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Ibrahim
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    1. الر كِتَابٌ أَنْزَلْنَاهُ إِلَيْكَ لِتُخْرِجَ النَّاسَ مِنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ بِإِذْنِ رَبِّهِمْ إِلَى صِرَاطِ الْعَزِيزِ الْحَمِيدِ
    एक किताब है कि हमने तुम्हारी तरफ़ उतारी कि तुम लोगों को अंधेरियों से उजाले में लाओ उनके रब के हुक्म से उसकी राह की तरफ़ जो इज़्ज़त वाला सब ख़ूबियों वाला है
    2. اللَّهِ الَّذِي لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَوَيْلٌ لِلْكَافِرِينَ مِنْ عَذَابٍ شَدِيدٍ
    अल्लाह कि उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में और काफ़िरों की ख़राबी है एक सख़्त अज़ाब से
    3. الَّذِينَ يَسْتَحِبُّونَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا عَلَى الْآخِرَةِ وَيَصُدُّونَ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ وَيَبْغُونَهَا عِوَجًا أُولَئِكَ فِي ضَلَالٍ بَعِيدٍ
    जिन्हें आख़िरत से दुनिया की ज़िन्दग़ी प्यारी है और अल्लाह की राह से रोकते और उसमें कजी चाहते है वो दूर की गुमराही में है
    4. وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ رَسُولٍ إِلَّا بِلِسَانِ قَوْمِهِ لِيُبَيِّنَ لَهُمْ فَيُضِلُّ اللَّهُ مَنْ يَشَاءُ وَيَهْدِي مَنْ يَشَاءُ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
    और हमने हर रसूल उसकी क़ौम ही की ज़बान में भेजा कि वह उन्हें साफ़ बताए फिर अल्लाह गुमराह करता है जिसे चाहे और वही इज़्ज़त हिकमत वाला है
    5. وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مُوسَى بِآيَاتِنَا أَنْ أَخْرِجْ قَوْمَكَ مِنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ وَذَكِّرْهُمْ بِأَيَّامِ اللَّهِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ
    और बेशक हमने मूसा को अपनी निशानियां लेकर भेजा कि अपनी क़ौम को अंधेरियों से उजाले में ला और उन्हें अल्लाह के दिन याद दिला बेशक उसमें निशानियां हैं हर बड़े सब्र वाले शुक्र करने वाले को
    6. وَإِذْ قَالَ مُوسَى لِقَوْمِهِ اذْكُرُوا نِعْمَةَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ أَنْجَاكُمْ مِنْ آلِ فِرْعَوْنَ يَسُومُونَكُمْ سُوءَ الْعَذَابِ وَيُذَبِّحُونَ أَبْنَاءَكُمْ وَيَسْتَحْيُونَ نِسَاءَكُمْ وَفِي ذَلِكُمْ بَلَاءٌ مِنْ رَبِّكُمْ عَظِيمٌ
    और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा याद करो अपने ऊपर अल्लाह का एहसान जब उसने तुम्हें फ़िरऔन वालों से निजात दी जो तुमको बुरी मार देते थे और तुम्हारे बेटों को ज़िबह करते और तुम्हारी बेटियों को ज़िन्दा रखते और उसमें तुम्हारे रब का बड़ा फ़ज़्ल हुआ
    7. وَإِذْ تَأَذَّنَ رَبُّكُمْ لَئِنْ شَكَرْتُمْ لَأَزِيدَنَّكُمْ وَلَئِنْ كَفَرْتُمْ إِنَّ عَذَابِي لَشَدِيدٌ
    और याद करो जब तुम्हारे रब ने सुना दिया कि अगर एहसान मानोगे तो मैं तुम्हें और दूंगा और अगर नाशुक्री करो तो मेरा अज़ाब सख़्त है
    8. وَقَالَ مُوسَى إِنْ تَكْفُرُوا أَنْتُمْ وَمَنْ فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا فَإِنَّ اللَّهَ لَغَنِيٌّ حَمِيدٌ
    और मूसा ने कहा अगर तुम और ज़मीन में जितने हैं सब काफ़िर हो जाओ तो बेशक अल्लाह बेपर्वाह सब ख़ूबियों वाला है
    9. أَلَمْ يَأْتِكُمْ نَبَأُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ قَوْمِ نُوحٍ وَعَادٍ وَثَمُودَ وَالَّذِينَ مِنْ بَعْدِهِمْ لَا يَعْلَمُهُمْ إِلَّا اللَّهُ جَاءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ فَرَدُّوا أَيْدِيَهُمْ فِي أَفْوَاهِهِمْ وَقَالُوا إِنَّا كَفَرْنَا بِمَا أُرْسِلْتُمْ بِهِ وَإِنَّا لَفِي شَكٍّ مِمَّا تَدْعُونَنَا إِلَيْهِ مُرِيبٍ
    क्या तुम्हें उनकी ख़बरें न आई जो तुम से पहले थीं नूह की क़ौम और आद और समूद और जो उनके बाद हुए, उन्हें अल्लाह ही जाने उनके पास उसके रसूल रौशन दलीलें लेकर आए तो वो अपने हाथ अपने मुंह की तरफ़ ले गए और बोले हम इन्कारी हें उसके जो तुम्हारे हाथ भेजा गया और जिस राह की तरफ़ हमें बुलाते हो इसमें हमें वह शक है कि बात खुलने नहीं देता
    10. قَالَتْ رُسُلُهُمْ أَفِي اللَّهِ شَكٌّ فَاطِرِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يَدْعُوكُمْ لِيَغْفِرَ لَكُمْ مِنْ ذُنُوبِكُمْ وَيُؤَخِّرَكُمْ إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى قَالُوا إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا تُرِيدُونَ أَنْ تَصُدُّونَا عَمَّا كَانَ يَعْبُدُ آبَاؤُنَا فَأْتُونَا بِسُلْطَانٍ مُبِينٍ
    उनके रसूलों ने कहा क्या अल्लाह में शक है आसमान और ज़मीन का बनाने वाला, तुम्हें बुलाता है कि तुम्हारे कुछ गुनाह बख़्शे और मौत के निश्चित वक़्त तक तुम्हारी ज़िन्दग़ी बेअज़ाब काट दे, बोले तुम तो हमीं जैसे आदमी हो तुम चाहते हों कि हमें उससे अलग रखो जो हमारे बाप दादा पूजते थे अब कोई रौशन सनद (प्रमाण) हमारे पास ले आओ
    11. قَالَتْ لَهُمْ رُسُلُهُمْ إِنْ نَحْنُ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُكُمْ وَلَكِنَّ اللَّهَ يَمُنُّ عَلَى مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ وَمَا كَانَ لَنَا أَنْ نَأْتِيَكُمْ بِسُلْطَانٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ
    उनके रसूलों ने उनसे कहा हम हैं तो तुम्हारी तरह इन्सान मगर अल्लाह अपने बन्दों में जिस पर चाहे एहसान फ़रमाता है और हमारा काम नहीं कि हम तुम्हारे पास कुछ सनद ले आएं मगर अल्लाह के हुक्म से और मुसलमानों को अल्लाह ही पर भरोसा चाहिये
    12. وَمَا لَنَا أَلَّا نَتَوَكَّلَ عَلَى اللَّهِ وَقَدْ هَدَانَا سُبُلَنَا وَلَنَصْبِرَنَّ عَلَى مَا آذَيْتُمُونَا وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُتَوَكِّلُونَ
    और हमें क्या हुआ कि अल्लाह पर भरोसा न करें उसने तो हमारी राहें हमें दिखा दीं और तुम जो हमें सता रहे हो हम ज़रूर इस पर सब्र करेंगे और भरोसा करने वालों को अल्लाह ही पर भरोसा चाहिये
    13. وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِرُسُلِهِمْ لَنُخْرِجَنَّكُمْ مِنْ أَرْضِنَا أَوْ لَتَعُودُنَّ فِي مِلَّتِنَا فَأَوْحَى إِلَيْهِمْ رَبُّهُمْ لَنُهْلِكَنَّ الظَّالِمِينَ
    और काफ़िरों ने अपने रसूलों से कहा हम ज़रूर तुम्हें अपनी ज़मीन से निकाल देंगे या तुम हमारे दीन पर हो जाओ, तो उन्हें उनके रब ने वही (देववाणी) भेजी कि हम ज़रूर इन ज़ालिमों को हलाक करेंगे
    14. وَلَنُسْكِنَنَّكُمُ الْأَرْضَ مِنْ بَعْدِهِمْ ذَلِكَ لِمَنْ خَافَ مَقَامِي وَخَافَ وَعِيدِ
    और ज़रूर हम तुमको उनके बाद ज़मीन में बसाएंगे यह उसके लिये है जो मेरे हुज़ूर खड़े होने से डरे और मैं ने जो अज़ाब का हुक्म सुनाया है उससे ख़ौफ़ करे
    15. وَاسْتَفْتَحُوا وَخَابَ كُلُّ جَبَّارٍ عَنِيدٍ
    और उन्होंने फ़ैसला मांगा और हर सरकश हटधर्म नामुराद हुआ
    16. مِنْ وَرَائِهِ جَهَنَّمُ وَيُسْقَى مِنْ مَاءٍ صَدِيدٍ
    जहन्नम उसके पीछे लगा और उसे पीप का पानी पिलाया जाएगा
    17. يَتَجَرَّعُهُ وَلَا يَكَادُ يُسِيغُهُ وَيَأْتِيهِ الْمَوْتُ مِنْ كُلِّ مَكَانٍ وَمَا هُوَ بِمَيِّتٍ وَمِنْ وَرَائِهِ عَذَابٌ غَلِيظٌ
    मुश्किल से उसका थोड़ा थोड़ा घूंट लेगा और गले से नीचे उतारने की उम्मीद न होगी और उसे हर तरफ़ से मौत आएगी, और मरेगा नहीं और उसके पीछे एक गाढ़ा अज़ाब
    18. مَثَلُ الَّذِينَ كَفَرُوا بِرَبِّهِمْ أَعْمَالُهُمْ كَرَمَادٍ اشْتَدَّتْ بِهِ الرِّيحُ فِي يَوْمٍ عَاصِفٍ لَا يَقْدِرُونَ مِمَّا كَسَبُوا عَلَى شَيْءٍ ذَلِكَ هُوَ الضَّلَالُ الْبَعِيدُ
    अपने रब से इन्कारीयों का हाल ऐसा है कि उनके काम हैं जैसे राख कि उस पर हवा का सख़्त झौंका आया आंधी के दिन में सारी कमाई में से कुछ हाथ न लगा, यही है दूर की गुमराही
    19. أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ إِنْ يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ وَيَأْتِ بِخَلْقٍ جَدِيدٍ
    क्या तूने न देखा कि अल्लाह ने आसमान व ज़मीन हक़ के साथ बनाए अगर चाहे तो तुम्हें ले जाए और एक नई मख़लूक़ (प्राणी-वर्ग) ले आए
    20. وَمَا ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ بِعَزِيزٍ
    और यह अल्लाह पर कुछ दुशवार नहीं
    21. وَبَرَزُوا لِلَّهِ جَمِيعًا فَقَالَ الضُّعَفَاءُ لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا إِنَّا كُنَّا لَكُمْ تَبَعًا فَهَلْ أَنْتُمْ مُغْنُونَ عَنَّا مِنْ عَذَابِ اللَّهِ مِنْ شَيْءٍ قَالُوا لَوْ هَدَانَا اللَّهُ لَهَدَيْنَاكُمْ سَوَاءٌ عَلَيْنَا أَجَزِعْنَا أَمْ صَبَرْنَا مَا لَنَا مِنْ مَحِيصٍ
    और सब अल्लाह के हुज़ूर खुल्लम खुल्ला हाज़िर होंगे तो जो कमज़ोर थे बड़ाई वालों से कहेंगे हम तुम्हारे ताबे थे क्या तुम से हो सकता है कि अल्लाह के अज़ाब में से कुछ हम पर से टाल दो, कहेंगे अल्लाह हमें हिदायत करता तो हम तुम्हें करते, हम पर एक सा है चाहे बेक़रारी करें या सब्र से रहें हमें कहीं पनाह नहीं
    22. وَقَالَ الشَّيْطَانُ لَمَّا قُضِيَ الْأَمْرُ إِنَّ اللَّهَ وَعَدَكُمْ وَعْدَ الْحَقِّ وَوَعَدْتُكُمْ فَأَخْلَفْتُكُمْ وَمَا كَانَ لِيَ عَلَيْكُمْ مِنْ سُلْطَانٍ إِلَّا أَنْ دَعَوْتُكُمْ فَاسْتَجَبْتُمْ لِي فَلَا تَلُومُونِي وَلُومُوا أَنْفُسَكُمْ مَا أَنَا بِمُصْرِخِكُمْ وَمَا أَنْتُمْ بِمُصْرِخِيَّ إِنِّي كَفَرْتُ بِمَا أَشْرَكْتُمُونِ مِنْ قَبْلُ إِنَّ الظَّالِمِينَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
    और शैतान कहेगा जब फ़ैसला हो चुकेगा बेशक अल्लाह ने तुमको सच्चा वादा दिया था और मैं ने जो तुमको वादा दिया था वह मैं ने तुम से झूटा किया और मेरा तुम पर कुछ क़ाबू न था मगर यही कि मैंने तुमको बुलाया तुमने मेरी मान ली तो अब मुझपर इल्ज़ाम न रखो ख़ुद अपने ऊपर इल्ज़ाम रखो न मैं तुम्हारी फ़रियाद को पहुंच सकूं न तुम मेरी फ़रियाद को पहुंच सको, वह जो पहले तुमने मुझे शरीक ठहराया था मैं उससे सख़्त बेज़ार हूँ बेशक ज़ालिमों के लिये दर्दनाक अज़ाब है
    23. وَأُدْخِلَ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِمْ تَحِيَّتُهُمْ فِيهَا سَلَامٌ
    और वो जो ईमान लाए और अच्छे काम किये, वो बाग़ों में दाख़िल किये जाएंगे जिनके नीचे नहरें बहतीं , हमेशा उनमें रहें अपने रब के हुक्म से, उसमें उनके मिलते वक़्त का इकराम (सत्कार) सलाम है
    24. أَلَمْ تَرَ كَيْفَ ضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا كَلِمَةً طَيِّبَةً كَشَجَرَةٍ طَيِّبَةٍ أَصْلُهَا ثَابِتٌ وَفَرْعُهَا فِي السَّمَاءِ
    क्या तुमने न देखा अल्लाह ने कैसी मिसाल बयान फ़रमाई पाक़ीज़ा बात की जैसे पाक़ीज़ा दरख़्त जिसकी जड़ क़ायम और शाख़ें आसमान में
    25. تُؤْتِي أُكُلَهَا كُلَّ حِينٍ بِإِذْنِ رَبِّهَا وَيَضْرِبُ اللَّهُ الْأَمْثَالَ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ
    हर वक़्त अपना फल देता है अपने रब के हुक्म से और अल्लाह लोगों के लिये मिसालें बयान फ़रमाता है कि कहीं वो समझें
    26. وَمَثَلُ كَلِمَةٍ خَبِيثَةٍ كَشَجَرَةٍ خَبِيثَةٍ اجْتُثَّتْ مِنْ فَوْقِ الْأَرْضِ مَا لَهَا مِنْ قَرَارٍ
    और गन्दी बात की मिसाल जैसे एक गन्दा पेड़ कि ज़मीन के ऊपर काट दिया गया अब उसे कोई क़ियाम (स्थिरता) नहीं
    27. يُثَبِّتُ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا بِالْقَوْلِ الثَّابِتِ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الْآخِرَةِ وَيُضِلُّ اللَّهُ الظَّالِمِينَ وَيَفْعَلُ اللَّهُ مَا يَشَاءُ
    अल्लाह साबित रखता है ईमान वालों को हक़ बात पर दुनिया की ज़िन्दगी में और आख़िरत में और अल्लाह ज़ालिमों को गुमराह करता है और अल्लाह जो चाहे करे
    28. أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ بَدَّلُوا نِعْمَتَ اللَّهِ كُفْرًا وَأَحَلُّوا قَوْمَهُمْ دَارَ الْبَوَارِ
    क्या तुमने उन्हें न देखा जिन्होंने अल्लाह की नेअमत नाशुक्री से बदल दी और अपनी क़ौम को तबाही के घर ला उतारा
    29. جَهَنَّمَ يَصْلَوْنَهَا وَبِئْسَ الْقَرَارُ
    वो जो दोज़ख़ है उसके अन्दर जाएंगे और क्या ही बुरी ठहरने की जगह
    30. وَجَعَلُوا لِلَّهِ أَنْدَادًا لِيُضِلُّوا عَنْ سَبِيلِهِ قُلْ تَمَتَّعُوا فَإِنَّ مَصِيرَكُمْ إِلَى النَّارِ
    और अल्लाह के लिये बराबर वाले ठहराए कि उसकी राह से बहकावें, तुम फ़रमाओ कुछ बरत लो कि तुम्हारा अंजाम आग है
    31. قُلْ لِعِبَادِيَ الَّذِينَ آمَنُوا يُقِيمُوا الصَّلَاةَ وَيُنْفِقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلَانِيَةً مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَ يَوْمٌ لَا بَيْعٌ فِيهِ وَلَا خِلَالٌ
    मेरे उन बन्दो से फ़रमाओ जो ईमान लाए कि नमाज़ क़ायम रखें और हमारे दिये में से कुछ हमारी राह में छुपे और ज़ाहिर ख़र्च करें उस दिन के आने से पहले जिसमें न सौदागरी होगी न याराना
    32. اللَّهُ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَأَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجَ بِهِ مِنَ الثَّمَرَاتِ رِزْقًا لَكُمْ وَسَخَّرَ لَكُمُ الْفُلْكَ لِتَجْرِيَ فِي الْبَحْرِ بِأَمْرِهِ وَسَخَّرَ لَكُمُ الْأَنْهَارَ
    अल्लाह है जिसने आसमान और ज़मीन बनाए और आसमान से पानी उतारा तो उससे कुछ फल तुम्हारे खाने को पैदा किये और तुम्हारे लिये किश्ती को मुसख़्ख़र (वशीभूत) किया कि उसके हुक्म से दरिया में चले और तुम्हारे लिये नदियाँ मुसख़्ख़र की
    33. وَسَخَّرَ لَكُمُ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ دَائِبَيْنِ وَسَخَّرَ لَكُمُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ
    और तुम्हारे लिये सूरज और चांद मुसख़्ख़र किए जो बराबर चल रहे हैं और तुम्हारे लिए रात और दिन मुसख़्ख़र किए
    34. وَآتَاكُمْ مِنْ كُلِّ مَا سَأَلْتُمُوهُ وَإِنْ تَعُدُّوا نِعْمَتَ اللَّهِ لَا تُحْصُوهَا إِنَّ الْإِنْسَانَ لَظَلُومٌ كَفَّارٌ
    और तुम्हें बहुत कुछ मुंह मांगा दिया और अगर अल्लाह की नेअमतें गिनो तो शुमार न कर सकोगे, बेशक आदमी बड़ा ज़ालिम बड़ा नाशुक्रा है
    35. وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ اجْعَلْ هَذَا الْبَلَدَ آمِنًا وَاجْنُبْنِي وَبَنِيَّ أَنْ نَعْبُدَ الْأَصْنَامَ
    और याद करो जब इब्राहीम ने अर्ज़ की ऐ मेरे रब इस शहर को अमान वाला कर दे और मुझे मेरे बेटों को बुतों के पूजने से बचा
    36. رَبِّ إِنَّهُنَّ أَضْلَلْنَ كَثِيرًا مِنَ النَّاسِ فَمَنْ تَبِعَنِي فَإِنَّهُ مِنِّي وَمَنْ عَصَانِي فَإِنَّكَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
    ऐ मेरे रब बेशक बूतों ने बहुत लोग बहका दिये तो जिसने मेरा साथ दिया वह तो मेरा है और जिसने मेरा कहा न माना तो बेशक तू बख़्शने वाला मेहरबान है
    37. رَبَّنَا إِنِّي أَسْكَنْتُ مِنْ ذُرِّيَّتِي بِوَادٍ غَيْرِ ذِي زَرْعٍ عِنْدَ بَيْتِكَ الْمُحَرَّمِ رَبَّنَا لِيُقِيمُوا الصَّلَاةَ فَاجْعَلْ أَفْئِدَةً مِنَ النَّاسِ تَهْوِي إِلَيْهِمْ وَارْزُقْهُمْ مِنَ الثَّمَرَاتِ لَعَلَّهُمْ يَشْكُرُونَ
    ऐ मेरे रब मैं ने अपनी कुछ औलाद एक नालें में बसाई जिसमें खेती नहीं होती तेरे हुरमत (प्रतिष्ठा) वाले घर के पास ऐ हमारे रब इसलिये कि वो नमाज़ क़ायम रखें तो तू लोगों के कुछ दिल उनकी तरफ़ माइल करदे और उन्हें कुछ फल खाने को दे शायद वो एहसान मानें
    38. رَبَّنَا إِنَّكَ تَعْلَمُ مَا نُخْفِي وَمَا نُعْلِنُ وَمَا يَخْفَى عَلَى اللَّهِ مِنْ شَيْءٍ فِي الْأَرْضِ وَلَا فِي السَّمَاءِ
    ऐ हमारे रब तू जानता है जो हम छुपाते है और जो ज़ाहिर करते, और अल्लाह पर कुछ छुपा नहीं, ज़मीन में और न आसमान में
    39. الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي وَهَبَ لِي عَلَى الْكِبَرِ إِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ إِنَّ رَبِّي لَسَمِيعُ الدُّعَاءِ
    सब खुबियाँ अल्लाह को जिसने मुझे बुढ़ापे में इस्माईल व इस्हाक़ दिये बेशक मेरा रब दुआ सुनने वाला है
    40. رَبِّ اجْعَلْنِي مُقِيمَ الصَّلَاةِ وَمِنْ ذُرِّيَّتِي رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاءِ
    ऐ मेरे रब, मुझे नमाज़ का क़ायम करने वाला रख और कुछ मेरी औलाद को ऐ हमारे रब, मेरी दुआ सुन ले
    41. رَبَّنَا اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِلْمُؤْمِنِينَ يَوْمَ يَقُومُ الْحِسَابُ
    ऐ हमारे रब मुझे बख़्श दे और मेरे माँ बाप को और सब मुसलमानों को जिस दिन हिसाब क़ायम होगा
    42. وَلَا تَحْسَبَنَّ اللَّهَ غَافِلًا عَمَّا يَعْمَلُ الظَّالِمُونَ إِنَّمَا يُؤَخِّرُهُمْ لِيَوْمٍ تَشْخَصُ فِيهِ الْأَبْصَارُ
    और हरगिज़ अल्लाह को बेख़बर न जानना ज़ालिमों के काम से उन्हें ढील नहीं दे रहा है मगर ऐसे दिन के लिये जिसमें aankhein khuli ki khuli rah jaengi
    43. مُهْطِعِينَ مُقْنِعِي رُءُوسِهِمْ لَا يَرْتَدُّ إِلَيْهِمْ طَرْفُهُمْ وَأَفْئِدَتُهُمْ هَوَاءٌ
    आंखे खुली की खुली रह जाएंगी, बेतहाशा दौड़ते निकलेंगे अपने सर उठाए हुए कि उनकी पलक उनकी तरफ़ लौटती नहीं और उनके दिलों में कुछ सकत न होगी
    44. وَأَنْذِرِ النَّاسَ يَوْمَ يَأْتِيهِمُ الْعَذَابُ فَيَقُولُ الَّذِينَ ظَلَمُوا رَبَّنَا أَخِّرْنَا إِلَى أَجَلٍ قَرِيبٍ نُجِبْ دَعْوَتَكَ وَنَتَّبِعِ الرُّسُلَ أَوَلَمْ تَكُونُوا أَقْسَمْتُمْ مِنْ قَبْلُ مَا لَكُمْ مِنْ زَوَالٍ
    और लोगों को इस दिन से डराओ जब उनपर अज़ाब आएगा तो ज़ालिम कहेंगे ऐ हमारे रब थोड़ी देर हमें मुहलत दे कि हम तेरा बुलाना मानें और रसूलों की ग़ुलामी करें तो क्या तुम पहले क़सम न खा चुके थे कि हमें दुनिया से कहीं हटकर जाना नहीं
    45. وَسَكَنْتُمْ فِي مَسَاكِنِ الَّذِينَ ظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ وَتَبَيَّنَ لَكُمْ كَيْفَ فَعَلْنَا بِهِمْ وَضَرَبْنَا لَكُمُ الْأَمْثَالَ
    और तुम उनके घरों में बसे जिन्होंने अपना बुरा किया था और तुमपर ख़ूब खुल गया हमने उनके साथ कैसा किया और हम ने तुम्हें मिसालें देकर बता दिया
    46. وَقَدْ مَكَرُوا مَكْرَهُمْ وَعِنْدَ اللَّهِ مَكْرُهُمْ وَإِنْ كَانَ مَكْرُهُمْ لِتَزُولَ مِنْهُ الْجِبَالُ
    और बेशक वो अपना सा दाव चले और उनका दाव अल्लाह के क़ाबू में है और उनका दाव कुछ ऐसा न था कि जिससे ये पहाड़ टल जाएं
    47. فَلَا تَحْسَبَنَّ اللَّهَ مُخْلِفَ وَعْدِهِ رُسُلَهُ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ ذُو انْتِقَامٍ
    तो हरगिज़ ख़याल न करना कि अल्लाह अपने रसूलों से वादा ख़िलाफ़ करेगा बेशक अल्लाह ग़ालिब है बदला लेने वाला
    48. يَوْمَ تُبَدَّلُ الْأَرْضُ غَيْرَ الْأَرْضِ وَالسَّمَاوَاتُ وَبَرَزُوا لِلَّهِ الْوَاحِدِ الْقَهَّارِ
    जिस दिन बदल दी जाएगी ज़मीन इस ज़मीन के सिवा और आसमान और लोग सब निकल खड़े होंगे एक अल्लाह के सामने जो सब पर ग़ालिब है
    49. وَتَرَى الْمُجْرِمِينَ يَوْمَئِذٍ مُقَرَّنِينَ فِي الْأَصْفَادِ
    और उस दिन तुम मुजरिमों को देखोगे कि बेड़ियों में एक दूसरे से जुड़े होंगे
    50. سَرَابِيلُهُمْ مِنْ قَطِرَانٍ وَتَغْشَى وُجُوهَهُمُ النَّارُ
    उनके कुर्ते राल के होंगे और उनके चेहरे आग ढांप लेगी
    51. لِيَجْزِيَ اللَّهُ كُلَّ نَفْسٍ مَا كَسَبَتْ إِنَّ اللَّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ
    इसलिये कि अल्लाह हर जान को उसकी कमाई का बदला दे, बेशक अल्लाह को हिसाब करते कुछ देर नहीं लगती
    52. هَذَا بَلَاغٌ لِلنَّاسِ وَلِيُنْذَرُوا بِهِ وَلِيَعْلَمُوا أَنَّمَا هُوَ إِلَهٌ وَاحِدٌ وَلِيَذَّكَّرَ أُولُو الْأَلْبَابِ
    यह लोगों को हुक्म पहुंचाना है और इसलिये कि वो उससे डराए जाएं और इसलिये कि वो जान लें कि वह एक ही मअबूद है और इसलिये कि अक़्ल वाले नसीहत मानें

    Quran Sharif in Hindi

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