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लज़्ज़ते याद

मौलाना जामी ؓ फ़रमाते हैं.

रब की याद की लज़्ज़त यूं हासिल की जाए कि हर वक्त और हर हाल में यानि आते और जाते हुए, खाते और सोते हुए, बोलते और सुनते हुए भी तुझे हक से अपनी वाबस्तगी का पूरा पूरा एहसास हो।

मुख़्तसर यह कि हालते आराम और काम काज करते हुए भी तुझे होशियार होना चाहिए ताकि इस वाबस्तगी के मामले मे ग़फ़लत व लापरवाही का शक़ तक भी न गुज़र सके और इस तरह तुझे अपने एक एक सांस से भी हिसाब लेना पड़ेगा कि कहीं वो यादे इलाही से खाली तो नहीं।

चेहरा तेरा देखे हुए गुज़रे कई साल।

फिर भी तेरी उल्फ़त को नहीं ख़ाफे़ ज़वाल।

जिस हाल में भी चाहूं, जहां जाके रहूं।

आंखों में है तू दिल में भी है, तेरा ख़याल।

 

जमाल व कमाल

मौलाना जामी ؓ फ़रमाते हैं.

कूवत व रहमतवाली वह ज़ात जमाले मुतलक है। खाकदाने वजूद के जुमला मराहिल से हुस्नों कमाल आशकारा है, वह उसी के परतवे जमाल व कमाल का नज़्ज़ारा है। उसी के जल्वों से अहले मरातिब नकूशे जमाल और सिफाते कमाल से आरस्ता हुए। दाना की दानाई भी इसी का असर और बिनाअ की बिनाई भी उसी का समर है। वह पाक ज़ात है। इस की कुल सिफ़ात जो कुल्लियत व कामिलियत की बुलंदियों से उतर कर जुजि़्ज़यत व तिक़य्यद (इनफरादी व इज़ानी) की गहराईयों में जल्वागर हुए हैं, इसका मक़सद यह था कि तो जुज़्व से कुल का रास्ता पा सके और तकय्युद से मुतलक़ की तरफ़ मुतवज्जह हो सके और तुझे यह ख्याल न हो कि जुज़्व कुल से जुदा है और न तो तिक़य्यद पर इतना गौर करे कि मुतलक़ से तेरा रिश्ता ही मुनकता हो जाए।

नज़्ज़ारा गुल के लिए, मैं बाग़ मे था

देखा मुझे उसने तो यह शोखी से कहा

मैं असल हूं और गुल तो हैं मेरी शक्लें

क्यों असल को छोड़कर सूए शाख आया

बेकार यह आरिज़ ये क़दूर इनायत

किस काम की यह जुल्फों की खुश अराई

हर सिमत जि़या बार है नुरे मुतलक

गाफिल न तक़ीद से तुझे होश आयी

2 Comments

  • Jyoti mishra says:

    Assalamlakum
    How to buy all these precious and great soulful books please guide me.thanks

  • Jyoti mishra says:

    जो कोइे ये कहे………
    मेरे हर लहें मैं तेरा होना है,जो तूं है तो मैं हूं,जो तेरा खयाल है तो सौ सवाल है……..हर सवाल का बस इक जवाब है……..तेरी तलब है तेरी ,तेरी प्यास है,तेरा खयाल ,दिल कहता है इस प्यास की बुझन तेरी याद है तेरा जिक् है तेरा खयाल हे ,मगर तेरा जिक् ही तो तलब है जितना जिक् बढाती हूं तलब बड़ जाती है ये तलब मुझको जलाती हें मगर जलने मैं भी सुकुन है लगता है ये जलना ही दवा है ,,,,,,,,
    हजरत ये मेरे दिल का हाल है , आप ही कहें ये क्या है

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