यहां हम ख़्वाजा ए चिश्तिया के मल्फूज़ात से फ़ैज़ हासिल करेंगे। मल्फूज़ात, सूफ़ीयों की जि़ंदगी के उस वक़्त के हालात और तालीमात का ख़जाना होती है। जिसे कोई ऐसे मुरीद ही लिख सकते है, जो ज़्यादा से ज़्यादा पीर की सोहबत से फ़ैज़याब हुए हों। इस बार हम हज़रत ख़्वाजा ग़रीबनवाज़ मोईनुद्दीन चिश्ती अजमेरीؓ के मल्फूज़ात ‘‘दलील उल आरेफि़न’’ में से कुछ हिस्सा नकल कर रहे हैं, जिसे उनके मुरीद व ख़लीफ़ा हज़रत कुतुबुद्दीन बिख़्तयार काकीؓ ने लिखा है।
बतारीख़ 5 रजब 814हिजरी को इस दरवेश कुतबुद्दीन बख्तियार को सुल्तानुस सालेकिन हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती संजरी अजमेरीؓ की क़दमबोसी का शर्फ हासिल हुआ। आपने मुझे शर्फे बैअ़त से नवाज़ा और चहारतरकीताज मेरे सर पर रखी। अल्हमदोलिल्लाह अला ज़ालेका। उस दिन वहां आपके साथ शहाबुद्दीन सोहरवर्दी, शैख दाउद करमानी, शैख बुरहानुद्दीन चिश्ती व शैख ताजुद्दीन सफाहानी एक ही जगह मौजूद थे और नमाज़ के बारे में गुफ्तगू हो रही थी।
आपने फ़रमाया. नमाज़ में सरे निगाहे इज़्ज़त से लोग नज़दीक हो सकते हैं। इस वास्ते कि नमाज़ मोमीन की मेराज़ है। तमाम मक़ामों से बढ़कर यही नमाज़ है। रब से मिलना इसी से शुरू होता है। नमाज़ एक राज़ है जो बंदा अपने परवरदिगार से बयान करता है। राज़ कहने के लिए मिलने की ज़रुरत होती है और रब के नज़दीक वही जा सकता है, जो इसके लायक़ हो।
फिर मुझ नाचीज़ (कुतबुद्दीन बख्तियार) की तरफ़ रूख करके फ़रमाने लगे. मैं जब सुल्तानुल मशायख ख्वाजा उस्मान हारूनीؓ से मुरीद हुआ तो मुसलसल आठ साल आपकी खि़दमत में रहा, एक दम भी आराम न किया, न दिन देखा न रात। जहां आप सफ़र को जाते तो आपका सामान उठाकर आपके साथ चलता। इस खि़दमत व मेहनत को देख ऐसी नेअमत से नवाज़ा कि जिसकी कोई इन्तेहा नहीं।
जिसने कुछ पाया खि़दमत से पाया। मुरीद को लाजि़म है कि पीर के फ़रमान से ज़र्रा बराबर भी न हटे। जो भी अमल (अवराद नमाज़ तस्बीह व दीगर इबादात) उससे फ़रमाया जाए पुरे होश से सुने और उसे ठीक ठीक अदा करे। क्योंकि पीर मुरीद का संवारनेवाला है। पीर जो कुछ भी फ़रमाएगा वो मुरीद के कमाल के लिए ही फ़रमाएगा।