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शेख सादी रज़ी. फ़रमाते हैं-

न गोयद अज सरे बाजीचा हर्फे।
कर्जा पन्दे नगीरद साहबे होश॥
व गर सद बाबे हिकमत पेशे नादां।
बख्बानन्द आयदश बाजीचह दरगोश॥

तर्जुमा- अक्लमन्द इन्सान खेल खेल में भी अच्छी बातें सीख लेता है जबकि बेवकूफ इन्सान बड़ी बड़ी किताबों के सौ पाठ पढ़ने के बाद भी बेवकूफी ही सीखता है।
लुकमान हकीम से किसी ने पूछा आपने अदब और तमीज किससे सीखी?, तो अपने फ़रमाया ‘बेअदबों से’, ‘वो कैसे’ पूछा गया तो जवाब मिला ‘मैंने उनकी बेवकूफी और बूरी आदतों से परहेज किया। मैं उनकी बेअदबी व बदतमीजी से दूर रहा, खुद ब खुद अदबवाला बन गया। अक्लमन्द इन्सान खेल खेल में भी अच्छी तालीम हासिल कर लेता है जबकि बेवकूफ बड़े बड़े ग्रंथ पढ़कर भी बेवकूफी ही सीखता है।

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