शाह अस्त हुसैन
बादशाह अस्त हुसैनؑ
दीन अस्त हुसैनؑ
दीन पनाह अस्त हुसैनؑ
सर दाद न दाद
दस्त दर दस्ते यज़ीद
हक्का के बिनाए
लाइलाह अस्त हुसैनؑ
(ख़्वाजा ग़रीबनवाज़ؓ)
हज़रत हुसैनؑ रूहानी शाह हैं और दुनिया के बादशाह भी हैं। इमाम हुसैनؑ दीन हैं और दीन के संरक्षक भी हैं। जब करबला में आपको परिवार सहित घेर लिया गया, और यज़ीद के हाथों बैअ़त की ज़बरदस्ती होने लगी, तो आपने, अपना सर दे दिया, लेकिन वो हाथ न दिया, जिस हाथ पर बैअ़त हुए थे। इसी कुरबानी की वजह से, आज हमारा दीन ज़िन्दा है। हक़ तो ये है कि ‘ला इलाहा’ की बुनियाद हुसैनؑ हैं। अगर यज़ीद के हाथों बैअ़त ले ली जाती, तो इमाम हुसैनؑ और उनके परिवार की जान तो बच जाती, लेकिन धर्म न बचता, सत्य न बचता और हज़रत मुहम्मदﷺ की शिक्षाएं नहीं बचती। आप जंग हार गये, मगर दीन जीत गया। और इस तरह असत्य पर सत्य की जीत हुई।
हज़रत मुहम्मदﷺ फ़रमाते हैं- हुसैन मुझसे हैं और मैं हुसैन से हूं।
सुनते हैं, सर बचाने को उठते हैं पहले हाथ।
सर देकर, अपना हाथ बचाया हुसैनؑ ने।
(पंडित गयाप्रसाद रूमवी)
क़त्ले हुसैनؑ अस्ल में मर्गे़ यज़ीद है।
इस्लाम ज़िन्दा होता है, हर करबला के बाद।
(मुहम्मद अली जौहर)
इन्सान को बेदार तो हो लेने दो,
हर क़ौम पुकारेगी, हमारे हैं हुसैन।
(जोश मलीहाबादी)
वो हुसैनؑ जिसने छिड़क के खून,
चमने वफ़ा को हरा किया।
(मौलाना एजाज़ कामठी)
मैंने हुसैन से सीखा कि मजलूमियत में किस तरह जीत हासिल की जा सकती है। इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती, बल्कि हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है, जो एक महान संत थे।
-महात्मा गांधी
इमाम हुसैन की कुरबानी तमाम गिरोहों और सारे समाज के लिए है और यह कुरबानी इंसानियत की भलाई की एक अनमोल मिसाल है।
-पंडित जवाहर लाल नेहरू
यह इमाम हुसैन की कुरबानियों का नतीजा है कि आज इस्लाम का नाम बाक़ी है। नहीं तो दुनिया में कोई नाम लेने वाला भी नहीं होता।
-स्वामी शंकराचार्य
इस बहादुर और निडर लोगों में सभी औरतें और बच्चे इस बात को अच्छी तरह से जानते और समझते थे कि दुश्मन की फौजों ने उनका घिराव किया हुआ है और दुश्मन सिर्फ लड़ने नहीं बल्कि उनको क़त्ल करने के लिए आए हैं। जलती रेत, तपता सूरज और बच्चों की प्यास भी उनके क़दम नहीं डगमगा पाई। सारी मुश्किलों का सामना करते हुए भी उन्होंने अपनी सत्यता का कारनामा कर दिखाया।
-चार्लस डिकेन्स
मानवता के वर्तमान और अतीत के इतिहास में कोई भी युद्ध ऐसा नहीं है, जिसने इतनी मात्रा में सहानुभूति और प्रशंसा हासिल की हो और सारी मानवजाति की इतनी अधिक उपदेश व उदाहरण दिया हो, जितनी इमाम हुसैन की शहादत ने करबला के युद्ध से दी है।
-अंटोनी बारा