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Al-Israa
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    1. سُبْحَانَ الَّذِي أَسْرَى بِعَبْدِهِ لَيْلًا مِنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ إِلَى الْمَسْجِدِ الْأَقْصَى الَّذِي بَارَكْنَا حَوْلَهُ لِنُرِيَهُ مِنْ آيَاتِنَا إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ
    पाकी है उसे जो रातो रात अपने बन्दे को ले गया मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा तक जिसके गिर्दा गिर्द हमने बरकत रखी कि हम उसे अपनी अज़ीम निशानियाँ दिखाएं, बेशक वह सुनता देखता है
    2. وَآتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَجَعَلْنَاهُ هُدًى لِبَنِي إِسْرَائِيلَ أَلَّا تَتَّخِذُوا مِنْ دُونِي وَكِيلًا
    और हमने मूसा को किताब अता फ़रमाई और उसे बनी इस्राईल के लिये हिदायत किया कि मेरे सिवा किसी को कारसाज़ न ठहराओ
    3. ذُرِّيَّةَ مَنْ حَمَلْنَا مَعَ نُوحٍ إِنَّهُ كَانَ عَبْدًا شَكُورًا
    उसे उनकी औलाद जिनको हमने नूह के साथ सवार किया बेशक वह बड़ा शुक्र गुज़ार बन्दा था
    4. وَقَضَيْنَا إِلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ فِي الْكِتَابِ لَتُفْسِدُنَّ فِي الْأَرْضِ مَرَّتَيْنِ وَلَتَعْلُنَّ عُلُوًّا كَبِيرًا
    और हमने बनी इस्राईल को किताब में वही (देववाणी) भेजी कि ज़रूर तुम ज़मीन में दोबारा फ़साद मचाओगे और ज़रूर बड़ा गुरुर करोगे
    5. فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ أُولَاهُمَا بَعَثْنَا عَلَيْكُمْ عِبَادًا لَنَا أُولِي بَأْسٍ شَدِيدٍ فَجَاسُوا خِلَالَ الدِّيَارِ وَكَانَ وَعْدًا مَفْعُولًا
    फिर जब उनमें पहली बार का वादा आया हमने तुमपर अपने कुछ बन्दे भेजे सख़्त लड़ाई वाले तो वो शहरों के अन्दर तुम्हारी तलाश को घुसे और यह एक वादा था जिसे पूरा होना
    6. ثُمَّ رَدَدْنَا لَكُمُ الْكَرَّةَ عَلَيْهِمْ وَأَمْدَدْنَاكُمْ بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَجَعَلْنَاكُمْ أَكْثَرَ نَفِيرًا
    फिर हमने उनपर उलट कर तुम्हारा हमला कर दिया और तुमको मालों और बेटों से मदद दी और तुम्हारा जत्था बढ़ा दिया
    7. إِنْ أَحْسَنْتُمْ أَحْسَنْتُمْ لِأَنْفُسِكُمْ وَإِنْ أَسَأْتُمْ فَلَهَا فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ الْآخِرَةِ لِيَسُوءُوا وُجُوهَكُمْ وَلِيَدْخُلُوا الْمَسْجِدَ كَمَا دَخَلُوهُ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَلِيُتَبِّرُوا مَا عَلَوْا تَتْبِيرًا
    अगर तुम भलाई करोगे अपना भला करोगे और बुरा करोगे तो अपना, फिर जब दूसरी बार का वादा आया कि दुश्मन तुम्हारा मुंह बिगाड़ दें और मस्जिदे में दाख़िल हो जेसे पहली बार दाख़िल हुए थे और जिस चीज़ पर क़ाबू पाएं तबाह करके बर्बाद कर दें
    8. عَسَى رَبُّكُمْ أَنْ يَرْحَمَكُمْ وَإِنْ عُدْتُمْ عُدْنَا وَجَعَلْنَا جَهَنَّمَ لِلْكَافِرِينَ حَصِيرًا
    क़रीब है कि तुम्हारा रब तुमपर रहम करे और अगर तुम फिर शरारत करो तो हम फिर अज़ाब करेंगे और हमने जहन्नम को काफ़िरों का क़ैदख़ाना बनाया है
    9. إِنَّ هَذَا الْقُرْآنَ يَهْدِي لِلَّتِي هِيَ أَقْوَمُ وَيُبَشِّرُ الْمُؤْمِنِينَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ أَجْرًا كَبِيرًا
    बेशक यह क़ुरआन वह राह दिखाता है जो सबसे सीधी है और ख़ुशी सुनाता है ईमान वालों को जो अच्छे काम करें कि उनके लिये बड़ा सवाब है
    10. وَأَنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا
    और यह कि जो आख़िरत पर ईमान नहीं लाते हमने उनके लिये दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है
    11. وَيَدْعُ الْإِنْسَانُ بِالشَّرِّ دُعَاءَهُ بِالْخَيْرِ وَكَانَ الْإِنْسَانُ عَجُولًا
    और आदमी बुराई की दुआ करता है जैसे भलाई मांगता है और आदमी बड़ा जल्दबाज़ है
    12. وَجَعَلْنَا اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ آيَتَيْنِ فَمَحَوْنَا آيَةَ اللَّيْلِ وَجَعَلْنَا آيَةَ النَّهَارِ مُبْصِرَةً لِتَبْتَغُوا فَضْلًا مِنْ رَبِّكُمْ وَلِتَعْلَمُوا عَدَدَ السِّنِينَ وَالْحِسَابَ وَكُلَّ شَيْءٍ فَصَّلْنَاهُ تَفْصِيلًا
    और हमने रात और दिन को दो निशानियां बनाया तो रात की निशानी मिटी हुई रखी और दिन की निशानि दिखाने वाली की कि अपने रब का फ़ज़्ल तलाश करो और बरसों की गिनती और हिसाब जानो और हमने हर चीज़ ख़ूब जुदा जुदा ज़ाहिर फ़रमा दी
    13. وَكُلَّ إِنْسَانٍ أَلْزَمْنَاهُ طَائِرَهُ فِي عُنُقِهِ وَنُخْرِجُ لَهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ كِتَابًا يَلْقَاهُ مَنْشُورًا
    और हर इन्सान की क़िस्मत हमने उसके गले से लगा दी है और उसके लिये क़यामत के दिन एक नविश्ता (भाग्यपत्र) निकालेंगे जिसे खुला हुआ पाएगा
    14. اقْرَأْ كِتَابَكَ كَفَى بِنَفْسِكَ الْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيبًا
    फ़रमाया जाएगा कि अपना नामा (लेखा)पढ़ आज तू ख़ुद ही अपना हिसाब करने को बहुत है
    15. مَنِ اهْتَدَى فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ وَمَنْ ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّى نَبْعَثَ رَسُولًا
    जो राह पर आया वह अपने ही भले को राह पर आया और जो बहका तो अपने ही बुरे को बहका और कोई बोझ उठाने वाली जान दूसरे का बोझ न उठाएगी और हम अज़ाब करने वाले नहीं जब तक रसूल न भेज लें
    16. وَإِذَا أَرَدْنَا أَنْ نُهْلِكَ قَرْيَةً أَمَرْنَا مُتْرَفِيهَا فَفَسَقُوا فِيهَا فَحَقَّ عَلَيْهَا الْقَوْلُ فَدَمَّرْنَاهَا تَدْمِيرًا
    और जब हम किसी बस्ती को हलाक करना चाहते हैं उसके ख़ुशहालों पर एहकाम भेजते हैं फिर वो उसमें बेहुक्मी करते हैं तो उसपर बात पूरी हो जाती है तो हम उसे तबाह करके बर्बाद कर देते हैं
    17. وَكَمْ أَهْلَكْنَا مِنَ الْقُرُونِ مِنْ بَعْدِ نُوحٍ وَكَفَى بِرَبِّكَ بِذُنُوبِ عِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا
    और हमने कितनी ही संगतें (क़ौमे) नूह के बाद हलाक कर दीं और तुम्हारा रब काफी है अपने बन्दों के गुनाहों से ख़बरदार देखने वाला
    18. مَنْ كَانَ يُرِيدُ الْعَاجِلَةَ عَجَّلْنَا لَهُ فِيهَا مَا نَشَاءُ لِمَنْ نُرِيدُ ثُمَّ جَعَلْنَا لَهُ جَهَنَّمَ يَصْلَاهَا مَذْمُومًا مَدْحُورًا
    जो यह जल्दी वाली चाहे हम उसे उसमें जल्द दे दें जो चाहें जिसे चाहें फिर उसके लिये जहन्नम करदें कि उसमें जाए मज़म्मत(निंदा) किया हुआ धक्के खाता
    19. وَمَنْ أَرَادَ الْآخِرَةَ وَسَعَى لَهَا سَعْيَهَا وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُولَئِكَ كَانَ سَعْيُهُمْ مَشْكُورًا
    और जो आख़िरत चाहे और उसकी सी कोशिश करे और हो ईमान वाला तो उन्हीं की कोशिश ठिकाने लगी
    20. كُلًّا نُمِدُّ هَؤُلَاءِ وَهَؤُلَاءِ مِنْ عَطَاءِ رَبِّكَ وَمَا كَانَ عَطَاءُ رَبِّكَ مَحْظُورًا
    हम सबको मदद देते हैं उनको भी और उनको भी तुम्हारे रब की अता से और तुम्हारे रब की अता पर रोक नहीं
    21. انْظُرْ كَيْفَ فَضَّلْنَا بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ وَلَلْآخِرَةُ أَكْبَرُ دَرَجَاتٍ وَأَكْبَرُ تَفْضِيلًا
    देखो हमने उनमें एक को एक पर कैसी बड़ाई दी और बेशक आख़िरत दर्जों में सब से बड़ी और फ़ज़्ल(इज़्ज़त) में सबसे अअला(उत्तम)है
    22. لَا تَجْعَلْ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ فَتَقْعُدَ مَذْمُومًا مَخْذُولًا
    ऐ सुनने वाले अल्लाह के साथ दूसरा ख़ुदा न ठहरा कि तू बैठ रहेगा मज़म्मत किया जाता बेकस
    23. وَقَضَى رَبُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا إِمَّا يَبْلُغَنَّ عِنْدَكَ الْكِبَرَ أَحَدُهُمَا أَوْ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُلْ لَهُمَا أُفٍّ وَلَا تَنْهَرْهُمَا وَقُلْ لَهُمَا قَوْلًا كَرِيمًا
    और तुम्हारे रब ने हुक्म फ़रमाया कि उसके सिवा किसी को न पूजो और माँ बाप के साथ अच्छा सुलूक करो, अगर तेरे सामने उनमें एक या दोनो बुढ़ापे को पहुंच जाए तो उनसे हूँ न कहना और उन्हें न झिड़कना और उनसे तअज़ीम (आदर) की बात कहना
    24. وَاخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ وَقُلْ رَبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرًا
    और उनके लिये आजिज़ी (नम्रता) का बाज़ू बिछा नर्म दिली से और अर्ज़ कर कि ऐ मेरे रब, तू इनदोनों पर रहम कर जैसा कि इन दोनो ने मुझे छुटपन में पाला
    25. رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَا فِي نُفُوسِكُمْ إِنْ تَكُونُوا صَالِحِينَ فَإِنَّهُ كَانَ لِلْأَوَّابِينَ غَفُورًا
    तुम्हारा रब ख़ूब जानता है जो तुम्हारे दिलों में है अगर तुम लायक़ हुए तो बेशक वह तौबह करने वाले को बख़्शने वाला है
    26. وَآتِ ذَا الْقُرْبَى حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَلَا تُبَذِّرْ تَبْذِيرًا
    और रिश्तेदारों को उनका हक़ दे और मिस्कीन और मुसाफ़िर को और फ़ुज़ूल न उड़ा
    27. إِنَّ الْمُبَذِّرِينَ كَانُوا إِخْوَانَ الشَّيَاطِينِ وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِرَبِّهِ كَفُورًا
    बेशक उड़ाने वाले शैतानों के भाई हैं और शैतान अपने रब का बड़ा नाशुक्रा है
    28. وَإِمَّا تُعْرِضَنَّ عَنْهُمُ ابْتِغَاءَ رَحْمَةٍ مِنْ رَبِّكَ تَرْجُوهَا فَقُلْ لَهُمْ قَوْلًا مَيْسُورًا
    और अगर तू उनसे मुंह फेरे अपने रब की रहमत के इन्तिज़ार में जिसकी तुझे उम्मीद है तो उनसे आसान बात कह
    29. وَلَا تَجْعَلْ يَدَكَ مَغْلُولَةً إِلَى عُنُقِكَ وَلَا تَبْسُطْهَا كُلَّ الْبَسْطِ فَتَقْعُدَ مَلُومًا مَحْسُورًا
    और अपना हाथ अपनी गर्दन से बंधा हुआ न रख और न पूरा खोल दे कि तू बैठ रहे मलामत किया हुआ थका हुआ
    30. إِنَّ رَبَّكَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَقْدِرُ إِنَّهُ كَانَ بِعِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا
    बेशक तुम्हारा रब जिसे चाहे रिज़्क कुशादा देता और कस्ता है, बेशक वह अपने बन्दों को ख़ूब जानता देखता है
    31. وَلَا تَقْتُلُوا أَوْلَادَكُمْ خَشْيَةَ إِمْلَاقٍ نَحْنُ نَرْزُقُهُمْ وَإِيَّاكُمْ إِنَّ قَتْلَهُمْ كَانَ خِطْئًا كَبِيرًا
    और अपनी औलाद को क़त्ल न करो मुफ़लिसी(दरिद्रता) के डर से हम तुम्हें भी और उन्हें भी रोज़ी देंगे बेशक उनका क़त्ल बड़ी खता है
    32. وَلَا تَقْرَبُوا الزِّنَا إِنَّهُ كَانَ فَاحِشَةً وَسَاءَ سَبِيلًا
    और बदकारी के पास न जाओ बेशक वह बेहयाई है और बहुत ही बुरी राह
    33. وَلَا تَقْتُلُوا النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ وَمَنْ قُتِلَ مَظْلُومًا فَقَدْ جَعَلْنَا لِوَلِيِّهِ سُلْطَانًا فَلَا يُسْرِفْ فِي الْقَتْلِ إِنَّهُ كَانَ مَنْصُورًا
    और कोई जान जिसकी हुरमत (प्रतिष्ठा) अल्लाह ने रखी है नाहक़ न मारो और जो नाहक़ मारा जाए तो बेशक हमने उसके वारिस को का़बू दिया है तो वह क़त्ल में हद से न बढ़े ज़रूर उसकी मदद होनी है
    34. وَلَا تَقْرَبُوا مَالَ الْيَتِيمِ إِلَّا بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ حَتَّى يَبْلُغَ أَشُدَّهُ وَأَوْفُوا بِالْعَهْدِ إِنَّ الْعَهْدَ كَانَ مَسْئُولًا
    और यतीम के माल के पास न जाओ मगर उस राह से जो सबसे भली है यहां तक कि वह अपनी जवानी को पहुंचे और एहद पूरा करो बेशक एहद से सवाल होना है
    35. وَأَوْفُوا الْكَيْلَ إِذَا كِلْتُمْ وَزِنُوا بِالْقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِيمِ ذَلِكَ خَيْرٌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًا
    और मापो तो पूरा मापो और बराबर तराज़ू से तौलो, यह बेहतर है और इसका अंजाम अच्छा
    36. وَلَا تَقْفُ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ إِنَّ السَّمْعَ وَالْبَصَرَ وَالْفُؤَادَ كُلُّ أُولَئِكَ كَانَ عَنْهُ مَسْئُولًا
    और उस बात के पीछे न पड़ जिसका तुझे इल्म नहीं बेशक कान और आँख और दिल इन सब से सवाल होना है
    37. وَلَا تَمْشِ فِي الْأَرْضِ مَرَحًا إِنَّكَ لَنْ تَخْرِقَ الْأَرْضَ وَلَنْ تَبْلُغَ الْجِبَالَ طُولًا
    और ज़मीन में इतराता न चल बेशक तु हरगिज़ ज़मीन न चीर डालेगा और हरगिज़ बुलन्दी में पहाड़ों को न पहुंचेगा
    38. كُلُّ ذَلِكَ كَانَ سَيِّئُهُ عِنْدَ رَبِّكَ مَكْرُوهًا
    यह जो कुछ गुज़रा इन में की बुरी बात तेरे रब को ना पसन्द है
    39. ذَلِكَ مِمَّا أَوْحَى إِلَيْكَ رَبُّكَ مِنَ الْحِكْمَةِ وَلَا تَجْعَلْ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ فَتُلْقَى فِي جَهَنَّمَ مَلُومًا مَدْحُورًا
    यह उन वहियों (देव-वाणियों) में से है जो तुम्हारे रब ने तुम्हारी तरफ़ भेजी हिकमत की बातें और ऐ सुनने वाले अल्लाह के साथ दूसरा ख़ुदा न ठहरा कि तू जहन्नम में फेंका जाएगा तअने पाता धक्के खाता
    40. أَفَأَصْفَاكُمْ رَبُّكُمْ بِالْبَنِينَ وَاتَّخَذَ مِنَ الْمَلَائِكَةِ إِنَاثًا إِنَّكُمْ لَتَقُولُونَ قَوْلًا عَظِيمًا
    क्या तुम्हारे रब ने तुम को बेटे चुन दिये और अपने लिये फ़रिश्तों से बेटियां बनाई बेशक तुम बड़ा बोल बोलते हो
    41. وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِي هَذَا الْقُرْآنِ لِيَذَّكَّرُوا وَمَا يَزِيدُهُمْ إِلَّا نُفُورًا
    और बेशक हमने इस क़ुरआन में तरह तरह से बयान फ़रमाया कि वो समझें और इससे उन्हें नहीं बढ़ती मगर नफ़रत
    42. قُلْ لَوْ كَانَ مَعَهُ آلِهَةٌ كَمَا يَقُولُونَ إِذًا لَابْتَغَوْا إِلَى ذِي الْعَرْشِ سَبِيلًا
    तुम फ़रमाओ अगर उसके साथ और ख़ुदा होते जैसा ये बकते हैं जब तो वो अर्श के मालिक की तरफ़ कोई राह ढूंढ निकालते
    43. سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى عَمَّا يَقُولُونَ عُلُوًّا كَبِيرًا
    उसे पाकी और बरतरी उनकी बातों से बड़ी बरतरी
    44. تُسَبِّحُ لَهُ السَّمَاوَاتُ السَّبْعُ وَالْأَرْضُ وَمَنْ فِيهِنَّ وَإِنْ مِنْ شَيْءٍ إِلَّا يُسَبِّحُ بِحَمْدِهِ وَلَكِنْ لَا تَفْقَهُونَ تَسْبِيحَهُمْ إِنَّهُ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًا
    उसकी पाकी बोलते हैं सातों आसमान और ज़मीन और जो कोई उनमें हैं और कोई चीज़ नहीं जो उसे सराहती हुई उसकी पाकी न बोले हाँ तुम उनकी तस्बीह नहीं समझते बेशक वह हिल्म (सहिष्णुता) वाला बख़्शने वाला है
    45. وَإِذَا قَرَأْتَ الْقُرْآنَ جَعَلْنَا بَيْنَكَ وَبَيْنَ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ حِجَابًا مَسْتُورًا
    और ऐ मेहबूब तुमने क़ुरआन पढ़ा हमने तुमपर और उनमें कि आख़िरत पर ईमान नहीं लाते एक छुपा हुआ पर्दा कर दिया
    46. وَجَعَلْنَا عَلَى قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَنْ يَفْقَهُوهُ وَفِي آذَانِهِمْ وَقْرًا وَإِذَا ذَكَرْتَ رَبَّكَ فِي الْقُرْآنِ وَحْدَهُ وَلَّوْا عَلَى أَدْبَارِهِمْ نُفُورًا
    और हमने उनके दिलों पर ग़िलाफ़ (पर्दे) डाल दिये हैं कि उसे न समझें और उनके कानों में टैंट और जब तुम क़ुरआन में अपने अकले रब की याद करते हो वो पीठ फेरकर भागते हैं नफ़रत करते
    47. نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَسْتَمِعُونَ بِهِ إِذْ يَسْتَمِعُونَ إِلَيْكَ وَإِذْ هُمْ نَجْوَى إِذْ يَقُولُ الظَّالِمُونَ إِنْ تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلًا مَسْحُورًا
    हम ख़ूब जानते हैं जिस लिये वो सुनते हैं जब तुम्हारी तरफ़ कान लगाते हैं और जब आपस में मशवरा करते हैं जब कि ज़ालिम कहते हैं तुम पीछे नहीं चले मगर एक ऐसे मर्द के जिस पर जादू हुआ
    48. انْظُرْ كَيْفَ ضَرَبُوا لَكَ الْأَمْثَالَ فَضَلُّوا فَلَا يَسْتَطِيعُونَ سَبِيلًا
    देखो उन्होंने तुम्हें कैसी तशबीहें (उपमाएं) दीं तो गुमराह हुए कि राह नहीं पा सकते
    49. وَقَالُوا أَإِذَا كُنَّا عِظَامًا وَرُفَاتًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ خَلْقًا جَدِيدًا
    और बोले क्या जब हम हड्डियां और रेज़ा रेज़ा हो जाएंगे क्या सच मुच नए बनकर उठेंगे
    50. قُلْ كُونُوا حِجَارَةً أَوْ حَدِيدًا
    तुम फ़रमाओ कि पत्थर या लोहा हो जाओ
    51. أَوْ خَلْقًا مِمَّا يَكْبُرُ فِي صُدُورِكُمْ فَسَيَقُولُونَ مَنْ يُعِيدُنَا قُلِ الَّذِي فَطَرَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ فَسَيُنْغِضُونَ إِلَيْكَ رُءُوسَهُمْ وَيَقُولُونَ مَتَى هُوَ قُلْ عَسَى أَنْ يَكُونَ قَرِيبًا
    या और कोई मख़लूक़ (प्रणीवर्ग) जो तुम्हारे ख़याल में बड़ी हो तो अब कहेंगे हमें कौन फिर पैदा करेगा, तुम फ़रमाओ वही जिसने तुम्हें पहली बार पैदा किया, तो अब तुम्हारी तरफ़ मसखरगी (ठठोल) से सर हिलाकर कहेंगे यह कब है तुम फ़रमाओ शायद नज़दीक ही हो
    52. يَوْمَ يَدْعُوكُمْ فَتَسْتَجِيبُونَ بِحَمْدِهِ وَتَظُنُّونَ إِنْ لَبِثْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا
    जिस दिन वह तुम्हें बुलाएगा तो तुम उसकी हम्द करते चले आओगे और समझोगे कि न रहे थे मगर थोड़ा
    53. وَقُلْ لِعِبَادِي يَقُولُوا الَّتِي هِيَ أَحْسَنُ إِنَّ الشَّيْطَانَ يَنْزَغُ بَيْنَهُمْ إِنَّ الشَّيْطَانَ كَانَ لِلْإِنْسَانِ عَدُوًّا مُبِينًا
    और मेरे बन्दों से फ़रमाओ वह बात कहें जो सबसे अच्छी हो बेशक शैतान उनके आपस में फ़साद डाल देता है,बेशक शैतान आदमी का खुला दुश्मन है
    54. رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِكُمْ إِنْ يَشَأْ يَرْحَمْكُمْ أَوْ إِنْ يَشَأْ يُعَذِّبْكُمْ وَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ وَكِيلًا
    तुम्हारा रब तुम्हें ख़ूब जानता है वह चाहे तो तुम पर रहम करे चाहे तो तुम्हें अज़ाब करे,और हमने तुमको उनपर करोड़ा बना कर न भेजा
    55. وَرَبُّكَ أَعْلَمُ بِمَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَلَقَدْ فَضَّلْنَا بَعْضَ النَّبِيِّينَ عَلَى بَعْضٍ وَآتَيْنَا دَاوُودَ زَبُورًا
    और तुम्हारा रब ख़ूब जानता है जो कोई आसमानों और ज़मीन में हैं और बेशक हमने नबियों में एक को एक पर बड़ाई दी और दाऊद को जुबूर अता फ़रमाई
    56. قُلِ ادْعُوا الَّذِينَ زَعَمْتُمْ مِنْ دُونِهِ فَلَا يَمْلِكُونَ كَشْفَ الضُّرِّ عَنْكُمْ وَلَا تَحْوِيلًا
    तुम फ़रमाओ पुकारो उन्हें जिनको अल्लाह के सिवा गुमान करते हो तो वो इख़्तियार नहीं रखते तुम से तकलीफ़ दूर करने और फेर देने का
    57. أُولَئِكَ الَّذِينَ يَدْعُونَ يَبْتَغُونَ إِلَى رَبِّهِمُ الْوَسِيلَةَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ وَيَرْجُونَ رَحْمَتَهُ وَيَخَافُونَ عَذَابَهُ إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ كَانَ مَحْذُورًا
    वो मक़बूल (प्रिय) बन्दे जिन्हें ये काफ़िर पूजते हैं वो आप ही अपने रब की तरफ़ वसीला (आश्रय) ढूंडते है कि उनमें कौन ज़्यादा मुक़र्रब (समीपस्थ)है उसकी रहमत की उम्मीद रखते और उसके अज़ाब से डरते है बेशक तुम्हारे रब का अज़ाब डर की चीज़ है
    58. وَإِنْ مِنْ قَرْيَةٍ إِلَّا نَحْنُ مُهْلِكُوهَا قَبْلَ يَوْمِ الْقِيَامَةِ أَوْ مُعَذِّبُوهَا عَذَابًا شَدِيدًا كَانَ ذَلِكَ فِي الْكِتَابِ مَسْطُورًا
    और कोई बस्ती नहीं मगर यह कि हम उसे क़यामत के रोज़ से पहले नेस्त कर देंगे या उसे सख़्तअज़ाब देंगे यह किताब में लिखा हुआ है
    59. وَمَا مَنَعَنَا أَنْ نُرْسِلَ بِالْآيَاتِ إِلَّا أَنْ كَذَّبَ بِهَا الْأَوَّلُونَ وَآتَيْنَا ثَمُودَ النَّاقَةَ مُبْصِرَةً فَظَلَمُوا بِهَا وَمَا نُرْسِلُ بِالْآيَاتِ إِلَّا تَخْوِيفًا
    और हम ऐसी निशानियां भेजने से यूंही बाज़ रहे कि उन्हें अगलों ने झुटलाया और हमने समूद को नाक़ा (ऊंटनी) दिया आँखें खोलने को तो उन्होंने उसपर ज़ुल्म किया और हम ऐसी निशानियां नहीं भेजते मगर डराने को
    60. وَإِذْ قُلْنَا لَكَ إِنَّ رَبَّكَ أَحَاطَ بِالنَّاسِ وَمَا جَعَلْنَا الرُّؤْيَا الَّتِي أَرَيْنَاكَ إِلَّا فِتْنَةً لِلنَّاسِ وَالشَّجَرَةَ الْمَلْعُونَةَ فِي الْقُرْآنِ وَنُخَوِّفُهُمْ فَمَا يَزِيدُهُمْ إِلَّا طُغْيَانًا كَبِيرًا
    और जब हमने तुमसे फ़रमाया कि सब लोग तुम्हारे रब के क़ाबू में हैं और हमने न किया वह दिखावा जो तुम्हें दिखाया था मगर लोगों की आज़माइश (परीक्षा) को और वह पेड़ जिस पर क़ुरआन में लअनत है और हम उन्हें डराते हैं तो उन्हें नहीं बढ़ती मगर बढ़ी सरकशी(नाफ़रमानी)
    61. وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ قَالَ أَأَسْجُدُ لِمَنْ خَلَقْتَ طِينًا
    और याद करो जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सज्दा करो तो उन सबने सज्दा किया सिवा इब्लीस के, बोला क्या मैं इसे सज्दा करूं जिसे तूने मिट्टी से बनाया
    62. قَالَ أَرَأَيْتَكَ هَذَا الَّذِي كَرَّمْتَ عَلَيَّ لَئِنْ أَخَّرْتَنِ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ لَأَحْتَنِكَنَّ ذُرِّيَّتَهُ إِلَّا قَلِيلًا
    बोला देख तो जो यह तूने मुझसे इज़्ज़त वाला रखा अगर तूने मुझे क़यामत तक मुहलत दी तो ज़रूर मैं उसकी औलाद को पीस डालूंगा मगर थोड़ा
    63. قَالَ اذْهَبْ فَمَنْ تَبِعَكَ مِنْهُمْ فَإِنَّ جَهَنَّمَ جَزَاؤُكُمْ جَزَاءً مَوْفُورًا
    फ़रमाया दूर हो तो उनमें जो तेरे कहने पर चलेगा तो बेशक सब का बदला जहन्नम है भरपूर सज़ा
    64. وَاسْتَفْزِزْ مَنِ اسْتَطَعْتَ مِنْهُمْ بِصَوْتِكَ وَأَجْلِبْ عَلَيْهِمْ بِخَيْلِكَ وَرَجِلِكَ وَشَارِكْهُمْ فِي الْأَمْوَالِ وَالْأَوْلَادِ وَعِدْهُمْ وَمَا يَعِدُهُمُ الشَّيْطَانُ إِلَّا غُرُورًا
    और डिगा देउनमें से जिसपर क़ुदरत पाए अपनी आवाज़ से और उन पर लाम बांध ला अपने सवारो और प्यादो का और उनका साझी हो मालों और बच्चों में और उन्हें वादा दे और शैतान उन्हें वादा नहीं देता मगर धोखे से
    65. إِنَّ عِبَادِي لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطَانٌ وَكَفَى بِرَبِّكَ وَكِيلًا
    बेशक जो मेरे बन्दे हैं उनपर तेरा कुछ क़ाबू नहीं, और तेरा रब काफ़ी है काम बनाने को
    66. رَبُّكُمُ الَّذِي يُزْجِي لَكُمُ الْفُلْكَ فِي الْبَحْرِ لِتَبْتَغُوا مِنْ فَضْلِهِ إِنَّهُ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا
    तुम्हारा रब वह है कि तुम्हारे लिये दरिया में किश्ती रवाँ (प्रवाहित) करता है कि तुम उसका फ़ज़्ल तलाश करो, बेशक वह तुम पर मेहरबान है
    67. وَإِذَا مَسَّكُمُ الضُّرُّ فِي الْبَحْرِ ضَلَّ مَنْ تَدْعُونَ إِلَّا إِيَّاهُ فَلَمَّا نَجَّاكُمْ إِلَى الْبَرِّ أَعْرَضْتُمْ وَكَانَ الْإِنْسَانُ كَفُورًا
    और जब तुम्हें दरिया में मुसीबत पहुंचती है तो उसके सिवा जिन्हें पूजते हैं सब गुम हो जाते हैं फिर जब वह तुम्हें ख़ुश्की की तरफ़ निजात देता है तो मुंह फेर लेते हो और आदमी बड़ा नाशुक्रा है
    68. أَفَأَمِنْتُمْ أَنْ يَخْسِفَ بِكُمْ جَانِبَ الْبَرِّ أَوْ يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا ثُمَّ لَا تَجِدُوا لَكُمْ وَكِيلًا
    क्या तुम इससे निडर हुए कि वह ख़ुश्की ही का कोई किनारा तुम्हारे साथ धंसा दे या तुमपर पथराव भेजे फिर अपना कोई हिमायती न पाओ
    69. أَمْ أَمِنْتُمْ أَنْ يُعِيدَكُمْ فِيهِ تَارَةً أُخْرَى فَيُرْسِلَ عَلَيْكُمْ قَاصِفًا مِنَ الرِّيحِ فَيُغْرِقَكُمْ بِمَا كَفَرْتُمْ ثُمَّ لَا تَجِدُوا لَكُمْ عَلَيْنَا بِهِ تَبِيعًا
    या इससे निडर हुए कि तुम्हें दोबारा दरिया में, ले जाए फिर तुमपर जहाज तोड़ने वाली आंधीभेजे तो तुम को तुम्हारे कुफ़्र के सबब डुबो दे फिर अपने लिये कोई ऐसा न पाओ कि उसपर हमारा पीछा कर
    70. وَلَقَدْ كَرَّمْنَا بَنِي آدَمَ وَحَمَلْنَاهُمْ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَرَزَقْنَاهُمْ مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَى كَثِيرٍ مِمَّنْ خَلَقْنَا تَفْضِيلًا
    और बेशक हमने आदम की औलाद को इज़्ज़त दी और उनको ख़ुश्की और तरी में सवार किया और उनको सुथरी चीज़े रोज़ी दी और उनको अपनी बहुत मख़लूक से अफ़ज़ल किया
    71. يَوْمَ نَدْعُو كُلَّ أُنَاسٍ بِإِمَامِهِمْ فَمَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ فَأُولَئِكَ يَقْرَءُونَ كِتَابَهُمْ وَلَا يُظْلَمُونَ فَتِيلًا
    जिस दिन हम हर जमाअत को उसके इमाम के साथ बुलाएंगे तो जो अपना नामा (कर्मलेखा) दाएं हाथ में दिया गया ये लोग अपना नामा पढ़ेंगे और तागे भर उनका हक़ न दिया जाएगा
    72. وَمَنْ كَانَ فِي هَذِهِ أَعْمَى فَهُوَ فِي الْآخِرَةِ أَعْمَى وَأَضَلُّ سَبِيلًا
    और जो इस ज़िन्दगी में अंधा हो वह आख़िरत में अंधा है और भी ज़्यादा गुमराह
    73. وَإِنْ كَادُوا لَيَفْتِنُونَكَ عَنِ الَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ لِتَفْتَرِيَ عَلَيْنَا غَيْرَهُ وَإِذًا لَاتَّخَذُوكَ خَلِيلًا
    और वह तो क़रीब था कि तुम्हें कुछ लग़ज़िश (डगमगाहट) देते हमारी वही से जो हमने तुमको भेजी कि तुम हमारी तरफ़ कुछ और निस्बत करदो और ऐसा होता तो वो तुमको अपना गहरा दोस्त बना लेते
    74. وَلَوْلَا أَنْ ثَبَّتْنَاكَ لَقَدْ كِدْتَ تَرْكَنُ إِلَيْهِمْ شَيْئًا قَلِيلًا
    और अगर हम तुम्हें अडिग न रखते तो क़रीब था कि तुम उनकी तरफ़ कुछ थोड़ा सा झुकते
    75. إِذًا لَأَذَقْنَاكَ ضِعْفَ الْحَيَاةِ وَضِعْفَ الْمَمَاتِ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ عَلَيْنَا نَصِيرًا
    और ऐसा होता तो हम तुमको दूनी उम्र और दोचन्द (दूनी)मौत का मज़ा देते फिर तुम हमारे मुक़ाबिल अपना कोई मददगार न पाते
    76. وَإِنْ كَادُوا لَيَسْتَفِزُّونَكَ مِنَ الْأَرْضِ لِيُخْرِجُوكَ مِنْهَا وَإِذًا لَا يَلْبَثُونَ خِلَافَكَ إِلَّا قَلِيلًا
    और बेशक क़रीब था कि वो तुम्हें इस ज़मीन से डिगा दें कि तुम्हें इससे बाहर कर दें और ऐसाहोता तो वो तुम्हारे पीछे न ठहरते मगर थोड़ा
    77. سُنَّةَ مَنْ قَدْ أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِنْ رُسُلِنَا وَلَا تَجِدُ لِسُنَّتِنَا تَحْوِيلًا
    दस्तूर उनका जो हमने तुमसे पहले रसूल भेजे और तुम हमारा क़ानून बदलता न पाओगे
    78. أَقِمِ الصَّلَاةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إِلَى غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْآنَ الْفَجْرِ إِنَّ قُرْآنَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُودًا
    नमाज़ क़ायम रखो सूरज ढलने से रात की अंधेरी तक और सुबह का क़ुरआन बेशक सुबह के क़ुरआन में फ़रिश्ते हाज़िर होते हैं
    79. وَمِنَ اللَّيْلِ فَتَهَجَّدْ بِهِ نَافِلَةً لَكَ عَسَى أَنْ يَبْعَثَكَ رَبُّكَ مَقَامًا مَحْمُودًا
    और रात के कुछ हिस्से में तहज्जुद करो यह ख़ास तुम्हारे लिये ज़्यादा है क़रीब है कि तुम्हें तुम्हारा रब ऐसी जगह खड़ा करे जहां सब तुम्हारी हम्द (स्तुति) करें
    80. وَقُلْ رَبِّ أَدْخِلْنِي مُدْخَلَ صِدْقٍ وَأَخْرِجْنِي مُخْرَجَ صِدْقٍ وَاجْعَلْ لِي مِنْ لَدُنْكَ سُلْطَانًا نَصِيرًا
    और यूं अर्ज़ करो कि ऐ मेरे रब मुझे सच्ची तरह दाख़िल कर और सच्ची तरह बाहर ले जा और मुझे अपनी तरफ़ से मददगार ग़लबा दे
    81. وَقُلْ جَاءَ الْحَقُّ وَزَهَقَ الْبَاطِلُ إِنَّ الْبَاطِلَ كَانَ زَهُوقًا
    और फ़रमाओ कि हक़ (सत्य) आया और बातिल (असत्य) मिट गया बेशक बातिल (असत्य) को मिटना ही था
    82. وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْآنِ مَا هُوَ شِفَاءٌ وَرَحْمَةٌ لِلْمُؤْمِنِينَ وَلَا يَزِيدُ الظَّالِمِينَ إِلَّا خَسَارًا
    और हम क़ुरआन में उतारते हैं वह चीज़ जो ईमान वालों के लिये शिफ़ा और रहमत है और उससे ज़ालिमों को नुक़सान ही बढ़ता है
    83. وَإِذَا أَنْعَمْنَا عَلَى الْإِنْسَانِ أَعْرَضَ وَنَأَى بِجَانِبِهِ وَإِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ كَانَ يَئُوسًا
    और जब हम आदमी पर एहसान करते हैं मुंह फेर लेता है और अपनी तरफ़ दूर हट जाता है और जब उसे बुराई पहुंचे तो नाउम्मीद हो जाता है
    84. قُلْ كُلٌّ يَعْمَلُ عَلَى شَاكِلَتِهِ فَرَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَنْ هُوَ أَهْدَى سَبِيلًا
    तुम फ़रमाओ सब अपने कैंडे पर काम करते हैं तो तुम्हारा रब ख़ूब जानता है कौन ज़्यादा राह पर है
    85. وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الرُّوحِ قُلِ الرُّوحُ مِنْ أَمْرِ رَبِّي وَمَا أُوتِيتُمْ مِنَ الْعِلْمِ إِلَّا قَلِيلًا
    और तुम से रूह को पूछते हैं, तुम फ़रमाओ, रूह मेरे रब के हुक्म से एक चीज़ है और तुम्हें इल्म न मिला मगर थोड़ा
    86. وَلَئِنْ شِئْنَا لَنَذْهَبَنَّ بِالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ بِهِ عَلَيْنَا وَكِيلًا
    और अगर हम चाहते तो यह वही (देव वाणी) जो हमने तुम्हारी तरफ़ की इसे ले जाते फिर तुम कोई न पाते कि तुम्हारे लिये हमारे हुज़ूर इसपर विकालत करता
    87. إِلَّا رَحْمَةً مِنْ رَبِّكَ إِنَّ فَضْلَهُ كَانَ عَلَيْكَ كَبِيرًا
    मगर तुम्हारे रब की रहमत बेशक तुमपर उसका बड़ा फ़ज़्ल है
    88. قُلْ لَئِنِ اجْتَمَعَتِ الْإِنْسُ وَالْجِنُّ عَلَى أَنْ يَأْتُوا بِمِثْلِ هَذَا الْقُرْآنِ لَا يَأْتُونَ بِمِثْلِهِ وَلَوْ كَانَ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ ظَهِيرًا
    तुम फ़रमाओ अगर आदमी और जिन्न सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ (सहमत) हो जाएं कि इस क़ुरआन की मानिंद (जैसा) ले आएं तो इसका मिस्ल न ला सकेंगे अगरचे उनमें एक दूसरे का मददगार हो
    89. وَلَقَدْ صَرَّفْنَا لِلنَّاسِ فِي هَذَا الْقُرْآنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍ فَأَبَى أَكْثَرُ النَّاسِ إِلَّا كُفُورًا
    और बेशक हमने लोगो के लिये इस क़ुरआन में हर क़िस्म की मसल (कहावत) तरह तरह बयान फ़रमाई तो अक्सर आदमियों ने न माना मगर ना शुक्री करना
    90. وَقَالُوا لَنْ نُؤْمِنَ لَكَ حَتَّى تَفْجُرَ لَنَا مِنَ الْأَرْضِ يَنْبُوعًا
    और बोले कि हम तुमपर हरगिज़ ईमान न लाएंगे यहां तक कि तुम हमारे लिये ज़मीन से कोई चश्मा बहादो
    91. أَوْ تَكُونَ لَكَ جَنَّةٌ مِنْ نَخِيلٍ وَعِنَبٍ فَتُفَجِّرَ الْأَنْهَارَ خِلَالَهَا تَفْجِيرًا
    या तुम्हारे लिये खजूरों और अंगूरों का कोई बाग़ हो फिर तुम उसके अन्दर बहती नहरें रवां करो
    92. أَوْ تُسْقِطَ السَّمَاءَ كَمَا زَعَمْتَ عَلَيْنَا كِسَفًا أَوْ تَأْتِيَ بِاللَّهِ وَالْمَلَائِكَةِ قَبِيلًا
    या तुम हम पर आसमान गिरा दो जैसा तुमने कहा है टुकड़े टुकड़े या अल्लाह और फ़रिश्तों को ज़ामिन ले आओ
    93. أَوْ يَكُونَ لَكَ بَيْتٌ مِنْ زُخْرُفٍ أَوْ تَرْقَى فِي السَّمَاءِ وَلَنْ نُؤْمِنَ لِرُقِيِّكَ حَتَّى تُنَزِّلَ عَلَيْنَا كِتَابًا نَقْرَؤُهُ قُلْ سُبْحَانَ رَبِّي هَلْ كُنْتُ إِلَّا بَشَرًا رَسُولًا
    या तुम्हारे लिये सोने का घर हो या तुम आसमानपर चढ़ जाओ और हम तुम्हारे लिये चढ़ जाने पर भी हरगिज़ ईमान न लाएंगे जब तक हम पर एक किताब न उतारो जो हम पढ़ें तुम फ़रमाओ, पाकी है मेरे रब को, मैं कौन हूँ अगर मगर आदमी अल्लाह का भेजा हुआ
    94. وَمَا مَنَعَ النَّاسَ أَنْ يُؤْمِنُوا إِذْ جَاءَهُمُ الْهُدَى إِلَّا أَنْ قَالُوا أَبَعَثَ اللَّهُ بَشَرًا رَسُولًا
    और किस बात ने लोगो को ईमान लाने से रोका जब उनके पास हिदायत आई मगर उसी ने कि बोले क्या अल्लाह ने आदमी को रसूल बनाकर भेजा
    95. قُلْ لَوْ كَانَ فِي الْأَرْضِ مَلَائِكَةٌ يَمْشُونَ مُطْمَئِنِّينَ لَنَزَّلْنَا عَلَيْهِمْ مِنَ السَّمَاءِ مَلَكًا رَسُولًا
    तुम फ़रमाओ अगर ज़मीन में फ़रिश्ते होते चैन से चलते तो उनपर हम रसूल भी फ़रिश्ता उतारते
    96. قُلْ كَفَى بِاللَّهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ إِنَّهُ كَانَ بِعِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا
    तुम फ़रमाओ अल्लाह बस है गवाह मेरे तुम्हारेबीच बेशक वह अपने बन्दों को जानता देखता है
    97. وَمَنْ يَهْدِ اللَّهُ فَهُوَ الْمُهْتَدِ وَمَنْ يُضْلِلْ فَلَنْ تَجِدَ لَهُمْ أَوْلِيَاءَ مِنْ دُونِهِ وَنَحْشُرُهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَلَى وُجُوهِهِمْ عُمْيًا وَبُكْمًا وَصُمًّا مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ كُلَّمَا خَبَتْ زِدْنَاهُمْ سَعِيرًا
    और जिसे अल्लाह राह दे वही राह पर है और जिसे गुमराह करे तो उनके लिये उसके सिवा कोई हिमायत वाले न पाओगे और हम उन्हें क़यामत के दिन उनके मुंह के बल उठाएंगे अंधे और गूंगे और बहरे उनका ठिकाना जहन्नम है, जब कभी बुझने पर आएगीहम उसे और भड़का देंगे
    98. ذَلِكَ جَزَاؤُهُمْ بِأَنَّهُمْ كَفَرُوا بِآيَاتِنَا وَقَالُوا أَإِذَا كُنَّا عِظَامًا وَرُفَاتًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ خَلْقًا جَدِيدًا
    यह उनकी सज़ा है इसपर कि उन्होंने हमारी आयतों से इन्कार किया और बोले क्या जब हम हड्डियाँ और रेज़ा रेज़ा हो जाएंगे तो क्या सचमुच हम नए बनाकर उठाए जाएंगे
    99. أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ قَادِرٌ عَلَى أَنْ يَخْلُقَ مِثْلَهُمْ وَجَعَلَ لَهُمْ أَجَلًا لَا رَيْبَ فِيهِ فَأَبَى الظَّالِمُونَ إِلَّا كُفُورًا
    और क्या वो नहीं देखते कि वहअल्लाह जिसने आसमान और ज़मीन बनाए उन लोगों की मिस्ल (समान) बना सकता है और उसने उनके लिये एक मीआद (अवधि) ठहरा रखी है जिसमें कुछ शुबह नहीं, तो ज़ालिम नहीं मानते बे नाशुक्री किये
    100. قُلْ لَوْ أَنْتُمْ تَمْلِكُونَ خَزَائِنَ رَحْمَةِ رَبِّي إِذًا لَأَمْسَكْتُمْ خَشْيَةَ الْإِنْفَاقِ وَكَانَ الْإِنْسَانُ قَتُورًا
    तुम फ़रमाओ अगर तुम लोग मेरे रब की रहमत के ख़ज़ानों के मालिक होते तो उन्हें भी रोक रखते इस डर से कि ख़र्च न होजाएं और आदमी बड़ा कंजूस है
    101. وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى تِسْعَ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ فَاسْأَلْ بَنِي إِسْرَائِيلَ إِذْ جَاءَهُمْ فَقَالَ لَهُ فِرْعَوْنُ إِنِّي لَأَظُنُّكَ يَا مُوسَى مَسْحُورًا
    और बेशक हमने मूसा को नौ रौशन निशानियां दीं तो बनी इस्राईल से पूछो जब वह उनके पास आया तो उससे फ़िरऔन ने कहा ऐ मूसा मेरे ख़याल में तो तुमपर जादू हुआ
    102. قَالَ لَقَدْ عَلِمْتَ مَا أَنْزَلَ هَؤُلَاءِ إِلَّا رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ بَصَائِرَ وَإِنِّي لَأَظُنُّكَ يَا فِرْعَوْنُ مَثْبُورًا
    कहा यक़ीनन तू ख़ूब जानता है कि उन्हें न उतारा मगर आसमानो और ज़मीन के मालिक ने दिल की आँखें खोलने वालियां और मेरे गुमान में तो ऐ फ़िरऔन तू ज़रूर हलाकहोने वाला है
    103. فَأَرَادَ أَنْ يَسْتَفِزَّهُمْ مِنَ الْأَرْضِ فَأَغْرَقْنَاهُ وَمَنْ مَعَهُ جَمِيعًا
    तो उसने चाहा कि उनको ज़मीन से निकाल दे, तो हमने उसे और उसके साथियों को सबको डुबा दिया
    104. وَقُلْنَا مِنْ بَعْدِهِ لِبَنِي إِسْرَائِيلَ اسْكُنُوا الْأَرْضَ فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ الْآخِرَةِ جِئْنَا بِكُمْ لَفِيفًا
    और इसके बाद हमने बनी इस्राईल से फ़रमाया इस ज़मीन में बसो फिर जब आख़िरत का वादा आएगा हम तुम सबको घाल मेल ले आएंगे
    105. وَبِالْحَقِّ أَنْزَلْنَاهُ وَبِالْحَقِّ نَزَلَ وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا مُبَشِّرًا وَنَذِيرًا
    और हमने क़ुरआन को हक़ (सत्य)ही के साथ उतारा और हक़ ही के साथ उतरा और हमने तुम्हें न भेजा मगर ख़ुशी और डर सुनाता
    106. وَقُرْآنًا فَرَقْنَاهُ لِتَقْرَأَهُ عَلَى النَّاسِ عَلَى مُكْثٍ وَنَزَّلْنَاهُ تَنْزِيلًا
    और क़ुरआन हमने अलग अलग करके उतारा कि तुम इसे लोगों पर ठहर ठहर कर पढ़ो और हमने इसे बतदरीज रह रह कर उतारा
    107. قُلْ آمِنُوا بِهِ أَوْ لَا تُؤْمِنُوا إِنَّ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ مِنْ قَبْلِهِ إِذَا يُتْلَى عَلَيْهِمْ يَخِرُّونَ لِلْأَذْقَانِ سُجَّدًا
    तुम फ़रमाओ कि तुम लोग उसपर ईमान लाओ या न लाओ बेशक वो जिन्हें इसके उतरने से पहले इल्म मिला जब उनपर पढ़ा जाता है ठोड़ी के बल सज़्दे मेंगिर पड़ते हैं
    108. وَيَقُولُونَ سُبْحَانَ رَبِّنَا إِنْ كَانَ وَعْدُ رَبِّنَا لَمَفْعُولًا
    और कहते हैं, पाकी है हमारे रब को बेशक हमारे रब का वादा पूरा होनाथा
    109. وَيَخِرُّونَ لِلْأَذْقَانِ يَبْكُونَ وَيَزِيدُهُمْ خُشُوعًا
    और ठोड़ी के बल गिरते हैं रोते हुए और यह क़ुरआन उनके दिल का झुकना बढ़ाता है
    110. قُلِ ادْعُوا اللَّهَ أَوِ ادْعُوا الرَّحْمَنَ أَيًّا مَا تَدْعُوا فَلَهُ الْأَسْمَاءُ الْحُسْنَى وَلَا تَجْهَرْ بِصَلَاتِكَ وَلَا تُخَافِتْ بِهَا وَابْتَغِ بَيْنَ ذَلِكَ سَبِيلًا
    तुम फ़रमाओ अल्लाह कहकर पुकारो या रहमान कहकर, जो कहकर पुकारो सब उसी के अच्छे नाम हैं और अपनी नमाज़ न बहुत आवाज़ से पढ़ो न बिल्कुल आहिस्ता और इन दोनों के बीच में रास्ता चाहो
    111. وَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي لَمْ يَتَّخِذْ وَلَدًا وَلَمْ يَكُنْ لَهُ شَرِيكٌ فِي الْمُلْكِ وَلَمْ يَكُنْ لَهُ وَلِيٌّ مِنَ الذُّلِّ وَكَبِّرْهُ تَكْبِيرًا
    और यूं कहो सब ख़ूबियां अल्लाह को जिसने अपने लिये बच्चा इख़्तियार न फ़रमाया और बादशाही में कोई उसका शरीक नहीं और कमज़ोरी से कोई उसका हिमायती नहीं और उसके बड़ाई बोलने को तकबीर कहो

    Quran Sharif in Hindi

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