَئِكَ أَتُوبُ عَلَيْهِمْ وَأَنَا التَّوَّابُ الرَّحِيمُ
मगर वो जो तौबह करें और संवारें और ज़ाहिर करें तो मैं उनकी तौबह क़ुबूल फ़रमाऊंगा और मैं ही हूँ बड़ा तौबह क़ुबूल फ़रमाने वाला मेहरबान
161. إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا وَمَاتُوا وَهُمْ كُفَّارٌ أُولَئِكَ عَلَيْهِمْ لَعْنَةُ اللَّهِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ
बेशक वो जिन्हों ने कुफ़्र किया और क़ाफ़िर ही मरे उन पर लअ़नत है अल्लाह और फ़रिश्तों और आदमियों सबकी
162. خَالِدِينَ فِيهَا لَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنْظَرُونَ
हमेशा रहेंगे उसमें न उनपर से अज़ाब हल्का हो और न उन्हें मोहलत दी जाए
163. وَإِلَهُكُمْ إِلَهٌ وَاحِدٌ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الرَّحْمَنُ الرَّحِيمُ
और तुम्हारा मअ़बूद एक मअ़बूद है उसके के सिवा कोई मअ़बूद नहीं मगर वही बड़ा रह़मत वाला
164. إِنَّ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلَافِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَالْفُلْكِ الَّتِي تَجْرِي فِي الْبَحْرِ بِمَا يَنْفَعُ النَّاسَ وَمَا أَنْزَلَ اللَّهُ مِنَ السَّمَاءِ مِنْ مَاءٍ فَأَحْيَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا وَبَثَّ فِيهَا مِنْ كُلِّ دَابَّةٍ وَتَصْرِيفِ الرِّيَاحِ وَالسَّحَابِ الْمُسَخَّرِ بَيْنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ
बेशक आसमानों और ज़मीन की पैदायश और रात व दिन का बदलते आना और किश्ती कि दरिया में लोगों के फ़ायदे लेकर चलती है और वह जो अल्लाह ने आसमान से पानी उतार कर मुर्दा ज़मीन को उससे जिला दिया और ज़मीन में हर क़िस्म के जानवर फैलाए और हवाओ की गर्दिश (चक्कर) और वह बादल कि आसमान व ज़मीन के बीच में हुक्म का बांधा है इन सब में अक़लमन्दों के लिये ज़रूर निशानियां हैं
165. وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَتَّخِذُ مِنْ دُونِ اللَّهِ أَنْدَادًا يُحِبُّونَهُمْ كَحُبِّ اللَّهِ وَالَّذِينَ آمَنُوا أَشَدُّ حُبًّا لِلَّهِ وَلَوْ يَرَى الَّذِينَ ظَلَمُوا إِذْ يَرَوْنَ الْعَذَابَ أَنَّ الْقُوَّةَ لِلَّهِ جَمِيعًا وَأَنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعَذَابِ
और कुछ लोग अल्लाह के सिवा और माबूद बना लेते हैं कि उन्हें अल्लाह की तरह मेहबूब रखते हैं और ईमान वालों को अल्लाह के बराबर किसी की महब्बत नहीं, और कैसी हो अगर देखें ज़ालिम वह वक्त़ जबकि अज़ाब उनकी आंखों के सामने आएगा इसलिये कि सारा ज़ोर खुदा को है और इसलिये कि अल्लाह का अज़ाब बहुत सख़्त है
166. إِذْ تَبَرَّأَ الَّذِينَ اتُّبِعُوا مِنَ الَّذِينَ اتَّبَعُوا وَرَأَوُا الْعَذَابَ وَتَقَطَّعَتْ بِهِمُ الْأَسْبَابُ
जब बेज़ार होंगे पेशवा अपने पैररुवों से और देखेंगे अज़ाब और कट जाएंगी उनकी सब डोरें
167. وَقَالَ الَّذِينَ اتَّبَعُوا لَوْ أَنَّ لَنَا كَرَّةً فَنَتَبَرَّأَ مِنْهُمْ كَمَا تَبَرَّءُوا مِنَّا كَذَلِكَ يُرِيهِمُ اللَّهُ أَعْمَالَهُمْ حَسَرَاتٍ عَلَيْهِمْ وَمَا هُمْ بِخَارِجِينَ مِنَ النَّارِ
और कहेंगे पैरो काश हमें लौट कर जाना होता (दुनिया में) तो हम उनसे तोड़ देते जैसे उन्होंने हमसे तोड़ दी, यूंही अल्लाह उन्हें दिखाएगा उनके काम उनपर हसरतें होकर और वो दोज़ख से निकलने वाले नहीं
168. يَا أَيُّهَا النَّاسُ كُلُوا مِمَّا فِي الْأَرْضِ حَلَالًا طَيِّبًا وَلَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ
ऐ लोगों खाओ जो कुछ ज़मीन में हलाल पाकीज़ा है और शैतान के क़दम पर क़दम न रखो बेशक वह तुम्हारा खुला दुश्मन है
169. إِنَّمَا يَأْمُرُكُمْ بِالسُّوءِ وَالْفَحْشَاءِ وَأَنْ تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ
वह तो तुम्हें यही हुक़्म देगा बदी और बेहयाई का और यह कि अल्लाह पर वह बात जोड़ो जिसकी तुम्हें ख़बर नहीं
170. وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّبِعُوا مَا أَنْزَلَ اللَّهُ قَالُوا بَلْ نَتَّبِعُ مَا أَلْفَيْنَا عَلَيْهِ آبَاءَنَا أَوَلَوْ كَانَ آبَاؤُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ شَيْئًا وَلَا يَهْتَدُونَ
और जब उनसे कहा जाए अल्लाह के उतारे पर चलो तो कहे बल्कि हम तो उसपर चलेंगे जिसपर अपने बाप दादा को पाया क्या अगरचे (यद्यपि) उनके बाप दादा न कुछ अक़्ल रखते हो न हिदायत
171. وَمَثَلُ الَّذِينَ كَفَرُوا كَمَثَلِ الَّذِي يَنْعِقُ بِمَا لَا يَسْمَعُ إِلَّا دُعَاءً وَنِدَاءً صُمٌّ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَعْقِلُونَ
और क़ाफिरों की कहावत उसकी सी है जो पुकारे ऐसे को कि ख़ाली चीख़ व पुकार के सिवा कुछ न सुने बहरे गूंगे अंधे तो उन्हें समझ नहीं
172. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُلُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ وَاشْكُرُوا لِلَّهِ إِنْ كُنْتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ
ऐ ईमान वालो खाओ हमारी दी हुई सुथरी चीजें और अल्लाह का अहसान मानो अगर तुम उसी को पूजते हो
173. إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةَ وَالدَّمَ وَلَحْمَ الْخِنْزِيرِ وَمَا أُهِلَّ بِهِ لِغَيْرِ اللَّهِ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلَا عَادٍ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
उसने यही तुमपर हराम किये हैं मुर्दार (मृत) और ख़ून और सुअर का गोश्त और वो जानवर जो ग़ैर ख़ुदा का नाम लेकर ज़िब्ह किया गया तो जो नाचार हो न यूं कि ख़्वाहिश से खाए और न यूं कि ज़रूरत से आगे बढ़े तो उसपर गुनाह नहीं, बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है
174. إِنَّ الَّذِينَ يَكْتُمُونَ مَا أَنْزَلَ اللَّهُ مِنَ الْكِتَابِ وَيَشْتَرُونَ بِهِ ثَمَنًا قَلِيلًا أُولَئِكَ مَا يَأْكُلُونَ فِي بُطُونِهِمْ إِلَّا النَّارَ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ اللَّهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَلَا يُزَكِّيهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
वो जो छुपाते हैं अल्लाह की उतारी किताब और उसके बदले ज़लील क़ीमत ले लेते हैं वो अपने पेट में आग ही भरते है और अल्लाह क़यामत के दिन उनसे बात न करेगा और न उन्हें सुथरा करे और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है
175. أُولَئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الضَّلَالَةَ بِالْهُدَى وَالْعَذَابَ بِالْمَغْفِرَةِ فَمَا أَصْبَرَهُمْ عَلَى النَّارِ
वो लोग है जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही मोल ली और बख़्शिश (इनाम) के बदले अज़ाब तो किस दर्जा उन्हें आग की सहार है
176. ذَلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ نَزَّلَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ وَإِنَّ الَّذِينَ اخْتَلَفُوا فِي الْكِتَابِ لَفِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ
ये इसलिये कि अल्लाह ने किताब हक़ के साथ उतारी, और बेशक जो लोग किताब में इख़्तिलाफ (मतभेद) डालने लगे वो ज़रूर परले सिले के झगड़ालू हैं
177. لَيْسَ الْبِرَّ أَنْ تُوَلُّوا وُجُوهَكُمْ قِبَلَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ وَلَكِنَّ الْبِرَّ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالْكِتَابِ وَالنَّبِيِّينَ وَآتَى الْمَالَ عَلَى حُبِّهِ ذَوِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَالسَّائِلِينَ وَفِي الرِّقَابِ وَأَقَامَ الصَّلَاةَ وَآتَى الزَّكَاةَ وَالْمُوفُونَ بِعَهْدِهِمْ إِذَا عَاهَدُوا وَالصَّابِرِينَ فِي الْبَأْسَاءِ وَالضَّرَّاءِ وَحِينَ الْبَأْسِ أُولَئِكَ الَّذِينَ صَدَقُوا وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ
कुछ अस्ल नेकी यह नहीं कि मुंह मश्रिक़ (पूर्व) या मग़रिब (पश्चिम) की तरफ़ करो हाँ अस्ल नेकी ये कि ईमान लाए अल्लाह और क़यामत और फ़रिश्तों और किताब और पैग़म्बर पर और अल्लाह की महब्बत में अपना अज़ीज़ माल दे रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और राहगीर और सायलों (याचकों) को और गर्दन छुड़ाने में और नमाज़ क़ायम रखे और ज़कात दे, और अपना क़ौल पूरा करने वाले जब अहद करें,और सब्र वाले मुसीबत और सख़्ती में और जिहाद के वक़्त, यही हैं जिन्होंने अपनी बात सच्ची की, और यही परहेज़गार हैं
178. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِصَاصُ فِي الْقَتْلَى الْحُرُّ بِالْحُرِّ وَالْعَبْدُ بِالْعَبْدِ وَالْأُنْثَى بِالْأُنْثَى فَمَنْ عُفِيَ لَهُ مِنْ أَخِيهِ شَيْءٌ فَاتِّبَاعٌ بِالْمَعْرُوفِ وَأَدَاءٌ إِلَيْهِ بِإِحْسَانٍ ذَلِكَ تَخْفِيفٌ مِنْ رَبِّكُمْ وَرَحْمَةٌ فَمَنِ اعْتَدَى بَعْدَ ذَلِكَ فَلَهُ عَذَابٌ أَلِيمٌ
ऐ ईमान वालों तुमपर फ़र्ज़ है कि जो नाहक़ मारे जाएं उनके ख़ून का बदला लो आज़ाद के बदले आज़ाद, और ग़ुलाम के बदले ग़ुलाम और औरत के बदले औरत तो जिसके लिये उसके भाई की तरफ़ से कुछ माफ़ी हुई तो भलाई से तक़ाज़ा हो और अच्छी तरह अदा, यह तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम्हारा बोझ हल्का करना है और तुम पर रहमत, तो इसके बाद जो ज़्यादती करे उसके लिये दर्दनाक अज़ाब है
179. وَلَكُمْ فِي الْقِصَاصِ حَيَاةٌ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ
और ख़ून का बदला लेने में तुम्हारी ज़िन्दगी है, ऐ अक़्लमन्दो कि तुम कहीं बचो
180. كُتِبَ عَلَيْكُمْ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ إِنْ تَرَكَ خَيْرًا الْوَصِيَّةُ لِلْوَالِدَيْنِ وَالْأَقْرَبِينَ بِالْمَعْرُوفِ حَقًّا عَلَى الْمُتَّقِينَ
तुमपर फ़र्ज़ हुआ कि जब तुम में किसी को मौत आए अगर कुछ माल छोड़े तो वसीयत करजाए अपने माँ बाप और क़रीब के रिश्तेदारों के लिए मवाफिक़े दस्तूर यह वाजिब है परहेज़गारों पर
181. فَمَنْ بَدَّلَهُ بَعْدَمَا سَمِعَهُ فَإِنَّمَا إِثْمُهُ عَلَى الَّذِينَ يُبَدِّلُونَهُ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
तो जो वसीयत को सुन सुनाकर बदल दे उसका गुनाह उन्हीं बदलने वालों पर है बेशक अल्लाह सुनता जानता है
182. فَمَنْ خَافَ مِنْ مُوصٍ جَنَفًا أَوْ إِثْمًا فَأَصْلَحَ بَيْنَهُمْ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
फिर जिसे अंदेशा हुआ कि वसीयत करने वाले ने कुछ बे इन्साफ़ी या गुनाह किया तो उसने उसमें सुल्ह करा दी उसपर कुछ गुनाह नहीं बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है
183. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ
ऐ ईमान वालों तुमपर रोज़े फ़र्ज़ किये गए जैसे अगलों पर फ़र्ज़ हुए थे कि कहीं तुम्हें परहेज़गारी मिले
184. أَيَّامًا مَعْدُودَاتٍ فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ وَعَلَى الَّذِينَ يُطِيقُونَهُ فِدْيَةٌ طَعَامُ مِسْكِينٍ فَمَنْ تَطَوَّعَ خَيْرًا فَهُوَ خَيْرٌ لَهُ وَأَنْ تَصُومُوا خَيْرٌ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ
गिनती के दिन है तो तुम में जो कोई बीमार या सफ़र में हो तो उतने रोज़े और दिनों में और जिन्हें इसकी ताक़त न हो वो बदला दें एक दरिद्र का खाना फिर जो अपनी तरफ़ से नेकी ज़्यादा करे तो वह उसके लिये बेहतर है, और रोज़ा रखना तुम्हारे लिये ज़्यादा भला है अगर तुम जानो
185. شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنْزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ هُدًى لِلنَّاسِ وَبَيِّنَاتٍ مِنَ الْهُدَى وَالْفُرْقَانِ فَمَنْ شَهِدَ مِنْكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ وَمَنْ كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ يُرِيدُ اللَّهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ وَلِتُكْمِلُوا الْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُوا اللَّهَ عَلَى مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
रमज़ान का महीना जिसमें क़ुरआन उतरा लोगो के लिये हिदायत और रहनुमाई और फैसला की रौशन बातें, तो तुम में जो कोई यह महीना पाए ज़रूर इसके रोज़े रखे और जो बीमार या सफर में हो तो उतने रोज़े और दिनों में अल्लाह तुमपर आसानी चाहता है और तुमपर दुशवारी नहीं चाहता और इसलिये कि तुम गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो इसपर की उसने तुम्हें हिदायत की और कहीं तुम हक़गुज़ार हो (यानि कृतज्ञ)
186. وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌ أُجِيبُ دَعْوَةَ الدَّاعِ إِذَا دَعَانِ فَلْيَسْتَجِيبُوا لِي وَلْيُؤْمِنُوا بِي لَعَلَّهُمْ يَرْشُدُونَ
और ऐ मेहबूब जब तुमसे मेरे बन्दे मुझे पूछें तो में नज़दीक हूँ दुआ क़ुबूल करता हूं पुकारने वाले की जब मुझे पुकारे तो उन्हें चाहिये मेरा हुक़्म माने और मुझपर ईमान लाएं कि कहीं राह पाएं
187. أُحِلَّ لَكُمْ لَيْلَةَ الصِّيَامِ الرَّفَثُ إِلَى نِسَائِكُمْ هُنَّ لِبَاسٌ لَكُمْ وَأَنْتُمْ لِبَاسٌ لَهُنَّ عَلِمَ اللَّهُ أَنَّكُمْ كُنْتُمْ تَخْتَانُونَ أَنْفُسَكُمْ فَتَابَ عَلَيْكُمْ وَعَفَا عَنْكُمْ فَالْآنَ بَاشِرُوهُنَّ وَابْتَغُوا مَا كَتَبَ اللَّهُ لَكُمْ وَكُلُوا وَاشْرَبُوا حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَكُمُ الْخَيْطُ الْأَبْيَضُ مِنَ الْخَيْطِ الْأَسْوَدِ مِنَ الْفَجْرِ ثُمَّ أَتِمُّوا الصِّيَامَ إِلَى اللَّيْلِ وَلَا تُبَاشِرُوهُنَّ وَأَنْتُمْ عَاكِفُونَ فِي الْمَسَاجِدِ تِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ فَلَا تَقْرَبُوهَا كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ آيَاتِهِ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ
रोज़ों की रातों में अपनी औरतों के पास जाना तुम्हारे लिये हलाल (वेद्य) हुआ वो तुम्हारी लिबास हैं और तुम उनके लिबास, अल्लाह ने जाना कि तुम अपनी जानों को ख़यानत (बेईमानी) में डालते थे तो उसने तुम्हारी तौबह क़ुबूल की और तुम्हें माफ़ फ़रमाया तो अब उनसे सोहबत करो और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो और खाओ और पियो यहां तक कि तुम्हारे लिये ज़ाहिर हो जाए सफ़ेदी का डोरा सियाही के डोरे से (पौ फटकर ) फिर रात आने तक रोज़े पूरे करो और औरतों को हाथ न लगाओ जब तुम मस्जिदों में एतिक़ाफ़ में हो (यानि दुनिया से अलग थलग बैठे हो) ये अल्लाह की हदें हैं, इनके पास न जाओ अल्लाह यूं ही बयान करता है लोगों से अपनी आयतें की कहीं उन्हें परहेज़गारी मिले
188. وَلَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُمْ بَيْنَكُمْ بِالْبَاطِلِ وَتُدْلُوا بِهَا إِلَى الْحُكَّامِ لِتَأْكُلُوا فَرِيقًا مِنْ أَمْوَالِ النَّاسِ بِالْإِثْمِ وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ
और आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ ना खाओ और ना हाक़िमों के पास उनका मुक़दमा इस लिये पहुंचाओ कि लोगों का कुछ माल नाज़ायज़ तौर पर खालो जानबूझकर
189. يَسْأَلُونَكَ عَنِ الْأَهِلَّةِ قُلْ هِيَ مَوَاقِيتُ لِلنَّاسِ وَالْحَجِّ وَلَيْسَ الْبِرُّ بِأَنْ تَأْتُوا الْبُيُوتَ مِنْ ظُهُورِهَا وَلَكِنَّ الْبِرَّ مَنِ اتَّقَى وَأْتُوا الْبُيُوتَ مِنْ أَبْوَابِهَا وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
तुमसे नए चांद को पूछते हैं तुम फ़रमादो वो वक़्त की अलामतें (चिन्ह) हैं लोगों और हज के लिये और यह कुछ भलाई नहीं कि घरों में पछैत(पिछली दीवार) तोड़कर आओ हाँ भलाई तो परहेज़गारी है, और घरों में दरवाज़ों से आओ और अल्लाह से डरते रहो इस उम्मीद पर कि फ़लाह (भलाई) पाओ
190. وَقَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ الَّذِينَ يُقَاتِلُونَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوا إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِينَ
और अल्लाह की राह में लड़ो उनसे जो तुमसे लड़ते हैं और हद से न बढ़ो अल्लाह पसन्द नहीं रखता हद से बढ़ने वालों को
191. وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ وَأَخْرِجُوهُمْ مِنْ حَيْثُ أَخْرَجُوكُمْ وَالْفِتْنَةُ أَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِ وَلَا تُقَاتِلُوهُمْ عِنْدَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ حَتَّى يُقَاتِلُوكُمْ فِيهِ فَإِنْ قَاتَلُوكُمْ فَاقْتُلُوهُمْ كَذَلِكَ جَزَاءُ الْكَافِرِينَ
और काफ़िरों को जहाँ पाओ मारो और उन्हें निकाल दो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला था और उनका फ़साद तो क़त्ल से भी सख़्त है और मस्जिदे हराम के पास उनसे न लड़ो जब तक वो तुम से वहां न लड़े और अगर तुमसे लड़ें तो उन्हें क़त्ल करो काफ़िरों की यही सज़ा है
192. فَإِنِ انْتَهَوْا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
फिर अगर वो बाज़ (रूके) रहें तो बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है
193. وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّى لَا تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ لِلَّهِ فَإِنِ انْتَهَوْا فَلَا عُدْوَانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِينَ
और उनसे लड़ो यहाँ तक कि कोई फ़ितना न रहे और एक अल्लाह की पूजी हो, फिर अगर वो बाज़ आएं तो ज़्यादती नहीं मगर ज़ालिमों पर
194. الشَّهْرُ الْحَرَامُ بِالشَّهْرِ الْحَرَامِ وَالْحُرُمَاتُ قِصَاصٌ فَمَنِ اعْتَدَى عَلَيْكُمْ فَاعْتَدُوا عَلَيْهِ بِمِثْلِ مَا اعْتَدَى عَلَيْكُمْ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ مَعَ الْمُتَّقِينَ
माहे हराम के बदले माहे हराम और अदब के बदले अदब है तो जो तुमपर ज़ियादती करे उसपर ज़ियादती करो उतनी ही जितनी उसने की, और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह डरने वालों के साथ है
195. وَأَنْفِقُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلَا تُلْقُوا بِأَيْدِيكُمْ إِلَى التَّهْلُكَةِ وَأَحْسِنُوا إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ
और अल्लाह की राह में ख़र्च करो और अपने हाथों हलाक़त में न पड़ो, और भलाई वाले हो जाओ बेशक भलाई वाले अल्लाह के मेहबूब हैं
196. وَأَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلَّهِ فَإِنْ أُحْصِرْتُمْ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ وَلَا تَحْلِقُوا رُءُوسَكُمْ حَتَّى يَبْلُغَ الْهَدْيُ مَحِلَّهُ فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضًا أَوْ بِهِ أَذًى مِنْ رَأْسِهِ فَفِدْيَةٌ مِنْ صِيَامٍ أَوْ صَدَقَةٍ أَوْ نُسُكٍ فَإِذَا أَمِنْتُمْ فَمَنْ تَمَتَّعَ بِالْعُمْرَةِ إِلَى الْحَجِّ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ فِي الْحَجِّ وَسَبْعَةٍ إِذَا رَجَعْتُمْ تِلْكَ عَشَرَةٌ كَامِلَةٌ ذَلِكَ لِمَنْ لَمْ يَكُنْ أَهْلُهُ حَاضِرِي الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ
और हज और उमरा अल्लाह के लिये पूरा करो फिर अगर तुम रोके जाओ तो क़ुरबानी भेजो जो मयस्सर (उपलब्ध) आए और अपने सर न मुडाओ जब तक क़ुरबानी अपने ठिकाने न पहुंच जाए फिर जो तुममें बीमार हो या उसके सर में कुछ तकलीफ़ है तो बदले दे रोज़े या ख़ैरात या क़ुरबानी, फिर जब तुम इत्मीनान से हो तो जो हज से उमरा मिलाने का फ़ायदा उठाए उसपर क़ुरबानी है जैसी मयस्सर आए फिर जिसे मक़दुर न हो तो तीन रोज़े हज के दिनों में रखे और सात जब अपने घर पलट कर जाओ, ये पूरे दस हुए यह हुक्म उसके लिये है जो मक्के का रहने वाला न हो, और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह का अज़ाब सख़्त है
197. الْحَجُّ أَشْهُرٌ مَعْلُومَاتٌ فَمَنْ فَرَضَ فِيهِنَّ الْحَجَّ فَلَا رَفَثَ وَلَا فُسُوقَ وَلَا جِدَالَ فِي الْحَجِّ وَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ يَعْلَمْهُ اللَّهُ وَتَزَوَّدُوا فَإِنَّ خَيْرَ الزَّادِ التَّقْوَى وَاتَّقُونِ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ
हज के कई महीने हैं जाने हुए तो जो उनमें हज की नियत करे तो न औरतों के सामने सोहबत (संभोग) का तज़किरा (चर्चा) हो न कोई गुनाह न किसी से झगड़ा हज के वक़्त तक और तुम जो भलाई करो अल्लाह उसे जानता है और तोशा साथ लो कि सब से बहतर तोशा परहेज़गारी है और मुझसे डरते रहो ऐ अक़्ल वालो
198. لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَنْ تَبْتَغُوا فَضْلًا مِنْ رَبِّكُمْ فَإِذَا أَفَضْتُمْ مِنْ عَرَفَاتٍ فَاذْكُرُوا اللَّهَ عِنْدَ الْمَشْعَرِ الْحَرَامِ وَاذْكُرُوهُ كَمَا هَدَاكُمْ وَإِنْ كُنْتُمْ مِنْ قَبْلِهِ لَمِنَ الضَّالِّينَ
तुमपर कुछ गुनाह नहीं कि अपने रब का फ़ज़्ल(कृपा) तलाश करो तो जब अरफ़ात(के मैदान) से पलटो तो अल्लाह की याद करो मशअरे हराम के पास और उसका ज़िक्र करो जैसे उसने तुम्हें हिदायत फ़रमाई और बेशक तुम इससे पहले बहके हुए थे
199. ثُمَّ أَفِيضُوا مِنْ حَيْثُ أَفَاضَ النَّاسُ وَاسْتَغْفِرُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
फिर बात यह है कि ऐ कुरैशियो तुम भी वहीं से पलटो जहाँ से लोग पलटते हैं और अल्लाह से माफ़ी मांगो बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है
200. فَإِذَا قَضَيْتُمْ مَنَاسِكَكُمْ فَاذْكُرُوا اللَّهَ كَذِكْرِكُمْ آبَاءَكُمْ أَوْ أَشَدَّ ذِكْرًا فَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَقُولُ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا وَمَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِنْ خَلَاقٍ
फिर जब अपने हज के काम पूरे कर चुको तो अल्लाह का ज़िक्र करो जैसे अपने बाप दादा का ज़िक्र करते थे बल्कि उससे ज़्यादा और कोई आदमी यूँ कहता है कि ऐ रब हमारे हमें दुनिया में दे, और आख़िरत में उसका कुछ हिस्सा नहीं
201. وَمِنْهُمْ مَنْ يَقُولُ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ
और कोई यूँ कहता है कि ऐ रब हमारे हमें दुनिया में भलाई दे और हमें आखिरत में भलाई दे और हमें अज़ाबे दोज़ख से बचा
202. أُولَئِكَ لَهُمْ نَصِيبٌ مِمَّا كَسَبُوا وَاللَّهُ سَرِيعُ الْحِسَابِ
ऐसो को उनकी कमाई से भाग है और अल्लाह जल्द हिसाब करने वाला है
203. وَاذْكُرُوا اللَّهَ فِي أَيَّامٍ مَعْدُودَاتٍ فَمَنْ تَعَجَّلَ فِي يَوْمَيْنِ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ وَمَنْ تَأَخَّرَ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ لِمَنِ اتَّقَى وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّكُمْ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
और अल्लाह की याद करो गिने हुए दिनों में तो जो जल्दी करके दो दिन में चला जाये उसपर कुछ गुनाह नहीं और जो रह जाए तो उस पर गुना है नहीं परहेज़गार के लिये और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि तुम्हें उसी की तरफ़ उठना है
204. وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يُعْجِبُكَ قَوْلُهُ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَيُشْهِدُ اللَّهَ عَلَى مَا فِي قَلْبِهِ وَهُوَ أَلَدُّ الْخِصَامِ
और बा़ज़ आदमी वह है कि दुनिया की ज़िन्दगी में उसकी बात तुझे भली लगे और अपने दिल की बात पर अल्लाह को गवाह लाए और वो सबसे बड़ा झगड़ालू है
205. وَإِذَا تَوَلَّى سَعَى فِي الْأَرْضِ لِيُفْسِدَ فِيهَا وَيُهْلِكَ الْحَرْثَ وَالنَّسْلَ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ الْفَسَادَ
और जब पीठ फेरे तो ज़मीन में फ़साद डालता फिरे और खेती और जानें तबाह करे और अल्लाह फ़साद से राज़ी नहीं
206. وَإِذَا قِيلَ لَهُ اتَّقِ اللَّهَ أَخَذَتْهُ الْعِزَّةُ بِالْإِثْمِ فَحَسْبُهُ جَهَنَّمُ وَلَبِئْسَ الْمِهَادُ
और जब उससे कहा जाए कि अल्लाह से डर तो उसे और ज़िद चढ़े गुनाह की ऐसे को दोज़ख़ काफ़ी है और वह ज़रूर बहुत बुरा बिछोना है
207. وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَشْرِي نَفْسَهُ ابْتِغَاءَ مَرْضَاتِ اللَّهِ وَاللَّهُ رَءُوفٌ بِالْعِبَادِ
और कोई आदमी अपनी जान बेचता है अल्लाह की मर्ज़ी चाहने में और अल्लाह बन्दों पर मेहरबान है
208. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ادْخُلُوا فِي السِّلْمِ كَافَّةً وَلَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ
ऐ ईमान वालो इस्लाम में पूरे दाख़िल हो और शैतान के क़दमों पर न चलो बेशक वह तुम्हारा खुला दुश्मन है
209. فَإِنْ زَلَلْتُمْ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْكُمُ الْبَيِّنَاتُ فَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
और इसके बाद भी बच लो कि तुम्हारे पास रौशन हुक्म आचुके तो जान लो कि अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाला है
210. هَلْ يَنْظُرُونَ إِلَّا أَنْ يَأْتِيَهُمُ اللَّهُ فِي ظُلَلٍ مِنَ الْغَمَامِ وَالْمَلَائِكَةُ وَقُضِيَ الْأَمْرُ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ
काहे के इन्तिज़ार में हैं मगर यही कि अल्लाह का अज़ाब आए, छाए हुए बादलों में और फ़रिश्तें उतरें और काम हो चुके और सब कामों की रुजुअ़ अल्लाह की तरफ़ है
211. سَلْ بَنِي إِسْرَائِيلَ كَمْ آتَيْنَاهُمْ مِنْ آيَةٍ بَيِّنَةٍ وَمَنْ يُبَدِّلْ نِعْمَةَ اللَّهِ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْهُ فَإِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ
बनी इस्राईल से पूछो हमने कितनी रौशन निशानियाँ उन्हें दीं और जो अल्लाह की आई हुई नेअमत को बदल दे तो बेशक अल्लाह का अज़ाब सख़्त है
212. زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُوا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَيَسْخَرُونَ مِنَ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ اتَّقَوْا فَوْقَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَاللَّهُ يَرْزُقُ مَنْ يَشَاءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ
काफ़िरों की निगाह में दुनिया की ज़िन्दगी आरास्ता की गई और मुसलमानों से हंसते हैं और डर वाले उनसे ऊपर होंगे क़यामत के दिन और ख़ुदा जिसे चाहे बेगिनती दे
213. كَانَ النَّاسُ أُمَّةً وَاحِدَةً فَبَعَثَ اللَّهُ النَّبِيِّينَ مُبَشِّرِينَ وَمُنْذِرِينَ وَأَنْزَلَ مَعَهُمُ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ لِيَحْكُمَ بَيْنَ النَّاسِ فِيمَا اخْتَلَفُوا فِيهِ وَمَا اخْتَلَفَ فِيهِ إِلَّا الَّذِينَ أُوتُوهُ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْهُمُ الْبَيِّنَاتُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ فَهَدَى اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا لِمَا اخْتَلَفُوا فِيهِ مِنَ الْحَقِّ بِإِذْنِهِ وَاللَّهُ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ
लोग एक दीन पर थे फिर अल्लाह ने अम्बिया भेजे ख़ुशख़बरी देते और डर सुनाते और उनके साथ सच्ची किताब उतारी कि वह लोगों में उनके इख्तेलाफों का फैसला कर दे और किताब में इख्तेलाफ उन्हीं ने डाला जिन को दी गई थी बाद इसके कि उनके पास रौशन हुक्म आ चुके आपस की सरकशी से तो अल्लाह ने ईमान वालों को वह हक़ बात सुझा दी जिसमें झगड़ रहे थे अपने हुक्म से और अल्लाह जिसे चाहे सीधी राह दिखाए
214. أَمْ حَسِبْتُمْ أَنْ تَدْخُلُوا الْجَنَّةَ وَلَمَّا يَأْتِكُمْ مَثَلُ الَّذِينَ خَلَوْا مِنْ قَبْلِكُمْ مَسَّتْهُمُ الْبَأْسَاءُ وَالضَّرَّاءُ وَزُلْزِلُوا حَتَّى يَقُولَ الرَّسُولُ وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ مَتَى نَصْرُ اللَّهِ أَلَا إِنَّ نَصْرَ اللَّهِ قَرِيبٌ
क्या इस गुमान (भ्रम) में हो कि जन्नत में चले जाओगे और अभी तुम पर अगलों की सी रूदाद (वृतांत) न आई पहुंची उन्हें सख़्ती और शिद्दत (कठिनाई) और हिला हिला डाले गए यहाँ तक कि कह उठा रसूल और उसके साथ के ईमान वाले, कब आएगी अल्लाह की मदद सुन लो बेशक अल्लाह की मदद क़रीब है
215. يَسْأَلُونَكَ مَاذَا يُنْفِقُونَ قُلْ مَا أَنْفَقْتُمْ مِنْ خَيْرٍ فَلِلْوَالِدَيْنِ وَالْأَقْرَبِينَ وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينِ وَابْنِ السَّبِيلِ وَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ
तुमसे पूछते हैं क्या ख़र्च करें. तुम फ़रमाओ जो कुछ माल नेकी में ख़र्च करो तो वह माँ बाप और क़रीब के रिश्तेदारो और यतीमों और मोहताज़ों (दरिद्रों) और राहगीर के लिये है और जो भलाई करो बेशक अल्लाह उसे जानता है
216. كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِتَالُ وَهُوَ كُرْهٌ لَكُمْ وَعَسَى أَنْ تَكْرَهُوا شَيْئًا وَهُوَ خَيْرٌ لَكُمْ وَعَسَى أَنْ تُحِبُّوا شَيْئًا وَهُوَ شَرٌّ لَكُمْ وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ
तुमपर फ़र्ज़ हुआ खुदा की राह में लड़ना और वह तुम्हें नागवार है और क़रीब है कि कोई बात तुम्हें बुरी लगे और वह तुम्हारे हक़ में बेहतर हो और क़रीब है कि कोई बात तुम्हें पसन्द आए और वह तुम्हारे हक़ में बुरी हो. और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते
217. يَسْأَلُونَكَ عَنِ الشَّهْرِ الْحَرَامِ قِتَالٍ فِيهِ قُلْ قِتَالٌ فِيهِ كَبِيرٌ وَصَدٌّ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ وَكُفْرٌ بِهِ وَالْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَإِخْرَاجُ أَهْلِهِ مِنْهُ أَكْبَرُ عِنْدَ اللَّهِ وَالْفِتْنَةُ أَكْبَرُ مِنَ الْقَتْلِ وَلَا يَزَالُونَ يُقَاتِلُونَكُمْ حَتَّى يَرُدُّوكُمْ عَنْ دِينِكُمْ إِنِ اسْتَطَاعُوا وَمَنْ يَرْتَدِدْ مِنْكُمْ عَنْ دِينِهِ فَيَمُتْ وَهُوَ كَافِرٌ فَأُولَئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَأُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
तुमसे पूछते हैं माहे हराम में लड़ने का हुक्म तुम फ़रमाओ इसमें लड़ना बड़ा गुनाह है और अल्लाह की राह से रोकना और उसपर ईमान न लाना और मस्जिदे हराम से रोकना और इसके बसने वालों को निकाल देना अल्लाह के नज़्दीक ये गुनाह उससे भी बड़े हैं और उनका फ़साद क़त्ल से सख़्ततर है और हमेशा तुमसे लड़ते रहेंगे यहां तक कि तुम्हें तुम्हारे दीन से फेर दें अगर बन पड़े और तुम में जो कोई अपने दीन से फिरे, फिर काफ़िर होकर मरे तो उन लोगों का किया अकारत गया दुनिया में और आख़िरत में और वो दोज़ख़ वाले हैं उन्हें उसमें हमेशा रहना
218. إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَاجَرُوا وَجَاهَدُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ أُولَئِكَ يَرْجُونَ رَحْمَتَ اللَّهِ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ
वो जो ईमान लाए और वो जिन्होंने अल्लाह के लिये अपने घरबार छोड़े और अल्लाह की राह में लड़े वो रहमते इलाही के उम्मीदवार हैं और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है
219. يَسْأَلُونَكَ عَنِ الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ قُلْ فِيهِمَا إِثْمٌ كَبِيرٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَإِثْمُهُمَا أَكْبَرُ مِنْ نَفْعِهِمَا وَيَسْأَلُونَكَ مَاذَا يُنْفِقُونَ قُلِ الْعَفْوَ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَتَفَكَّرُونَ
तुमसे शराब और जुए का हुक्म पूछते हैं, तुम फ़रमादो कि उन दोनों में बड़ा गुनाह है और लोगों के कुछ दुनियावी नफ़े भी और उनका गुनाह उनके नफ़े से बड़ा है और तुमसे पूछते हैं क्या ख़र्च करें तुम फ़रमाओ जो फ़ाज़िल (अतिरक्त) बचे इसी तरह अल्लाह तुमसे आयतें बयान फ़रमाता है
220. فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الْيَتَامَى قُلْ إِصْلَاحٌ لَهُمْ خَيْرٌ وَإِنْ تُخَالِطُوهُمْ فَإِخْوَانُكُمْ وَاللَّهُ يَعْلَمُ الْمُفْسِدَ مِنَ الْمُصْلِحِ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَأَعْنَتَكُمْ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
कि कहीं तुम दुनिया और आख़िरत के काम सोच कर करो और तुमसे यतीमों का मसला पूछते हैं तुम फ़रमाओ उनका भला करना बेहतर है और अगर अपना उनका ख़र्च मिला लो तो वो तुम्हारे भाई हैं और ख़ुदा ख़ूब जानता है बिगाड़ने वाले को संवारने वाले से और अल्लाह चाहता तो तुम्हें मशक्कत (परिश्रम) में डालता बेशक अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाला है
221. وَلَا تَنْكِحُوا الْمُشْرِكَاتِ حَتَّى يُؤْمِنَّ وَلَأَمَةٌ مُؤْمِنَةٌ خَيْرٌ مِنْ مُشْرِكَةٍ وَلَوْ أَعْجَبَتْكُمْ وَلَا تُنْكِحُوا الْمُشْرِكِينَ حَتَّى يُؤْمِنُوا وَلَعَبْدٌ مُؤْمِنٌ خَيْرٌ مِنْ مُشْرِكٍ وَلَوْ أَعْجَبَكُمْ أُولَئِكَ يَدْعُونَ إِلَى النَّارِ وَاللَّهُ يَدْعُو إِلَى الْجَنَّةِ وَالْمَغْفِرَةِ بِإِذْنِهِ وَيُبَيِّنُ آيَاتِهِ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ
और शिर्क वाली औरतों से निकाह न करो जब तक मुसलमान न हो जाएं और बेशक मुसलमान लौंडी मुश्रिका से अच्छी अगरचे वह तुम्हें भाती हो और मुश्रिको के निकाह में न दो जब तक वो ईमान न लाएं और बेशक मुसलमान ग़ुलाम मुश्रिक से अच्छा है अगरचे वो तुम्हें भाता हो, वो दोज़ख़ की तरफ़ बुलाते हैं और अल्लाह जन्नत और बख़्शिश की तरफ़ बुलाता है अपने हुक्म से और अपनी आयतें लोगों के लिये बयान करता है कि कहीं वो नसीहत मानें
222. وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الْمَحِيضِ قُلْ هُوَ أَذًى فَاعْتَزِلُوا النِّسَاءَ فِي الْمَحِيضِ وَلَا تَقْرَبُوهُنَّ حَتَّى يَطْهُرْنَ فَإِذَا تَطَهَّرْنَ فَأْتُوهُنَّ مِنْ حَيْثُ أَمَرَكُمُ اللَّهُ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ التَّوَّابِينَ وَيُحِبُّ الْمُتَطَهِّرِينَ
और तुमसे पूछते हैं हैज़ का हुक्म तुम फ़रमाओ वह नापाकी है तो औरतों से अलग रहो हैज़ के दिनों और उनसे नज़दिकी न करो जबतक पाक न हो लें फिर जब पाक हो जाएं तो उन के पास जाओ जहां से तुम्हें अल्लाह ने हुक्म दिया बेशक अल्लाह पसन्द करता है बहुत तौबह करने वालों को और पसन्द रखता है सुथरों को
223. نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّى شِئْتُمْ وَقَدِّمُوا لِأَنْفُسِكُمْ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّكُمْ مُلَاقُوهُ وَبَشِّرِ الْمُؤْمِنِينَ
तुम्हारी औरतें तुम्हारें लिये खेतियां हैं तो आओ अपनी खेती में जिस तरह चाहो और अपने भले का काम पहले करो और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि तुम्हें उससे मिलना है और ऐ मेहबूब बशारत दो ईमान वालों को
224. وَلَا تَجْعَلُوا اللَّهَ عُرْضَةً لِأَيْمَانِكُمْ أَنْ تَبَرُّوا وَتَتَّقُوا وَتُصْلِحُوا بَيْنَ النَّاسِ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
और अल्लाह को अपनी क़िस्मतों का निशाना न बना लो कि एहसान और परहेज़गारी और लोगों में सुलह करने की क़सम कर लो और अल्लाह सुनता जानता है
225. لَا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَكِنْ يُؤَاخِذُكُمْ بِمَا كَسَبَتْ قُلُوبُكُمْ وَاللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٌ
अल्लाह तुम्हें नहीं पकड़ता उन क़स्मों में जो बेईरादा ज़बान से निकल जाएं, हाँ उसपर पकड़ फरमाता है जो काम तुम्हारे दिलों ने किये और अल्लाह बख़्शने वाला हिल्म (सहिष्णुता) वाला है
226. لِلَّذِينَ يُؤْلُونَ مِنْ نِسَائِهِمْ تَرَبُّصُ أَرْبَعَةِ أَشْهُرٍ فَإِنْ فَاءُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
और वो जो क़सम खा बैठते हैं अपनी औरतों के पास जाने की उन्हें चार महीने की मोहलत (अवकाश) है तो अगर इस मुद्दत में फिर आए तो अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है
227. وَإِنْ عَزَمُوا الطَّلَاقَ فَإِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
और अगर छोड़ देने का इरादा पक्का कर लिया तो अल्लाह सुनता जानता है
228. وَالْمُطَلَّقَاتُ يَتَرَبَّصْنَ بِأَنْفُسِهِنَّ ثَلَاثَةَ قُرُوءٍ وَلَا يَحِلُّ لَهُنَّ أَنْ يَكْتُمْنَ مَا خَلَقَ اللَّهُ فِي أَرْحَامِهِنَّ إِنْ كُنَّ يُؤْمِنَّ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَبُعُولَتُهُنَّ أَحَقُّ بِرَدِّهِنَّ فِي ذَلِكَ إِنْ أَرَادُوا إِصْلَاحًا وَلَهُنَّ مِثْلُ الَّذِي عَلَيْهِنَّ بِالْمَعْرُوفِ وَلِلرِّجَالِ عَلَيْهِنَّ دَرَجَةٌ وَاللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
और तलाक़ वालियाँ अपनी जानों को रोके रहें तीन हैज़ (माहवारी) तक और उन्हें हलाल नहीं कि छुपाएँ वह जो अल्लाह ने उनके पेट में पैदा किया अगर अल्लाह और क़यामत पर ईमान रखती हैं और उनके शौहरों को इस मुद्दत के अन्दर उनके फेर लेने का हक़ पहुंचता है अगर मिलाप चाहे और औरतों का भी हक़ ऐसा ही है जैसा उनपर है शरअ़ के मवाफिक़ और मर्दों को उन पर फ़ज़ीलत (प्रधानता) है और अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है
229. الطَّلَاقُ مَرَّتَانِ فَإِمْسَاكٌ بِمَعْرُوفٍ أَوْ تَسْرِيحٌ بِإِحْسَانٍ وَلَا يَحِلُّ لَكُمْ أَنْ تَأْخُذُوا مِمَّا آتَيْتُمُوهُنَّ شَيْئًا إِلَّا أَنْ يَخَافَا أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا فِيمَا افْتَدَتْ بِهِ تِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ فَلَا تَعْتَدُوهَا وَمَنْ يَتَعَدَّ حُدُودَ اللَّهِ فَأُولَئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ
यह तलाक़ दो बार तक है फिर भलाई के साथ रोक लेना है या नेकोई के साथ छोड़ देना है और तुम्हें रवा नहीं कि जो कुछ औरतों को दिया उसमें से कुछ वापिस लो मगर जब दोनों को अंदेशा हो कि अल्लाह की हदें क़ायम न करेंगे फिर अगर तुम्हें खौफ हो कि वो दोनों ठीक उन्हीं हदों पर न रहेंगे तो उनपर कुछ गुनाह नहीं इसमें जो बदला देकर औरत छुट्टी ले ये अल्लाह की हदें हैं इनसे आगे न बढ़ो और जो अल्लाह की हदों से आगे बढ़े तो वही लोग ज़ालिम हैं
230. فَإِنْ طَلَّقَهَا فَلَا تَحِلُّ لَهُ مِنْ بَعْدُ حَتَّى تَنْكِحَ زَوْجًا غَيْرَهُ فَإِنْ طَلَّقَهَا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا أَنْ يَتَرَاجَعَا إِنْ ظَنَّا أَنْ يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ وَتِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ يُبَيِّنُهَا لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ
फिर अगर तीसरी तलाक़ उसे दी तो अब वह औरत उसे हलाल न होगी जब तक दूसरे खाविन्द के पास न रहे फिर वह दूसरा अगर उसे तलाक़ दे दे तो उन दोनों पर गुनाह नहीं कि फिर आपस में मिल जाएं अगर समझते हों कि अल्लाह कि हदें निभाएंगे और ये अल्लाह की हदें है जिन्हें बयान करता है दानिशमंदों के लिये
231. وَإِذَا طَلَّقْتُمُ النِّسَاءَ فَبَلَغْنَ أَجَلَهُنَّ فَأَمْسِكُوهُنَّ بِمَعْرُوفٍ أَوْ سَرِّحُوهُنَّ بِمَعْرُوفٍ وَلَا تُمْسِكُوهُنَّ ضِرَارًا لِتَعْتَدُوا وَمَنْ يَفْعَلْ ذَلِكَ فَقَدْ ظَلَمَ نَفْسَهُ وَلَا تَتَّخِذُوا آيَاتِ اللَّهِ هُزُوًا وَاذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَمَا أَنْزَلَ عَلَيْكُمْ مِنَ الْكِتَابِ وَالْحِكْمَةِ يَعِظُكُمْ بِهِ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और उनकी मीआद (अवधि) आ लगे तो उस वक़्त तक या भलाई के साथ रोक लो या नकोई के साथ छोड़ दो और उन्हें ज़रर (तक़लीs) देने के लिये रोकना न हो कि हद से बढ़ो और जो ऐसा करे वह अपना ही नुक़सान करता है और अल्लाह की आयतों को ठठ्ठा न बना लो. और याद करो अल्लाह का एहसान जो तुमपर है और वह जो तुम पर किताब और हिकमत उतारी तुम्हें नसीहत देने को और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह सब कुछ जानता है
232. وَإِذَا طَلَّقْتُمُ النِّسَاءَ فَبَلَغْنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا تَعْضُلُوهُنَّ أَنْ يَنْكِحْنَ أَزْوَاجَهُنَّ إِذَا تَرَاضَوْا بَيْنَهُمْ بِالْمَعْرُوفِ ذَلِكَ يُوعَظُ بِهِ مَنْ كَانَ مِنْكُمْ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ذَلِكُمْ أَزْكَى لَكُمْ وَأَطْهَرُ وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ
और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और उनकी मीआद पूरी हो जाए तो ऐ औरतों के वालियों (स्वामियों), उन्हें न रोको इससे कि अपने शौहरों से निकाह कर लें जब कि आपस में मवाफिक़े शरअ़ रज़ामंद हो जाएं यह नसीहत उसे दी जाती है जो तुम में से अल्लाह और क़यामत पर ईमान रखता हो यह तुम्हारे लिये ज़्यादा सुथरा और पाकीज़ा है और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते
233. وَالْوَالِدَاتُ يُرْضِعْنَ أَوْلَادَهُنَّ حَوْلَيْنِ كَامِلَيْنِ لِمَنْ أَرَادَ أَنْ يُتِمَّ الرَّضَاعَةَ وَعَلَى الْمَوْلُودِ لَهُ رِزْقُهُنَّ وَكِسْوَتُهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ لَا تُكَلَّفُ نَفْسٌ إِلَّا وُسْعَهَا لَا تُضَارَّ وَالِدَةٌ بِوَلَدِهَا وَلَا مَوْلُودٌ لَهُ بِوَلَدِهِ وَعَلَى الْوَارِثِ مِثْلُ ذَلِكَ فَإِنْ أَرَادَا فِصَالًا عَنْ تَرَاضٍ مِنْهُمَا وَتَشَاوُرٍ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا وَإِنْ أَرَدْتُمْ أَنْ تَسْتَرْضِعُوا أَوْلَادَكُمْ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِذَا سَلَّمْتُمْ مَا آتَيْتُمْ بِالْمَعْرُوفِ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
और माएं दूध पिलाएं अपने बच्चों को पूरे दो बरस उसके लिये जो दूध की मुद्दत पूरी करनी चाहे और जिसका बच्चा है उस पर औरतों का खाना पहनना है हस्दबे दस्तूर किसी जान पर बोझ न रखा जाएगा मगर उसके मक़दुर भर माँ को ज़रर न दिया जाए उसके बच्चे से और न औलाद वाले को उसकी औलाद से या माँ ज़रर न दे अपने बच्चे को और न औलाद वाला अपनी औलाद को और जो बाप का कायम मुका़म है उसपर भी ऐसा ही वाजिब है फिर अगर माँ बाप दानों आपस की रज़ा और मशवरे से दूध छुड़ाना चाहें तो उनपर गुनाह नहीं. और अगर तुम चाहो कि दाइयों से अपने बच्चों को दूध पिलवाओ तो भी तुमपर मुज़ाएक़ा नहीं जब कि जो देना ठहरा था भलाई के साथ उन्हें अदा करदो और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है
234. وَالَّذِينَ يُتَوَفَّوْنَ مِنْكُمْ وَيَذَرُونَ أَزْوَاجًا يَتَرَبَّصْنَ بِأَنْفُسِهِنَّ أَرْبَعَةَ أَشْهُرٍ وَعَشْرًا فَإِذَا بَلَغْنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا فَعَلْنَ فِي أَنْفُسِهِنَّ بِالْمَعْرُوفِ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ
और तुम में जो मरें और बीबियां छोड़ें वो चार महीने दस दिन अपने आप को रोके रहें तो जब उनकी इद्दत (अवधि) पूरी हो जाए तो ऐ वालियों (स्वामियों) तुम पर मुआख़ज़ा(पकड़) नहीं उस काम में जो औरतें अपने मामले में मवाफिक़े शरीअत करें और अल्लाह को तुम्हारे कामों की ख़बर है
235. وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا عَرَّضْتُمْ بِهِ مِنْ خِطْبَةِ النِّسَاءِ أَوْ أَكْنَنْتُمْ فِي أَنْفُسِكُمْ عَلِمَ اللَّهُ أَنَّكُمْ سَتَذْكُرُونَهُنَّ وَلَكِنْ لَا تُوَاعِدُوهُنَّ سِرًّا إِلَّا أَنْ تَقُولُوا قَوْلًا مَعْرُوفًا وَلَا تَعْزِمُوا عُقْدَةَ النِّكَاحِ حَتَّى يَبْلُغَ الْكِتَابُ أَجَلَهُ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا فِي أَنْفُسِكُمْ فَاحْذَرُوهُ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ غَفُورٌ حَلِيمٌ
और तुम पर गुनाह नहीं इस बात में जो पर्दा रखकर तुम औरतों के निकाह का पयाम दो या अपने दिल में छुपा रखो. अल्लाह जानता है कि अब तुम उनकी याद करोगे हाँ उनसे खुफिया वादा न कर रखो मगर यह कि उतनी ही बात कहो जो शरअ़ में मा़रुफ है और निकाह की गिरह पक्की न करो जब तक लिखा हुआ हुक्म अपनी मिआ़द को न पहुंच ले और जान लो कि अल्लाह तुम्हारे दिल की जानता है तो उससे डरो और जान लो कि अल्लाह बख़्शने वाला, हिल्म (सहिष्णुता) वाला है
236. لَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِنْ طَلَّقْتُمُ النِّسَاءَ مَا لَمْ تَمَسُّوهُنَّ أَوْ تَفْرِضُوا لَهُنَّ فَرِيضَةً وَمَتِّعُوهُنَّ عَلَى الْمُوسِعِ قَدَرُهُ وَعَلَى الْمُقْتِرِ قَدَرُهُ مَتَاعًا بِالْمَعْرُوفِ حَقًّا عَلَى الْمُحْسِنِينَ
तुम पर कुछ मुतालिबा (अभियाचना) नहीं और तुम औरतों को तलाक़ दो जब तक तुम ने उनको हाथ न लगाया हो या कोई मेहर (रक़म,दैन) मुकर्रर कर लिया हो, और उनको कुछ बरतने को दो. मक़दुर वाले पर उसके लायक़ और तंगदस्त पर उसके लायक़,हस्बेदस्तूर कुछ बरतने की चीज़, ये वाजिब है भलाई वालों पर
237. وَإِنْ طَلَّقْتُمُوهُنَّ مِنْ قَبْلِ أَنْ تَمَسُّوهُنَّ وَقَدْ فَرَضْتُمْ لَهُنَّ فَرِيضَةً فَنِصْفُ مَا فَرَضْتُمْ إِلَّا أَنْ يَعْفُونَ أَوْ يَعْفُوَ الَّذِي بِيَدِهِ عُقْدَةُ النِّكَاحِ وَأَنْ تَعْفُوا أَقْرَبُ لِلتَّقْوَى وَلَا تَنْسَوُا الْفَضْلَ بَيْنَكُمْ إِنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
और अगर तुमने औरतों को बे छुए तलाक़ दे दी और उनके लिये कुछ मेहर मुकर्रर कर चुके थे तो जितना ठहरा था उसका आधा वाजिब है मगर यह कि औरतें कुछ छोड़ दें या वह ज़्यादा दे जिसके हाथ में निकाह की गिरह है और ऐ मर्दों, तुम्हारा ज़्यादा देना परहेज़गारी से नज़्दीकतर है और आपस में एक दूसरे पर एहसान को भुला न दो बेशक अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है
238. حَافِظُوا عَلَى الصَّلَوَاتِ وَالصَّلَاةِ الْوُسْطَى وَقُومُوا لِلَّهِ قَانِتِينَ
निगहबानी करो सब नमाज़ों की और बीच की नमाज़ की और खड़े हो अल्लाह के हुज़ूर अदब से
239. فَإِنْ خِفْتُمْ فَرِجَالًا أَوْ رُكْبَانًا فَإِذَا أَمِنْتُمْ فَاذْكُرُوا اللَّهَ كَمَا عَلَّمَكُمْ مَا لَمْ تَكُونُوا تَعْلَمُونَ
फिर अगर खौफ में हो तो प्यादा या सवार जैसे बन पड़े, फिर जब इत्मीनान से हो तो अल्लाह की याद करो जैसा उसने सिखाया जो तुम न जानते थे
240. وَالَّذِينَ يُتَوَفَّوْنَ مِنْكُمْ وَيَذَرُونَ أَزْوَاجًا وَصِيَّةً لِأَزْوَاجِهِمْ مَتَاعًا إِلَى الْحَوْلِ غَيْرَ إِخْرَاجٍ فَإِنْ خَرَجْنَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِي مَا فَعَلْنَ فِي أَنْفُسِهِنَّ مِنْ مَعْرُوفٍ وَاللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
और जो तुम में मरें और बीबियां छोड़ जाएं वो अपनी औरतों के लिये वसीयत कर जाएं साल भर तक नान व नफ़क़ा देने की बे निकाले फिर अगर वो ख़ुद निकल जाएं तो तुम पर उसका मुवाखेज़ा नहीं जो उन्होंने अपने मामले में मुनासिब तौर पर किया और अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है
241. وَلِلْمُطَلَّقَاتِ مَتَاعٌ بِالْمَعْرُوفِ حَقًّا عَلَى الْمُتَّقِينَ
और तलाक वालियों के लिये भी मुनासिब तौर पर नान व नफ़क़ा है ये वाजिब है परहेज़गारों पर
242. كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
अल्लाह यूं ही बयान करता है तुम्हारे लिये अपनी आयतें कि कहीं तुम्हें समझ हो
243. أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ خَرَجُوا مِنْ دِيَارِهِمْ وَهُمْ أُلُوفٌ حَذَرَ الْمَوْتِ فَقَالَ لَهُمُ اللَّهُ مُوتُوا ثُمَّ أَحْيَاهُمْ إِنَّ اللَّهَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَشْكُرُونَ
ऐ मेहबूब क्या तुमने न देखा था उन्हें जो अपने घरों से निकले और वो हज़ारों थे मौत के डर से तो अल्लाह ने उनसे फ़रमाया मर जाओ फिर उन्हें ज़िन्दा फ़रमादिया बेशक अल्लाह लोगों पर फ़ज़्ल (कृपा) करने वाला है मगर अकसर लोग नाशुक्रे हैं
244. وَقَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
और लड़ों अल्लाह की राह में और जान लो कि अल्लाह सुनता जानता है
245. مَنْ ذَا الَّذِي يُقْرِضُ اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا فَيُضَاعِفَهُ لَهُ أَضْعَافًا كَثِيرَةً وَاللَّهُ يَقْبِضُ وَيَبْسُطُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ
है कोई जो अल्लाह को क़र्ज़े हसन दे तो अल्लाह उसके लिये बहुत गुना बढ़ा दे और अल्लाह तंगी और कुशायश (वृद्धि) करता है और तुम्हें उसी की तरफ़ फिर जाना
246. أَلَمْ تَرَ إِلَى الْمَلَإِ مِنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ مِنْ بَعْدِ مُوسَى إِذْ قَالُوا لِنَبِيٍّ لَهُمُ ابْعَثْ لَنَا مَلِكًا نُقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ قَالَ هَلْ عَسَيْتُمْ إِنْ كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِتَالُ أَلَّا تُقَاتِلُوا قَالُوا وَمَا لَنَا أَلَّا نُقَاتِلَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَقَدْ أُخْرِجْنَا مِنْ دِيَارِنَا وَأَبْنَائِنَا فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقِتَالُ تَوَلَّوْا إِلَّا قَلِيلًا مِنْهُمْ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِالظَّالِمِينَ
ऐ मेहबूब क्या तुमने न देखा बनी इस्त्राईल के एक गिरोह को जो मूसा के बाद हुआ जब अपने एक पैगम्बर से बोले हमारे लिये खड़ा कर दो एक बादशाह कि हम ख़ुदा की राह में लड़ें. नबी ने फ़रमाया क्या तुम्हारे अन्दाज़ ऐसे हैं कि तुम पर जिहाद फ़र्ज़ किया जाए तो फिर न करो, बोले हमें क्या हुआ कि हम अल्लाह की राह में न लड़ें हालांकि हम निकाले गए हैं अपने वतन और अपनी औलाद से तो फिर जब उनपर जिहाद फर्ज़ किया गया, मुंह फेर गए मगर उनमें के थोड़े और अल्लाह ख़ूब जानता है ज़ालिमों को
247. وَقَالَ لَهُمْ نَبِيُّهُمْ إِنَّ اللَّهَ قَدْ بَعَثَ لَكُمْ طَالُوتَ مَلِكًا قَالُوا أَنَّى يَكُونُ لَهُ الْمُلْكُ عَلَيْنَا وَنَحْنُ أَحَقُّ بِالْمُلْكِ مِنْهُ وَلَمْ يُؤْتَ سَعَةً مِنَ الْمَالِ قَالَ إِنَّ اللَّهَ اصْطَفَاهُ عَلَيْكُمْ وَزَادَهُ بَسْطَةً فِي الْعِلْمِ وَالْجِسْمِ وَاللَّهُ يُؤْتِي مُلْكَهُ مَنْ يَشَاءُ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ
और उनसे उनके नबी ने फरमाया बेशक अल्लाह ने तालूत को तुम्हारा बादशाह बनाकर भेजा है बोले उसे हम पर बादशाही क्यूंकर होगी और हम उससे ज़्यादा सल्तनत के मुस्तहिक़ हैं और उसे माल में भी वुसअ़त नहीं दी गई फरमाया उसे अल्लाह ने तुम पर चुन लिया और उसे इ़ल्म और जिस्म में कुशादगी ज़्यादा दी और अल्लाह अपना मुल्क जिसे चाहे दे और अल्लाह वुसअ़त वाला इ़ल्म वाला है
248. وَقَالَ لَهُمْ نَبِيُّهُمْ إِنَّ آيَةَ مُلْكِهِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ التَّابُوتُ فِيهِ سَكِينَةٌ مِنْ رَبِّكُمْ وَبَقِيَّةٌ مِمَّا تَرَكَ آلُ مُوسَى وَآلُ هَارُونَ تَحْمِلُهُ الْمَلَائِكَةُ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ
और उनसे उनके नबी ने फरमाया इसकी बादशाही की निशानी यह है कि आए तुम्हारे पास ताबूत जिसमें तुम्हारे रब की तरफ से दिलों का चैन है और कुछ बची हुई चीज़ें मुअज़्ज़िज़ मूसा और मुअज़्ज़िज़ हारून के तरके की उठाते लाऐंगे उसे फरिशते बेशक इसमें बड़ी निशानी है तुम्हारे लिये अगर ईमान रखते हो
249. فَلَمَّا فَصَلَ طَالُوتُ بِالْجُنُودِ قَالَ إِنَّ اللَّهَ مُبْتَلِيكُمْ بِنَهَرٍ فَمَنْ شَرِبَ مِنْهُ فَلَيْسَ مِنِّي وَمَنْ لَمْ يَطْعَمْهُ فَإِنَّهُ مِنِّي إِلَّا مَنِ اغْتَرَفَ غُرْفَةً بِيَدِهِ فَشَرِبُوا مِنْهُ إِلَّا قَلِيلًا مِنْهُمْ فَلَمَّا جَاوَزَهُ هُوَ وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ قَالُوا لَا طَاقَةَ لَنَا الْيَوْمَ بِجَالُوتَ وَجُنُودِهِ قَالَ الَّذِينَ يَظُنُّونَ أَنَّهُمْ مُلَاقُو اللَّهِ كَمْ مِنْ فِئَةٍ قَلِيلَةٍ غَلَبَتْ فِئَةً كَثِيرَةً بِإِذْنِ اللَّهِ وَاللَّهُ مَعَ الصَّابِرِينَ
फिर जब तालूत लश्करों को लेकर शहर से जुदा हुआ बोला बेशक अल्लाह तुम्हें एक नहर से आज़माने वाला है तो जो उसका पानी पिये वह मेरा नहीं और जो न पिये वह मेरा है मगर वह जो एक चुल्लू अपने हाथ से ले ले तो सब ने उससे पिया मगर थोड़ों ने फिर जब तालूत और उसके साथ के मुसलमान नहर के पार गए बोले हम में आज ताक़त नहीं जालूत और उसके लश्करों को बोले वो जिन्हें अल्लाह से मिलने का यक़ीन था कि बारहा कम जमाअत ग़ालिब आई है ज़्यादा गिरोह पर अल्लाह के हुक्म से और अल्लाह सब्रिरों के साथ है
250. وَلَمَّا بَرَزُوا لِجَالُوتَ وَجُنُودِهِ قَالُوا رَبَّنَا أَفْرِغْ عَلَيْنَا صَبْرًا وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وَانْصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ
फिर जब सामने आए जालूत और उसके लश्करों के अर्ज़ की ऐ रब हमारे हम पर सब्र उंडेल दे और हमारे पाँव जमे रख काफ़िर लोगों पर हमारी मदद कर
251. فَهَزَمُوهُمْ بِإِذْنِ اللَّهِ وَقَتَلَ دَاوُودُ جَالُوتَ وَآتَاهُ اللَّهُ الْمُلْكَ وَالْحِكْمَةَ وَعَلَّمَهُ مِمَّا يَشَاءُ وَلَوْلَا دَفْعُ اللَّهِ النَّاسَ بَعْضَهُمْ بِبَعْضٍ لَفَسَدَتِ الْأَرْضُ وَلَكِنَّ اللَّهَ ذُو فَضْلٍ عَلَى الْعَالَمِينَ
तो उन्होंने उनको भगा दिया अल्लाह के हुक्म से और क़त्ल किया दाऊद ने जालूत को और अल्लाह ने उसे सल्तनत और हिकमत अता फ़रमाई और उसे जो चाहा सिखाया और अगर अल्लाह लोगों में कुछ से कुछ को दफ़ा न करे तो ज़रूर जमीन तबाह हो जाए मगर अल्लाह सारे जहान पर फ़ज़्ल करने वाला है
252. تِلْكَ آيَاتُ اللَّهِ نَتْلُوهَا عَلَيْكَ بِالْحَقِّ وَإِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ
ये अल्लाह की आयतें हैं कि हम ऐ मेहबूब तुमपर ठीक ठीक पढ़ते हैं और तुम बेशक रसूलों में हो
253. تِلْكَ الرُّسُلُ فَضَّلْنَا بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ مِنْهُمْ مَنْ كَلَّمَ اللَّهُ وَرَفَعَ بَعْضَهُمْ دَرَجَاتٍ وَآتَيْنَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ الْبَيِّنَاتِ وَأَيَّدْنَاهُ بِرُوحِ الْقُدُسِ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ مَا اقْتَتَلَ الَّذِينَ مِنْ بَعْدِهِمْ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْهُمُ الْبَيِّنَاتُ وَلَكِنِ اخْتَلَفُوا فَمِنْهُمْ مَنْ آمَنَ وَمِنْهُمْ مَنْ كَفَرَ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ مَا اقْتَتَلُوا وَلَكِنَّ اللَّهَ يَفْعَلُ مَا يُرِيدُ
ये रसूल हैं कि हमने इन मे एक को दूसरे पर अफ़ज़ल किया इनमें किसी से अल्लाह ने कलाम फ़रमाया और कोई वो है जिसे सब पर दरजों बुलंद किया और हमने मरियम के बेटे ईसा को खुली निशानियाँ दीं और पाकीज़ा रूह से उसकी मदद की और अल्लाह चाहता तो उनके बाद वाले आपस में न लड़ते बाद इसके कि उनके पास खुली निशानियाँ आ चुकीं लेकिन वो तो मुखतलिफ़ हो गये उनमें कोई ईमान पर रहा और कोई काफ़िर हो गया और अल्लाह चाहता तो वो न लड़ते मगर अल्लाह जो चाहे करे
254. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَنْفِقُوا مِمَّا رَزَقْنَاكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَ يَوْمٌ لَا بَيْعٌ فِيهِ وَلَا خُلَّةٌ وَلَا شَفَاعَةٌ وَالْكَافِرُونَ هُمُ الظَّالِمُونَ
ऐ ईमान वालो अल्लाह की राह में हमारे दिये में से ख़र्च करो वह दिन आने से पहले जिसमें न ख़रीद फ़रोख़्त (क्रय-विक्रय) है न काफ़िरों के लिये दोस्ती और न शफ़ाअत (सिफ़ारिश) और काफ़िर ख़ुद ही ज़ालिम हैं
255. اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاءَ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَلَا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ
अल्लाह है जिसके सिवा कोई मअबूद नहीं वह आप ज़िन्दा, और औरों का क़ायम रखने वाला उसे न ऊंघ आए न नींद उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में वह कौन है जो उसके यहां सिफ़ारिश करे बे उसके हुक्म के जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे और वो नहीं पाते उसके इल्म में से मगर जितना वह चाहे उसकी कुर्सी में समाए हुए है आसमान और ज़मीन और उसे भारी नहीं उनकी निगहबानी और वही है बुलन्द बड़ाई वाला
256. لَا إِكْرَاهَ فِي الدِّينِ قَدْ تَبَيَّنَ الرُّشْدُ مِنَ الْغَيِّ فَمَنْ يَكْفُرْ بِالطَّاغُوتِ وَيُؤْمِنْ بِاللَّهِ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقَى لَا انْفِصَامَ لَهَا وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
कुछ ज़बरदस्ती नहीं दीन में बेशक ख़ूब जुदा हो गई है नेक राह गुमराही से तो जो शैतान को न माने और अल्लाह पर ईमान लाए उसने बड़ी मज़बूत गिरह थामी जिसे कभी खुलना नहीं और अल्लाह सुनता जानता है
257. اللَّهُ وَلِيُّ الَّذِينَ آمَنُوا يُخْرِجُهُمْ مِنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ وَالَّذِينَ كَفَرُوا أَوْلِيَاؤُهُمُ الطَّاغُوتُ يُخْرِجُونَهُمْ مِنَ النُّورِ إِلَى الظُّلُمَاتِ أُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
अल्लाह वाली है मुसलमानों का उन्हें अंधेरियों से नूर की तरफ़ निकालता है और काफ़िरों के हिमायती शैतान हैं वो उन्हें नूर से अंधेरियों की तरफ़ निकालते हैं यही लोग दोज़ख़ वाले हैं, उन्हें हमेशा उसमें रहना
258. أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِي حَاجَّ إِبْرَاهِيمَ فِي رَبِّهِ أَنْ آتَاهُ اللَّهُ الْمُلْكَ إِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّيَ الَّذِي يُحْيِي وَيُمِيتُ قَالَ أَنَا أُحْيِي وَأُمِيتُ قَالَ إِبْرَاهِيمُ فَإِنَّ اللَّهَ يَأْتِي بِالشَّمْسِ مِنَ الْمَشْرِقِ فَأْتِ بِهَا مِنَ الْمَغْرِبِ فَبُهِتَ الَّذِي كَفَرَ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ
ऐ मेहबूब क्या तुमने न देखा था उसे जो इब्राहिम से झगड़ा उसके रब के बारे में इस पर कि अल्लाह ने उसे बादशाही दी जब कि इब्राहीम ने कहा कि मेरा रब वह है कि जिलाता और मारता है बोला मै जिलाता और मारता हूँ इब्राहीम ने फ़रमाया तो अल्लाह सूरज को लाता है पूरब से, तू उसको पश्चिम से ले आ तो होश उड़ गए काफ़िर के और अल्लाह राह नहीं दिखाता ज़ालिमों को
259. أَوْ كَالَّذِي مَرَّ عَلَى قَرْيَةٍ وَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَى عُرُوشِهَا قَالَ أَنَّى يُحْيِي هَذِهِ اللَّهُ بَعْدَ مَوْتِهَا فَأَمَاتَهُ اللَّهُ مِائَةَ عَامٍ ثُمَّ بَعَثَهُ قَالَ كَمْ لَبِثْتَ قَالَ لَبِثْتُ يَوْمًا أَوْ بَعْضَ يَوْمٍ قَالَ بَلْ لَبِثْتَ مِائَةَ عَامٍ فَانْظُرْ إِلَى طَعَامِكَ وَشَرَابِكَ لَمْ يَتَسَنَّهْ وَانْظُرْ إِلَى حِمَارِكَ وَلِنَجْعَلَكَ آيَةً لِلنَّاسِ وَانْظُرْ إِلَى الْعِظَامِ كَيْفَ نُنْشِزُهَا ثُمَّ نَكْسُوهَا لَحْمًا فَلَمَّا تَبَيَّنَ لَهُ قَالَ أَعْلَمُ أَنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
या उसकी तरह जो गुज़रा एक बस्ती पर और वह ढई पड़ी थी अपनी छतों पर बोला इसे क्युंकर जिलाएगा अल्लाह इसकी मौत के बाद, तो अल्लाह ने उसे मुर्दा रखा सौ बरस फिर ज़िन्दा कर दिया, फ़रमाया तू यहां कितना ठहरा, अर्ज़ की दिन भर ठहरा हूंगा या कुछ कम, फ़रमाया नहीं,बलकि तुझे सौ बरस गुज़र गए और अपने खाने और पानी को देख कि अब तक बू न लाया और अपने गधे को देख (कि जिसकी हड्डियां तक सलामत न रहीं) और यह इसलिये कि तुझे हम लोगों के वास्ते निशानी करें, और उन हड्डियों को देख क्युंकर हम उन्हें उठान देते फिर उन्हें गोश्त पहनाते हैं. जब यह मुआ़मला उसपर ज़ाहिर हो गया बोला मैं ख़ूब जानता हूँ कि अल्लाह सब कुछ कर सकता है।
260. وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ أَرِنِي كَيْفَ تُحْيِي الْمَوْتَى قَالَ أَوَلَمْ تُؤْمِنْ قَالَ بَلَى وَلَكِنْ لِيَطْمَئِنَّ قَلْبِي قَالَ فَخُذْ أَرْبَعَةً مِنَ الطَّيْرِ فَصُرْهُنَّ إِلَيْكَ ثُمَّ اجْعَلْ عَلَى كُلِّ جَبَلٍ مِنْهُنَّ جُزْءًا ثُمَّ ادْعُهُنَّ يَأْتِينَكَ سَعْيًا وَاعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
और जब अर्ज़ की इब्राहीम ने ऐ रब मेरे मुझे दिखादे तू क्योंकर मुर्दें जिलाएगा, फ़रमाया क्या तुझे यक़ीन नहीं अर्ज़ की यक़ीन क्यों नहीं मगर यह चाहता हूँ कि मेरे दिल को क़रार आजाए फ़रमाया तो अच्छा चार परिन्दे लेकर अपने साथ हिला ले फिर उनका एक एक टुकड़ा हर पहाड़ पर रख दे फिर उन्हें बुला वो तेरे पास चले आएंगे पाँव से दौड़ते अौर जान रख कि अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है
261. مَثَلُ الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ أَنْبَتَتْ سَبْعَ سَنَابِلَ فِي كُلِّ سُنْبُلَةٍ مِائَةُ حَبَّةٍ وَاللَّهُ يُضَاعِفُ لِمَنْ يَشَاءُ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ
उनकी कहावत जो अपने माल अल्लाह की राह मे ख़र्च करते हैं उस दाना की तरह जिसने उगाई सात बालें हर बाल में सौ दाने और अल्लाह इस से भी ज़्यादा बढ़ाए जिस के लिये चाहे और अल्लाह वुसअत (विस्तार) वाला इल्म वाला है
262. الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ثُمَّ لَا يُتْبِعُونَ مَا أَنْفَقُوا مَنًّا وَلَا أَذًى لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ
वो जो अपने माल अल्लाह की राह में ख़र्च करते है फिर दिये पीछे न एहसान रखें न तकलीफ़ दें उनका नेग उनके रब के पास है और उन्हें न कुछ अंदेशा(डर) हो न कुछ ग़म
263. قَوْلٌ مَعْرُوفٌ وَمَغْفِرَةٌ خَيْرٌ مِنْ صَدَقَةٍ يَتْبَعُهَا أَذًى وَاللَّهُ غَنِيٌّ حَلِيمٌ
अच्छी बात कहना और दरगुज़र (क्षमा) करना उस ख़ैरात से बेहतर है जिसके बाद सताना हो और अल्लाह बे-परवाह हिल्म (सहिष्णुता) वाला है
264. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُبْطِلُوا صَدَقَاتِكُمْ بِالْمَنِّ وَالْأَذَى كَالَّذِي يُنْفِقُ مَالَهُ رِئَاءَ النَّاسِ وَلَا يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ فَمَثَلُهُ كَمَثَلِ صَفْوَانٍ عَلَيْهِ تُرَابٌ فَأَصَابَهُ وَابِلٌ فَتَرَكَهُ صَلْدًا لَا يَقْدِرُونَ عَلَى شَيْءٍ مِمَّا كَسَبُوا وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ
ऐ ईमान वालो अपने सदक़े (दान) बातिल न करदो एहसान रखकर और ईजा़ (दुख:) देकर उसकी तरह जो अपना माल लोगों के दिखावे के लिए ख़र्च करे और अल्लाह और क़यामत पर ईमान न लाए तो उसकी कहावत ऐसी है जैसे एक चट्टान कि उसपर मिट्टी है अब उसपर ज़ोर का पानी पड़ा जिसने उसे निरा पत्थर कर छोड़ा अपनी कमाई से किसी चीज़ पर क़ाबू न पाएंगे और अल्लाह काफ़िरों को राह नहीं देता
265. وَمَثَلُ الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمُ ابْتِغَاءَ مَرْضَاتِ اللَّهِ وَتَثْبِيتًا مِنْ أَنْفُسِهِمْ كَمَثَلِ جَنَّةٍ بِرَبْوَةٍ أَصَابَهَا وَابِلٌ فَآتَتْ أُكُلَهَا ضِعْفَيْنِ فَإِنْ لَمْ يُصِبْهَا وَابِلٌ فَطَلٌّ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
और उनकी कहावत, जो अपने माल अल्लाह की रज़ा चाहने में ख़र्च करते हैं और अपने दिल जमाने को ,उस बाग़ की सी है जो भोड़ (रेतीली ज़मीन) पर हो उस पर ज़ोर का पानी पड़ा तो दूने मेवा लाया फिर अगर ज़ोर का मेंह उसे न पहुंचे तो ओस काफ़ी है और अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है
266. أَيَوَدُّ أَحَدُكُمْ أَنْ تَكُونَ لَهُ جَنَّةٌ مِنْ نَخِيلٍ وَأَعْنَابٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ لَهُ فِيهَا مِنْ كُلِّ الثَّمَرَاتِ وَأَصَابَهُ الْكِبَرُ وَلَهُ ذُرِّيَّةٌ ضُعَفَاءُ فَأَصَابَهَا إِعْصَارٌ فِيهِ نَارٌ فَاحْتَرَقَتْ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَتَفَكَّرُونَ
क्या तुम में कोई इसे पसन्द रखेगा कि उसके पास एक बाग़ हो खजूरों और अंगूरों का जिसके नीचे नदियां बहतीं उसके लिये उसमें हर क़िस्म के फलों से है और उसे बुढ़ापा आया और उसके नातवाँ(कमज़ोर) बच्चे हैं तो आया उसपर एक बगोला जिसमें आग थी तो जल गया ऐसा ही बयान करता है अल्लाह तुमसे अपनी आयतें कि कहीं तुम ध्यान लगाओ
267. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَنْفِقُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا كَسَبْتُمْ وَمِمَّا أَخْرَجْنَا لَكُمْ مِنَ الْأَرْضِ وَلَا تَيَمَّمُوا الْخَبِيثَ مِنْهُ تُنْفِقُونَ وَلَسْتُمْ بِآخِذِيهِ إِلَّا أَنْ تُغْمِضُوا فِيهِ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ
ऐ ईमान वालो अपनी पाक कमाइयों में से कुछ दो और उसमें से जो हमने तुम्हारे लिये ज़मीन से निकाला और ख़ास नाक़िस (दूषित) का इरादा न करो कि दो तो उसमें से और तुम्हें मिले तो न लोगे जब तक उसमें चश्मपोशी न करो और जान रखो कि अल्लाह बे-परवाह सराहा गया है
268. الشَّيْطَانُ يَعِدُكُمُ الْفَقْرَ وَيَأْمُرُكُمْ بِالْفَحْشَاءِ وَاللَّهُ يَعِدُكُمْ مَغْفِرَةً مِنْهُ وَفَضْلًا وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ
शैतान तुम्हें अन्देशा (आशंका) दिलाता है मोहताजी का और हुक्म देता है बेहयाई का और अल्लाह तुमसे वादा फ़रमाता है बख़्शिश(इनाम) और फ़ज़्ल(कृपा) का और अल्लाह वुसअत (विस्तार) वाला इल्म वाला है
269. يُؤْتِي الْحِكْمَةَ مَنْ يَشَاءُ وَمَنْ يُؤْتَ الْحِكْمَةَ فَقَدْ أُوتِيَ خَيْرًا كَثِيرًا وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّا أُولُو الْأَلْبَابِ
अल्लाह हिकमत (बोध) देता है जिसे चाहे और जिसे हिकमत मिली उसे बहुत भलाई मिली और नसीहत नहीं मानते मगर अक़्ल वाले
270. وَمَا أَنْفَقْتُمْ مِنْ نَفَقَةٍ أَوْ نَذَرْتُمْ مِنْ نَذْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ يَعْلَمُهُ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنْصَارٍ
और तुम जो खर्च करो या मन्नत मानो अल्लाह को उसकी ख़बर है और जालिमों का कोई मददगार नहीं
271. إِنْ تُبْدُوا الصَّدَقَاتِ فَنِعِمَّا هِيَ وَإِنْ تُخْفُوهَا وَتُؤْتُوهَا الْفُقَرَاءَ فَهُوَ خَيْرٌ لَكُمْ وَيُكَفِّرُ عَنْكُمْ مِنْ سَيِّئَاتِكُمْ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ
अगर खैरात एलानिया दो तो वह क्या ही अच्छी बात है और अगर छुपा कर फक़ीरों को दो ये तुम्हारे लिये सबसे बेहतर है और उसमें तुम्हारे कुछ गुनाह घटेंगे और अल्लाह को तुम्हारे कामों की ख़बर है
272. لَيْسَ عَلَيْكَ هُدَاهُمْ وَلَكِنَّ اللَّهَ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ وَمَا تُنْفِقُوا مِنْ خَيْرٍ فَلِأَنْفُسِكُمْ وَمَا تُنْفِقُونَ إِلَّا ابْتِغَاءَ وَجْهِ اللَّهِ وَمَا تُنْفِقُوا مِنْ خَيْرٍ يُوَفَّ إِلَيْكُمْ وَأَنْتُمْ لَا تُظْلَمُونَ
उन्हें राह देना तुम्हारे ज़िम्मे लाज़िम नहीं हाँ अल्लाह राह देता है जिसे चाहता है और तुम जो अच्छी चीज़ दो तो तुम्हारा ही भला है और तुम्हें ख़र्च करना मुनासिब नहीं मगर अल्लाह की मर्ज़ी चाहने के लिये और जो माल दो तुम्हें पूरा मिलेगा और नुक़सान न दिये जाओगे
273. لِلْفُقَرَاءِ الَّذِينَ أُحْصِرُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ لَا يَسْتَطِيعُونَ ضَرْبًا فِي الْأَرْضِ يَحْسَبُهُمُ الْجَاهِلُ أَغْنِيَاءَ مِنَ التَّعَفُّفِ تَعْرِفُهُمْ بِسِيمَاهُمْ لَا يَسْأَلُونَ النَّاسَ إِلْحَافًا وَمَا تُنْفِقُوا مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ
उन फ़क़ीरों के लिये जो राहे खुदा में रोके गए ज़मीन में चल नहीं सकते नादान उन्हें तवन्गर (मालदार) समझे बचने के सबब तू उन्हें उनकी सूरत से पहचान लेगा लोगों से सवाल नहीं करते कि गिड़गिड़ाना पड़े और तुम जो ख़ैरात करो अल्लाह उसे जानता है
274. الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ سِرًّا وَعَلَانِيَةً فَلَهُمْ أَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ
वो जो अपने माल ख़ैरात करते हैं रात में और दिन में छुपे और ज़ाहिर उनके लिए उनका नेग है उनके रब के पास उनको न कुछ अन्देशा हो न कुछ ग़म
275. الَّذِينَ يَأْكُلُونَ الرِّبَا لَا يَقُومُونَ إِلَّا كَمَا يَقُومُ الَّذِي يَتَخَبَّطُهُ الشَّيْطَانُ مِنَ الْمَسِّ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُوا إِنَّمَا الْبَيْعُ مِثْلُ الرِّبَا وَأَحَلَّ اللَّهُ الْبَيْعَ وَحَرَّمَ الرِّبَا فَمَنْ جَاءَهُ مَوْعِظَةٌ مِنْ رَبِّهِ فَانْتَهَى فَلَهُ مَا سَلَفَ وَأَمْرُهُ إِلَى اللَّهِ وَمَنْ عَادَ فَأُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
वो जो सूद खाते हैं क़यामत के दिन न खड़े होंगे मगर जैसे खड़ा होता है वह जिसे आसेब (प्रेतबाधा) ने छू कर मख़बूत (पागल) बना दिया हो यह इसलिये कि उन्होंने कहा बेअ (विक्रय) भी तो सूद ही के समान है, और अल्लाह ने हलाल किया बेअ को और हराम किया सूद तो जिसे उसके रब के पास से नसीहत आई और वह बाज़ (रूका) रहा तो उसे हलाल है जो पहले ले चुका और उस का काम ख़ुदा के सुपुर्द है और जो अब ऐसी हरकत करेगा तो वह दोज़ख़ी है, वो इस में मुद्दतों रहेंगे
276. يَمْحَقُ اللَّهُ الرِّبَا وَيُرْبِي الصَّدَقَاتِ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ كَفَّارٍ أَثِيمٍ
अल्लाह हलाक करता है सूद को और बढ़ाता है ख़ैरात को और अल्लाह को पसन्द नहीं आता कोई नाशुक्रा बड़ा गुनहगार
277. إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَآتَوُا الزَّكَاةَ لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ
बेशक वो जो ईमान लाए और अच्छे काम किये और नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी उनका नेग उनके रब के पास है और न उन्हें कुछ अन्देशा (डर) हो न कुछ ग़म
278. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَذَرُوا مَا بَقِيَ مِنَ الرِّبَا إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ
ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो और छोड़ दो जो बाक़ी रह गया है सूद, अगर मुसलमान हो
279. فَإِنْ لَمْ تَفْعَلُوا فَأْذَنُوا بِحَرْبٍ مِنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ وَإِنْ تُبْتُمْ فَلَكُمْ رُءُوسُ أَمْوَالِكُمْ لَا تَظْلِمُونَ وَلَا تُظْلَمُونَ
फिर अगर ऐसा न करो तो यक़ीन कर लो अल्लाह और अल्लाह के रसूल से लड़ाई का और अगर तुम तौबह करो तो अपना अस्ल माल लेलो न तुम किसी को नुक़सान पहुंचाओ न तुम्हें नुक़सान हो
280. وَإِنْ كَانَ ذُو عُسْرَةٍ فَنَظِرَةٌ إِلَى مَيْسَرَةٍ وَأَنْ تَصَدَّقُوا خَيْرٌ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ
और अगर क़र्जदार तंगी वाला है तो उसे मोहलत दो आसानी तक और कर्ज़ उस पर बिल्कुल छोड़ देना तुम्हारे लिये और भला है अगर जानो
281. وَاتَّقُوا يَوْمًا تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ ثُمَّ تُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ
और डरो उस दिन से जिसमें अल्लाह की तरफ़ फिरोगे और हर जान को उसकी कमाई पूरी भर दी जाएगी और उन पर जुल्म न होगा
282. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا تَدَايَنْتُمْ بِدَيْنٍ إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى فَاكْتُبُوهُ وَلْيَكْتُبْ بَيْنَكُمْ كَاتِبٌ بِالْعَدْلِ وَلَا يَأْبَ كَاتِبٌ أَنْ يَكْتُبَ كَمَا عَلَّمَهُ اللَّهُ فَلْيَكْتُبْ وَلْيُمْلِلِ الَّذِي عَلَيْهِ الْحَقُّ وَلْيَتَّقِ اللَّهَ رَبَّهُ وَلَا يَبْخَسْ مِنْهُ شَيْئًا فَإِنْ كَانَ الَّذِي عَلَيْهِ الْحَقُّ سَفِيهًا أَوْ ضَعِيفًا أَوْ لَا يَسْتَطِيعُ أَنْ يُمِلَّ هُوَ فَلْيُمْلِلْ وَلِيُّهُ بِالْعَدْلِ وَاسْتَشْهِدُوا شَهِيدَيْنِ مِنْ رِجَالِكُمْ فَإِنْ لَمْ يَكُونَا رَجُلَيْنِ فَرَجُلٌ وَامْرَأَتَانِ مِمَّنْ تَرْضَوْنَ مِنَ الشُّهَدَاءِ أَنْ تَضِلَّ إِحْدَاهُمَا فَتُذَكِّرَ إِحْدَاهُمَا الْأُخْرَى وَلَا يَأْبَ الشُّهَدَاءُ إِذَا مَا دُعُوا وَلَا تَسْأَمُوا أَنْ تَكْتُبُوهُ صَغِيرًا أَوْ كَبِيرًا إِلَى أَجَلِهِ ذَلِكُمْ أَقْسَطُ عِنْدَ اللَّهِ وَأَقْوَمُ لِلشَّهَادَةِ وَأَدْنَى أَلَّا تَرْتَابُوا إِلَّا أَنْ تَكُونَ تِجَارَةً حَاضِرَةً تُدِيرُونَهَا بَيْنَكُمْ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَلَّا تَكْتُبُوهَا وَأَشْهِدُوا إِذَا تَبَايَعْتُمْ وَلَا يُضَارَّ كَاتِبٌ وَلَا شَهِيدٌ وَإِنْ تَفْعَلُوا فَإِنَّهُ فُسُوقٌ بِكُمْ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَيُعَلِّمُكُمُ اللَّهُ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
ऐ ईमान वालों जब तुम एक निश्चित मुद्दत तक किसी दैन का लेन देन करो तो उसे लिख लो और चाहिये कि तुम्हारे दरमियान कोई लिखने वाला ठीक ठीक लिखे और लिखने वाला लिखने से इन्कार न करे जैसा कि उसे अल्लाह ने सिखाया है तो उसे लिख देना चाहिये और जिस पर हक़ आता है वह लिखता जाए और अल्लाह से डरो जो उसका रब है और हक़ में से कुछ रख न छोड़े फिर जिस पर हक़ आता है अगर बे – अक़्ल या कमज़ोर हो या लिखा न सके तो उसका वली (सरपरस्त) इन्साफ़ से लिखाए और दो गवाह कर लो अपने मर्दों में से फिर अगर दो मर्द न हों तो एक मर्द और दो औरतें, ऐसे गवाह जिनको पसन्द करो कि कहीं उनमें एक औरत भूले तो उस एक को दूसरी याद दिला दे और गवाह जब बुलाए जाए तो आने से इन्कार न करें और इसे भारी न जानो कि दैन छोटा है या बड़ा उसकी मीआद तक लिखित कर लो यह अल्लाह के नज़दीक ज़्यादा इन्साफ़ की बात है, इस में गवाही ख़ूब ठीक रहेगी और यह उससे क़रीब है कि तुम्हें शुबह न पड़े मगर यह कि कोई सरेदस्त (तात्कालिक) का सौदा हाथों हाथ हो तो उसके न लिखने का तुम पर गुनाह नहीं और जब खरीद व फ़रोक्त करो तो गवाह कर लो और न किसी लिखने वाले को ज़रर दे न गवाह को (या न लिखने वाला ज़रर दे न गवाह) और जो तुम ऐसा करो तो यह तुम्हारा फ़िस्क़ (दुराचार) होगा और अल्लाह से डरो और अल्लाह तुम्हें सिखाता है और अल्लाह सब कुछ जानता है
283. وَإِنْ كُنْتُمْ عَلَى سَفَرٍ وَلَمْ تَجِدُوا كَاتِبًا فَرِهَانٌ مَقْبُوضَةٌ فَإِنْ أَمِنَ بَعْضُكُمْ بَعْضًا فَلْيُؤَدِّ الَّذِي اؤْتُمِنَ أَمَانَتَهُ وَلْيَتَّقِ اللَّهَ رَبَّهُ وَلَا تَكْتُمُوا الشَّهَادَةَ وَمَنْ يَكْتُمْهَا فَإِنَّهُ آثِمٌ قَلْبُهُ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ
और अगर तुम सफ़र में हो और लिखने वाला न पाओ तो गिरौ हो क़ब्ज़े में दिया हुआ और अगर तुम में एक को दूसरे पर इत्मीनान हो तो वह जिसे उसने अमीन (विश्वस्त) समझा था अपनी अमानत अदा करे अल्लाह से डरे जो उसका रब है और गवाही न छुपाओ और जो गवाही छुपाए गा तो भीतर से उस का दिल गुनहगार हैऔर अल्ल्लाह तुम्हारे कामों को जानता है
284. لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَإِنْ تُبْدُوا مَا فِي أَنْفُسِكُمْ أَوْ تُخْفُوهُ يُحَاسِبْكُمْ بِهِ اللَّهُ فَيَغْفِرُ لِمَنْ يَشَاءُ وَيُعَذِّبُ مَنْ يَشَاءُ وَاللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और अगर तुम ज़ाहिर करो जो कुछ तुम्हारे जी में है या छुपाओ, अल्लाह तुम से उसका हिसाब लेगा तो जिसे चाहे गा बख्श़ेगा और जिसे चाहे गा सज़ा देगा और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है
285. آمَنَ الرَّسُولُ بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْهِ مِنْ رَبِّهِ وَالْمُؤْمِنُونَ كُلٌّ آمَنَ بِاللَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِنْ رُسُلِهِ وَقَالُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا غُفْرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيْكَ الْمَصِيرُ
रसूल ईमान लाया उसपर जो उसके रब के पास से उस पर उतरा और ईमान वाले सब ने माना अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों को यह कहते हुए कि हम उसके किसी रसूल पर ईमान लाने में फ़र्क़ नहीं करते और अर्ज़ की कि हमने सुना और माना तेरी माफ़ी हो ऐ रब हमारे और तेरी ही तरफ़ फिरना है
286. لَا يُكَلِّفُ اللَّهُ نَفْسًا إِلَّا وُسْعَهَا لَهَا مَا كَسَبَتْ وَعَلَيْهَا مَا اكْتَسَبَتْ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذْنَا إِنْ نَسِينَا أَوْ أَخْطَأْنَا رَبَّنَا وَلَا تَحْمِلْ عَلَيْنَا إِصْرًا كَمَا حَمَلْتَهُ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِنَا رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلْنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِ وَاعْفُ عَنَّا وَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا أَنْتَ مَوْلَانَا فَانْصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ
अल्लाह किसी जान पर बोझ नहीं डालता मगर उसकी ताक़त भर, उसका फ़ायदा है जो अच्छा कमाया और उसका नुक़सान है जो बुराई कमाई ऐ रब हमारे हमें न पकड़ अगर हम भूले या चूकें, ऐ रब हमारे और हम पर भारी बोझ न रख जैसा तूने हम से अगलों पर रखा था, ऐ रब हमारे और हम पर वह बोझ न डाल जिसकी हमें सहार न हो और हमें माफ़ फ़रमादे और बख़्श दे और हम पर मेहर कर, तू हमारा मौला है तू काफ़िरों पर हमें मदद दे