मैं मली, तन मेरा मैला, किरपा करो सरकार।

नज़रे करम सरकार, या मुहम्मद ﷺ…

सरपे उठाकर पाप की गठरी, आई हूं तुम्हरे द्वार।

नज़रे करम सरकार, या मुहम्मद ﷺ…

 

मेरे खिवइया बीच भंवर में, कश्ती डूब न जाए।

तेरा हूं, तू मेरी खबर ले, कौन लगाए पार।

नज़रे करम सरकार, या मुहम्मद ﷺ…

 

मुझ मंगते की बात ही क्या है, वो हैं बड़े लजपाल।

उनकी किरपा और दया से, पलता है सब संसार।

नज़रे करम सरकार, या मुहम्मद ﷺ…

 

उनकी अता के गुन गाओ, उनसे ही फरियाद करो।

सबसे बड़े दाता हैं वो, सबसे बड़ी सरकार।

नज़रे करम सरकार, या मुहम्मद ﷺ…

 

उनकी याद ईमान बना लो, ख़ुद को ही क़ुरान बना लो।

उनकी याद से मिट जाते हैं, सारे ही आज़ार।

नज़रे करम सरकार, या मुहम्मद ﷺ…

 

उसके लिए तो सरमाया है, प्यारे मदिने वाले का।

सोचें समझें कहने वाले, ‘खालिद’ को नादार।

नज़रे करम सरकार, या मुहम्मद ﷺ…

 

आज़ार=बीमार, सरमाया=असल दौलत, नादार=ग़रीब