हज़रत बाबा ताजुद्दीनؓ
ताजाबाद नागपूर
खानदान
बाबा ताजुद्दीन औलियाؓ का सिलसिला नसब इमाम हसन असकरी से मिलता है। इमाम हसन असकरी की औलादें फुज़ैल मेहदी अब्दुल्लाह हिन्दुस्तान तशरीफ लाए और ज़नूबी हिन्द के साहिली इलाके मद्रास में कयाम किया। हज़रत फुज़ैल मेहदी अब्दुल्लाह के दो साहबजादे हसन मेहदी जलालुद्दीन और हसन मेहदी रुकनुद्दीन थे।
बाबा ताजुद्दीन हसन मेहदी जलालुद्दीन की औलाद में से है। बाबा साहब बुजुर्गों में जनाब सअदुद्दीन मेहदी मुगलिया दौर में फौजी अफसर होकर देहली आये। बादशाह देहली की तरफ़ से अहार नाम का एक मौजअ बतौर जागीर उन्हें दिया गया। बाद में गर्वनर नवाब मलागढ़ ने नाराज होकर हकुके जागीरदारी ज़ब्त कर ली। सिर्फ काश्तकारी की हैसियत बाकी रह गयी।
बाबा ताजुद्दीन के दादा का नाम जमालुद्दीन था। बाबा साहब के वालिद जनाब बदरुद्दीन मेहदी थे, जो सागर (मध्यप्रदेश) डिपो में सूबेदार थे। बाबा साहब की वालिदा का नाम मरियम बी था।
पैदाइश
बाबा साहब की वालिदा ने एक ख्वाब देखा कि चांद आसमान पर पूरी आबो ताब से चमक रहा है और सारी फिज़ा चान्दनी से भर गई है। अचानक चांद आसमान से गेन्द की तरह लुढ़क कर आपकी गोद में आ गिरा और कायनात इसकी रोशनी से मुनव्वर हो गयी। इस ख्वाब की ताबीर बाबा ताजुद्दीनؓ की पैदाइश की सूरत में सामने आयी। आम रवायत के मुताबिक बाबा साहब 5 रजब 1277 हि. (27 जनवरी 1861) को पैदा हुए। आप की पैदाइश पीर के दिन फज़र के वक्त मुक़ाम कामटी (नागपूर) में हुई। कलन्दर बाबा औलियाؓ(बाबा ताजुद्दीनؓ के नवासे) ने किताब तज़किरा ताजुद्दीन बाबा में लिखा है:.
बड़ी छानबीन के बाद भी नाना ताजुद्दीनؓ का साल पैदाइश मालूम नहीं हो सका। बड़े नाना (बाबा साहब के भाई) की हयात में मुझे ज़्यादा होश नहीं था और वालिद साहब को इन बातों से कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन मैंने बड़े नाना की ज़ुबानी सुना है कि ताजुद्दीनؓ की उमर गदर में (यानि 1857हि. में) कुछ साल ही थी।
इन दिनों रिवायतों को सामने रखा जा रहे तो भी बाबा साहब के सन् पैदाइश में चन्द साल का फर्क पड़ा है।
आम बच्चों के तरह बाबा साहब पैदाईश के वक्त रोये नहीं बल्कि आप की आंख बन्द थी और जिस्म सख्त था। यह देख कर वहां मौजुद ख्वातीन को शक हुआ कि शायद बच्चा मुर्दा पैदा हुआ है। चुनान्चे कदीम कायदे के मुताल्लिक किसी चीज को गरम करके पेशानी और तलवों को दागा गया। बाबा साहब ने आंख खोली और रोए, फिर खामोश होकर चारो तरफ़ टक टक देखने लगे।
बचपन और जवानी
बाबा ताजुद्दीनؓ की उमर अभी एक बरस थी की उनके वालिद का इन्तकाल हो गया। और जब आप 9 साल के हुए तो वालिदा का साया भी सर से उठ गया। वालिदैन के इन्तकाल के बाद नाना नानी और मामू ने बाबा साहब को अपनी सरपरस्ती में ले लिया।
छ: साल की उमर में बाबा साहब को मकतब में दाखिल कर दिया गया था। एक दिन मकतबे में बैठे दर्स सुन रहे थे, कि उस ज़माने के एक वलीउल्लाह हजरत अबदुल्लाह शाह कादरीؓ मदरसे में आए और उस्ताद से मुख़ातिब होकर कहा. यह लड़का पढ़ा पढ़ाया है, इसे पढ़ाने की ज़रूरत नहीं है।
लड़कपन में बाबा को पढ़ने के आलावा कोई शौक न था। आप खेलकूद के बजाए तन्हाई को ज़्यादा पसन्द करते थे। पन्द्रह साल की उमर तक आप ने नाजरह कुरआन पाक, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी की तालीम हासिल की।
फौज में
एक मरतबा नागपूर की कनहान नदी में बहुत बड़ा सैलाब आया जिसमें बाबा साहब के सरपरस्तों का सारा सामान बह गया। मजबूरी में बाबा साहब ने फौज में नौकरी कर ली और नागपूर की रेजीमेन्ट नंबर 8 (मदरासी प्लाटून) में शामिल कर लिए गये। उस वक्त आपकी उम्र 18 साल थी।
बाबा साहब के नवासे कलन्दर बाबा औलिया लिखते है. नाना (बाबा साहब) फौज में भरती होने के बाद सागर डिपो में तैनात किये गये थे। रात को गिनती से फारिग होकर आप हज़रत दाउद मक्कीؓ की मज़ार पर तशरीफ़ ले जाते। वहां सुबह तक मुराकबा व मुशाहेदा में मशरुफ़ रहते और सुबह सवेरे परेड के वक़्त डिपो में पहुंच जाते। यह दौर मुसलसल पूरे दो साल तक जारी रहा। उसके बाद भी हफ्ते में एक दो बार वहां हाजिरी ज़रूर दिया करते थे। जब तक सागर में रहे, ऐसा करते रहे।
कामटी में बाबा की नानी को जब इस बात की खबर मिली की नवासा रातों को गायब रहता है तो बहुत चिंता हुई। नानी ने खुद पीछा किया तो पाया कि बाबा साहब जि़क्र व फि़क्र में मशगूल थे। नवासे को इस तरह इबादत में डुबा हुआ देख कर नानी के दिल का बोझ उतर गया। उन्होंने बाबा साहब को बहुत दुआ दी और खामोशी से वापस लौट आयी।
बाबा साहब सुबह नानी के पास आये तो उनके हाथों में छोटे छोटे पत्थर थे। नानी ने नाश्ता पेश किया तो बाबा साहब ने पत्थर दिखाते हुये कहा . नानी मेरे लिए तो ये पत्थर ही लड्डू पेड़े हैं। यह कहकर बाबा साहब ने पत्थरों को खाना शुरू किया जैसे कोई मिठाई खाता है। नवासे की यह कैफियत देख नानी को कुछ कहने कि हिम्मत नहीं हुई।
दो नौकरिया नहीं करते
रफ़्ता रफ़्ता बाबा साहब ख़ुदा की याद में डूबने लगे। इन ही दिनों एक ऐसा वाक्या हुआ, जिसने बाबा साहब की जि़न्दगी के अगले दौर की बुनियाद डाली। बाबा साहब की ड्यूटी औज़ारों की देखरेख पर लगायी गयी थी। एक रात दो बजे बाबा साहब पहरा दे रहे थे, तो अंग्रेज कैप्टन अचानक मुआयने के लिए आ गया। मुआयने के बाद जब वापस होने लगा, कुछ दूरी पर एक मस्जिद में क्या देखता है कि जिस सिपाही को पहरा देते देख कर आया था, वो मस्जिद में नमाज़ अदा कर रहा है। उसे सख्त गुस्सा आया। वह वापिस लौटा। लेकिन क्या देखता है कि सिपाही (बाबा साहब) अपनी जगह पर मौजूद है। कैप्टन ने दोबारा मस्जिद में देखा और वही पाया।
दूसरे रोज उसने अपने बड़े अफसर के सामने बाबा साहब को तलब किया और कहा हमने तुमको रात दो दो जगह देखा है। हमको लगता है कि तुम ख़ुदा का कोई खास बन्दा है। यह सुनना था कि बाबा साहब को कैफियत तारी हो जाती है और आप उस जलाल व कैफियत के आलम में अपने मखसूस मद्रासी लहजे में फ़रमाया. लो जी हज़रत अब दो दो नौकरिया नहीं करते जी हज़रत।
यह कहकर बाबा साहब जज़्बो जलाल में फौजी अहाते से बाहर निकल आये। कामटी में रिश्तेदारों को ख़बर मिली कि बाबा साहब पर पागल पन का दौरा पड़ गया है और उन्होंने नौकरी छोड़ दी। नानी ने बेताब होकर सागर आयी और देखा की नवासे पर बेखुदी तारी है। वह बाबा साहब को कामटी ले गयी और दिमागी मरीज़ समझ कर उन का इलाज शुरू किया। लेकिन कोई मज़्र होता तो इलाज कारगर होता। चार साल तक बाबा साहब को वही सुरूर व कैफियत तारी थी। लोग आपको पागल समझकर छेड़ते और तंग करते थे, लेकिन कुछ लोग एहतराम भी करते थे।
ताज मोहीउद्दीन ताज मोईनुद्दीन
सुनने में आया है कि आपके पीरो मुर्शिद, मद्रास में आराम फ़रमां हैं। लेकिन ये भी माना जाता है कि बाबा ताजुद्दीन ने ज़ाहिरी तौर पर किसी के हाथों पर बैअत नहीं की।
आपकी जि़न्दगी में हज़रत अब्दुल्लाह शाह कादरीؓ (कामठी) और बाबा दाउद मक्की चिश्तीؓ (सागर) का बहुत असर रहा। हज़रत अब्दुल्लाह शाह कादरीؓ, वही बुजूर्ग हैं जो मदरसे में आपको पहचान लिए थे। बाद में जवानी के आलम में भी बाबा साहब आपकी खि़दमत में हाजि़र हुआ करते थे। आप अपना झूठा शरबत बाबा साहब को पिलाया करते थे। आपका मज़ार मुबारक कामठी में है।
हज़रत बाबा दाउद मक्कीؓ को हज़रत ख़्वाजा शम्सुद्दीन तुर्क पानीपतीؓ (जो हज़रत अलाउद्दीन साबिर कलियरीؓ के खलीफ़ा हैं) से खिलाफ़त थी। आप पीर के हुक्म से सागर आ गए और वहीं आपका मज़ार मुबारक है। वही मज़ार, जहां बाबा साहब दो साल तक शब्बेदारी किया करते थे।
क़लन्दर बाबा औलियाؓ फ़रमाते हैं. बाबा ताजुद्दीनؓ को हज़रत अब्दुल्लाह क़ादरी कामठीؓ से कुरबत हासिल हुई और बाबा दाउद मक्की चिश्तीؓ से उवैसिया निसबत हासिल हुई। बाबा ताजुद्दीनؓ अक्सर कहा करते. हमारा नाम ‘‘ताज मोहीउद्दीन ताज मोईनुद्दीन’’ है।