यहां हम ख़ुदा के उन खास बंदों के बारे में बात करेंगे जिन्हें रिजालुल्लाह या रिजालुल ग़ैब कहा जाता है। इन्हीं में से कुतुब अब्दाल व ग़ौस होते हैं।
वो न तो पहचाने जा सकते हैं और न ही उनके बारे में बयान किया जा सकता है, जबकि वो आम इन्सानों की शक़्ल में ही रहते हैं और आम लोगों की तरह ही काम में मसरूफ़ रहते हैं।

रब के ये खास बंदे, खुदा की तजल्ली से दुनिया को रौशन करते हैं। रिजालुल ग़ैब का एक ऐसा जहां है, एक ऐसा निज़ाम है, जो हमें न समझ आता है और न ही ज़ाहिरी आंखों से दिखाई देता है। रब ने उन्हें चुन लिया है, उनके के लिए दुनिया की कोई हदें मायने नहीं रखतीं। उन्हीं के दम से कायनात का निज़ाम है। अगर अक़्ताबे आलम का निज़ाम एक लम्हे के लिए रुक जाए तो दुनिया खत्म हो जाए। इनके मामूलात को ज़ाहिरी आंखों से नहीं देखा जा सकता और न ही इन्हें अपनी मरज़ी के मुताबिक बुलाया जा सकता है। हां, साहिबे बसीरत इनसे फ़ैज़ पाते हैं।  ये सिर्फ रब की मरज़ी के पाबंद रहते हैं।

हज़रत अलीؓ फ़रमाते है कि हज़रत मुहम्मदﷺ  ने फ़रमाया. यक़ीनन अब्दाल शाम में होंगे और वो चालिस मर्द होंगे। जब कभी उन में से एक वफ़ात पाएगा तो अल्लाह उसकी जगह दूसरे को मुकर्रर कर देगा। उनकी बरकत से बारिश बरसाई जाएगी और उनके फ़ैज़ से दुश्मनों पर फ़तह दी जाएगी और उनके सदक़े ज़मीनवालों की बलाएं दूर कर दी जाएंगी।

कुतुब

हर ज़माने में सिर्फ एक कुतुब होते हैं। इनका ओहदा रिजालुल्लाह में सबसे बड़ा होता है। इन्हें मुख्तलिफ नामों से पुकारा जाता है। कुतुब.ए.आलम, कुतुब.ए.कुबरा, कुतुब.ए.अरशाद, कुतुब.ए.मदार, कुतुब.ए.अक़्ताब, कुतुब.ए.जहां, जहांगीर.ए.आलम वगैरह वगैरह। सारी दुनिया इन्हीं के फ़ैज़ व बरकत से क़ायम हैं। ये सीधे ख़ुदा से अहकाम व फ़ैज़ हासिल करते हैं और उस फ़ैज़ को आवाम में बांटते हैं। ये दुनिया में किसी बड़े शहर में रहते हैं और बड़ी उम्र पाते हैं। हुज़ूर अकरम हज़रत मुहम्मदﷺ  के नूर की बरकतें हर तरफ़ से हासिल करते हैं। सालिक (रब की राह का विद्यार्थी) के दरजे को बढ़ाना, घटाना, हटाना इनके इख्तियार में होता है।

अक़्ताब की कई किस्में हैं. कुतुब अब्दाल, कुतुब अक़ालीम, कुतुब विलायत वगैरह वगैरह। ये सभी अक़्ताब, कुतुब.ए.आलम के नीचे होते हैं। जहां जहां इन्सान आबाद है, वहां एक कुतुब भी मुकर्रर होते हैं।

ग़ौस

बहुत से लोग कुतुब व ग़ौस को एक ही समझते हैं, लेकिन ये अलग अलग ओहदे हैं। हां, दोनो ओहदों पर एक ही शख़्स मुकर्रर हो सकते हैं। ग़ौस तरक्की करते हुए, ग़ौस.ए.आज़म और ग़ौस.उस.सक़लैन के ओहदे पर फ़ाएज़ होते हैं।

अमामान

कुतुबुल अक़ताब के दो वज़ीर होते हैं जिन्हें अमामान कहते हैं। एक कुतुब के दाहिने तरफ़ रहते हैं, जिनका नाम अब्दुल.मालिक है और दूसरे बाईं तरफ़ के अमामान का नाम अब्दुर.र्रब है। दोनों कुतुबे मदार से फ़ैज़ पाते हैं लेकिन दाहिने हाथ वाले अमामान, आलमे अलवी से इफ़ाज़ा करते हैं और बाईं तरफ़ के अमामान, आलमे सफ़ली से इफ़ाज़ा करते हैं। बाईं तरफ़ के अमामान का रुतबा दाईं तरफ़ के अमामान से बड़ा होता है। जब कुतुबुल अक़ताब की जगह खाली होती है तो बाएं वाले अमामान उनकी जगह तरक्की पाते हैं, जबकि दाएं वाले, बाएं की जगह आ जाते हैं।

अवताद

दुनिया में चार अवताद हैं। ये चारो दिशाओं में रहते हैं। ये मयख़ों का काम देते हैं और ज़मीन पर अमन व चैन बरक़रार रखते हैं।

अब्दाल

रिजालुल ग़ैब में अब्दाल का मुक़ाम बड़ा बुलन्द है। अब्दाल, एक वक़्त में सात होते हैं। ये सात अक़ालीम पर मुतय्यन होते हैं। ये सात अंबिया के मशरब पर काम करते हैं। ये लोगों की रूहानी इमदाद करते हैं और आजिज़ों व बेकसों की फ़रयाद पूरी करते हैं।

अफ़राद

अफ़राद वो मुक़ाम है, जहां कुतुबे आलम से तरक़्क़ी करते हुए पहुंचते हैं।

ये ग़ाज़ी, ये तेरे पुर असरार बंदे,

जिन्हें तूने बख़्शा है, ज़ौक़े ख़ुदाई।

दोनेयम उनकी हैबत से, सेहरा व दरिया,

पहाड़ उनकी ठोकर से, मानिन्द राई।

-अल्लामा ईक़बाल

 

(नोट: आम तौर पर लोग, बुजूर्गों के नाम के साथ कुतुब या अब्दल या ग़ौस वगैरह इस्तेमाल करते हैं। ये ज़रूरी नहीं की वो बुजूर्ग, उसी मुक़ाम पर फ़ाएज़ हो, क्योंकि रिजालुल्लाह का मुक़ाम हम तय नहीं करते बल्कि ये तो अल्लाह की जानिब से होता है।)