सब्र करना बेहतर अमल है और ये वही कर सकता है जो दूसरों से बेहतर है। छोटा और कमज़ोर इन्सान सब्र नहीं कर सकता।
बेशक ख़ुदा सब्र करनेवालों के साथ है। (क़ुरान 2:153)
सब्र से ही तो इन्सान की पहचान होती है। पत्थर आज़माईश पर टूट जाता है, जबकि हीरा हर आज़माईश पर निखरता जाता है।