हज़रत राबिया बसरी रज़ी. ख़ुदा की खास बंदी, पर्दानशीनों में मख्दूमा, ईश्क़ में डूबी हुई, इबादत गुज़ार, वो पाक़िज़ा औरत हैं जिन्हें आलमे सूफ़िया में ”दूसरी मरयम” कहा गया।

यहां छोटे बड़े का कोई फ़र्क नहीं, यहां मर्द व ज़न (औरत) का कोई फ़र्क नहीं, क्योंकि अल्लाह सूरत नहीं देखता, वो तो दिल देखता है और जब आख़िरत में हिसाब होगा तो नियत को देखकर होगा। लिहाजा जो औरत इबादत व रियाज़त में मर्दों के मुकाबिल हो तो उसे मर्दों की सफ़ में ही शुमार किया जाए क्योंकि रोज़े महशर जब मर्दों को पुकारा जाएगा तो सबसे पहले हज़रत मरयम रज़ी. आगे बढ़ेंगी।

विलादत

जिस रात हज़रत राबिया बसरी रज़ी. पैदा होने वाली थीं तो घर में इतना तेल भी न था कि नाफ की मालिश की जाए या चिराग़ जलाया जाए और इतना कपड़ा भी न था कि आपको लपेटा जा सके। आपका नाम राबिया (चौथी) रखा गया क्योंकि आप तीन बहनों के बाद पैदा हुईं थीं। आपके वालिद (अब्बा) का ये हाल था कि ख़ुदा के अलावा किसी से कुछ नहीं मांगते यहां तक कि पड़ोसियों से भी कुछ न लेते। इसी परेशानी के आलम में पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने ख्वाब में बशारत दी और तसल्ली देते हुए फ़रमाया कि ये लड़की बहुत मक़बूलियत हासिल करेगी और इसकी शफ़ाअत से हज़ारों लोग बख्श दिए जाएंगे। आगे हुजूर ﷺ ने फ़रमाया कि इस शहर (बसरा) के हाकिम के पास जाओ और कहो कि वो हर रोज़ 100 मरतबा और जुमा को 400 मरतबा मुझ पर दरूद भेजता है, लेकिन आज भेजना भूल गया। तो इसी की कफ्फ़ारे के तौर पर तुम्हें 400 दीनार दे दे। ये जानकर हाकिम ने इस बशारत पर बतौर शुक़राना 1000 दीनार फ़क़ीरों में तक़सीम करा दिए और हज़रत राबिया रज़ी. के वालिद को 400 दिनार दिए और ताज़ीमन ख़ुद आकर कहा किसी भी ज़रूरत पर याद किजिए। इस तरह आपकी विलादत की तमाम ज़रूरतें पूरी की गई।

आपने जब होश संभाला तो वालिद का साया सर से उठ गया और बहनें भी जुदा हो गयीं। एक जालिम ने आपको जबरन कनीज़ बना लिया और कम दाम में आपको बेच भी दिया। वहां आपसे बहुत ज्यादा काम लिया जाता। एक बार नामहरम को सामने देखकर गिर गईं, जिससे आपका हाथ टूट गया। आपने ख़ुदा की बारगाह में सर-ब-सुजूद होकर अर्ज़ किया कि या अल्लाह! बेमददगार पहले से ही थी, अब लाचार भी हो गई। इसके बावजूद तेरी रज़ा चाहती हूं। इस पर ग़ैब से आवाज़ आई ‘ऐ राबिया! ग़म न कर। कल तुझे वो मरतबा हासिल होगा जिस पर फ़रिश्ते भी रश्क करेंगे।’ ये सुन कर आप बहुत खुश हुईं।

आपका मामूल था कि दिन में रोज़ा रखतीं और रात भर इबादत करतीं। एक रात आपके मालिक की नींद खुली तो क्या देखता है कि आप इबादत में मश्गूल हैं और ख़ुदा से अर्ज़ कर रहीं है ‘या ख़ुदा, मैं हर वक्त तेरी इबादत करना चाहती हूं लेकिन तूने मुझे किसी की कनीज़ बनाया है इसलिए दिन को तेरी बारगाह में हाज़िर नहीं हो पाती।’ ये सुनकर मालिक परेशान हो गया और सोचने लगा इससे ख़िदमत लेने के बजाय मुझे इसकी ख़िदमत करनी चाहिए। अगले दिन उसने आपसे कहा ‘आप आज से आज़ाद हैं, आप चाहें तो यहीं रहें या कहीं और जाएं’। इसके बाद आप दिन रात ख़ुदा की इबादत में ही मशगूल रहने लगीं और कभी कभी हज़रत हसन बसरी रज़ी. (जो उस वक्त के बहुत बड़े सूफ़ी थे।) की महफिल में भी शिरकत करतीं।

सफरे हज

एक बार आप हज करने गईं। काबे में पहुंच कर आपने ख़ुदा से दर्याफ्त किया मैं खाक से बनी हूं और काबा पत्थर का। मैं बिला वास्ते तुझसे मिलना चाहती हूं। इस पर निदा आई ‘ऐ राबिया! क्या तू दुनिया के निज़ाम को बदलना चाहती है? क्या इस जहां में रहने वालों के खून अपने सर लेना चाहती है? क्या तूझे मालूम नहीं जब मूसा रज़ी. ने दीदार की ख्वाहिश की तो एक तजल्ली को तूर का पहाड़ बर्दाश्त नहीं कर पाया?’

काफी अर्से बाद आप जब दोबारा हज करने गयीं तो देखा कि काबा ख़ुद आपके दीदार को चला आ रहा है। आपने फ़रमाया मुझे हुस्ने काबा से ज्यादा, जमाले ख़ुदावन्दी की तमन्ना है। हज़रत इब्राहीम अदहम रज़ी. जगह जगह नमाज अदा करते हुए पूरे 14 साल में जब हज करने मक्का पहुंचे तो देखते हैं कि काबा गायब है। ख़ुदा की बारगाह में गिरयावोज़ारी करने लगे इन आंखों से क्या गुनाह हो गया है। तब निदा आई वो किसी ज़ईफ़ा के इस्तेकबाल के लिए गया है। कुछ देर बाद काबा अपनी जगह पर था और एक बुढ़िया लाठी टेकते हुए चली आ रही है। हज़रत अदहम रज़ी. ने कहा ये निज़ाम के ख़िलाफ़ काम क्यूं कर रही हो? तब हज़रत राबिया रज़ी. फ़रमाती हैं तुम नमाज़ पढ़ते पढ़ते यहां पहुंचे हो और मैं इज्ज़ इंकिसारी के साथ यहां पहुंची हूँ।

यक़ीन

दो भूखे लोग हज़रत राबिया रज़ी. से मुलाकात करने हाज़िर हुए और दौराने गुफ्तगू खाने की इच्छा जाहिर की। आपके पास दो रोटियां थीं लेकिन तभी एक भीखारी मांगता हुआ पहुंचा तो आपने दोनों रोटियां उसे दे दी। अब आप लोगों के लिए कुछ न था।

थोड़ी देर ही गुजरा था कि एक कनीज़ आपकी ख़िदमत में कुछ रोटियां लेकर हाजिर हुईं। आपने उन रोटियों को गिना तो वो 18 थीं, आपने वापस कर दीं। कनीज़ के बहुत मनाने पर भी आप नहीं मानी। कुछ देर बाद वो कनीज फिर आई और इस बार 20 रोटियां लेकर। आपने कुबूल कर लीं और उन दोनों के सामने रख दीं।

ये सब देखकर उनमें से एक ने आपसे पूछा ये सब क्या माजरा है। तो आपने बताया कि मेरे पास दो ही रोटी थी जो आपको देना चाहती थी, लेकिन तभी भिखारी आ गया। मैंने ख़ुदा से दर्याफ्त किया कि ‘या ख़ुदा! तेरा वादा है कि तू एक के बदले 10 देता है।’ फिर मैने दो रोटियां उस भिखारी को दे दी। अब रब के वादे के मुताबिक मुझे 20 रोटियां मिलनी चाहिए, तो कम क्यूं लूं? मुझे अपने रब पर और उसके वादे पर पूरा यक़ीन है।

चादरवाली

एक बार आप इबादत करते करते सो गईं, तभी एक चोर आया आपकी चादर लेकर भागने लगा। लेकिन उसे बाहर जाने का रास्ता नज़र नहीं आया। वो चादर रखकर जैसे ही पलटा, रास्ता दिखने लगा। उसने फिर चादर उठा ली, लेकिन फिर क्या। रास्ता गायब हो गया। उसने कई बार ऐसा किया और हर बार ऐसा ही हुआ। ग़ैब से आवाज़ आई- ‘तू ख़ुद पर आफ़त क्यों ला रहा है? इस चादरवाली (राबिया रज़ी.) ने ख़ुद को ख़ुदा के हवाले कर दिया है। इसके पास शैतान भी नहीं फटकता तो किसी और की क्या मजाल जो इसे नुकसान पहुंचा सके? एक दोस्त सो रहा है लेकिन दूसरा तो जाग रहा है।’

हवा पर मुसल्ला

हज़रत हसन बसरी रज़ी. दरिया में मुसल्ला बिछाकर कहा आइए यहां नमाज अदा कीजिए। आपने कहा- क्या ये लोगों के दिखाने के लिए है। अगर नहीं तो फिर इसकी क्या ज़रूरत है। आपने हवा पर इतने उपर मुसल्ला बिछाया कि किसी को न दिख सके और फ़रमाया आईए यहां इबादत करते हैं। फिर आपने फ़रमाया पानी में इबादत एक मछली भी कर सकती है और हवा में एक मक्खी भी नमाज़ पढ़ सकती है। इसका हक़ीक़त से कोई वास्ता नहीं।

एक मजलिस में आपने फ़रमाया कि जो हज़रत मुहम्मद ﷺ को सच्चे दिल से मानता है उसे उनके मोजज़ात में से कुछ हिस्सा ज़रूर मिलता है। ये अलग बात है कि नबीयों के मोजज़ा को वलियों के लिए करामत कहते हैं।

निकाह

आपसे पूछा गया कि क्या आपको निकाह की ख्वाहिश नहीं होती। तो आपने फ़रमाया कि निकाह का ताल्लूक तो जिस्म व वजूद से है, जिसका वजूद ही रब में गुम हो गया हो उसे निकाह की क्या हाजत।

मारफ़त

मारफ़त तवज्जह का नाम है और आरिफ़ की पहचान यह है कि वो ख़ुदा से पाकीज़ा दिल तलब करे। जब दिया जाए तो फौरन ख़ुदा के हवाले कर दे ताकि बुराईयों से बचा रहे।

अपने रब को खुश करने के लिए मेहनत के वक्त ऌस तरह शुक्र अदा करो जिस तरह नेअमत के वक्त करते हो। तौबा की दौलत भी रब की मर्जी से ही मिलती है वरना लोग तो अपने गुनाहों पर फ़ख्र करते हैं। अपनी बुराईयों से, गुनाहों से इस तरह तौबा की जाए फिर से तौबा करने की ज़रूरत न पड़े।

आप अक्सर मरीज़ों की तरह सूरत बनाकर इबादत में गिड़गिड़ाती रोती। किसी ने पूछा तो आपने फ़रमाया कि मेरे सीने में ‘ख़ुदा का दर्द’ छिपा है। जिसका इलाज किसी हकीम के पास नहीं और न ही तुम्हें वो दिख सकता है। इसका इलाज सिर्फ ‘रब से मिलना’ ही है।

 

ख़ुदा की बंदगी

एक रोज़ एक मजलिस में ‘ख़ुदा की बंदगी’ यानि इबादत के बारे में बातचीत हो रही थी। आप भी उसमें मौजूद थीं। एक ने कहा कि मैं इबादत इसलिए करता हूं कि जहन्नम से महफूज़ रहूं। एक ने कहा इबादत करने से मुझे जन्नत में आला मकाम हासिल होगा। तब आपने फ़रमाया कि अगर मैं जहन्नम के डर से इबादत करू तो ख़ुदा मुझे उसी जहन्नम में डाल दे और अगर जन्नत के लालच में इबादत करूं तो ख़ुदा मुझ पर जन्नत हराम कर दे। ऐसी इबादत भी कोई इबादत है। ख़ुदा की बंदगी तो हम पर ऐन फ़र्ज़ है, हमें तो हर हाल में करना है, चाहे उसका हमें सिला मिले या न मिले। अगर ख़ुदा जन्नत या दोज़ख़ नहीं बनाता तो क्या हम उसकी बंदगी नहीं करते। उसकी बंदगी बिना मतलब के करनी चाहिए।

आज़माईश

किसी ने आज़माईश के लिए पूछा कि ऐसा क्यूं कि नबूव्वत सिर्फ़ मर्दों को ही मिली फिर भी औरतों को ख़ुद पर नाज़ क्यूं। आपने जवाब में कहा- क्या किसी औरत ने कभी ख़ुदाई का दावा किया है। नहीं किया। अल्लाह की मर्ज़ी जिसे चाहे नबूव्वत दे न दे। हम कौन होते हैं उसके ख़िलाफ़ जाने वाले। हमें ख़ुद पर नहीं ख़ुदा की बंदगी पर नाज़ है।

एक शख्स आपसे दुनिया की बहुत शिकायत करने लगा तो अपने फ़रमाया लगता है तुम्हें उसी दुनिया से बहुत लगाव है। तुम जब से आए हो उसी दुनिया का ज़िक्र कर रहे हो। जिससे बहुत ज्यादा मुहब्बत होती है, इन्सान उसी का ज़िक्र करता रहता है। अगर नफ़रत है तो उसकी बात ही मत करो।

विसाल

विसाल के वक्त आपने हाजिर लोगों से कहा यहां से चले जाएं फरिश्तों के आने का वक्त हो गया है। सब बाहर चले गए। फरिश्ते आए, आपसे दरयाफ्त किया ऐ मुतमईन नफ्स! अपने मौला की जानिब लौट चल। इस तरह आपका विसाल हुआ। आपने न किसी से कभी कुछ मांगा और न ही अपने रब से ही कुछ तलब किया और अनोखी शान के साथ दुनिया से रूख्सत हुईं।