हिन्दुस्तान के रूहानियत के बेताज बादशाह यानी सुल्तानुल हिन्द, हज़रत ख्वाजा ग़रीबनवाज़ सय्यद Moinuddin Chishti r.a. अजमेरी, दक्षिण एशिया में तसव्वुफ़ के सबसे बड़े सिलसिला ए चिश्तिया के बानी हैं और हज़रत ख्वाजा क़ुतुबुद्दीन बुखि्तयार काकीؓ, हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन गंजशकरؓ और हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलियाؓ जैसे मशहूर बुज़ूर्गों के मुर्शिद हैं। ग़रीबों की बंदापरवरी करने की वजह से लोग आप को ग़रीबनवाज़ के नाम से याद करते हैं।
Khwaja Garib Nawaz का बचपन
आप 14 रजब 537 हिजरी को संजर (खुरासान) के एक अच्छे घराने में पैदा हुए। आप नसली एतबार से सहीं उल नसब सय्यद हैं। Moinuddin Chishti r.a. का शिजरा ए नसब बारह वास्तों से हज़रत अलीؓ से जा मिलता है (देखिए सूफ़ीयाना.2)। आप के वालिद गिरामी ख्वाजा ग़यासुद्दीन हुसैनؓ बहुत दौलतमंद ताजिर के साथ साथ इबादतगुज़ार और परहेज़गार भी थे। ख्वाजा साहब दौलतमंद घराने में पैदा होने के बावजूद बचपन से ही बहुत क़नाअत (कम में खुश रहनेवाले) पसंद रहे।
Khwaja Garib Nawaz 9 साल की उम्र में ही क़ुरान हिफ़्ज़ कर लिया। फिर इब्तेदाई तौर से तफ़्सीर, फ़िक़्ह और हदीस की तालीम हासिल किया। कुछ ही वक़्त में बहुत सा इल्म हासिल किया।
वहाँ के बादशाह तातारियों के हाथों हार गए, इसलिए शहर की हालत बहुत ख़राब हो गई। वहाँ लूट मार व अफरातफरी का माहौल हो गय। इसी ख़राब माहौल ने आपके वालिद को वतन छोड़ने पर मजबूर कर दिया। Moinuddin Chishti अपनेे घरवालों के साथ खुरासान चले आए। उस वक़्त Khwaja Garib Nawaz की उम्र सिर्फ़ एक बरस थी। वालिद का ख्याल था कि खुरासान में कुछ सुकून मिलेगा लेकिन वहाँ भी वही हालात होने लगे। उसी माहौल में आपने परवरिश पाई।
इस बुरे और नफ़रत भरे माहौल को देख कर Moinuddin Chishti मासूमियत से अपने वालिद से सवाल करते. बाबा! ये लाड़ाई झगड़ा क्यों होता है? वालिद रोने लगते और फ़रमाते. बेटे! ये सब ईमानवालों के लिए आज़माईश का वक़्त है। इसमें हमें सब्र रखना चाहिए और अच्छे वक़्त का इंतिज़ार करना चाहिए।
फिर एक दिन सब्र की बात कहने वाले अब्बा भी इस दुनिया से चले गये। उस वक़्त Moinuddin Chishti की उम्र सिर्फ़ 15 साल थी। ख्वाजा साहब बहुत नाज़ुक दौर से गुज़र रहे थे। आप हर वक़्त ग़मग़ीन और उदास रहने लगे। ऐसे में आप की अम्मी हज़रत बीबी नूरؓ ने आपको समझाया और हौसला दिया कि बेटे! ज़िंदगी के सफ़र में हर मुसाफ़िर को तन्हाई की दर्द से गुज़रना पड़ता है। लेकिन अगर तुम अभी से अपनी तकलीफ़ों का मातम करने बैठ गए तो ज़िंदगी गुज़ारना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
उठो और पूरे जोश तवानाई से अपनी ज़िंदगी का सफ़र शुरू करो। अभी तुम्हारी मंज़िल बहुत दूर है ये तुम्हारे अब्बा से मुहब्बत का सबूत नहीं कि तुम दिन रात उन की याद में ऑंसू बहाते रहो। औलाद की वालदैन के लिए हक़ीक़ी मुहब्बत ये होती है कि वो अपने हर अमल से बुज़ुर्गों के ख्वाब को सच करें। तुम्हारे अब्बा का एक ही ख्वाब था कि उनका बेटा बहुत इल्म हासिल करे। चुनांचे तुम्हें अपनी सारी खूबियों के साथ इल्म की तरफ़ रूजूअ करना चाहिए।
मॉं की इन तसल्लीयों से Khwaja Garib Nawaz की तबीयत संभली और आप ज़्यादा शौक़ से इल्म हासिल करने लगे। मगर सुकून.ओ.राहत का ये वक़्त भी ज़्यादा लंबा न था। मुश्किल से एक साल ही गुज़रा होगा कि आप की अम्मी का भी विसाल हो गया और आप फिर से अकेले रह गए।
Moinuddin Chishti के पास विरासत में एक बाग़ और एक गेहूँ पीसने वाली चक्की मिली। मॉं-बाप की जुदाई के बाद आप बाग़बानी करने लगे। दरख्तों को पानी देना, पौधों की देखभाल करना और मंडी जाकर फल वगैरह बेचना। आप कारोबार में मसरूफ़ियत की वजह से दीनी तालीम हासिल नहीं कर पा रहे थे।
आप को इस का बड़ा अफ़सोस होता था लेकिन ये एक ऐसी मजबूरी थी कि जिसका बज़ाहिर कोई ईलाज ना था। Moinuddin Chishti अक्सर अपनी इस मजबूरी पर ग़ौर करते, लेकिन जब कोई हल नज़र नहीं आता तो बड़ी मायूसी के आलम में आसमान की तरफ़ देखते और रोने लगते। ये ख़ुदा की बारगाह में बंदे की एक ख़ामोश इल्तिजा थी।
Moinuddin Chishti r.a. की इब्राहीम कंदोज़ी से मुलाकात
एक दिन Khwaja Garib Nawaz अपने बाग़ में पेड़ों को पानी दे रहे थे कि वहाँ से मशहूर बुज़ुर्ग हज़रत इब्राहीम कंदोज़ीؓ का गुज़र हुआ। आप ने बुज़ुर्ग को देखा तो दौड़ते हुए पास गए और हज़रत के हाथों को बोसा दिया। हज़रत एक नौजवान के जोशे अक़ीदत से बहुत मुतास्सिर हुए। उन्हों ने शफ़क़त से आप के सर पर हाथ फेरा और दुआऍं दी। ख्वाजा साहब ने हज़रत की ख़िदमत में अंगूर पेश किए।
Khwaja Garib Nawaz की ख़िदमत व मुहब्बत को देखते हुए हज़रत ने कहा. ऐ मुईनुद्दीन बैठ जाओ! आप दो ज़ानों हो कर बैठ गए। फ़ज़र्ंद! तुम ने एक फ़क़ीर की ख़ूब मेहमान नवाज़ी की है। ये सरसब्ज़ शादाब दरख्त ये लज़ीज़ फल ये मिल्कियत और जायदाद सब कुछ फ़ना हो जाने वाला है। आज अगर यहाँ बहार का दौर है तो कल यहाँ ख़िज़ां भी आएगी। यही गर्दिश रोज़.ओ.शब है और यही निज़ामे क़ुदरत भी है। तेरा ये बाग़ वक़्त की तेज़ आंधीयों में उजड़ जाएगा। लेकिन उसके बाद अल्लाह तुझे एक और बाग़ अता फ़रमाएगा। जिस के पेड़ कभी सूखेंगे नहीं, कभी उजड़ेंगे नहीं। उन पेड़ों में लगे फलों का ज़ायक़ा जो एक बार चख लेगा फिर वो दुनिया की किसी नेअमत की तरफ़ नज़र उठा कर भी नहीं देखेगा।
हज़रत ने अपनी जेब से रोटी का एक सुखा टुकड़ा निकाल कर ख्वाजा साहब को अ़ता किया और फ़रमाया- वो तेरी मेहमान नवाज़ी थी ये फ़क़ीर की दावत है। ये कहते हुए हज़रत ने रोटी को ख्वाजा साहब को खिला दिया।
फिर हज़रत बाग़ से निकल कर अपनी मंज़िल की जानिब तेज़ी से चल दिए। रोटी इतनी सूखी थी कि उसे चबाना बहुत मुश्किल हो रहा था, लेकिन एक बुज़ूर्ग का तबर्रूक समझकर Khwaja Garib Nawaz ने खा लिय। इस टुकड़े का हलक़ से नीचे उतरना ही था कि ख्वाजा साहब की दुनिया ही बदल गई। आप को यूं महसूस होने लगा जैसे क़ायनात की हर शैय फ़ुज़ूल है और सारी तारीफ़़ें ख़ुदा ही के लिए हैं।
दूसरे ही दिन आप ने अपनी चक्की और बाग़ बेच दिया और इस से हासिल होने वाली रक़म ग़रीबों और मुहताजों में बांट दी। आपके रिश्तेदार आपकी इस हरकत की वजह से आपको पागल समझने लगे। लेकिन वो ये समझने से क़ासिर थे कि ज़हन.ओ.दिल के किसी हिस्से से रोशनी की वो लकीर फूट रही है जिस ने दुनिया के तमाम उजालों को धुंधला कर के रख दिया है।
आपने सब कुछ अल्लाह की राह में लुटाने के बाद इल्म हासिल करने खुरासान से समरकंद बुख़ारा आ गए, जो इल्मो फन का मरकज़ (केन्द्र) था। यहाँ आपने मौलाना हिसामुद्दीन मदरसे में चौबीस साल तक तमाम ज़ाहिरी इल्म हासिल किए।
बग़दाद का सफ़र
फिर आप बग़दाद तशरीफ़ ले गए। वहाँ उस वक़्त के कुतूब हज़रत उसमान हारूनीؓ की बारगाह में क़दमबोस हुई। आप हज़रत की ख़िदमत के लिए सारी सारी रात जागते रहते कि उनको किसी चीज़ की ज़रूरत ना पड़ जाये।
एक दिन हज़रत ने Moinuddin Chishti को कुछ ख़ास अमल करने को कहा। उसे करने के बाद आपका हाथ पकड़ा और कहा आओ आज आपको मैं ख़ुदा के सुपूर्द करता हूँ।
हज़रत ने Khwaja Garib Nawaz को सीने से लगा कर हाथ आसमान की तरफ़ उठाकर दुआ फ़रमाई. ऐ ख़ुदाए ज़ूलजलाल! मुईनुद्दीन को क़बूल फ़र्मा। इसने इतनी मुश्किलात के बावजूद मुझे नहीं छोड़ा तो तू भी उसे ज़मीन पर तन्हा ना छोड़ना। अभी दुआ के अलफ़ाज़ मुकम्मल भी ना हो पाए थे कि ख्वाजा साहब बारिश नूर में नहा गए। एक तेज़ शुआ दिल.ओ.दिमाग़ को रोशन करती चली गई। और आप की ऑंखों के सामने से तमाम हिजाबात उठ गए। फिर हज़रत ने आपके सर पर ताज रखा और कलीमे ख़ास अ़ता किया।
फिर कई दिनों तक बहुत से ख़ास अमल (यहाँ उन अमलियात को नहीं दिया जा रहा है) बताते और ख्वाजा साहब वो करते जाते। चाहे कितना ही मुश्किल क्यों न हो हमेशा हुक्म मानते। एक दिन हज़रत Moinuddin Chishti पूछते हैं- ऐ मुईनुद्दीन! अब क्या नज़र आता है? आपने फ़रमाया- आपके सदक़े में अर्श से तहत अलसरी तक देख रहा हूँ। हज़रत ने कहा ख़ुदा का शुक्र है कि तुम सैराब हो गए। वरना इश्क़ के सेहरा में लोग एक बूॅंद के लिए ज़िंदगी भर तरसते रहते हैं। इस वाकिए के बाद हज़रत के पास जो शख्स भी निगाह करम की भीक मॉंगने आता तो आप फ़रमाते कि मेरे पास जो कुछ था वो मैंने मुईनुद्दीन को अ़ता कर दिया है।
मक्का मदीने का सफर
कुछ अर्से बाद हज़रत उसमान हारूनीؓ Moinuddin Chishti r.a. को लेकर मक्का हाज़िर हुए। ख़ान ए काबा का तवाफ़ करने के बाद आपने बुलंद आवाज़ में फ़रमाया- इलाही! मुईनुद्दीन हाज़िर है, अपने इस आजिज़ बंदे को शरफ़ क़बूलीयत अता फ़रमा। जवाब में निदाए ग़ैबी सुनाई दी। हम ने उसे क़बूल किया। बेशक! ये मुईनुद्दीन हैं।
फिर वहाँ से मदीना तशरीफ़ ले गए। हज़रत ने ख्वाजा साहब को हुक्म दिया। मुईनुद्दीन! हुज़ूरﷺ की बारगाह में सलाम पेश करो। ख्वाजा साहब ने गुदाज़ क़ल्ब के साथ लरज़ती हुई आवाज़ में कहा। अस्सलामु अलैकुम या सय्यदुल मुरसलीन। रोज़ा रसूल से जवाब आया। वालैकुम अस्सलाम या सुलतानुल हिंद।
हज़रत ने Moinuddin Chishti को मुबारकबाद देते हुए फ़रमाया मुईनुद्दीन! तुम ख़ुशनसीब हो कि तुम्हें दोनों मुक़ामात पर क़बूलीयत की सनद अता हुई। और साथ ही तुमको हिन्द की रूहानी सल्तनत भी अ़ता की गई है। (ये बात सच भी है कि पिछले 800 सालों से हिन्द में रूहानियत के आप ही बेताज बादशाह है।)
पीर की खिदमत
20 साल तक Moinuddin Chishti अपने पीरों मुर्शिद की ख़िदमत करते रहे। उनके साथ मुसलसल (लगातार) पैदल सफ़र करते रहे, उनका ओड़ना बिछौना व दीगर सामान अपने सरों पर ढोते रहे, उनके हर हुक्म को इबादत की तरह अदा करते रहे। इस दौरान हज़रत ने आपको बहुत से रूहानी तालिमात अ़ता की।
हज़रत फ़रमाते. जब इन जिस्मानी चीज़़ों से बाहर क़दम रखकर देखते तो आशिक़, माशूक़ और इश्क़ को एक ही चीज़ पाते। यानी आलमे तौहीद में ये तीनों बातें एक ही हैं। और फ़रमाते कि एक मुरीद उस वक़्त फ़क़ीर होता है जब आलमे फ़ानी में बक़ा की दौलत से मालामाल हो जाता है।
तालीमे तरीक़त के बाद हज़रत उस्मान हारूनीؓ ने Moinuddin Chishti r.a. को ख़रक़ा ख़िलाफ़त से नवाज़ा और इस्में आज़म, जो सीना ब सीना चला आ रहा था, उसकी तालीम फ़रमाई।
पीरो मुर्शिद की इज़ाज़त से Moinuddin Chishti बग़दाद से रवाना हुए और सन्जान पहुँचकर शैख़ नजमुद्दीन कुबराؓ से फ़ैज़ हासिल किए। फिर ग़ौसे आज़म मोहीउद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानीؓ (जो आपके अब्बा के हमशीरज़ादा हैं) से फ़ैज़े हासिल किए। वहाँ से रुख़सत होकर शैख़ शहाबुद्दीन सोहरवर्दीؓ की सोहबत में रहे। फिर शैख़ अहदुद्दीन करमानीؓ से ख़रक़ा ख़िलाफ़त हासिल किए। फिर ख्वाजा युसफू़ हमदानीؓ, शैख़ अबूसईद तबरेज़ीؓ, शैख़ अबूसईद अबूलख़ैर असफ़हानीؓ, शैख़ अबूल हसन ख़रक़ानीؓ जैसे पाए के बुज़ूर्गों की सोहबत में कुछ वक़्त रहकर आपने बहुत सी रूहानी दौलत हासिल की।
589 हिजरी में Moinuddin Chishti, अपना ख़लीफ़ा हज़रत कुतुबुद्दीन बखि्तयार काकीؓ को बनाया। और ख़ुद हिन्दुस्तान की तरफ़ रवाना हुए।
(जारी है… Continue…)
Isse age ka wakiya bhi ata kren