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1. بَرَاءَةٌ مِنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ إِلَى الَّذِينَ عَاهَدْتُمْ مِنَ الْمُشْرِكِينَ
बेज़ारी का हुक्म सुनाना है अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ से उन मुश्रिकों को जिनसे तुम्हारा मुआहिदा था और वो क़ायम न रहे
2. فَسِيحُوا فِي الْأَرْضِ أَرْبَعَةَ أَشْهُرٍ وَاعْلَمُوا أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِي اللَّهِ وَأَنَّ اللَّهَ مُخْزِي الْكَافِرِينَ
तो चार महीने ज़मीन पर चलो फिरो और जान रखो कि तुम अल्लाह को थका नहीं सकते और यह कि अल्लाह काफ़िरों को रूस्वा करने वाला है
3. وَأَذَانٌ مِنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ إِلَى النَّاسِ يَوْمَ الْحَجِّ الْأَكْبَرِ أَنَّ اللَّهَ بَرِيءٌ مِنَ الْمُشْرِكِينَ وَرَسُولُهُ فَإِنْ تُبْتُمْ فَهُوَ خَيْرٌ لَكُمْ وَإِنْ تَوَلَّيْتُمْ فَاعْلَمُوا أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِي اللَّهِ وَبَشِّرِ الَّذِينَ كَفَرُوا بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
और मुनादी पुकार देना है अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ से सब लोगों में बड़े हज के दिन कि अल्लाह बेज़ार है मुश्रिकों से और उसका रसूल तो अगर तुम तौबह करो तो तुम्हारा भला है और अगर मुंह फेरो तो जान लो कि तुम अल्लाह को न थका सकोगे और काफ़िरों को ख़ुशख़बरी सुनाओ दर्दनाक अज़ाब की
4. إِلَّا الَّذِينَ عَاهَدْتُمْ مِنَ الْمُشْرِكِينَ ثُمَّ لَمْ يَنْقُصُوكُمْ شَيْئًا وَلَمْ يُظَاهِرُوا عَلَيْكُمْ أَحَدًا فَأَتِمُّوا إِلَيْهِمْ عَهْدَهُمْ إِلَى مُدَّتِهِمْ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِينَ
मगर वो मुश्रिक जिनसे तुम्हारा मुआहिदा था फिर उन्होंने तुम्हारे एहद में कुछ कमी न की और तुम्हारे मुक़ाबिल किसी को मदद न दी तो उनका एहद ठहरी हुई मुद्दत तक पूरा करो, बेशक अल्लाह परहेज़गारों को दोस्त रखता है .
5. فَإِذَا انْسَلَخَ الْأَشْهُرُ الْحُرُمُ فَاقْتُلُوا الْمُشْرِكِينَ حَيْثُ وَجَدْتُمُوهُمْ وَخُذُوهُمْ وَاحْصُرُوهُمْ وَاقْعُدُوا لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍ فَإِنْ تَابُوا وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَآتَوُا الزَّكَاةَ فَخَلُّوا سَبِيلَهُمْ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
फिर जब हुरमत वाले महीने निकल जाएं तो मुश्रिकों को मारो जहाँ पाओ और उन्हें पकड़ो और क़ैद करो और हर जगह उनकी ताक में बैठो फिर अगर वो तौबह करें और नमाज़ क़ायम रखें और ज़कात दें तो उनकी राह छोड़ दो, बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है
6. وَإِنْ أَحَدٌ مِنَ الْمُشْرِكِينَ اسْتَجَارَكَ فَأَجِرْهُ حَتَّى يَسْمَعَ كَلَامَ اللَّهِ ثُمَّ أَبْلِغْهُ مَأْمَنَهُ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَا يَعْلَمُونَ
और ऐ मेहबूब अगर कोई मुश्रिक तुमसे पनाह मांगे फ ) तो उसे पनाह दो कि वह अल्लाह का कलाम सुने फिर उसे उसकी अम्न की जगह पहुंचा दो फ ) यह इसलिये कि वो नादान लोग हैं फ )
7. كَيْفَ يَكُونُ لِلْمُشْرِكِينَ عَهْدٌ عِنْدَ اللَّهِ وَعِنْدَ رَسُولِهِ إِلَّا الَّذِينَ عَاهَدْتُمْ عِنْدَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ فَمَا اسْتَقَامُوا لَكُمْ فَاسْتَقِيمُوا لَهُمْ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِينَ
मुश्रिकों के लिये अल्लाह और उसके रसूल के पास कोई एहद क्यों कर होगा मगर वो जिनसे तुम्हारा मुआहिदा मस्जिदे हराम के पास हुआ, फ ) तो जबतक वो तुम्हारे लिये एहद पर क़ायम रहें तुम उनके लिये क़ायम रहो बेशक परहेज़गार अल्लाह को ख़ुश आते हैं.
8. كَيْفَ وَإِنْ يَظْهَرُوا عَلَيْكُمْ لَا يَرْقُبُوا فِيكُمْ إِلًّا وَلَا ذِمَّةً يُرْضُونَكُمْ بِأَفْوَاهِهِمْ وَتَأْبَى قُلُوبُهُمْ وَأَكْثَرُهُمْ فَاسِقُونَ
भला क्योंकर उनका हाल तो यह है कि तुमपर क़ाबू पाएं तो न क़राबत का लिहाज़ करें न एहद का, अपने मुंह से तुम्हें राज़ी करते हैं और उनके दिलों में इन्कार है और उनमें अक्सर बेहुक्म हैं (
9. اشْتَرَوْا بِآيَاتِ اللَّهِ ثَمَنًا قَلِيلًا فَصَدُّوا عَنْ سَبِيلِهِ إِنَّهُمْ سَاءَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ
अल्लाह की आयतों के बदले थोड़े दाम मोल लिये ( तो उसकी राह से रोका बेशक वो बहुत ही बुरे काम करते हैं.
10. لَا يَرْقُبُونَ فِي مُؤْمِنٍ إِلًّا وَلَا ذِمَّةً وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُعْتَدُونَ
किसी मुसलमान में न क़राबत का लिहाज़ करें न अ़हद का और वही सरकश हैं
11. فَإِنْ تَابُوا وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَآتَوُا الزَّكَاةَ فَإِخْوَانُكُمْ فِي الدِّينِ وَنُفَصِّلُ الْآيَاتِ لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ
फिर अगर वो तौबह करें और नमाज़ क़ायम रखें और ज़कात दें तो वो तुम्हारे दीनी भाई हैं, और हम आयतें मुफ़स्सल बयान करते हैं जानने वालों के लिये
12. وَإِنْ نَكَثُوا أَيْمَانَهُمْ مِنْ بَعْدِ عَهْدِهِمْ وَطَعَنُوا فِي دِينِكُمْ فَقَاتِلُوا أَئِمَّةَ الْكُفْرِ إِنَّهُمْ لَا أَيْمَانَ لَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَنْتَهُونَ
और अगर एहद करके अपनी क़समें तोड़े और तुम्हारे दीन पर मुंह आएं तो कुफ़्र के सरग़नों से लड़ों बेशक उनकी क़समें कुछ नहीं इस उम्मीद पर कि शायद वो बाज़ आएं
13. أَلَا تُقَاتِلُونَ قَوْمًا نَكَثُوا أَيْمَانَهُمْ وَهَمُّوا بِإِخْرَاجِ الرَّسُولِ وَهُمْ بَدَءُوكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ أَتَخْشَوْنَهُمْ فَاللَّهُ أَحَقُّ أَنْ تَخْشَوْهُ إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ
क्या उस क़ौम से न लड़ोगे जिन्होंने अपनी क़समें तोड़ीं और रसूल के निकालने का इरादा किया हालांकि उन्हीं की तरफ़ से पहल हुई है, क्या उनसे डरते हो, तो अल्लाह इसका ज़्यादा मुस्तहक़ है कि उससे डरो अगर ईमान रखते हो
14. قَاتِلُوهُمْ يُعَذِّبْهُمُ اللَّهُ بِأَيْدِيكُمْ وَيُخْزِهِمْ وَيَنْصُرْكُمْ عَلَيْهِمْ وَيَشْفِ صُدُورَ قَوْمٍ مُؤْمِنِينَ
तो उनसे लड़ो अल्लाह उन्हें अज़ाब देगा तुम्हारे हाथों और उन्हें रूस्वा करेगा और तुम्हें उनपर मदद देगा और ईमान वालों का जी ठण्डा करेगा.
15. وَيُذْهِبْ غَيْظَ قُلُوبِهِمْ وَيَتُوبُ اللَّهُ عَلَى مَنْ يَشَاءُ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
और उनके दिलों की घुटन दूर फ़रमाएगा और अल्लाह जिसकी चाहे तौबह कुबूल फ़रमाए और अल्लाह इल्म व हिकमत वाला है.
16. أَمْ حَسِبْتُمْ أَنْ تُتْرَكُوا وَلَمَّا يَعْلَمِ اللَّهُ الَّذِينَ جَاهَدُوا مِنْكُمْ وَلَمْ يَتَّخِذُوا مِنْ دُونِ اللَّهِ وَلَا رَسُولِهِ وَلَا الْمُؤْمِنِينَ وَلِيجَةً وَاللَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ
क्या इस गुमान में हो कि यूंही छोड़ दिये जाओगे, और अभी अल्लाह ने पहचान न कराई उनकी जो तुम में से जिहाद करेंगे और अल्लाह और उसके रसूल और मुसलमानों के सिवा किसी को अपना महरम राज़ न बनाएंगे और अल्लाह तुम्हारे कामों से ख़बरदार है.
17. مَا كَانَ لِلْمُشْرِكِينَ أَنْ يَعْمُرُوا مَسَاجِدَ اللَّهِ شَاهِدِينَ عَلَى أَنْفُسِهِمْ بِالْكُفْرِ أُولَئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ وَفِي النَّارِ هُمْ خَالِدُونَ
मुश्रिकों को नहीं पहुंचता कि अल्लाह की मस्जिदें आबाद करें ख़ुद अपने कुफ़्र की गवाही देकर उनका तो सब किया-धरा अकारत है, और वो हमेशा आग में रहेंगे
18. إِنَّمَا يَعْمُرُ مَسَاجِدَ اللَّهِ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَأَقَامَ الصَّلَاةَ وَآتَى الزَّكَاةَ وَلَمْ يَخْشَ إِلَّا اللَّهَ فَعَسَى أُولَئِكَ أَنْ يَكُونُوا مِنَ الْمُهْتَدِينَ
अल्लाह की मस्जिदें वही आबाद करते हैं जो अल्लाह और क़यामत पर ईमान लाते और नमाज़ क़ायम रखते और ज़कात देते हैं और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते, तो क़रीब है कि ये लोग हिदायत वालों में हों.
19. أَجَعَلْتُمْ سِقَايَةَ الْحَاجِّ وَعِمَارَةَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ كَمَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَجَاهَدَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ لَا يَسْتَوُونَ عِنْدَ اللَّهِ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ
तो क्या तुमने हाजियों की सबील (प्याऊ) और मस्जिदे हराम की ख़िदमत उसके बराबर ठहराली जो अल्लाह और क़यामत पर ईमान लाया और अल्लाह की राह में जिहाद किया, वो अल्लाह के नज़दीक बराबर नहीं, और अल्लाह ज़ालिमों को राह नहीं देता
20. الَّذِينَ آمَنُوا وَهَاجَرُوا وَجَاهَدُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنْفُسِهِمْ أَعْظَمُ دَرَجَةً عِنْدَ اللَّهِ وَأُولَئِكَ هُمُ الْفَائِزُونَ
वो जो ईमान लाए और हिजरत की और अपने माल जान से अल्लाह की राह में लड़े अल्लाह के यहाँ उनका दर्जा बड़ा है, और वही मुराद को पहुंचे
21. يُبَشِّرُهُمْ رَبُّهُمْ بِرَحْمَةٍ مِنْهُ وَرِضْوَانٍ وَجَنَّاتٍ لَهُمْ فِيهَا نَعِيمٌ مُقِيمٌ
उनका रब उन्हें ख़ुशी सुनाता है अपनी रहमत और अपनी रज़ा और उन बाग़ों की जिनमें उन्हें दाईमी नेअमत है.
22. خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا إِنَّ اللَّهَ عِنْدَهُ أَجْرٌ عَظِيمٌ
हमेशा हमेशा उनमें रहेंगे, बेशक अल्लाह के पास बड़ा सवाब है.
23. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا آبَاءَكُمْ وَإِخْوَانَكُمْ أَوْلِيَاءَ إِنِ اسْتَحَبُّوا الْكُفْرَ عَلَى الْإِيمَانِ وَمَنْ يَتَوَلَّهُمْ مِنْكُمْ فَأُولَئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ
ऐ ईमान वालो अपने बाप और अपने भाईयों को दोस्त न समझो अगर वो ईमान पर कुफ़्र पसन्द करें, और तुम में जो कोई उनसे दोस्ती करेगा तो वही ज़ालिम हैं
24. قُلْ إِنْ كَانَ آبَاؤُكُمْ وَأَبْنَاؤُكُمْ وَإِخْوَانُكُمْ وَأَزْوَاجُكُمْ وَعَشِيرَتُكُمْ وَأَمْوَالٌ اقْتَرَفْتُمُوهَا وَتِجَارَةٌ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا وَمَسَاكِنُ تَرْضَوْنَهَا أَحَبَّ إِلَيْكُمْ مِنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ وَجِهَادٍ فِي سَبِيلِهِ فَتَرَبَّصُوا حَتَّى يَأْتِيَ اللَّهُ بِأَمْرِهِ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْفَاسِقِينَ
तुम फ़रमाओ अगर तुम्हारे बाप और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई और तुम्हारी औरतें और तुम्हारा कुम्बाह और तुम्हारी कमाई के माल और वह सौदा जिसके नुक़सान का तुम्हें डर है और तुम्हारे पसन्द के मकान ये चीज़ें अल्लाह और उसके रसूल और उसकी राह में लड़ने से ज़्यादा प्यारी हो तो रास्ता देखों यहाँ तक कि अल्लाह अपना हुक्म लाए और अल्लाह फ़ासिक़ों को राह नहीं देता.
25. لَقَدْ نَصَرَكُمُ اللَّهُ فِي مَوَاطِنَ كَثِيرَةٍ وَيَوْمَ حُنَيْنٍ إِذْ أَعْجَبَتْكُمْ كَثْرَتُكُمْ فَلَمْ تُغْنِ عَنْكُمْ شَيْئًا وَضَاقَتْ عَلَيْكُمُ الْأَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ ثُمَّ وَلَّيْتُمْ مُدْبِرِينَ
बेशक अल्लाह ने बहुत जगह तुम्हारी मदद की और हुनैन के दिन जब तुम अपनी कसरत (ज़्यादा नफ़री) पर इतरा गए थे तो वह तुम्हारे कुछ काम न आई और ज़मीन इतनी वसीअ (विस्तृत) होकर तुम पर तंग हो गई फिर तुम पीठ देकर फिर गए.
26. ثُمَّ أَنْزَلَ اللَّهُ سَكِينَتَهُ عَلَى رَسُولِهِ وَعَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَأَنْزَلَ جُنُودًا لَمْ تَرَوْهَا وَعَذَّبَ الَّذِينَ كَفَرُوا وَذَلِكَ جَزَاءُ الْكَافِرِينَ
फिर अल्लाह ने अपनी तसकीन उतारी अपने रसूल पर और मुसलमानों पर और वो लश्कर उतारे जो तुम ने न देखे और काफ़िरों को अज़ाब दिया और मुनकिरों की यही सज़ा है.
27. ثُمَّ يَتُوبُ اللَّهُ مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ عَلَى مَنْ يَشَاءُ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ
फिर उसके बाद अल्लाह जिसे चाहेगा तौबह देगा और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है.
28. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّمَا الْمُشْرِكُونَ نَجَسٌ فَلَا يَقْرَبُوا الْمَسْجِدَ الْحَرَامَ بَعْدَ عَامِهِمْ هَذَا وَإِنْ خِفْتُمْ عَيْلَةً فَسَوْفَ يُغْنِيكُمُ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ إِنْ شَاءَ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
ऐ ईमान वालो मुश्रिक निरे नापाक हैं तो इस बरस के बाद वो मस्जिदे हराम के पास न आने पाएं और अगर तुम्हें मोहताजी (दरिद्रता) का डर है तो अनकरिब अल्लाह तुम्हें दौलतमंद कर देगा अपने फ़ज़्ल से अगर चाहे बेशक अल्लाह इल्म व हिकमत वाला है
29. قَاتِلُوا الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَلَا بِالْيَوْمِ الْآخِرِ وَلَا يُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَلَا يَدِينُونَ دِينَ الْحَقِّ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ حَتَّى يُعْطُوا الْجِزْيَةَ عَنْ يَدٍ وَهُمْ صَاغِرُونَ
लड़ो उनसे जो ईमान नहीं लाते अल्लाह पर और क़यामत पर और हराम नहीं मानते उस चीज़ को जिसको हराम किया अल्लाह और उसके रसूल ने और सच्चे दीन के ताबे (अधीन) नहीं होते यानी वो जो किताब दिये गए जब तक अपने हाथ से जिज़िया न दें ज़लील होकर
30. وَقَالَتِ الْيَهُودُ عُزَيْرٌ ابْنُ اللَّهِ وَقَالَتِ النَّصَارَى الْمَسِيحُ ابْنُ اللَّهِ ذَلِكَ قَوْلُهُمْ بِأَفْوَاهِهِمْ يُضَاهِئُونَ قَوْلَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ قَبْلُ قَاتَلَهُمُ اللَّهُ أَنَّى يُؤْفَكُونَ
और यहूदी बोले उज़ैर अल्लाह का बेटा है और नसरानी (ईसाई) बोले मसीह अल्लाह का बेटा है, ये बातें वो अपने मुंह से बकते हैं अगले काफ़िरों की सी बात बनाते हैं अल्लाह उन्हें मारे, कहाँ औंधे जाते हैं
31. اتَّخَذُوا أَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَانَهُمْ أَرْبَابًا مِنْ دُونِ اللَّهِ وَالْمَسِيحَ ابْنَ مَرْيَمَ وَمَا أُمِرُوا إِلَّا لِيَعْبُدُوا إِلَهًا وَاحِدًا لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ سُبْحَانَهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ
उन्होंने अपने पादरियों और जोगियों को अल्लाह के सिवा ख़ुदा बना लिया और मरयम के बेटे मसीह को और उन्हें हुक्म न था मगर यह कि एक अल्लाह को पूजें उसके सिवा किसी की बन्दगी नहीं उसे पाकी है उनके शिर्क से
32. يُرِيدُونَ أَنْ يُطْفِئُوا نُورَ اللَّهِ بِأَفْوَاهِهِمْ وَيَأْبَى اللَّهُ إِلَّا أَنْ يُتِمَّ نُورَهُ وَلَوْ كَرِهَ الْكَافِرُونَ
चाहते हैं कि अल्लाह का नूर अपने मुंह से बुझा दें और अल्लाह न मानेगा मगर अपने नूर का पूरा करना पड़े बुरा मानें काफ़िर.
33. هُوَ الَّذِي أَرْسَلَ رَسُولَهُ بِالْهُدَى وَدِينِ الْحَقِّ لِيُظْهِرَهُ عَلَى الدِّينِ كُلِّهِ وَلَوْ كَرِهَ الْمُشْرِكُونَ
वही हैं जिसने अपना रसूल हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा कि उसे सब दीनों पर ग़ालिब करे पड़े बुरा माने मुश्रिक.
34. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ كَثِيرًا مِنَ الْأَحْبَارِ وَالرُّهْبَانِ لَيَأْكُلُونَ أَمْوَالَ النَّاسِ بِالْبَاطِلِ وَيَصُدُّونَ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ وَالَّذِينَ يَكْنِزُونَ الذَّهَبَ وَالْفِضَّةَ وَلَا يُنْفِقُونَهَا فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَبَشِّرْهُمْ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
ऐ ईमान वालों बेशक बहुत पादरी और जोगी लोगों का माल नाहक़ खा जाते हैं और अल्लाह की राह से रोकते हैं और वो कि जोड़ कर रखते हैं सोना और चांदी और उसे अल्लाह की राह में ख़र्च नहीं करते उन्हें ख़ुशख़बरी सुनाओ दर्दनाक अज़ाब की.
35. يَوْمَ يُحْمَى عَلَيْهَا فِي نَارِ جَهَنَّمَ فَتُكْوَى بِهَا جِبَاهُهُمْ وَجُنُوبُهُمْ وَظُهُورُهُمْ هَذَا مَا كَنَزْتُمْ لِأَنْفُسِكُمْ فَذُوقُوا مَا كُنْتُمْ تَكْنِزُونَ
जिस दिन वह तपाया जाएगा जहन्नम की आग में फिर उससे दाग़ेंगे उनकी पेशानियाँ और कर्वटें और पीठें यह है वह जो तुमने अपने लिये जोड़ कर रखा था अब चखो मज़ा उस जोड़ने का.
36. إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِ عِنْدَ اللَّهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْرًا فِي كِتَابِ اللَّهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ مِنْهَا أَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ فَلَا تَظْلِمُوا فِيهِنَّ أَنْفُسَكُمْ وَقَاتِلُوا الْمُشْرِكِينَ كَافَّةً كَمَا يُقَاتِلُونَكُمْ كَافَّةً وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ مَعَ الْمُتَّقِينَ
बेशक महीनों की गिनती अल्लाह के नज़दीक बारह महीने हैं अल्लाह की किताब में जब से उसने आसमान और ज़मीन बनाए उनमें से चार हुरमत (धर्मनिषेध) वाले हैं, यह सीधा दीन है तो इन महीनों में अपनी जान पर ज़ुल्म न करो और मुश्रिकों से हर वक़्त लड़ो जैसा वो तुम से हर वक़्त लड़ते हैं, और जान लो कि अल्लाह परहेज़गारों के साथ है
37. إِنَّمَا النَّسِيءُ زِيَادَةٌ فِي الْكُفْرِ يُضَلُّ بِهِ الَّذِينَ كَفَرُوا يُحِلُّونَهُ عَامًا وَيُحَرِّمُونَهُ عَامًا لِيُوَاطِئُوا عِدَّةَ مَا حَرَّمَ اللَّهُ فَيُحِلُّوا مَا حَرَّمَ اللَّهُ زُيِّنَ لَهُمْ سُوءُ أَعْمَالِهِمْ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ
उनका महीने पीछे हटाना नहीं मगर और कुफ़्र में बढ़ना इससे काफ़िर बहकाये जाते हैं एक बरस उसे हलाल ठहराते हैं और दूसरे बरस उसे हराम मानते हैं कि उस गिनती के बराबर हो जाएं जो अल्लाह ने हराम फ़रमाई और अल्लाह के हराम किये हुए हलाल कर लें उनके बुरे काम उनकी आँखों में भले लगते हैं, और अल्लाह काफ़िरों को राह नहीं देता.
38. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا مَا لَكُمْ إِذَا قِيلَ لَكُمُ انْفِرُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ اثَّاقَلْتُمْ إِلَى الْأَرْضِ أَرَضِيتُمْ بِالْحَيَاةِ الدُّنْيَا مِنَ الْآخِرَةِ فَمَا مَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا فِي الْآخِرَةِ إِلَّا قَلِيلٌ
ऐ ईमान वालों तुम्हें क्या हुआ जब तुम से कहा जाए कि ख़ुदा की राह में कूच करो तो बोझ के मारे ज़मीन पर बैठ जाते हो क्या तुमने दुनिया की ज़िन्दगी आख़िरत के बदले पसन्द कर ली और जीती दुनिया का असबाब आख़िरत के सामने नहीं मगर थोड़ा
39. إِلَّا تَنْفِرُوا يُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا أَلِيمًا وَيَسْتَبْدِلْ قَوْمًا غَيْرَكُمْ وَلَا تَضُرُّوهُ شَيْئًا وَاللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
अगर न कूच करोगे तो तुम्हें सख़्त सज़ा देगा और तुम्हारी जगह और लोग ले आएगा और तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे, और अल्लाह सब कुछ कर सकता है.
40. إِلَّا تَنْصُرُوهُ فَقَدْ نَصَرَهُ اللَّهُ إِذْ أَخْرَجَهُ الَّذِينَ كَفَرُوا ثَانِيَ اثْنَيْنِ إِذْ هُمَا فِي الْغَارِ إِذْ يَقُولُ لِصَاحِبِهِ لَا تَحْزَنْ إِنَّ اللَّهَ مَعَنَا فَأَنْزَلَ اللَّهُ سَكِينَتَهُ عَلَيْهِ وَأَيَّدَهُ بِجُنُودٍ لَمْ تَرَوْهَا وَجَعَلَ كَلِمَةَ الَّذِينَ كَفَرُوا السُّفْلَى وَكَلِمَةُ اللَّهِ هِيَ الْعُلْيَا وَاللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
अगर तुम मेहबूब की मदद न करो तो बेशक अल्लाह ने उनकी मदद फ़रमाई जब काफ़िरों की शरारत से उन्हें बाहर तशरीफ़ लेजाना हुआ सिर्फ़ दो जान से जब वो दानों ग़ार में थे जब अपने यार से फ़रमाते थे ग़म न खा बेशक अल्लाह हमारे साथ है तो अल्लाह ने उसपर अपना सकीना उताराऔर उन फ़ौजों से उसकी मदद की जो तुमने न देखीं और काफ़िरों की बात नीचे डाली अल्लाह ही का बोल बाला है, और अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है.
41. انْفِرُوا خِفَافًا وَثِقَالًا وَجَاهِدُوا بِأَمْوَالِكُمْ وَأَنْفُسِكُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ذَلِكُمْ خَيْرٌ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ
कूच करो हलकी जान से चाहे भारी दिल से और अल्लाह की राह में लड़ों अपने माल और जान से यह तुम्हारे लिये बेहरत है अगर जानों
42. لَوْ كَانَ عَرَضًا قَرِيبًا وَسَفَرًا قَاصِدًا لَاتَّبَعُوكَ وَلَكِنْ بَعُدَتْ عَلَيْهِمُ الشُّقَّةُ وَسَيَحْلِفُونَ بِاللَّهِ لَوِ اسْتَطَعْنَا لَخَرَجْنَا مَعَكُمْ يُهْلِكُونَ أَنْفُسَهُمْ وَاللَّهُ يَعْلَمُ إِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ
अगर कोई क़रीब माल या मुतवस्सित (दरमियानी) सफ़र होता तो ज़रूर तुम्हारे साथ जाते मगर उनपर तो मशक्क़त (मेहनत) का रास्ता दूर पड़ गया और अब अल्लाह की क़सम खाएंगे कि हमसे बन पड़ता तो ज़रूर तुम्हारे साथ चलते, अपनी जानों को हलाक करते हैं )और अल्लाह जानता है कि वो बेशक ज़रूर झूटे हैं.
43. عَفَا اللَّهُ عَنْكَ لِمَ أَذِنْتَ لَهُمْ حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَكَ الَّذِينَ صَدَقُوا وَتَعْلَمَ الْكَاذِبِينَ
अल्लाह तुम्हें माफ़ करे तुमने उन्हें क्यों इज़्न (आज्ञा) दे दिया जब तक न खुले थे तुम पर सच्चे और ज़ाहिर न हुए थे झूटे.
44. لَا يَسْتَأْذِنُكَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ أَنْ يُجَاهِدُوا بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنْفُسِهِمْ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِالْمُتَّقِينَ
और वो जो अल्लाह और क़यामत पर ईमान रखते हैं तुमसे छुट्टी न मांगेंगे उससे कि अपने माल और जान से जिहाद करें और अल्लाह ख़ूब जानता है परहेज़गारों को.
45. إِنَّمَا يَسْتَأْذِنُكَ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَارْتَابَتْ قُلُوبُهُمْ فَهُمْ فِي رَيْبِهِمْ يَتَرَدَّدُونَ
तुमसे यह छुट्टी वही माँगते है जो अल्लाह और क़यामत पर ईमान नहीं रखते और उनके दिल शक में पड़े हैं तो वो अपने शक में डांवाडोल है
46. وَلَوْ أَرَادُوا الْخُرُوجَ لَأَعَدُّوا لَهُ عُدَّةً وَلَكِنْ كَرِهَ اللَّهُ انْبِعَاثَهُمْ فَثَبَّطَهُمْ وَقِيلَ اقْعُدُوا مَعَ الْقَاعِدِينَ
उन्हें निकलना मंजूर होता तो उसका सामान करते मगर ख़ुदा ही को उनका उठना नापसन्द हुआ तो उनमें काहिली भर दी और फ़रमाया गया कि बैठ रहो बैठ रहनेवाले के साथ.
47. لَوْ خَرَجُوا فِيكُمْ مَا زَادُوكُمْ إِلَّا خَبَالًا وَلَأَوْضَعُوا خِلَالَكُمْ يَبْغُونَكُمُ الْفِتْنَةَ وَفِيكُمْ سَمَّاعُونَ لَهُمْ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِالظَّالِمِينَ
अगर वो तुम में निकलते तो उनसे सिवा नुक़सान के तुम्हें कुछ न बढ़ता और तुम में फ़ितना डालने को तुम्हारे बीच में ग़ुराबें (कौए) दौड़ाते और तुम में उनके जासूस मौजूद हैं, और अल्लाह ख़ूब जानता है ज़ालिमों को.
48. لَقَدِ ابْتَغَوُا الْفِتْنَةَ مِنْ قَبْلُ وَقَلَّبُوا لَكَ الْأُمُورَ حَتَّى جَاءَ الْحَقُّ وَظَهَرَ أَمْرُ اللَّهِ وَهُمْ كَارِهُونَ
बेशक उन्होंने पहले ही फ़ितना चाहा था और ऐ मेहबूब तुम्हारे लिये तदबीरें उलटी पलटीं यहां तक कि हक़ आया और अल्लाह का हुक्म ज़ाहिर हुआ और उन्हें नागवार था
49. وَمِنْهُمْ مَنْ يَقُولُ ائْذَنْ لِي وَلَا تَفْتِنِّي أَلَا فِي الْفِتْنَةِ سَقَطُوا وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِيطَةٌ بِالْكَافِرِينَ
और उनमें कोई तुमसे यूं अर्ज़ करता है कि मुझे रूख़सत दीजिये और फ़ितने में न डालिये सुन लो वो फ़ितने ही में पड़े और बेशक जहन्नम घेरे हुए है काफ़िरों को
50. إِنْ تُصِبْكَ حَسَنَةٌ تَسُؤْهُمْ وَإِنْ تُصِبْكَ مُصِيبَةٌ يَقُولُوا قَدْ أَخَذْنَا أَمْرَنَا مِنْ قَبْلُ وَيَتَوَلَّوْا وَهُمْ فَرِحُونَ
अगर तुम्हें भलाई पहुंचे तो उन्हें बुरा लगे और अगर तुम्हें कोई मुसीबत पहुंचे तो कहें )हमने अपना काम पहले ही ठीक कर लिया था और ख़ुशियां मनाते फिर जाएं
51. قُلْ لَنْ يُصِيبَنَا إِلَّا مَا كَتَبَ اللَّهُ لَنَا هُوَ مَوْلَانَا وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ
तुम फ़रमाओ हमें न पहुंचेगा मगर जो अल्लाह ने हमारे लिये लिख दिया, वह हमारा मौला है, और मुसलमानों को अल्लाह ही पर भरोसा चाहिए
52. قُلْ هَلْ تَرَبَّصُونَ بِنَا إِلَّا إِحْدَى الْحُسْنَيَيْنِ وَنَحْنُ نَتَرَبَّصُ بِكُمْ أَنْ يُصِيبَكُمُ اللَّهُ بِعَذَابٍ مِنْ عِنْدِهِ أَوْ بِأَيْدِينَا فَتَرَبَّصُوا إِنَّا مَعَكُمْ مُتَرَبِّصُونَ
तुम फ़रमाओ तुम हमपर किस चीज़ का इन्तिज़ार करते हो मगर दो ख़ूबियों में से एक का और हम तुमपर इस इन्तिज़ार में हैं कि अल्लाह तुमपर अज़ाब डाले अपने पास से या हमारे हाथों तो अब राह देखो हम भी तुम्हारे साथ राह देख रहे हैं
53. قُلْ أَنْفِقُوا طَوْعًا أَوْ كَرْهًا لَنْ يُتَقَبَّلَ مِنْكُمْ إِنَّكُمْ كُنْتُمْ قَوْمًا فَاسِقِينَ
तुम फ़रमाओ कि दिल से ख़र्च करो या नागवारी से तुमसे हरगिज़ क़ुबूल न होगा बेशक तुम बेहुक्म लोग हो
54. وَمَا مَنَعَهُمْ أَنْ تُقْبَلَ مِنْهُمْ نَفَقَاتُهُمْ إِلَّا أَنَّهُمْ كَفَرُوا بِاللَّهِ وَبِرَسُولِهِ وَلَا يَأْتُونَ الصَّلَاةَ إِلَّا وَهُمْ كُسَالَى وَلَا يُنْفِقُونَ إِلَّا وَهُمْ كَارِهُونَ
और वो जो ख़र्च करते हैं उसका क़ुबूल होना बन्द न हुआ मगर इसीलिये कि वो अल्लाह व रसूल से मुनकर हुए और नमाज़ को नहीं आते मगर जी हारे और ख़र्च नहीं करते मगर नागवरी से
55. فَلَا تُعْجِبْكَ أَمْوَالُهُمْ وَلَا أَوْلَادُهُمْ إِنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ لِيُعَذِّبَهُمْ بِهَا فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَتَزْهَقَ أَنْفُسُهُمْ وَهُمْ كَافِرُونَ
तो तुम्हें उनके माल और उनकी औलाद तआज्जुब न आए अल्लाह यही चाहता है कि दुनिया की ज़िन्दगी में इन चीज़ों से उनपर वबाल डाले और कुफ़्र ही पर उनका दम निकल जाए
56. وَيَحْلِفُونَ بِاللَّهِ إِنَّهُمْ لَمِنْكُمْ وَمَا هُمْ مِنْكُمْ وَلَكِنَّهُمْ قَوْمٌ يَفْرَقُونَ
अल्लाह की क़समें खाते हैं कि वो तुम में से हैं और तुम में से हैं नहीं हाँ वो लोग डरते हैं
57. لَوْ يَجِدُونَ مَلْجَأً أَوْ مَغَارَاتٍ أَوْ مُدَّخَلًا لَوَلَّوْا إِلَيْهِ وَهُمْ يَجْمَحُونَ
अगर पाएं कोई पनाह या ग़ार (ख़ोह) या समा जाने की जगह तो रस्सियां तुड़ाते उधर फिर जाएंगे
58. وَمِنْهُمْ مَنْ يَلْمِزُكَ فِي الصَّدَقَاتِ فَإِنْ أُعْطُوا مِنْهَا رَضُوا وَإِنْ لَمْ يُعْطَوْا مِنْهَا إِذَا هُمْ يَسْخَطُونَ
और उनमें कोई वह है कि सदक़े (दान) बाँटने में तुमपर तअन करता है तो अगर उन में से कुछ मिले तो राज़ी हो जाएं और न मिले तों जभी वो नाराज़ हैं
59. وَلَوْ أَنَّهُمْ رَضُوا مَا آتَاهُمُ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَقَالُوا حَسْبُنَا اللَّهُ سَيُؤْتِينَا اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ وَرَسُولُهُ إِنَّا إِلَى اللَّهِ رَاغِبُونَ
और क्या अच्छा होता अगर वो इस पर राज़ी होते जो अल्लाह व रसूल ने उनको दिया और कहते हमें अल्लाह काफ़ी है अब देता है हमें अल्लाह अपने फ़ज़्ल से और अल्लाह का रसूल हमें अल्लाह ही की तरफ़ रग़बत (रूचि) है
60. إِنَّمَا الصَّدَقَاتُ لِلْفُقَرَاءِ وَالْمَسَاكِينِ وَالْعَامِلِينَ عَلَيْهَا وَالْمُؤَلَّفَةِ قُلُوبُهُمْ وَفِي الرِّقَابِ وَالْغَارِمِينَ وَفِي سَبِيلِ اللَّهِ وَابْنِ السَّبِيلِ فَرِيضَةً مِنَ اللَّهِ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
ज़क़ात तो उन्हीं लोगों के लिये है मोहताज और निरे नादार और जो उसे तहसील (ग्रहण) करके लाएं और जिनके दिलों को इस्लाम से उलफ़त दी जाए और गर्दनें छुड़ाने में और कर्ज़दारों को और अल्लाह की राह में और मुसाफ़िर को, यह ठहराया हुआ है अल्लाह का और अल्लाह इल्म व हिकमत वाला है
61. وَمِنْهُمُ الَّذِينَ يُؤْذُونَ النَّبِيَّ وَيَقُولُونَ هُوَ أُذُنٌ قُلْ أُذُنُ خَيْرٍ لَكُمْ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَيُؤْمِنُ لِلْمُؤْمِنِينَ وَرَحْمَةٌ لِلَّذِينَ آمَنُوا مِنْكُمْ وَالَّذِينَ يُؤْذُونَ رَسُولَ اللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
और उनमें कोई वो हैं कि उन ग़ैब की ख़बरें देने वाले को सताते हैं और कहते हैं वो तो कान हैं तुम फ़रमाओ तुम्हारे भले के लिये कान हैं अल्लाह पर ईमान लाते हैं और मुसलमानों की बात पर यक़ीन करते हैं और जो तुम में मुसलमान हैं उनके वास्ते रहमत हैं और जो रसूलुल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है
62. يَحْلِفُونَ بِاللَّهِ لَكُمْ لِيُرْضُوكُمْ وَاللَّهُ وَرَسُولُهُ أَحَقُّ أَنْ يُرْضُوهُ إِنْ كَانُوا مُؤْمِنِينَ
तुम्हारे सामने अल्लाह की क़सम खाते हैं कि तुम्हें राज़ी कर लें और अल्लाह व रसूल का हक़ ज़ाएद था कि उसे राज़ी करते अगर ईमान रखते थे
63. أَلَمْ يَعْلَمُوا أَنَّهُ مَنْ يُحَادِدِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَأَنَّ لَهُ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدًا فِيهَا ذَلِكَ الْخِزْيُ الْعَظِيمُ
क्या उन्हें ख़बर नहीं कि जो ख़िलाफ़ करे अल्लाह और उसके रसूल का तो उसके लिए जहन्नम की आग है कि हमेशा उसमें रहेगा, यही बड़ी रूसवाई है
64. يَحْذَرُ الْمُنَافِقُونَ أَنْ تُنَزَّلَ عَلَيْهِمْ سُورَةٌ تُنَبِّئُهُمْ بِمَا فِي قُلُوبِهِمْ قُلِ اسْتَهْزِئُوا إِنَّ اللَّهَ مُخْرِجٌ مَا تَحْذَرُونَ
मुनाफ़िक़ डरते हैं कि इन पर कोई सूरत ऐसी उतरे जो उन के दिलों की छुपी जता दे, तुम फ़रमाओ हंसे जाओ, अल्लाह को ज़रूर ज़ाहिर करना है जिसका तुम्हें डर है
65. وَلَئِنْ سَأَلْتَهُمْ لَيَقُولُنَّ إِنَّمَا كُنَّا نَخُوضُ وَنَلْعَبُ قُلْ أَبِاللَّهِ وَآيَاتِهِ وَرَسُولِهِ كُنْتُمْ تَسْتَهْزِئُونَ
और ऐ मेहबूब अगर तुम उनसे पूछो तो कहेंगे कि हम तो यूंही हंसी खेल में थे, तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह और उसकी आयतों और उसके रसूल से हंसते हो
66. لَا تَعْتَذِرُوا قَدْ كَفَرْتُمْ بَعْدَ إِيمَانِكُمْ إِنْ نَعْفُ عَنْ طَائِفَةٍ مِنْكُمْ نُعَذِّبْ طَائِفَةً بِأَنَّهُمْ كَانُوا مُجْرِمِينَ
बहाने ना बनाओ तुम काफिर हो चुके मुसलमान हो करअगर हम तुम में से किसी को माफ करें तो औरौ को आज़ाद देंगे इस वियेना कि मुजरिम थे
67. الْمُنَافِقُونَ وَالْمُنَافِقَاتُ بَعْضُهُمْ مِنْ بَعْضٍ يَأْمُرُونَ بِالْمُنْكَرِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمَعْرُوفِ وَيَقْبِضُونَ أَيْدِيَهُمْ نَسُوا اللَّهَ فَنَسِيَهُمْ إِنَّ الْمُنَافِقِينَ هُمُ الْفَاسِقُونَ
मुनाफ़िक़ मर्द (जिनके दिल में कुछ, ज़बान पर कुछ) और मुनाफ़िक़ औरतें एक थेली के चट्टे बट्टे हैं बुराईका हुकम दें और भलाई से मना करें और अपनी मुट्ठी बंद रखें वो अल्लाह को छोड़ बैठे तो अल्लाह ने उन्हें छोड़ दिया बेशक मुनाफ़िक़ वही पक्के बेहुक्म हैं
68. وَعَدَ اللَّهُ الْمُنَافِقِينَ وَالْمُنَافِقَاتِ وَالْكُفَّارَ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا هِيَ حَسْبُهُمْ وَلَعَنَهُمُ اللَّهُ وَلَهُمْ عَذَابٌ مُقِيمٌ
अल्लाह ने मुनाफ़िक़ मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों और काफ़िरों को जहन्नम की आग का वादा दिया है जिसमें हमेशा रहेंगे, वह उन्हें बस है, और अल्लाह की उनपर लानत है और उनके लिये क़ायम रहने वाला अज़ाब है
69. كَالَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ كَانُوا أَشَدَّ مِنْكُمْ قُوَّةً وَأَكْثَرَ أَمْوَالًا وَأَوْلَادًا فَاسْتَمْتَعُوا بِخَلَاقِهِمْ فَاسْتَمْتَعْتُمْ بِخَلَاقِكُمْ كَمَا اسْتَمْتَعَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ بِخَلَاقِهِمْ وَخُضْتُمْ كَالَّذِي خَاضُوا أُولَئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَأُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ
जैसे वो जो तुम से पहले थे तुमसे ज़ोर में बढ़कर थे और उनके माल और औलाद तुमसे ज़्यादा तो वो अपना हिस्सा बरत गए तो तुमने अपना हिस्सा बरता जैसे अगले अपना हिस्सा बरत गए और तुम बेहूदगी में पड़े जैसे वो पड़े थे उनके अमल अकारत गए दुनिया और आख़िरत में, और वही लोग घाटे में हैं
70. أَلَمْ يَأْتِهِمْ نَبَأُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ قَوْمِ نُوحٍ وَعَادٍ وَثَمُودَ وَقَوْمِ إِبْرَاهِيمَ وَأَصْحَابِ مَدْيَنَ وَالْمُؤْتَفِكَاتِ أَتَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ فَمَا كَانَ اللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَكِنْ كَانُوا أَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ
क्या उन्हें अपने से अगलों की ख़बर न आई नूह की क़ौम और आद और समूद और इब्राहीम की क़ौम और मदयन वाले और वो बस्तियाँ कि उलट दी गईं उनके रसूल रौशन दलीलें उनके पास लाए थे तो अल्लाह की शान न थी कि उनपर ज़ुल्म करता बल्कि वो ख़ुद ही अपनी जानों पर ज़ालिम थे
71. وَالْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ يَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَيُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَيُطِيعُونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ أُولَئِكَ سَيَرْحَمُهُمُ اللَّهُ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
और मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें एक दूसरे के रफ़ीक़ हैं भलाई का हुक्म दें और बुराई से मना करें और नमाज़ क़ायम रखे और ज़कात दें और अल्लाह व रसूल का हुक्म मानें, ये हैं जिनपर अन्करिब अल्लाह रहम करेगा, बेशक अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है
72. وَعَدَ اللَّهُ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَمَسَاكِنَ طَيِّبَةً فِي جَنَّاتِ عَدْنٍ وَرِضْوَانٌ مِنَ اللَّهِ أَكْبَرُ ذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
अल्लाह ने मुसलमान मर्दों और मुसलमान औरतों को बाग़ों का वादा दिया है जिनके नीचे नहरें रवां उनमें हमेशा रहेंगे और पाकीज़ा मकानों का बसने के बाग़ों में, और अल्लाह की रज़ा सबसे बड़ी यही है, बड़ी मुराद पानी
73. يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنَافِقِينَ وَاغْلُظْ عَلَيْهِمْ وَمَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ
ऐ ग़ैब की ख़बरें देने वाले (नबी) जिहाद फ़रमाओ काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों पर और उनपर सख़्ती करो, और उनका ठिकाना दोज़ख़ है, और क्या ही बुरी जगह पलटने की
74. يَحْلِفُونَ بِاللَّهِ مَا قَالُوا وَلَقَدْ قَالُوا كَلِمَةَ الْكُفْرِ وَكَفَرُوا بَعْدَ إِسْلَامِهِمْ وَهَمُّوا بِمَا لَمْ يَنَالُوا وَمَا نَقَمُوا إِلَّا أَنْ أَغْنَاهُمُ اللَّهُ وَرَسُولُهُ مِنْ فَضْلِهِ فَإِنْ يَتُوبُوا يَكُ خَيْرًا لَهُمْ وَإِنْ يَتَوَلَّوْا يُعَذِّبْهُمُ اللَّهُ عَذَابًا أَلِيمًا فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَمَا لَهُمْ فِي الْأَرْضِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ
अल्लाह की क़सम खाते हैं कि उन्होंने न कहा और बेशक ज़रूर उन्होंने कुफ़्र की बात कही और इस्लाम में आकर काफ़िर हो गए और वह चाहा था जो उन्हें न मिला और उन्हें क्या बुरा लगा यही ना कि अल्लाह व रसूल ने उन्हें अपने फ़ज़्ल से ग़नी कर दिया तो अगर वो तौबह करें तो उनका भला है और अगर मुंह फेरें तो अल्लाह उन्हें सख़्त अज़ाब करेगा दुनिया व आख़िरत में, और ज़मीन में कोई न उनका हिमायती होगा न मददगार
75. وَمِنْهُمْ مَنْ عَاهَدَ اللَّهَ لَئِنْ آتَانَا مِنْ فَضْلِهِ لَنَصَّدَّقَنَّ وَلَنَكُونَنَّ مِنَ الصَّالِحِينَ
और उनमें कोई वो हैं जिन्होंने अल्लाह से एहद किया था कि अगर हमें अपने फ़ज़्ल से देगा तो हम ज़रूर ख़ैरात करेंगे और हम ज़रूर भले आदमी हो जाएंगे
76. فَلَمَّا آتَاهُمْ مِنْ فَضْلِهِ بَخِلُوا بِهِ وَتَوَلَّوْا وَهُمْ مُعْرِضُونَ
तो जब अल्लाह ने उन्हें अपने फ़ज़्ल से दिया उसमें कंजूसी करने लगे और मुंह फेर कर पलट गए
77. فَأَعْقَبَهُمْ نِفَاقًا فِي قُلُوبِهِمْ إِلَى يَوْمِ يَلْقَوْنَهُ بِمَا أَخْلَفُوا اللَّهَ مَا وَعَدُوهُ وَبِمَا كَانُوا يَكْذِبُونَ
तो उसके पीछे अल्लाह ने उनके दिलों में निफ़ाक़ रख दिया उस दिन तक कि उससे मिलेंगे, बदला इसका कि उन्होंने अल्लाह से वादा झूटा किया और बदला इसका कि झूट बोलते थे
78. أَلَمْ يَعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ سِرَّهُمْ وَنَجْوَاهُمْ وَأَنَّ اللَّهَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ
क्या उन्हें ख़बर नहीं कि अल्लाह उनके दिल की छुपी और उनकी सरगोशी (खुसर फुसर, काना फूसी) को जानता है और यह कि अल्लाह सब ग़ैबों का बहुत जानने वाला है
79. الَّذِينَ يَلْمِزُونَ الْمُطَّوِّعِينَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ فِي الصَّدَقَاتِ وَالَّذِينَ لَا يَجِدُونَ إِلَّا جُهْدَهُمْ فَيَسْخَرُونَ مِنْهُمْ سَخِرَ اللَّهُ مِنْهُمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
वो जो ऐब लगाते हैं उन मुसलमानों को कि दिल से ख़ैरात करते हैं और उनको जो नहीं पाते मगर अपनी मेहनत से तो उनसे हंसते हैं अल्लाह उनकी हंसी की सज़ा देगा और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है
80. اسْتَغْفِرْ لَهُمْ أَوْ لَا تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ إِنْ تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ سَبْعِينَ مَرَّةً فَلَنْ يَغْفِرَ اللَّهُ لَهُمْ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ كَفَرُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْفَاسِقِينَ
तुम उनकी माफ़ी चाहो या न चाहो अगर तुम सत्तर बार उनकी माफ़ी चाहो तो अल्लाह हरगिज़ उन्हें नहीं बख़्शेगा, यह इसलिये कि वो अल्लाह और उसके रसूल से मुन्किर हुए और अल्लाह फ़ासिक़ों (व्यभिचारियों) को राह नहीं देता
81. فَرِحَ الْمُخَلَّفُونَ بِمَقْعَدِهِمْ خِلَافَ رَسُولِ اللَّهِ وَكَرِهُوا أَنْ يُجَاهِدُوا بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنْفُسِهِمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَقَالُوا لَا تَنْفِرُوا فِي الْحَرِّ قُلْ نَارُ جَهَنَّمَ أَشَدُّ حَرًّا لَوْ كَانُوا يَفْقَهُونَ
पीछे रह जाने वाले इसपर ख़ुश हुए कि वो रसूल के पीछे बैठ रहे और उन्हें गवारा न हुआ कि अपने माल और जान से अल्लाह की राह में लड़ें और बोले इस गर्मी में न निकलों,तुम फ़रमाओ जहन्नम की आग सबसे सख़्त गर्म है किसी तरह उन्हें समझ होती
82. فَلْيَضْحَكُوا قَلِيلًا وَلْيَبْكُوا كَثِيرًا جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ
तो उन्हें चाहिये कि थोड़ा हंसे और बहुत रोएं बदला उसका जो कमाते थे
83. فَإِنْ رَجَعَكَ اللَّهُ إِلَى طَائِفَةٍ مِنْهُمْ فَاسْتَأْذَنُوكَ لِلْخُرُوجِ فَقُلْ لَنْ تَخْرُجُوا مَعِيَ أَبَدًا وَلَنْ تُقَاتِلُوا مَعِيَ عَدُوًّا إِنَّكُمْ رَضِيتُمْ بِالْقُعُودِ أَوَّلَ مَرَّةٍ فَاقْعُدُوا مَعَ الْخَالِفِينَ
फिर ऐ मेहबूब अगर अल्लाह तुम्हें उन में से किसी गिरोह की तरफ़ वापस ले जाए और वो तुमसे जिहाद को निकलने की इजाज़त मांगे तो तुम फ़रमाना तुम कभी मेरे साथ न चलो और हरगिज़ मेरे साथ किसी दुश्मन से न लड़ो तुमने पहली दफा बैठ रहना पसन्द किया तो बैठ रहो पीछे रह जाने वालों के साथ
84. وَلَا تُصَلِّ عَلَى أَحَدٍ مِنْهُمْ مَاتَ أَبَدًا وَلَا تَقُمْ عَلَى قَبْرِهِ إِنَّهُمْ كَفَرُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَمَاتُوا وَهُمْ فَاسِقُونَ
और उनमें से किसी की मैयत पर कभी नमाज़ न पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर खड़े होना, बेशक अल्लाह व रसूल से मुन्किर हुए और फ़िस्क़ (दुराचार) ही में मर गए
85. وَلَا تُعْجِبْكَ أَمْوَالُهُمْ وَأَوْلَادُهُمْ إِنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ أَنْ يُعَذِّبَهُمْ بِهَا فِي الدُّنْيَا وَتَزْهَقَ أَنْفُسُهُمْ وَهُمْ كَافِرُونَ
और उनके माल या औलाद पर तआज्जुब न करना, अल्लाह यही चाहता है कि उसे दुनिया में उनपर वबाल करे और कुफ़्र ही पर उनका दम निकल जाए
86. وَإِذَا أُنْزِلَتْ سُورَةٌ أَنْ آمِنُوا بِاللَّهِ وَجَاهِدُوا مَعَ رَسُولِهِ اسْتَأْذَنَكَ أُولُو الطَّوْلِ مِنْهُمْ وَقَالُوا ذَرْنَا نَكُنْ مَعَ الْقَاعِدِينَ
और जब कोई सूरत उतरे कि अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल के हमराह जिहाद करो तो उनके मक़दूर (सामर्थ्य) वाले तुमसे रूख़सत माँगते हैं और कहते हैं हमें छोड़ दीजिये कि बैठ रहने वालों के साथ हो लें
87. رَضُوا بِأَنْ يَكُونُوا مَعَ الْخَوَالِفِ وَطُبِعَ عَلَى قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَفْقَهُونَ
उन्हें पसन्द आया कि पीछे रहने वाली औरतों के साथ होजाएं और उनके दिलों पर मोहर कर दी गई तो वो कुछ नहीं समझते
88. لَكِنِ الرَّسُولُ وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ جَاهَدُوا بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنْفُسِهِمْ وَأُولَئِكَ لَهُمُ الْخَيْرَاتُ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
लेकिन रसूल और जो उनके साथ ईमान लाए उन्होंने अपने मालों जानों से जिहाद किया और उन्हीं के लिये भलाईयाँ हैं और यही मुराद को पहुंचे
89. أَعَدَّ اللَّهُ لَهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ذَلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
अल्लाह ने उनके लिये तैयार कर रखी हैं बहिश्तें जिनके नीचे नहरें रवां हमेशा उनमें रहेंगे, यही बड़ी मुराद मिलनी है
90. وَجَاءَ الْمُعَذِّرُونَ مِنَ الْأَعْرَابِ لِيُؤْذَنَ لَهُمْ وَقَعَدَ الَّذِينَ كَذَبُوا اللَّهَ وَرَسُولَهُ سَيُصِيبُ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
और बहाने बनाने वाले गंवार आए कि उन्हें रूख़सत दी जाए और बैठ रहे वो जिन्होंने अल्लाह व रसूल से झूट बोला था जल्द उनमें के काफ़िरों को दर्दनाक अज़ाब पहुंचेगा
91. لَيْسَ عَلَى الضُّعَفَاءِ وَلَا عَلَى الْمَرْضَى وَلَا عَلَى الَّذِينَ لَا يَجِدُونَ مَا يُنْفِقُونَ حَرَجٌ إِذَا نَصَحُوا لِلَّهِ وَرَسُولِهِ مَا عَلَى الْمُحْسِنِينَ مِنْ سَبِيلٍ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ
ज़ईफों पर कुछ हरज नहीं और न बीमारों पर और न उनपर जिन्हें ख़र्च का मक़दुर न हो जबकि अल्लाह व रसूल के खैरख्वां रहें नेकी वालों पर कोई राह नहीं और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है
92. وَلَا عَلَى الَّذِينَ إِذَا مَا أَتَوْكَ لِتَحْمِلَهُمْ قُلْتَ لَا أَجِدُ مَا أَحْمِلُكُمْ عَلَيْهِ تَوَلَّوْا وَأَعْيُنُهُمْ تَفِيضُ مِنَ الدَّمْعِ حَزَنًا أَلَّا يَجِدُوا مَا يُنْفِقُونَ
और न उनपर जो तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों कि तुम उन्हें सवारी अता फ़रमाओ तुमसे यह जवाब पाएं कि मेरे पास कोई चीज़ नहीं जिसपर तुम्हें सवार करूं इस पर यूं वापस जाएं कि उनकी आँखों से आँसू उबलते हों इस ग़म से कि ख़र्च का मकदुर न पाया
93. إِنَّمَا السَّبِيلُ عَلَى الَّذِينَ يَسْتَأْذِنُونَكَ وَهُمْ أَغْنِيَاءُ رَضُوا بِأَنْ يَكُونُوا مَعَ الْخَوَالِفِ وَطَبَعَ اللَّهُ عَلَى قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
मुआख़ज़ा (जवाब तलबी) तो उनसे है जो तुमसे रूख़सत मांगते है और वो दौलतमंद हैं उन्हें पसन्द आया कि औरतों के साथ पीछे बैठ रहें और अल्लाह ने उनके दिलों पर मोहर करदी तो वो कुछ नहीं जानते
94. يَعْتَذِرُونَ إِلَيْكُمْ إِذَا رَجَعْتُمْ إِلَيْهِمْ قُلْ لَا تَعْتَذِرُوا لَنْ نُؤْمِنَ لَكُمْ قَدْ نَبَّأَنَا اللَّهُ مِنْ أَخْبَارِكُمْ وَسَيَرَى اللَّهُ عَمَلَكُمْ وَرَسُولُهُ ثُمَّ تُرَدُّونَ إِلَى عَالِمِ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ فَيُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ
तुमसे बहाने बनाएंगे जब तुम उनकी तरफ़ लौट कर जाओगे, तुम फ़रमाना, बहाने न बनाओ, हम हरगिज़ तुम्हारा यक़ीन न करेंगे, अल्लाह ने हमें तुम्हारी ख़बरें दे दी हैं, और अब अल्लाह व रसूल तुम्हारे काम देखेंगे फिर उसकी तरफ़ पलटकर जाओगे जो छुपे और ज़ाहिर सबको जानता है वह तुम्हें जता देगा जो कुछ तुम करते थे
95. سَيَحْلِفُونَ بِاللَّهِ لَكُمْ إِذَا انْقَلَبْتُمْ إِلَيْهِمْ لِتُعْرِضُوا عَنْهُمْ فَأَعْرِضُوا عَنْهُمْ إِنَّهُمْ رِجْسٌ وَمَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ
अब तुम्हारे आगे अल्लाह की क़सम खाएंगे जब तुम उनकी तरफ़ पलट कर जाओगे इसलिये कि तुम उनके ख़याल में न पड़ो तो हाँ तुम उनका ख़याल छोड़ों वो तो निरे पलीद हैं और उनका ठिकाना जहन्नम है, बदला उसका जो कमाते थे
96. يَحْلِفُونَ لَكُمْ لِتَرْضَوْا عَنْهُمْ فَإِنْ تَرْضَوْا عَنْهُمْ فَإِنَّ اللَّهَ لَا يَرْضَى عَنِ الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ
तुम्हारे आगे क़समें खाते हैं कि तुम उनसे राज़ी हो जाओ तो अगर तुम उनसे राज़ी हो जाओ तो बेशक अल्लाह तो फ़ासिक़ (दुराचारी) लोगों से राज़ी न होगा
97. الْأَعْرَابُ أَشَدُّ كُفْرًا وَنِفَاقًا وَأَجْدَرُ أَلَّا يَعْلَمُوا حُدُودَ مَا أَنْزَلَ اللَّهُ عَلَى رَسُولِهِ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
गंवार कुफ़्र और निफ़ाक़ (दोग़लेपन) में ज़्यादा सख़्त हैं और इसी क़ाबिल हैं कि अल्लाह ने जो हुक्म अपने रसूल पर उतारे उससे जाहिल रहें और अल्लाह इल्म व हिकमत वाला है
98. وَمِنَ الْأَعْرَابِ مَنْ يَتَّخِذُ مَا يُنْفِقُ مَغْرَمًا وَيَتَرَبَّصُ بِكُمُ الدَّوَائِرَ عَلَيْهِمْ دَائِرَةُ السَّوْءِ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
और कुछ गंवार वो हैं कि जो अल्लाह की राह में ख़र्च करें उसे तावान समझें और तुमपर गर्दिशें आने के इन्तिज़ार में रहें उन्हीं पर है बुरी गर्दिश (आपत्ति) और अल्लाह सुनता जानता है
99. وَمِنَ الْأَعْرَابِ مَنْ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَيَتَّخِذُ مَا يُنْفِقُ قُرُبَاتٍ عِنْدَ اللَّهِ وَصَلَوَاتِ الرَّسُولِ أَلَا إِنَّهَا قُرْبَةٌ لَهُمْ سَيُدْخِلُهُمُ اللَّهُ فِي رَحْمَتِهِ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
और कुछ गाँव वाले वो हैं जो अल्लाह और क़यामत पर यक़ीन रखते हैं और जो खर्च करें उसे अल्लाह की नज़दीकियों और रसूल से दुआएं लेने का ज़रीया समझें हां हां वह उनके लिये बआसे क़र्ब है अल्लाह जल्द उन्हें अपनी रहमत में दाख़िल करेगा, बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है
100. وَالسَّابِقُونَ الْأَوَّلُونَ مِنَ الْمُهَاجِرِينَ وَالْأَنْصَارِ وَالَّذِينَ اتَّبَعُوهُمْ بِإِحْسَانٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي تَحْتَهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ذَلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
और सब मे अगले पहले मुहाजिर और अन्सार और जो भलाई के साथ उनके पैरो हुए अल्लाह उनसे राज़ी और वो अल्लाह से राज़ी और उनके लिये तैयार कर रखे हैं बाग़ जिनके नीचे नहरें बहें हमेशा हमेशा उनमें रहें, यही बड़ी कामयाबी है
101. وَمِمَّنْ حَوْلَكُمْ مِنَ الْأَعْرَابِ مُنَافِقُونَ وَمِنْ أَهْلِ الْمَدِينَةِ مَرَدُوا عَلَى النِّفَاقِ لَا تَعْلَمُهُمْ نَحْنُ نَعْلَمُهُمْ سَنُعَذِّبُهُمْ مَرَّتَيْنِ ثُمَّ يُرَدُّونَ إِلَى عَذَابٍ عَظِيمٍ
और तुम्हारे आस पास के कुछ गंवार मुनाफ़िक़ हैं, और कुछ मदीना वाले उनकी आदत हो गई है निफ़ाक़ (दोग़लापन), तुम उन्हें नहीं जानते, हम उन्हें जानते हैं जल्द हम उन्हें दोबारा अज़ाब करेंगे फिर बड़े अज़ाब की तरफ़ फेरे जाएंगे
102. وَآخَرُونَ اعْتَرَفُوا بِذُنُوبِهِمْ خَلَطُوا عَمَلًا صَالِحًا وَآخَرَ سَيِّئًا عَسَى اللَّهُ أَنْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
और कुछ और हैं जो अपने गुनाहों के मुक़िर (इक़रारी) हुए और मिलाया एक काम अच्छा और दूसरा बुरा क़रीब है कि अल्लाह उनकी तौबह क़ुबूल करे, बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है
103. خُذْ مِنْ أَمْوَالِهِمْ صَدَقَةً تُطَهِّرُهُمْ وَتُزَكِّيهِمْ بِهَا وَصَلِّ عَلَيْهِمْ إِنَّ صَلَاتَكَ سَكَنٌ لَهُمْ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
ऐ मेहबूब उनके माल में से ज़कात निकलवाओ जिससे तुम उनहें सुथरा और पाकीज़ा कर दो और उनके हक़ में दुआए ख़ैर करो बेशक तुम्हारी दुआ उनके दिलों का चैन है और अल्लाह सुनता जानता
104. أَلَمْ يَعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ هُوَ يَقْبَلُ التَّوْبَةَ عَنْ عِبَادِهِ وَيَأْخُذُ الصَّدَقَاتِ وَأَنَّ اللَّهَ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ
क्या उन्हें ख़बर नहीं कि अल्लाह ही अपने बन्दों की तौबह क़ुबूल करता और सदक़े ख़ुद अपने दस्ते क़ुदरत में लेता है और यह कि अल्लाह ही तौबह क़ुबूल करने वाला मेहरबान है
105. وَقُلِ اعْمَلُوا فَسَيَرَى اللَّهُ عَمَلَكُمْ وَرَسُولُهُ وَالْمُؤْمِنُونَ وَسَتُرَدُّونَ إِلَى عَالِمِ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ فَيُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ
और तुम फ़रमाओ काम करो अब तुम्हारे काम देखेगा अल्लाह और उसके रसूल और मुसलमान, और जल्द उसकी तरफ़ पलटोगे जो छुपा और खुला सब जानता है तो वो तुम्हारे काम तुम्हें जताएगा
106. وَآخَرُونَ مُرْجَوْنَ لِأَمْرِ اللَّهِ إِمَّا يُعَذِّبُهُمْ وَإِمَّا يَتُوبُ عَلَيْهِمْ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
और कुछ मौक़फ़ रखे गए अल्लाह के हुक्म पर या उनपर अज़ाब करे या उनकी तौबह क़ुबूल करे और अल्लाह इल्म व हि कमत वाला है
107. وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مَسْجِدًا ضِرَارًا وَكُفْرًا وَتَفْرِيقًا بَيْنَ الْمُؤْمِنِينَ وَإِرْصَادًا لِمَنْ حَارَبَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ مِنْ قَبْلُ وَلَيَحْلِفُنَّ إِنْ أَرَدْنَا إِلَّا الْحُسْنَى وَاللَّهُ يَشْهَدُ إِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ
और वो जिन्होंने मस्जिद बनाई नुक़सान पहुंचाने को और कुफ़्र के कारण और मुसलमानों में तफ़रिक़ा डालने को और उसके इन्तिज़ार में जो पहले से अल्लाह और उसके रसूल का विरोधी है और वो ज़रूर क़समें खाएंगे हमने तो भलाई ही चाही, और अल्लाह गवाह है कि वो बेशक झूटे हैं
108. لَا تَقُمْ فِيهِ أَبَدًا لَمَسْجِدٌ أُسِّسَ عَلَى التَّقْوَى مِنْ أَوَّلِ يَوْمٍ أَحَقُّ أَنْ تَقُومَ فِيهِ فِيهِ رِجَالٌ يُحِبُّونَ أَنْ يَتَطَهَّرُوا وَاللَّهُ يُحِبُّ الْمُطَّهِّرِينَ
उस मस्जिद में तुम कभी खड़े न होना बेशक वह मस्जिद कि पहले ही दिन से जिसकी बुनियाद परहेज़गारी पर रखी गई है वह इस क़ाबिल है कि तुम उसमें खड़े हो, उसमें वो लोग हैं कि ख़ूब सुथरा होना चाहते हैं और सुथरे अल्लाह को प्यारे हैं
109. أَفَمَنْ أَسَّسَ بُنْيَانَهُ عَلَى تَقْوَى مِنَ اللَّهِ وَرِضْوَانٍ خَيْرٌ أَمْ مَنْ أَسَّسَ بُنْيَانَهُ عَلَى شَفَا جُرُفٍ هَارٍ فَانْهَارَ بِهِ فِي نَارِ جَهَنَّمَ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ
तो क्या जिसने अपनी बुनियाद रखी अल्लाह के डर और उसकी रज़ा पर वह भला या वह जिसने अपनी नींव चुनी एक गिराऊ गढ़े के किनारे तो वह उसे लेकर जहन्नम की आग में है ढै पड़ा और अल्लाह ज़ालिमों को राह नहीं देता
110. لَا يَزَالُ بُنْيَانُهُمُ الَّذِي بَنَوْا رِيبَةً فِي قُلُوبِهِمْ إِلَّا أَنْ تَقَطَّعَ قُلُوبُهُمْ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
वो तामीर जो चुनी हमेशा उनके दिलों में खटकती रहेगी मगर यह कि उनके दिल टुकड़े टुकड़े हो जाएं और अल्लाह इल्म व हिकमत वाला है
111. إِنَّ اللَّهَ اشْتَرَى مِنَ الْمُؤْمِنِينَ أَنْفُسَهُمْ وَأَمْوَالَهُمْ بِأَنَّ لَهُمُ الْجَنَّةَ يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَيَقْتُلُونَ وَيُقْتَلُونَ وَعْدًا عَلَيْهِ حَقًّا فِي التَّوْرَاةِ وَالْإِنْجِيلِ وَالْقُرْآنِ وَمَنْ أَوْفَى بِعَهْدِهِ مِنَ اللَّهِ فَاسْتَبْشِرُوا بِبَيْعِكُمُ الَّذِي بَايَعْتُمْ بِهِ وَذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
बेशक अल्लाह ने मुसलमानों से उनके माल और जान ख़रीद लिये हैं इस बदले पर कि उनके लिये जन्नत है अल्लाह की राह में लड़ें तो मारें और मरें उसके करम के ज़िम्मे सच्चा वादा तौरात और इंजील और क़ुरआन में और अल्लाह से ज़्यादा क़ौल (कथन) का पूरा कौन तो ख़ुशियां मनाओ अपने सौदे की जो तुमने उससे किया है, और यही बड़ी कामयाबी है
112. التَّائِبُونَ الْعَابِدُونَ الْحَامِدُونَ السَّائِحُونَ الرَّاكِعُونَ السَّاجِدُونَ الْآمِرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَالنَّاهُونَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَالْحَافِظُونَ لِحُدُودِ اللَّهِ وَبَشِّرِ الْمُؤْمِنِينَ
तौबह वाले इबादत वाले सराहने वाले रोज़े वाले, रूकू वाले, सज्दा वाले भलाई के बताने वाले और बुराई से रोकने वाले और अल्लाह की हदें निगाह रखने वाले और ख़ुशियाँ सुनाओ मुसलमानों को
113. مَا كَانَ لِلنَّبِيِّ وَالَّذِينَ آمَنُوا أَنْ يَسْتَغْفِرُوا لِلْمُشْرِكِينَ وَلَوْ كَانُوا أُولِي قُرْبَى مِنْ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُمْ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ
नबी और ईमान वालों को लायक़ नहीं कि मुश्रिकों की बख़्शिश चाहें अगरचे वो रिश्तेदार हों जबकि उन्हें खुल चुका कि वो दोज़ख़ी हैं
114. وَمَا كَانَ اسْتِغْفَارُ إِبْرَاهِيمَ لِأَبِيهِ إِلَّا عَنْ مَوْعِدَةٍ وَعَدَهَا إِيَّاهُ فَلَمَّا تَبَيَّنَ لَهُ أَنَّهُ عَدُوٌّ لِلَّهِ تَبَرَّأَ مِنْهُ إِنَّ إِبْرَاهِيمَ لَأَوَّاهٌ حَلِيمٌ
और इब्राहीम का अपने बाप की बख़्शिश चाहना वह तो न था मगर एक वादे के कारण जो उससे कर चुका था फिर जब इब्राहीम को खुल गया कि वह अल्लाह का दुश्मन है उससे तिनका तोड़ दिया बेशक इब्राहीम ज़रूर बहुत आहें करने वाला मुतहम्मिल (सहनशील) है
115. وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُضِلَّ قَوْمًا بَعْدَ إِذْ هَدَاهُمْ حَتَّى يُبَيِّنَ لَهُمْ مَا يَتَّقُونَ إِنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
और अल्लाह की शान नहीं कि किसी क़ौम को हिदायत बाद गुमराह फ़रमाए जब तक उन्हें साफ़ न बता दे कि किस चीज़ से उन्हें बचना है बेशक अल्लाह सब कुछ जानता है
116. إِنَّ اللَّهَ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يُحْيِي وَيُمِيتُ وَمَا لَكُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ
बेशक अल्लाह ही के लिये है आसमानों और ज़मीन की सल्तनत, जिलाता है और मारता है और अल्लाह के सिवा न तुम्हारा कोई वाली और न मददगार
117. لَقَدْ تَابَ اللَّهُ عَلَى النَّبِيِّ وَالْمُهَاجِرِينَ وَالْأَنْصَارِ الَّذِينَ اتَّبَعُوهُ فِي سَاعَةِ الْعُسْرَةِ مِنْ بَعْدِ مَا كَادَ يَزِيغُ قُلُوبُ فَرِيقٍ مِنْهُمْ ثُمَّ تَابَ عَلَيْهِمْ إِنَّهُ بِهِمْ رَءُوفٌ رَحِيمٌ
बेशक अल्लाह की रहमतें मुतवज्जह हुई उन ग़ैब की ख़बरें बताने वाले और उन मुहाजिरीन और अन्सार पर जिन्होंने मुश्किल की घड़ी में उनका साथ दिया बाद इसके कि क़रीब था कि उनमें कुछ लोगों के दिल फिर जाएं फिर उनपर रहमत से मुतवज्जेह हुआ बेशक वह उनपर बहुत मेहरबान रहम वाला है
118. وَعَلَى الثَّلَاثَةِ الَّذِينَ خُلِّفُوا حَتَّى إِذَا ضَاقَتْ عَلَيْهِمُ الْأَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ وَضَاقَتْ عَلَيْهِمْ أَنْفُسُهُمْ وَظَنُّوا أَنْ لَا مَلْجَأَ مِنَ اللَّهِ إِلَّا إِلَيْهِ ثُمَّ تَابَ عَلَيْهِمْ لِيَتُوبُوا إِنَّ اللَّهَ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ
और उन तीन पर जो मौक़ूफ़ (रोके) रखे गए थे यहाँ तक कि जब ज़मीन इतनी वसी {विस्तृत} होकर उनपर तंग होगई और वो अपनी जान से तंग आए और उन्हें यक़ीन हुआ कि अल्लाह से पनाह नहीं मगर उसी के पास फिर उनकी तौबह क़ुबूल की कि तौबह किये हुए रहें, बेशक अल्लाह ही तौबह क़ुबूल करने वाला मेहरबान
119. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَكُونُوا مَعَ الصَّادِقِينَ
ऐ ईमान वालों अल्लाह से डरो और सच्चों के साथ हो
120. مَا كَانَ لِأَهْلِ الْمَدِينَةِ وَمَنْ حَوْلَهُمْ مِنَ الْأَعْرَابِ أَنْ يَتَخَلَّفُوا عَنْ رَسُولِ اللَّهِ وَلَا يَرْغَبُوا بِأَنْفُسِهِمْ عَنْ نَفْسِهِ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ لَا يُصِيبُهُمْ ظَمَأٌ وَلَا نَصَبٌ وَلَا مَخْمَصَةٌ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلَا يَطَئُونَ مَوْطِئًا يَغِيظُ الْكُفَّارَ وَلَا يَنَالُونَ مِنْ عَدُوٍّ نَيْلًا إِلَّا كُتِبَ لَهُمْ بِهِ عَمَلٌ صَالِحٌ إِنَّ اللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجْرَ الْمُحْسِنِينَ
मदीना वालों और उनके गिर्द देहातवालों को शोभा न था कि रसूलुल्लाह से पीछे बैठ रहें और न यह कि उनकी जान से अपनी जान प्यारी समझें यह इसलिये कि उन्हें जो प्यास या तक़लीफ़ या भूख अल्लाह की राह में पहुंचती है और जहाँ ऐसी जगह क़दम रखते हैं जिससे काफ़िरों को ग़ुस्सा आए और जो कुछ किसी दुश्मन का बिगाड़ते हैं इस सबके बदले उनके लिये नेक कर्म लिखा जाता है बेशक अल्लाह नेकों का नेग नष्ट नहीं करता
121. وَلَا يُنْفِقُونَ نَفَقَةً صَغِيرَةً وَلَا كَبِيرَةً وَلَا يَقْطَعُونَ وَادِيًا إِلَّا كُتِبَ لَهُمْ لِيَجْزِيَهُمُ اللَّهُ أَحْسَنَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ
और जो कुछ ख़र्च करते हैं छोटा या बड़ा और जो नाला तय करते हैं सब उनके लिये लिखा जाता है ताकि अल्लाह उनके सबसे बेहतर कर्मों का उन्हें सिला (पुरस्कार) दे
122. وَمَا كَانَ الْمُؤْمِنُونَ لِيَنْفِرُوا كَافَّةً فَلَوْلَا نَفَرَ مِنْ كُلِّ فِرْقَةٍ مِنْهُمْ طَائِفَةٌ لِيَتَفَقَّهُوا فِي الدِّينِ وَلِيُنْذِرُوا قَوْمَهُمْ إِذَا رَجَعُوا إِلَيْهِمْ لَعَلَّهُمْ يَحْذَرُونَ
और मुसलमानों से ये तो हो नहीं सकता कि सब के सब निकलें तो क्यों न हो कि उनके हर गिरोह में से एक दल निकले कि दीन की समझ हासिल करें और वापस आकर अपनी क़ौम को डर सुनाएं इस उम्मीद पर कि वो बचें
123. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا قَاتِلُوا الَّذِينَ يَلُونَكُمْ مِنَ الْكُفَّارِ وَلْيَجِدُوا فِيكُمْ غِلْظَةً وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ مَعَ الْمُتَّقِينَ
ऐ ईमान वालो जिहाद करो उन काफ़िरों से जो तुम्हारे क़रीब हैं और चाहिये कि वो तुम में सख़्ती पाएं और जान रखो कि अल्लाह परहेज़गारों के साथ है
124. وَإِذَا مَا أُنْزِلَتْ سُورَةٌ فَمِنْهُمْ مَنْ يَقُولُ أَيُّكُمْ زَادَتْهُ هَذِهِ إِيمَانًا فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا فَزَادَتْهُمْ إِيمَانًا وَهُمْ يَسْتَبْشِرُونَ
और जब कोई सूरत उतरती है तो उनमें कोई कहने लगता है कि उसने तुम में किसके ईमान को तरक़्क़ी दी तो वोह जो ईमानवाले हैं ऊनके ईमान को ऊसने तरक़क़ी दी और वो ख़ुशियाँ मना रहे हैं
125. وَأَمَّا الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ فَزَادَتْهُمْ رِجْسًا إِلَى رِجْسِهِمْ وَمَاتُوا وَهُمْ كَافِرُونَ
और जिनके दिलों में आज़ार है उन्हें और पलीदी पर पलीदी बढ़ाई और वो कुफ़्र ही पर मर गए
126. أَوَلَا يَرَوْنَ أَنَّهُمْ يُفْتَنُونَ فِي كُلِّ عَامٍ مَرَّةً أَوْ مَرَّتَيْنِ ثُمَّ لَا يَتُوبُونَ وَلَا هُمْ يَذَّكَّرُونَ
क्या उन्हें नहीं सूझता कि हर साल एक या दोबारा आज़माए जाते हैं फिर न तो तौबह करते हैं न नसीहत मानते हैं
127. وَإِذَا مَا أُنْزِلَتْ سُورَةٌ نَظَرَ بَعْضُهُمْ إِلَى بَعْضٍ هَلْ يَرَاكُمْ مِنْ أَحَدٍ ثُمَّ انْصَرَفُوا صَرَفَ اللَّهُ قُلُوبَهُمْ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَا يَفْقَهُونَ
और जब कोई सूरत उतरती है उनमें एक दूसरे को देखने लगता है कि कोई तुम्हें देखता तो नहीं फिर पलट जाते हैं अल्लाह ने उनके दिल पलट दिये कि वो नासमझ लोग हैं
128. لَقَدْ جَاءَكُمْ رَسُولٌ مِنْ أَنْفُسِكُمْ عَزِيزٌ عَلَيْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِيصٌ عَلَيْكُمْ بِالْمُؤْمِنِينَ رَءُوفٌ رَحِيمٌ
बेशक तुम्हारे पास तशरीफ़ लाए तुममें से वह रसूल जिनपर तुम्हारा मशक़्क़त (परिश्रम) में पड़ना भारी है तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले मुसलमानों पर कमाल मेहरबान
129. فَإِنْ تَوَلَّوْا فَقُلْ حَسْبِيَ اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَهُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ
फिर अगर वो मुंह फेरें तो तुम फ़रमा दो कि मुझे अल्लाह काफ़ी है उसके सिवा किसी की बन्दगी नहीं मैं ने उसी पर भरोसा किया और वह बड़े अर्श का मालिक है