अशरफ़े अंबिया, शाहे ख़ैरूल अनाम,
तुमपे लाखों दरूद और लाखों सलाम।
नूरे खल्लाके कौनो मकां हो दवाम,
तुमपे लाखों दरूद और लाखों सलाम।
शान वाले, तुम्हारी बड़ी शान है,
जान सदक़े, ये दिल तुम पे कुरबान है,
तुम हो आक़ा मेरे, मै तुम्हारा गुलाम,
तुमपे लाखों दरूद और लाखों सलाम।
फ़र्श क्या, अर्श क्या, और लौहो कलम,
सब पे नाफि़ज़ है, प्यारे ख़ुदा की कसम,
हुक्मरानी तुम्हारी, तुम्हारा निज़ाम,
तुमपे लाखों दरूद और लाखों सलाम।
ग़मगुसारे जहां दस्तगीरे उमम,
रख लो बहरे खुदा, आसियों का भरम,
हम ग़रीबों का महशर में बन जाए काम,
तुमपे लाखों दरूद और लाखों सलाम।
क्या शजर, क्या हजर, क्या ये शम्सो कमर,
क्या फ़लक, क्या मलक, क्या ये जिन्नो बशर,
कह रहे हैं सभी, बस यही सुब्हो शाम,
तुमपे लाखों दरूद और लाखों सलाम।
नूर वाले ज़रा नूर की भीक दो,
मुर्दा दिल हैं, हमें जि़ंदगी बख़्श दो,
तालिबे लुत्फ है, तुम से हर खासो आम,
तुमपे लाखों दरूद और लाखों सलाम।
ऐ सबा तू मदीने पहुंचना अगर,
चुमकर शौक से मेरे आका का दर,
एक गुनाहगार का अज़्र करना पयाम,
तुमपे लाखों दरूद और लाखों सलाम।
होगी बेदार ख़ुफ़्ता नसीबी मेरी,
जि़ंदगी होगी, फिर जि़ंदगी जि़ंदगी,
काश दो बूंद मिल जाए उल्फ़त का जाम,
तुमपे लाखों दरूद और लाखों सलाम।
जि़ंदगी का सफ़ीना है मझधार में,
इल्तेजा ‘अशरफ़ी’ की है सरकार में,
एक नज़र मेरे मुख़्तारे ज़ी एहतेराम,
तुमपे लाखों दरूद और लाखों सलाम।
(मौलाना अब्दुल ग़फूर अशरफ़ी, दुर्ग)