मी रक़्सम – सूफ़ीयाना कलाम ………..
नमी दानम चे आखिर चूं दमे दीदार मी रक्सम
मगर नाज़म बईं ज़ौक़े के पेशे यार मी रक्सम
मुझे नहीं मालूम कि आखिर दीदार के वक्त क्यूं रक्स कर रहा हूं
लेकिन अपने इस ज़ौक़ पर नाज़ है कि अपने यार के सामने रक्स कर रहा हूं
तू आं क़ातिल के अज़ बहरे तमाशा खूने मनरेज़ी
मन आं बिस्मिल के ज़ेरे खंजरे खूंखार मी रक्सम
तू वो क़ातिल है के तमाशे के लिए मेरा खूंन बहाता है
और मैं वो बिस्मिल हूं के खूंखार खंजर के नीचे रक्स करता हूं
सरापा बर सरापाए खुदम अज़ बेखुदी कुरबां
बगिरदे मरकज़े खुद सूरते परकार मी रक्सम
सर से पांव तक जो मेरा हाल है, उस बेखुदी पर मैं कुरबान जाउं,
के परकार की तरह अपने ही इर्द गिर्द रक्स करता हूं
बया जानां तमाशा कुन के दर अन्बूहे जांबजां
बसद सामाने रूसवाई सरे बाज़ार मी रक्सम
आ ऐ महबूब, और तमाशा देख कि जांबजां की भीड़ में,
मैं सैकड़ों रूसवाइयों के सामान के साथ, सरे बाज़ार रक्स करता हूं
खुशा रिन्दी के पामालश कुनम सद पारसाइ रा
ज़हे तक़वा के मन बा जुब्बा ओ दसतार मी रक्सम
वाह मयनोशी, कि जिसके लिए मैंने सैंकड़ों पारसाइयों को पामाल कर दिया
खूब तकवा, कि मैं जुब्बा व दस्तार के साथ रक्स करता हूं
तू हर दम मी सराई नग़मा व हर बार मी रक्सम
बहर तरज़े के रक्सानी मनम ऐ यार मी रक्सम
तू हर वक्त जब भी मुझे नग़मा सुनाता है, मैं हर बार रक्स करता हूं
और जिस धून में रक्स कराता है, ऐ यार, मैं रक्स करता हूं
अगरचे क़तर ए शबनम नपायद बर सरे खारे
मनम आं क़तर ए शबनम बनोके खार मी रक्सम
अगरचे शबनम का क़तरा कांटे पर नहीं पड़ता
लेकिन मैं शबनम का वो क़तरा हूं के कांटे की नोक पर रक्स करता हूं
मनम ‘उसमान हारूनी’ के यारे शैख मन्सूरम
मलामत मी कुनद खल्क़े व मन बरदार मी रक्सम
मैं उस्मान हारूनी रज़ी., शैख मन्सूर हल्लाज रज़ी. का दोस्त हूं,
मुझे खल्क़ मलामत करती है और मैं सूली पर रक्स करता हूं
– कलाम – हज़रत ख्वाजा उसमान हारूनी रज़ी.
(ख्वाजा गरीबनवाज़ रज़ी. के पीरोमुर्शिद)