सूफ़ी, हमेशा से लोगों में मुहब्बत व अमन के साथ साथ उस एक ख़ुदा की इबादत का दर्स देते रहे हैं और दिलों को रूहानियत का मर्कज़ बनाते रहे हैं। इस काम के लिए वो हर तरह की तकलीफ़ें बर्दाश्त किए। सफ़र करना पड़ा तो सफ़र किए, भूखा रहना पड़ा तो भूखे रहे, गरज़ के इस राह में अपना सब कुछ सौंप दिया, यहां तक कि ज़रूरत पड़ी तो अपनी जान भी न्यौछावर कर दिए।
पुराने वक़्त में लोगों को घूम घूम कर अपनी बात बताया करते थे और जब ज़रूरत पड़ी तो काग़ज़ या कपड़े पर लिख कर भी लोगों को अपना संदेश दिया करते थे। इसी सिलसिले में कई सूफ़ीयों ने किताबें और रिसाले भी लिखे। इन्हीं क़दीम और बेशकिमती किताबों रिसाले की शक्ल में शाया करने का जिम्मा सूफ़ीयाना मैगज़ीन ने उठाया है।
बरसों से सूफ़ीज़्म पर बेस्ड इस मैगज़ीन का ख़्वाब देखा जा रहा था। जो आज के मग़रिबी मुआशरे (पश्चिमी सभ्यता) की बुराईयों से निकालकर रूहानियत (अध्यात्म) की तरफ ले जाए। इसी ख़्वाब की ताबीर, सूफ़ीयाना की शक़्ल में हुई।
खानकाहे रूमी हसनी में जुलाई 2014 (शव्वाल 1435हि.) को ईद की खुशी के साथ, जश्ने चरागां के मौके पर, तमाम सूफ़ीयों और हज़रत ख़्वाजा जलालुद्दीन खि़ज़्र रूमी शाह रहमतुल्लाह अलैह के साए में और सूफ़ी सफ़ीउद्दीन सादी मद्देजि़ल्लहू (सज्जदानशीन ख़ानक़ाहे रूमी हसनी) की सरपरस्ती, सूफ़ी कमालुद्दीन जामी मद्देजिल्लहू की क़यादत और मौलवी अब्दुल ग़फ़ूर अशरफ़ी, सूफ़ी इकरामुद्दीन आरीफ़, सूफ़ी इनामुद्दीन सूफ़ी, सूफ़ी इक़बाल अहमद, हाफिज़ ज़करिया, सूफ़ी जिलानी ख़ान, सूफ़ी अज़ीमुद्दीन शरीफ़ की निगरानी और तमाम वाबस्तगाने सिलासिल की मौजूदगी में सूफ़ीयाना मैगज़ीन शाया हुई।
ये रिसाला एक तिमाही रिसाला है और पूरा मल्टीकलर व माडर्न इंटरनेशनल डिज़ाईन पर तैयार किया गया है। यानि सूफ़ीयाना मगज़ीन पूरी तरह से तालिब को मुहब्बत-ईबादत-रूहानियत से मालामाल करने वाली है।