Sheikh Saadi R.A. फ़रमाते हैं-

बारिश की बूंद, बादल से टपकने लगी। टपकते हुए सोचने लगी कि न जाने मेरा क्या हश्र होना है।

मैं पथरीली ज़मीन पर गिरूंगी कि उफान मारते पानी में। कांटे पर गिरूंगी या फूल पर।

कुछ देर बाद उसने नीचे समंदर के जोश व फैलाव को देखा।

वो शरमिन्दा सी हो गई और खुद को बहुत अदना छोटा समझने लगी।

सोचने लगी कि इतने बड़े समंदर के सामने मेरी क्या हक़ीक़त। मेरी क्या बिसात।

तभी सीप ने अपना मुंह खोल दिया कुदरत ने उस कतरे (पानी की बूंद) को सीप में महफूज कर दिया।

वो बूंद खुद को मिटाकर, मोती बन गई और बादशाह के ताज में सजी।

छोड़ अपनी बुलन्दी, ईख्लास कर इख्तियार
रूतबा मस्जिद के मीनार का है कम, मेहराब से

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Sheikh Saadi Poetry

Sheikh Saadi r.a. आगे फ़रमाते हैं-

ख़ुदा ने इन्सान को मिट्टी से बनाया और शैतान को आग से। शैतान ने अपने आग होने पर घमंड किया और हमेशा के लिए दूत्कारा हुआ मरदूद हो गया। जबकि आदम अलैहिस्‍सलाम ने अपनी चूक को माना, ख़ुदा की बारगाह में आजिज़ी से खुद को छोटा समझकर गिरयावोज़ारी किया। इसके ईनाम में ख़ुदा ने आदम को तमाम इन्सानों का जद्दे आला यानी पितामह बना दिया।

تکبر عزازیل را خوار کرد

به زندان لعنت گرفتار کرد

तकब्बुर अज़ाज़ील राख्वार करद

बज़िन्दाने लअनत गिरफतार करद