ये ज़मीं जब न थी, ये फ़लक जब न था,
फिर कहां और कैसे थे ये मासिवा,
कौन उल्टे भला, पर्दा असरार का,
पूछ दिल से तू अपने, तो देगा सदा…
ला इलाहा इल्लल्लाह।
ला इलाहा इल्लल्लाह।
जब ये ज़मीन न थी और ये आसमान भी न था, तो उस रब के अलावा बाक़ी कुछ कहां थे और कैसे थे। कौन बता सकता है और कौन उस छिपे हुए भेदों से पर्दा हटा सकता है। इसके जवाब में अगर अपने दिल से पूछा जाए, तो वो यही जवाब देगा कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं।
जबकि तन्हा था, वो ख़ालिके दोसरा,
जोशे वहदत में फिर, या मुहम्मदﷺ कहा,
जल्वए कुन से नूरे मुहम्मदﷺ हुआ,
और उस नूर ने फिर ये बरसों पढ़ा…
ला इलाहा इल्लल्लाह।
ला इलाहा इल्लल्लाह।
सारे जहान को पैदा करने वाला अल्लाह उस वक्त तन्हा ही था। कुछ न था उसके सिवा। फिर उसने वहदत के जोश में अपने नूर से एक नूर पैदा करना चाहा और कहा ‘कुन’ यानि ‘हो जा’। और वो नूर पैदा हो गया। उस नूर का नाम मुहम्मदﷺ रखा। फिर उस नूर ने बरसों कहा कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं।
है उसी नूर से, दो जहां जलवागर,
अर्शो लौहो क़लम, चर्खो शम्सो क़मर,
ये ज़मीनों ज़मां, गुलशनो बहरोबर,
पत्ता पत्ता पुकारा किये झुमकर…
ला इलाहा इल्लल्लाह।
ला इलाहा इल्लल्लाह।
हुज़ूरﷺ के उसी नूर से सारा आलम पैदा किया गया। इन्सान, हैवान, अर्श, नसीब दर्ज करने वाले लौहो क़लम, सूरज, चांद, ज़मीन, आसमान, तमाम दुनिया, जीव, पेड़, पौधे, यहां तक कि जो कुछ भी है, वो सब इसी नूर से पैदा किया गया। अब ये सारे के सारे गवाही में कहते हैं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं।