पैगम्बर मुहम्मद ﷺ और फ़क़ीरी -Prophet Muhammad And Faqiri

पैगम्बर मुहम्मद ﷺ और फ़क़ीरी –

अगर आप लगन की अद्भूत शक्ति का अध्ययन करना चाहते हैं

तो हज़रत मुहम्मद ﷺ  की जीवनी पढ़ें

(नेपोलियन हील, थींक ग्रो एण्ड रिच)

 

अगर मुहम्मद ﷺ  न होते तो धर्म, मठों और जंगलों में सिमटकर रह जाता।

(स्वामी विवेकानंद)

 

हम में से जो भी नैतिक व सदाचारी जीवन व्यतीत करते हैं,

वे सभी दरअस्ल इस्लाम में ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

क्योंकि यह गुण वो सर्वोच्च ज्ञान एवं आकाशिय प्रज्ञा है

जो हज़रत मुहम्मद ﷺ  ने हमें दी।

(कारलायल)

 

fakiri

फ़क़ीरी

आमतौर पर फ़क़ीर उसे समझा जाता है जो हाथ में क़ासा लिए लोगों से मांगता फिरे। लेकिन यहां उस फ़क़ीरी की बात नहीं हो रही है। यहां फ़क़ीरी का मतलब ख़ुदापरस्ती के लिए दुनियावी चीज़ों या ज़िदगी की ज़रूरियात का कम से कम इस्तेमाल करना है। जितना इन चीज़ों की चाहत बढ़ेगी, उतना ही ख़ुदा से दूरी बढ़ती जाएगी। हत्ता कि इन्सान इन ख्वाहिशात के दलदल में फंसता चला जाएगा। इसी से बचने के लिए हुज़ूर ﷺ ने फ़क़ीरी इख्तियार करने को कहा। आप फ़रमाते हैं-

अलफ़ख़रो फ़क़री

यानि फ़क़ीरी मेरा फ़ख़्र है।

ख़ुदा के पैगम्बर हज़रत मुहम्मद ﷺ की कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। उनकी बहुत सी खासियत में से एक खासियत उनकी फ़क़ीरी है। उनको बादशाही से ज्यादा फ़क़ीरी पसंद रही, तवंगरी से ज्यादा मुफ्लिसी पसंद रही, यहां तक कि हज़रत आईशा (रज़ीअल्लाह अन्हा) फरमाती हैं कि ”आप ने जिंदगीभर कभी पेट भरकर खाना नहीं खाया और इसका कभी शिकवा भी नहीं किया।”

ज़माने का दाता मगर घर में फाका।

ख़ुदाई का मालिक मगर पेट खाली।

ये फ़क्र व फ़ाक़ा (भूखा रहना) इख्तियारी था यानि खुद की मर्ज़ी से किया हुआ, क्योंकि जिसके हाथों कायनात की सारी नेअमतें हों, उस पर कोई तकलीफ कैसे हो सकती, जब तक वो खुद न चाहे।

यहां मक़सद दुनिया की ख्वाहिश नहीं है। यहां तो रब के दिए हुए काम की फिक्र है, अल्लाह के बंदों की फिक्र है, इसलिए जितना जीने के लिए जरूरी है बस उतना ही, उससे ज्यादा नहीं। और इतना तो बिल्कुल नहीं कि ख़ुदा की याद से दूर करे।

हज़रत जिब्रईल (रज़ीअल्लाह अन्हो) फरमाते हैं कि अल्लाह ने हुक्म दिया है, कि आप जो चाहें आपकी खिदमत में पेश कर दूं। ये आपके अख्तियार में है कि आप ‘बादशाह नबी’ बने या ‘बंदे नबी’। तो आप ﷺ ने तीन मरतबा फरमाया कि ”मैं बंदा नबी बनना चाहता हूं।” (तबरानी, ज़रक़ानी 322/4)

आप गरीब व मिस्किनों से इस तरह पेश आते थे कि वे लोग अपनी गरीबी को रहमत समझते थे और अमीर को जलन होती थी हम गरीब क्यों न हुए।

आप खाना तीन उंगलियों से खाते, ताकि निवाला छोटा हो और फरमाते है कि खाना इस तरह खाओ कि पेट का एक तिहाई हिस्सा ही भरे, फिर एक तिहाई हिस्सा पानी पियो और बाक़ी एक तिहाई हिस्सा खाली रखो। इससे पेट की कोई भी बीमारी नहीं होगी।

आपकी तरह फाका रहना हर किसी के बस की बात नहीं। रमज़ान में आप बिना इफ्तार किए कई दिनों तक रोज़ा पर रोज़ा रखते। ये देखकर सहाबियों (रज़ीअल्लाह अन्हो) ने भी इसी तरह रोज़ा रखना शुरू कर दिया। कुछ दिनों में ही कमज़ोरी ज़ाहिर होने लगी। जब आपने पूछा तो सहाबियों ने बताया कि आपकी तरह मुसलसल बिना इफ्तार के रोज़ा रख रहे हैं। तब आपने फरमाया ”तुम में, मेरे मिस्ल (मुझ जैसा) कौन है? मुझे रूहानी तौर पर ख़ुदा की तरफ से खिलाया जाता है, पिलाया जाता है।” (बुखारी व मुस्लिम 384/1)

अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद ﷺ से फरमाया कि अगर तुम चाहो तो मक्के की पथरीली ज़मीन (पहाड़ों) को सोना बना दूं। तो हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया कि ”नहीं मैं ये नहीं चाहता, बल्कि मैं तो ये चाहता हूं कि एक दिन खुशहाल रहूं और एक दिन भूखा रहूं। जब भूखा रहूं तो तेरी बारगाह में गिड़गिड़ाऊं और तुझसे मांगूं। और जब खुशहाल रहूं तो तेरा ज़िक्र करता रहूं और तेरा शुक्र अदा करता रहूं।”