ऐ ईमानवालों! कोई क़ौम किसी क़ौम का मज़ाक न उड़ाए…

(कुरान 49:11)

भाई, भाई से और बहन, बहन से नफ़रत न करे। एक मन और गति वाले होकर मंगलमय बात करें।

(अथर्ववेद 3:30:3)

जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, वैसा ही तुम भी उनके साथ करो।

(बाईबिल मती 18:15)

 

मज़हब या धर्म या रिलिजन उसे कहते हैं, जो रूहानियत (अध्यात्म) तक ले जाए, जो ख़ुदा तक पहुंचाए। और जो ख़ुदा से दूर करे, जो नफ़्सानियत या निफ़्सयात (मनोविज्ञान) की तरफ़ ले जाए, वो धर्म नहीं। वो भटकाव है, छलावा है, धोखा है। रास्ते अलग अलग हो सकते हैं, तरीके अलग अलग हो सकते है, लेकिन मंज़िल एक ही है। नाम अलग अलग हो सकते हैं, पर जिसे पुकारा जा रहा है, वो एक ही है।

तुम कह दो कि अल्लाह कह कर पुकारो या रहमान कह कर पुकारो, सब उसी के अच्छे नाम हैं…

(कुरान 17:110)

उस एक ईश्वर को विद्वान अनेक नामों से पुकारते हैं।

(ऋगवेद.1:164:36)

लेकिन इस अलग अलग राह पर भी लोग लड़ने लगते हैं, फ़साद करने लगते हैं। कि मेरी राह सहीं है, तेरी गलत। मैं सहीं हूं, तू गलत। दरअस्ल ये अपने दीन के लिए नहीं लड़ते बल्कि ये ख़ुद के लिए लड़ते हैं। ख़ुदा को नहीं, ख़ुद को साबित करना चाहते हैं। ये भी नफ़्स की पैरवी ही है। ऐसे लोगों के लिए अल्लाह कुरान में फ़रमाता है-

और जो लोग अल्लाह (के दीन के बारे में) झगड़ते हैं, बाद इसके कि उसे कुबूल कर लिया गया (है), उनकी बहस व तक़रार उनके रब के नज़दीक बातिल (झूठा व गलत) है और उन पर (अल्लाह का) सख़्त गुस्सा व अज़ाब है।

(कुरान 42:16)

मज़हब तो एक मंज़िल की तरफ़ इशारा है, एक ख़ुदा की तरफ़ बुलावा है। और इसके लिए कोई जबरदस्ती नहीं, कोई लड़ाई नहीं। अगर आप जबरदस्ती करते हैं, तो अपने मज़हब के खिलाफ़़ हैं। अगर नफ़रत करते हैं, तो अपने रब के खिलाफ़ हैं।

(ऐ मुहम्मदﷺ ) आप फ़रमा दीजिए कि मुझे हुक्म है कि तुम्हारे दर्मियान अदल व इन्साफ़ करूं। अल्लाह हमारा (भी) रब है और तुम्हारा (भी) रब है, हमारे लिए हमारे आमाल (काम आएंगे) और तुम्हारे लिए तुम्हारे आमाल। हमारे तुम्हारे दर्मियान कोई बहस व तक़रार नहीं। अल्लाह हम सब को जमा फ़रमाएगा और (हमें) उसी की तरह लौटना है।

(कुरान 42:15)

(ऐ रसूल, काफि़रों से कह दो कि) तुम्हारा दीन तुम्हारे लिए और मेरा दिन मेरे लिए।

(कुरान 109:6)

ख़ुदा की राह पर चलने वालों में एक बात समान होती है, और वो है मुहब्बत। उनकी एक ही पहचान है, वो है प्रेम। अगर इस रास्ते पर हो तो आपमें मुहब्बत होगी, अच्छाई होगी, नेकी होगी। नफ़रत न होगी, दुश्मनी न होगी, बदला न होगा।

हज़रत मुहम्मदﷺ  जब चला करते थे, तो अगर कोई उम्र दराज़ शख़्स सामने चल रहा होता, तो आप उससे अदबन आगे नहीं होते थे, पीछे ही रहते थे। चाहे वो कोई भी हो, किसी भी मज़हब का हो। ये बात मुहब्बत से पैदा होती है। सब अपने लगने लगते हैं, सब एक ही नज़र आते हैं, सबका रंग एक होता है।

ये रंग आप ख़्वाजा ग़रीबनवाज़ؓ की दरगाह में देख सकते हैं। सूफ़ीयों की खानकाहों में देख सकते हैं। वो भी ऐसा रंग कि समझ में ही नहीं आता कि कौन सा धर्म है, क्या ज़ात है। बस ये दिखता है कि एक ख़ुदा की इबादत कर रहे हैं।

अल्लामा इक़बाल कहते हैं-

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।

हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तान हमारा।