रिजालुल्लाह
यहां हम ख़ुदा के उन खास बंदों के बारे में बात करेंगे जिन्हें रिजालुल्लाह या रिजालुल ग़ैब कहा जाता है। इन्हीं में से कुतूब अब्दाल होते हैं। वो न तो पहचाने जा सकते हैं और न ही उनके बारे में बयान किया जा सकता है, जबकि वो आम इन्सानों की शक्ल में ही रहते हैं और आम लोगों की तरह ही काम में मसरूफ़ रहते हैं।
इन्सानी मुआशरे (समाज) को एक बेहतर और अच्छी जिंदगी देने के लिए ख़ुदा के कुछ खास बंदे हर दौर में रहे हैं। उन्होंने हमेशा इन्सान की इस्लाह और फ़लाह के लिए काम किया। मौलाना रूमी रज़ी. फ़रमाते हैं कि खामोशी अल्लाह की आवाज़ है। इसी खामोशी से ये खास बंदे अपना काम करते हैं। ये कभी अपने काम से ग़ाफ़िल नहीं रहते। इनके हाथों कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचा। इन खास बंदों को रिजालुल्लाह या मर्दाने ख़ुदा या मर्दाने हक़ कहते हैं। इनके लिए क़ुरान में आया है-
वो मर्दाने ख़ुदा जिन्हें तिजारत और खरीद फरोख्त, यादे ख़ुदा से ग़ाफिल नहीं करती।
(क़ुरान:24:37)
इनका वजूद हज़रत आदम रज़ी. से लेकर हुजूर अकरम ﷺ तक और उनसे लेकर ताकयामत रहेगा। कायनात का क़याम व निज़ाम का दारोमदार इन्हीं मर्दाने ख़ुदा पर है। रब और बंदे के दर्मियान का रिश्ता इन्हीं की तालिमात व हिदायत पर क़ायम है। इन्हीं की बरकत से बारिश होती है, पेड़ पौधे हरे होते हैं। कायनात के किस्म किस्म के जीवों की जिंदगी इन्हीं की निगाहे करम की एहसानमंद है। शहरी व गांव की जिंदगी, बादशाहों का जीतना हारना, सुलह व लड़ाइयां, अमीरी व ग़रीबी के हालात, अच्छाइयां व बुराईयां, गरज़ कि अल्लाह की दी हुई करोड़ों ताकतों का मुज़ाहेरा इन्हीं के इख्तियार में है। अल्लाह अपने ग़ैबुल ग़ैब से इनको नूर अता करता है, जिससे ये लोगों की इस्लाह करते रहते हैं।
ये आम लोगों में भी रहते हैं, आम जिंदगी जीते हैं, खाना खाते हैं, चलते फिरते बोलते हैं, बीमार होते हैं, इलाज कराते हैं, शादी करते हैं, रिश्तेदारी निभाते हैं, लेन देन करते हैं, हत्ता कि जिंदगी के सारे जायज़ काम में हिस्सा लेते हैं। ये न पहचाने जा सकते हैं न ही उनकी ताकत बयान की जा सकती है, जबकि ये आम लोगों के दर्मियान होते हैं। लेकिन जब लोग दुनियादारी में डूबे रहते हैं तो ये ख़ुदा की याद में मश्गूल रहते हैं। और ख़ुदा के हुक्म से हर काम को अन्जाम देते हैं। लोग इनको बुरी नीयत से या हसद से नुकसान पहुचाने की कोशिश करते हैं तो ये अपने विलायत की ताकत से बच जाते हैं। इनकी खासियत लोगों से छिपी हुई होती है। इनमें से कोई पहाड़ों विरानों पर रहता है तो कोई आबादी में रहते हैं।
चन्द लम्हों में ये दूसरे देश तक का सफ़र तय कर सकते हैं। पानी पर चल सकते हैं। जब चाहें तब गायब हो सकते हैं। जिसकी चाहें सूरत इख्तियार कर सकते हैं। ग़ैब की ख़बर रखते हैं। छोटी सी जगह में हज़ारों की तादाद में इकट्ठा हो सकते हैं। महफ़िले सिमा में रक्स करते हैं और किसी को नज़र नहीं आते। रोते हैं गिरयावोजारी करते हैं लेकिन किसी को सुनाई नहीं देता। पत्थर को सोना बना सकते हैं।
इनके पास ख़ुदा की दी हुई असीम ताकत होती है लेकिन ये खुद के लिए इस्तेमाल नहीं करते। जैसा अल्लाह का हुक्म होता है वैसा करते हैं। लोगों की परेशानियां दूर करते हैं। लोगों की मदद करते हैं।
रिजालुल्लाह अपने वक्त के नबी के उम्मती होते हैं और उन्हीं का कलमा पढ़ते हैं। इन्हीं के बारे में हुजूर ﷺ ने फ़रमाया कि- मेरे वली मेरे क़बा के नीचे होते हैं और मेरे अलावा उन्हें कोई नहीं पहचानता। यानी आम लोगों इनको नहीं जानते।
दुनिया के सारे रिजालुल्लाह साल में दो बार आपस में मुलाकात करते हैं, एक बार आराफात के मैदान में और दुसरी बार रजब के महिने में किसी ऐसी जगह जहां रब का हुक्म होता है।
अल्लाह ने दुनिया को इन खास औलिया के क़ब्ज़े में दे दिया है, यहां तक कि ये तन्हा रब के काम के लिए वक्फ़ हो गए हैं।
मख्दुम अशरफ सिमनानी रज़ी. फ़रमाते हैं- अल्लाह ने कुछ औलिया को बाक़ी का सरदार बनाया है और मख्लूक की इस्लाह व हाजत रवाई का काम इनके सुपुर्द किया है। ये हज़रात अपने काम को करते हैं, इसके लिए एक दुसरे की मदद भी लेते हैं। ये रब के काम से कभी ग़ाफ़िल नहीं होते।
इनके बारह ओहदे (या क़िस्में) होते हैं-
1.कुतुब, 2.ग़ौस, 3.अमामा, 4.अवताद, 5.अब्दाल, 6.अख्यार, 7.अबरार, 8.नक़बा, 9.नजबा, 10.उमदा, 11.मक्तूमान, 12.मफ़रदान।
…जारी है पार्ट 2 में…