Tasawwuf Kya Hai - सूफ़ी, शरीअत के ज़ाहिरी अरकान के साथ साथ बातिनी अरकान भी अदा करते हैं। इस ज़ाहिरी और बातिनी शरीअत के मेल को ही तसव्वुफ़ कहते हैं। यही पूरे तौर पर इस्लाम है, यही हुजूर ﷺ की मुकम्मल शरीअत है। क्योंकि इसमें दिखावा नहीं है, फरेब नहीं है। इसमें वो सच्चाई वो हक़ीक़त वो रूहानियत समाई हुई है जो हज़रत मुहम्मद ﷺ को रब से अता हुई, जो हर पैगम्बर अपने सीने में लिए हुए है। इसी तसव्वुफ़ को सीना ब सीना, सिलसिला ब सिलसिला, सूफ़ी अपने मुरीदों को अता करते हैं। और रब से मिलाने का काम करते हैं। यहां हम उसी तसव्वुफ़ के बारे में बुजुर्गों के क़ौल का तज़किरा कर रहे हैं।
ग़ौसपाक अब्दुल क़ादिर जिलानी रज़ी. फ़रमाते हैं-
तसव्वुफ़ تصوف चार हर्फ से मिल कर बना है-
त | स | व | फ़ |
ت | ص | و | ف |
ते | स्वाद | वाव | फ़े |
लफ्ज़ ‘ते’ – त – (Tasawwuf Kya Hai)
ये तौबा को ज़ाहिर करती है। इसकी दो किस्में हैं एक ज़ाहिरी और दुसरी बातिनी (छिपी हुई)। जाहिरी तौबा ये है कि इन्सान अपने तमाम जाहिरी बदन के साथ गुनाहों और बुरे अख्लाक से बंदगी व फ़रमाबरदारी की तरफ लौट आए और बुरे चाल चलन को छोड़कर अच्छाई को अपना ले।
बातिनी तौबा ये है कि इन्सान अपने छिपे हुए तमाम बूरी आदतों को छोड़कर अच्छी आदतों की तरफ आजाए और दिल को साफ कर ले। जब दिल की सारी बुराई, अच्छाई में तब्दील हो जाए तो ‘ताअ’ का मुकाम पूरा हो जाता है और ऐसे शख्स को ताएब कहते हैं।
लफ्ज़ ‘स्वाद’ – स – (Tasawwuf Kya Hai)
ये सफा (पाक) को ज़ाहिर करता है। सफा की दो किस्में हैं – कल्बी और सिर्री। सफा ए कल्बी, ये है कि इन्सान नफ्सानियत से दिल को साफ कर ले, दुनिया व दौलत के लालच से बचे और अल्लाह से दूर करनेवाली तमाम चीजों से परहेज़ करे।
इन सारी दुनियावी चीजों को दिल से दूर करना बगैर जिक्रुल्लाह के मुमकीन नहीं। शुरू में जिक्रबिलजहर किया जाए ताकि मुक़ामे हक़ीक़त तक पहुंचा जा सके जैसा कि रब ने फ़रमाया –
सच्चे ईमानदार तो बस वही लोग हैं कि जब (उनके सामने) ख़ुदा का ज़िक्र किया जाता है तो उनके दिल मचल जाते हैं। (क़ुरान 8:2)
यानि उनके दिलों में अल्लाह का खौफ पैदा हो जाए। ज़ाहिर है ये खौफ सिर्फ तभी पैदा हो सकता है जब दिल लापरवाही की नींद से जाग जाए और ज़िक्रे ख़ुदा से दिल का जंग उतार ले।
खशियत (खौफ़) के बाद अच्छाई और बुराई जो अभी तक छिपी होती है, उसकी सूरते दिल पर नक्श हो जाती है जैसा कि कहा जाता है कि आलिम नक्श बिठाता है और आरिफ चमकाता है।
सफाई सिर्री का मतलब ये है कि इन्सान मासिवा अल्लाह को देखने से परहेज़ करे और गैरूल्लाह को दिल में जगह न दे। और ये वस्फ असमा-ए-तौहीद का लिसान बातिन से मुसलसल विर्द करने से हासिल होता है। जब ये तसफिया हासिल हो जाए तो ‘साद’ का मकाम पूरा हो जाता है।
लफ्ज़ ‘वाव’ – व – (Tasawwuf Kya Hai)
ये विलायत को जाहिर करता है और तसफिया पर मुरत्तब होती है।
बेशक अल्लाह के वलियों पर न कुछ ख़ौफ़ है न कुछ ग़म। (क़ुरान 10:62)
विलायत के नतीजे में इन्सान अख्लाके ख़ुदावन्दी के रंग में रंग जाता है। हुजूर ﷺ ने फ़रमाया – अख्लाके ख़ुदावन्दी को अपनाओ।
यानी सिफाते ख़ुदावन्दी से मुतस्सिफ हो जाओ। विलायत में इन्सान सिफाते बशरी का चोला उतार फेंकने के बाद सिफाते ख़ुदावन्दी की खिलअत पहन लेता है।
हदीसे कुदसी में है-
‘जब मैं किसी बन्दे को महबूब बना लेता हूं तो उसके कान बन जाता हूं, उसकी आंख बन जाता हूं, उसके हाथ बन जाता हूं और उसकी जबान बन जाता हूं। (इस तरह) वो मेरे कानों से सुनता है, वो मेरी आखों से देखता है, मेरी ताकत से पकड़ता है, वो मेरी जुबान से बोलता है और मेरे पांव से चलता है।’
जो इस मकाम पर फाएज़ हो जाता है वो गैर-अल्लाह से कट जाता है।
‘और आप (ऐलान) फ़रमा दीजिए, आ गया है हक़ और मिट गया है बातिल। बेशक बातिल था ही मिटने के लिए’ (क़ुरान 17:81)
यहां ‘वाव’ का मुकाम मुकम्मल हो जाता है।
लफ्ज़ ‘फ़े’ – फ़ – (Tasawwuf Kya Hai)
ये फ़नाफिल्लाह को ज़ाहिर करता है। यानि ग़ैर से अल्लाह में फ़ना हो जाना। जब बशरी सिफ़ात फ़ना हो जाती है तो ख़ुदाई सिफ़ात बाक़ी रह जाती है। और ख़ुदाई सिफ़ात न फ़ना होती है और न फ़साद का शिकार।
हर चीज हलाक होने वाली है सिवाए उसकी ज़ात के। (क़ुरान 28:88)
पस अब्दे फानी-रब-बाक़ी
(रब की रज़ा के साथ बाक़ी रह जाता है।)
बंदा-फानी-का-दिल-सरबानी
(रब की नजर के साथ बाक़ी हो जाता है।)
सारी चीजें फ़ानी है सिवाए उन आमाले सालेहा के जिनको सिर्फ अल्लाह की रज़ा के लिए किया जाए। रब का राज़ी-ब-रज़ा होना ही मकामे बक़ा है।
उसकी बारगाह तक अच्छी बातें (बुलन्द होकर) पहुंचतीं हैं और अच्छे काम को वह खुद बुलन्द फ़रमाता है। (क़ुरान 35:10)
जब इन्सान फ़नाफ़िल्लाह के मकाम पर फ़ाएज़ हो जाता है तो उसे आलमे कुरबत में बक़ा हासिल होती है। आलमे लाहूत में, यही अंबिया व औलिया के ठहरने की जगह है। पसन्दीदा मक़ाम में उस सारी कुदरत रखने वाले बादशाह की बारगाह में (क़रीब) होंगे। (क़ुरान 54:55)
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और सच्चों के साथ हो जाओ। (क़ुरान 9:119)
जब कतरा समंदर से मिल जाता है तो कतरे का अपना वजूद नहीं रहता। किसी शायर ने क्या खूब कहा है- अल्लाह की तमाम सिफ़ात व अफ़आल कदीम में है, जो ज़वाल पज़ीर होने से महफूज़ है। मक़ामे फ़नाहियत में सूफ़ी हक के साथ हमेशा के लिए बाक़ी हो जाता है।
वही लोग जन्नती हैं कि हमेशा उसमें रहेंगे। (क़ुरान 2:82)
Ye Imaan valo ko kaha gya he.
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और सच्चों के साथ हो जाओ। (क़ुरान 9:119)
Vo log khuda se nhi darte jinka Imaan murda ho gya he.
MashaAllah bade pyaare andaaz mein samjaya hai tasawwuf ko.