Skip to main content

हर चीज़ पहले विचार के रूप में होती है।

फिर उसे सींचा जाता है, तपाया जाता है तो वो हक़ीक़त होकर सामने आती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे सोना को आग में तपाकर ताज बनाया जाता है।

विचार पहले ख्वाबों में होता है, फिर दिमाग में, फिर सोच में, फिर आंखों में, फिर बदन में, फिर कामों में होता है और फिर उसके बाद आपके सामने होता है।

ये नींद से शुरु होता है और फिर नींद उड़ा देता है। ग़ालिब का शेर है.

रगों में दौड़ते फिरने के, हम नहीं कायल।

जो आंख ही से न टपका तो वो लहू क्या है।

विचारों को राह दिखाना होता है, बस कुछ दूर चलाना होता है।

फिर वो इतने ताकतवर हो जाते हैं कि खुद ही चलने लगते हैं

बल्कि दौड़ने लगते हैं। और अगर रास्ता न हो तो नए रास्ते बना लेते हैं।

आपको कोई चीज़ प्रेरित कर सकती है, लेकिन विचार आपका खुद का होता है।

विचार दो तरह के होते हैं. अच्छे विचार और बुरे विचार।

एक इन्सान में अक्सर दोनों होते हैं। लेकिन कामयाब इन्सान में अच्छे विचार ज़्यादा होते हैं और नाकामयाब में बुरे विचार ज़्यादा होते हैं।

किसी की जि़न्दगी में बुरा ही बुरा होता है, अंधेरा ही अंधेरा होता है।

उसके ज़हन में यही सवाल होता है कि उजाला कब होगा।

जबकि उजाला तो हमेशा है, उजाला कहीं नहीं जाता,

बस देखने के लिए उसकी आंख नहीं खुली है।

जिस दिन आंख खुल जाए ये सारा अंधेरा, उजाले में बदल जाए।

हज़रत राबिया बसरी ؒ  कहीं से गुजर रही थीं, तो क्या सुनती हैं कि एक शख़्स दुआ कर रहा है. या रब! रहमत के दरवाजे खोल। और कितनी दुआएं करुं, कितना गिड़गिड़ाउं। अब तो रहम कर और मेरी जिन्दगी में उजाला कर दे। हज़रत राबिया ؒ  उसके पास गयीं, उसे हिलाया और कहा. ये क्या कह रहे हो। उस रब का दरवाजा कब बंद हुआ है। उसने कब अंधेरा किया है, जबकि वो खुद नूर है। हां, तुम्हारी आंख नहीं खुली है, तुम अंधे हो कि उसकी तजल्ली नहीं देख पा रहे, तुम्हें उसकी रहमत नहीं दिख रही।

हमारे लिए अच्छी बात ये है कि बुरे विचार एक छलावा बस है, ये अपने आप में कुछ नहीं। अच्छे विचार के आते ही ये ग़ायब होने लगते हैं।

उजाले के आने से अंधेरा ग़ायब हो जाता है लेकिन क्या ऐसा हुआ है कि

अंधेरे के आने से उजाला ग़ायब हो जाए?

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.