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इल्मे ज़ाहिर व इल्मे बातिन में जो खाई, बनी उमय्या के दौर ने पैदा की गई थी, वो आज तक बनी हुई है। इस खाई को भरने में आपकी ‘सूफ़ीयाना’ की शक़्ल में ऐसी कोशिश, काबिले तारीफ़ है।
अल्लाह, अपने रसूल के सदक़े आपको तरक़्की अता फ़रमाए और आने वाली रूकावटों को दूर करे।