Namaz e Janaza फ़र्ज़ किफ़ाया है
Namaz e Janaza “फ़र्ज़ किफ़ाया” है यानी कोई एक भी अदा कर ले तो सब जिम्मेदारी से बरी हो गए वरना जिन जिन को ख़बर पहुंची थी और नहीं आए वो सब गुनहगार होंगे। इस के लिये जमाअ़त शर्त नहीं एक शख़्स भी पढ़ ले तो फ़र्ज़ अदा हो गया। इस की फ़िर्ज़य्यत का इन्कार कुफ़्र है। (बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 825)
Namaz e Janaza में दो रुक्न और तीन सुन्नतें हैं
Janaza ki Namaz के दो रुक्न हैं :
1. चार बार “अल्लाहो अकबर” कहना और
2. कि़याम।
Janaza ki Namaz की तीन सुन्नते मुअक्कदा यह हैं :
1. सना
2. दुरूद शरीफ़
3. मय्यित के लिये दुआ। (बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 829)
Namaz e Janaza ka tarika (Hanfi)
Namaz e Janaza ki Niyat
मुक़्तदी इस त़रह़ निय्यत करे :
“मैं निय्यत करता हूं Namaz e Janaza की, वास्ते अल्लाह के, दुआ इस मय्यत के लिये, पीछे इस इमाम के”
- पहली तकबीर
अल्लाहो अकबर कहते हुए अब इमाम व मुक़्तदी कानों तक हाथ उठाएं और फिर नाफ़ के नीचे बांध लें और सना पढ़ें।
سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ وَ تَبَاْرَكَ اسْمُكَ وَتَعَالَئ جَدُّكَ وَجَلَّ ثَناءٌكَ وَلَااِلَه غَيْرُكَ
सुब्हानकल्लाहुम्मा वबेहम्देका वतबारकस्मोका वताला जद्दोका वजल्ला सनाओका वलाइलाहा ग़ैरोका
सना में ध्यान रखें कि “वताला जद्दोका ” के बाद “वजल्ला सनाओका वलाइलाहा ग़ैरोका” पढ़ें
- दूसरी तकबीर
फिर बिग़ैर हाथ उठाए “अल्लाहो अकबर” कहें,
फिर दुरूदे इब्राहीम पढ़ें,
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
- तीसरी तकबीर
फिर बिग़ैर हाथ उठाए “अल्लाहो अकबर” कहें और Namaz e Janaza ki Dua पढ़ें
(इमाम तक्बीरें बुलन्द आवाज़ से कहे और मुक़्तदी आहिस्ता। बाक़ी तमाम अज़्कार इमाम व मुक़्तदी सब आहिस्ता पढ़ें)
- चौथी तकबीर
दुआ के बाद फिर “अल्लाहो अकबर” कहें और हाथ लटका दें फिर दोनों त़रफ़ सलाम फैर दें। सलाम में मय्यित और फि़रिश्तों और ह़ाजि़रीने नमाज़ की निय्यत करे, उसी त़रह़ जैसे और नमाज़ों के सलाम में निय्यत की जाती है यहां इतनी बात ज़्यादा है कि मय्यित की भी निय्यत करे। (बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 829, 835 माख़ूज़न)
Namaz e Janaza ki Dua
Namaz e Janaza ki Dua (बालिग़ मर्द व औरत के लिये)
اَللّهُمَّ اغْفِرْ لِحَيِّنَا وَمَيِّتِنَا وَ شَاهِدِنَا وَ غَائِبِنَا وَ صَغِيْرِنَا وَكَبِيْرِنَا وَ ذَكَرِنَا وَاُنْثَانَاؕ اَللّهُمَّ مَنْ اَحْيَيْتَهُ مِنَّا فَاَحْيِهِ عَلَي الاِسْلَامِؕ وَمَنْ تَوَفَّيْتَهُ مِنَّا فَتَوَفَّهُ عَلَي الاِيْمَانِؕ
इलाही! बख़्श दे हमारे हर जि़न्दा को और हमारे हर फ़ौत शुदा को और हमारे हर ह़ाजि़र को और हमारे हर ग़ाइब को और हमारे हर छोटे को और हमारे हर बड़े को और हमारे हर मर्द को और हमारी हर औरत को। इलाही! तू हम में से जिस को जि़न्दा रखे तो उस को इस्लाम पर जि़न्दा रख और हम में से जिस को मौत दे तो उस को ईमान पर मौत दे। (अल मुस्तदरक लिलहाकिम हदीस 1366)
Namaz e Janaza ki Dua (ना बालिग़ लड़के के लिये)
اَللّهُمَّ اجْعَلْهُ لَنَا فَرَطًا وَّاجْعَلْهُ لَنَا اَجْرًا وَّ ذُخْرًا وَّ اجْعَلْهُ لَنَا شَافِعًا وَّ مُشَفَّعًاؕ
इलाही! इस (लड़के) को हमारे लिये आगे पहुंच कर सामान करने वाला बना दे और इस को हमारे लिये अज्र (का मूजिब) और वक़्त पर काम आने वाला बना दे और इस को हमारी सिफ़ारिश करने वाला बना दे और वो जिस की सिफ़ारिश मन्ज़ूर हो जाए।
Namaz e Janaza ki Dua (ना बालिग़ लड़की के लिये)
اَللّهُمَّ اجْعَلْهَا لَنَا فَرَطًا وَّاجْعَلْهَا لَنَا اَجْرًا وَّذُخْرًا وَّاجْعَلْهَا لَنَا شَافِعَةً وَّمُشَفَّعَةًؕ
इलाही! इस (लड़की) को हमारे लिये आगे पहुंच कर सामान करने वाली बना दे और इस को हमारे लिये अज्र (का मूजिब) और वक़्त पर काम आने वाली बना दे और इस को हमारी सिफ़ारिश करने वाली बना दे और वो जिस की सिफ़ारिश मन्ज़ूर हो जाए।
Namaz e Janaza की फ़जी़लत
क़ब्र में पहला तोह़फ़ा
सरकारे दोआलमﷺ से किसी ने पूछा : मोमिन जब क़ब्र में दाखि़ल होता है तो उस को सब से पहला तोह़फ़ा क्या दिया जाता है? तो इर्शाद फ़रमाया : उस की Namaz e Janaza पढ़ने वालों की मगि़्फ़रत कर दी जाती है।
उह़ुद पहाड़ जितना सवाब
ह़ज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा रजिअल्लाह अन्हो से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ फरमाते है : जो शख़्स (ईमान का तक़ाज़ा समझ कर और ह़ुसूले सवाब की निय्यत से) अपने घर से जनाज़े के साथ चले, Namaz e Janaza पढ़े और दफ़्न होने तक जनाज़े के साथ रहे उस के लिये दो क़ीरात़ सवाब है जिस में से हर क़ीरात़ उह़ुद (पहाड़) के बराबर है और जो शख़्स सिर्फ़ जनाज़े की नमाज़ पढ़ कर वापस आ जाए तो उस के लिये एक क़ीरात़ सवाब है।
Namaz e Janaza बाइ़से इ़ब्रत है
ह़ज़रते सय्यिदुना अबू ज़र गि़फ़ारी रजिअल्लाह अन्हो का इर्शाद है : मुझ से सरकारे दो आलम ﷺ ने फ़रमाया : क़ब्रों की जि़यारत करो ताकि आखि़रत की याद आए और मुर्दे को नहलाओ कि फ़ानी जिस्म (यानी मुर्दा जिस्म) का छूना बहुत बड़ी नसीह़त है और Namaz e Janaza पढ़ो ताकि यह तुम्हें ग़मगीन करे क्यूं कि ग़मगीन इन्सान अल्लाह के साए में होता है और नेकी का काम करता है।
मय्यित को नहलाने वग़ैरा की फ़ज़ीलत
मौलाए काएनात, ह़ज़रते सय्यिदुना अ़लिय्युल मुर्तज़ा शेरे ख़ुदा अलैहिस्सलाम से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि जो किसी मय्यित को नहलाए, कफ़न पहनाए, ख़ुश्बू लगाए, जनाज़ा उठाए, नमाज़ पढ़े और जो नाकि़स बात नज़र आए उसे छुपाए वो अपने गुनाहों से ऐसा पाक हो जाता है जैसा जिस दिन मां के पेट से पैदा हुवा था।
जनाज़ा देख कर पढ़ने का विर्द
ह़ज़रते सय्यिदुना मालिक बिन अनस रजिअल्लाह अन्हो को बादे वफ़ात किसी ने ख़्वाब में देख कर पूछा : अल्लाह ने आप के साथ क्या सुलूक फ़रमाया? कहा : एक कलिमे की वज्ह से बख़्श दिया जो ह़ज़रते सय्यिदुना उ़स्माने ग़नी रजिअल्लाह अन्हो जनाज़े को देख कर कहा करते थे- ”सुब्हानल हय्यिल्लज़ी यालमुतो” (वो ज़ात पाक है जो जि़न्दा है उसे कभी मौत नहीं आएगी)। लिहाज़ा मैं भी जनाज़ा देख कर यही कहा करता था यह कलिमा कहने के सबब अल्लाह ने मुझे बख़्श दिया। (अहयाउल उलूम)
Namaz e Janaza के मसाएल
तकबीर के वक्त सर उठाना
Namaz e Janaza में तकबीर के वक्त सर उठाकर आसमान की तरफ देखना ज़रूरी नहीं है, बल्कि ग़लत है।
जूते पर खड़े हो कर Namaz e Janaza पढ़ना
जूता पहन कर अगर नमाज़े जनाज़ा पढ़ें तो जूते और ज़मीन दोनों का पाक होना ज़रूरी है और जूता उतार कर उस पर खड़े हो कर पढ़ें तो जूते के तले और ज़मीन का पाक होना ज़रूरी नहीं।
एह़तियात़ यही है कि जूता उतार कर उस पर पाउं रख कर नमाज़ पढ़ी जाए ताकि ज़मीन या तला अगर नापाक हो तो नमाज़ में ख़लल न आए।” (फ़तावा रज़विय्या मुख़र्रजा, जि. 9, स. 188)
ग़ाइबाना Namaz e Janaza नहीं हो सकती
मय्यित का सामने होना ज़रूरी है, ग़ाइबाना नमाज़े जनाज़ा नहीं हो सकती। मुस्तह़ब यह है कि इमाम मय्यित के सीने के सामने खड़ा हो।
चन्द जनाज़ों की इकठ्ठी नमाज़ का त़रीक़ा
चन्द जनाज़े एक साथ भी पढ़े जा सकते हैं, इस में इखि़्तयार है कि सब को आगे पीछे रखें यानी सब का सीना इमाम के सामने हो या कि़त़ार बन्द। यानी एक के पाउं की सीध में दूसरे का सिरहाना और दूसरे के पाउं की सीध में तीसरे का सिरहाना (यानी इसी पर कि़यास कीजिये)। (बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 839,)
Namaz e Janaza में कितनी सफ़ें हों?
बेहतर यह है कि जनाज़े में तीन सफ़ें हों कि ह़दीसे पाक में है : “जिस की Namaz e Janaza तीन सफ़ों ने पढ़ी उस की मगि़्फ़रत हो जाएगी।” अगर कुल सात ही आदमी हों तो एक इमाम बन जाए अब पहली सफ़ में तीन खड़े हो जाएं दूसरी में दो और तीसरी में एक। जनाज़े में पिछली सफ़ तमाम सफ़ों से अफ़्ज़ल है।
Namaz e Janaza की पूरी जमाअ़त न मिले तो?
मस्बूक़ (यानी जिस की बाज़ तक्बीरें फ़ौत हो गइंर् वोह) अपनी बाक़ी तक्बीरें इमाम के सलाम फेरने के बाद कहे और अगर यह अन्देशा हो कि दुआ वग़ैरा पढ़ेगा तो पूरी करने से क़ब्ल लोग जनाज़े को कन्धे तक उठा लेंगे तो सिर्फ़ तक्बीरें कह ले दुआ वग़ैरा छोड़ दे।
चौथी तक्बीर के बाद जो शख़्स आया तो जब तक इमाम ने सलाम नहीं फेरा शामिल हो जाए और इमाम के सलाम के बाद तीन बार “अल्लाहो अकबर” कहे। फिर सलाम फेर दे।
पागल या ख़ुदकुशी वाले का जनाज़ा
जो पैदाइशी पागल हो या बालिग़ होने से पहले पागल हो गया हो और इसी पागल पन में मौत वाक़ेअ़ हुई तो उस की नमाज़े जनाज़ा में ना बालिग़ की दुआ पढ़ेंगे। जिस ने ख़ुदकुशी की उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जाएगी।
मुर्दा बच्चे के अह़काम
मुसल्मान का बच्चा जि़न्दा पैदा हुवा यानी अक्सर हि़स्सा बाहर होने के वक़्त जि़न्दा था फिर मर गया तो उस को ग़ुस्ल व कफ़न देंगे और उस की नमाज़ पढ़ेंगे, वरना उसे वैसे ही नहला कर एक कपड़े में लपेट कर दफ़्न कर देंगे। इस के लिये सुन्नत के मुत़ाबिक़ ग़ुस्ल व कफ़न नहीं है और नमाज़ भी इस की नहीं पढ़ी जाएगी। सर की त़रफ़ से अक्सर की मिक़्दार सर से ले कर सीने तक है। लिहाज़ा अगर इस का सर बाहर हुवा था और चीख़ता था मगर सीने तक निकलने से पहले ही फ़ौत हो गया तो उस की नमाज़ नहीं पढ़ेंगे। पाउं की जानिब से अक्सर की मिक़्दार कमर तक है। बच्चा जि़न्दा पैदा हुवा या मुर्दा या कच्चा गिर गया उस का नाम रखा जाए और वो कि़यामत के दिन उठाया जाएगा। (बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 841)
जनाज़े को कन्धा देने का सवाब
ह़दीसे पाक में है : “जो जनाज़े को चालीस क़दम ले कर चले उस के चालीस कबीरा गुनाह मिटा दिये जाएंगे।” नीज़ ह़दीस शरीफ़ में है : जो जनाज़े के चारों पायों को कन्धा दे अल्लाह उस की ह़त्मी (यानी मुस्तकि़ल) मगि़्फ़रत फ़रमा देगा। (बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 823)
जनाज़े को कन्धा देने का त़रीक़ा
जनाज़े को कन्धा देना इ़बादत है। सुन्नत यह है कि यके बाद दीगरे चारों पायों को कन्धा दे और हर बार दस दस क़दम चले। पूरी सुन्नत यह है कि पहले सीधे सिरहाने कन्धा दे फिर सीधी पाइंती (यानी सीधे पाउं की त़रफ़) फिर उलटे सिरहाने फिर उलटी पाइंती और दस दस क़दम चले तो कुल चालीस क़दम हुए। (, बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 822) बाज़ लोग जनाज़े के जुलूस में एलान करते रहते हैं, दो दो क़दम चलो! उन को चाहिये कि इस त़रह़ एलान किया करें : “दस दस क़दम चलो।”
बच्चे का जनाज़ा उठाने का त़रीक़ा
छोटे बच्चे के जनाज़े को अगर एक शख़्स हाथ पर उठा कर ले चले तो ह़रज नहीं और यके बाद दीगरे लोग हाथों हाथ लेते रहें। औरतों को (बच्चा हो या बड़ा किसी के भी) जनाज़े के साथ जाना ना जाइज़ व मम्नूअ़ है। (बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 823,)
Namaz e Janaza के बाद वापसी के मसाइल
जो शख़्स जनाज़े के साथ हो उसे बिग़ैर नमाज़ पढ़े वापस न होना चाहिये और नमाज़ के बाद औलियाए मय्यित (यानी मरने वाले के सर परस्तों) से इजाज़त ले कर वापस हो सकता है और दफ़्न के बाद इजाज़त की ह़ाजत नहीं।
क्या शोहर बीवी के जनाज़े को कन्धा दे सकता है?
शोहर अपनी बीवी के जनाज़े को कन्धा भी दे सकता है, क़ब्र में भी उतार सकता है और मुंह भी देख सकता है। सिर्फ़ ग़ुस्ल देने और बिला ह़ाइल बदन को छूने की मुमानअ़त है। औरत अपने शोहर को ग़ुस्ल दे सकती है। (बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 812, 813)
बालिग़ की Namaz e Janaza से क़ब्ल
यह एलान कीजिये मह़ूर्म के अ़ज़ीज़ व अह़बाब तवज्जोह फ़रमाएं! मह़ूर्म ने अगर जि़न्दगी में कभी आप की दिल आज़ारी या ह़क़ तलफ़ी की हो या आप के मक़्रूज़ हों तो इन को रिज़ाए इलाही के लिये मुआफ़ कर दीजिये, मरहूम का भी भला होगा और आप को भी सवाब मिलेगा।
src:dawateislami.net
बेहद शानदार ।
Excellent!
Bahut hi shandar aur ilm walu baat hai
इल्म सिखना जरूरी है
कदम कदम पर नेकी है
Masha Allah,,
Allah hame kalme wali mauth ata farmaye ameen ya rabbul-alameen
Mashallah , apne Bahut he acha likha hai …yakinan apke is article se sabhi ne ye dua sikhi hogi …
Shukriya !
Alisha