रमज़ान की अज़मत
इ़बादत का दरवाज़ा :
रोज़ा बाति़नी इ़बादत है, क्यूंकि हमारे बताए बग़ैर किसी को यह इ़ल्म नहीं हो सकता है कि हमारा रोज़ा है और अल्लाह बाति़नी इ़बादत को ज़्यादा पसन्द फ़रमाता है। एक ह़दीसे़ पाक के मुत़ाबिक़, “रोज़ा इ़बादत का दरवाज़ा है।” (अल जामिउ़स़्स़ग़ीर, स़-फ़हा:146, ह़दीस़:2415)
नुज़ूले कु़रआन :
इस माहे मुबारक की एक ख़ुस़ूसि़य्यत यह भी है कि अल्लाह ने इस में क़ुरआने पाक नाजि़ल फ़रमाया है। चुनान्चे मुक़द्दस क़ुरआन में खु़दाए रह़मान का नुजू़ले क़ुरआन और माहे रमज़ान के बारे में फ़रमाने आलीशान है :
रमज़ान का महीना, जिस में क़ुरआन उतरा, लोगों के लिये हिदायत और रहनुमाई और फ़ैस़ले की रौशन बातें, तो तुम में जो कोई यह महीना पाए ज़रूर इस के रोज़े रखे और जो बीमार या सफ़र में हो, तो उतने रोज़े और दिनों में। अल्लाह तुम पर आसानी चाहता है और तुम पर दुश्वारी नहीं चाहता और इसलिये कि तुम गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो इस पर कि उस ने तुम्हें हिदायत की और कहीं तुम ह़क़ गुज़ार हो। (कंजुल ईमान पारह:2, अल ब-क़रह:185)
रमज़ान की तारीफ़ :
इस आयते मुक़द्दसा के इब्तिदाई हि़स़्स़े के तह़्त ह़ज़रत मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान र.अ. तफ़्सीरे नइ़र्मी में फ़रमाते हैं :
“रमज़ान” या तो “रह़मान” की त़रह़ अल्लाह का नाम है, चूंकि इस महीने में दिन रात अल्लाह की इ़बादत होती है। लिहाज़ा इसे शहरे रमज़ान यानी अल्लाह का महीना कहा जाता है। जैसे मस्जिद व काबा को अल्लाह का घर कहते हैं कि वहां अल्लाह के ही काम होते हैं। ऐसे ही रमज़ान अल्लाह का महीना है कि इस महीने में अल्लाह के ही काम होते हैं। रोज़ा तरावीह़ वगै़रा तो हैं ही अल्लाह के। मगर ब ह़ालते रोज़ा जो जाइज़ नौकरी और जाइज़ तिजारत वगै़रा की जाती है वो भी अल्लाह के काम क़रार पाते हैं। इसलिये इस माह का नाम रमज़ान यानी अल्लाह का महीना है। या यह “रमज़ाअ” से मुश्तक़ है।
रमज़ाअ, मौसिमे ख़रीफ़ की बारिश को कहते हैं, जिस से ज़मीन धुल जाती है और “रबीअ़” की फ़स़्ल खू़ब होती है। चूंकि यह महीना भी दिल के गर्दो ग़ुबार धो देता है और इस से आ’माल की खेती हरी भरी रहती है इसलिये इसे रमज़ान कहते हैं। “सावन” में रोज़ाना बारिशें चाहियें और “भादों” में चार। फिर “असाड़” में एक। इस एक से खेतियां पक जाती हैं। तो इसी त़रह़ ग्यारह महीने बराबर नेकियां की जाती रहीं। फिर रमज़ान के रोज़ों ने इन नेकियों की खेती को पका दिया। या यह “रम्ज़” से बना जिस के मायने हैं “गरमी या जलना।” चूंकि इस में मुसल्मान भूक प्यास की तपिश बरदाश्त करते हैं या यह गुनाहों को जला डालता है, इसलिये इसे रमज़ान कहा जाता है।
(कन्जु़ल उ़म्माल की आठवीं जिल्द के स़-फ़ह़ा नम्बर दो सौ सत्तरह पर ह़ज़रते सय्यिदुना अनस रजि़. से रिवायत नक़्ल की गई है कि नबीए करीमﷺ ने इर्शाद फ़रमाया, “इस महीने का नाम रमज़ान रखा गया है क्यूंकि यह गुनाहों को जला देता है।”)
महीनों के नाम की वजह :
ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान र.अ. फ़रमाते हैं: बा’ज़ मुफ़स्सिरीन ने फ़रमाया कि जब महीनों के नाम रखे गए तो जिस मौसिम में जो महीना था उसी से उस का नाम हुआ। जो महीना गरमी में था उसे रमज़ान कह दिया गया और जो मौसिमे बहार में था उसे रबीउ़ल अव्वल और जो सर्दी में था जब पानी जम रहा था उसे जुमादिल ऊला कहा गया। इस्लाम में हर नाम की कोई न कोई वजह होती है और नाम काम के मुत़ाबिक़ रखा जाता है। रमज़ान बहुत ख़ूबियों का जामेअ़ था इसी लिये उस का नाम रमज़ान हुआ। (तफ़्सीरे नइ़र्मी, जिल्द:2, स़-फ़ह़ा:205)
सोने के दरवाज़े वाला मह़ल :
सय्यिदुना अबू सई़द खु़दरी रजि़. से रिवायत है, हुजूरﷺ फ़रमाते हैं :
“जब माहे रमज़ान की पहली रात आती है तो आस्मानों और जन्नत के दरवाजे़ खोल दिय जाते हैं और आखि़र रात तक बन्द नहीं होते। जो कोई बन्दा इस माहे मुबारक की किसी भी रात में नमाज़ पढ़ता है तो अल्लाह उस के हर सज्दे के एवज़ (यानी बदले में) उस के लिये पन्द्रह सौ1500 नेकियां लिखता है और उस के लिये जन्नत में सुर्ख याक़ूत का घर बनाता है। जिस में साठ हजार 60000 दरवाज़े होंगे। और हर दरवाजे़ के पट सोने के बने होंगे जिन में याकू़ते सुर्ख़ जड़े होंगे। पस जो कोई माहे रमज़ान का पहला रोज़ा रखता है तो अल्लाह महीने के आखि़र दिन तक उस के गुनाह माफ़ फ़रमा देता है, और उस के लिये सु़ब्ह़ से शाम तक सत्तर हज़ार फ़रिश्ते दुआए मगि़्फ़रत करते रहते हैं। रात और दिन में जब भी वो सज्दा करता है उस के हर सज्दे के एवज़ (यानी बदले) उसे (जन्नत में) एक एक ऐसा दरख़्त अ़त़ा किया जाता है कि उस के साए में घौड़े सुवार पांच सौ बरस तक चलता रहे।” (शुउ़बुल ईमान, जिल्द:3, स़-फ़ह़ा:314, ह़दीस़:3635)
खु़दा का किस क़दर अ़ज़ीम एह़सान है कि उस ने हमें अपने ह़बीबﷺ के तुफ़ैल ऐसा माहे रमज़ान अ़त़ा फ़रमाया कि इस माहे मुकर्रम में जन्नत के तमाम दरवाजे़ खुल जाते हैं। और नेकियों का अज्र खू़ब खू़ब बढ़ जाता है। बयान कर्दा ह़दीस़ के मुत़ाबिक़ रमज़ानुल मुबारक की रातों में नमाज़ अदा करने वाले को हर एक सज्दे के बदले में पन्दरह सौ नेकियां अ़त़ा की जाती हैं नीज़ जन्नत का अ़ज़ीमुश्शान मह़ल मज़ीद बर आं। इस ह़दीस़े मुबारक में रोज़ादारों के लिये यह बिशारते उ़ज़्मा भी मौजूद है कि सु़ब्ह़ ता शाम सत्तर हज़ार फ़रिश्ते उन के लिये दुआए मगि़्फ़रत करते रहते हैं।
पांच5 ख़ुस़ूस़ी करम :
ह़ज़रते सय्यिदुना जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह रजि़. से रिवायत है कि हुजूरﷺ फरमाते हैं : “मेरी उम्मत को माहे रमज़ान में पांच चीज़ें ऐसी अ़त़ा की गईं जो मुझ से पहले किसी नबी को न मिलीं :
(1) जब रमज़ानुल मुबारक की पहली रात होती है तो अल्लाह उन की त़रफ़ रह़मत की नज़र फ़रमाता है और जिस की त़रफ़ अल्लाह नज़रे रह़मत फ़रमाए उसे कभी भी अ़ज़ाब न देगा
(2) शाम के वक़्त उन के मुंह की बू (जो भूक की वजह से होती है) अल्लाह तआला के नज़्दीक मुश्क की खु़श्बू से भी बेहतर है
(3) फ़रिश्ते हर रात और दिन उन के लिये मगि़्फ़रत की दुआएं करते रहते हैं
(4) अल्लाह तआला जन्नत को हु़क्म फ़रमाता है, “मेरे (नेक) बन्दों के लिये मुज़य्यन (यानी आरास्ता) हो जा अ़न क़रीब वो दुनिया की मशक़्क़त से मेरे घर और करम में राह़त पाएंगे
(5) जब माहे रमज़ान की आखि़री रात आती है तो अल्लाह सब की मगि़्फ़रत फ़रमा देता है। क़ौम में से एक शख़्स़ ने खडे़ हो कर अ़र्ज़ की, या रसूलल्लाह क्या यह लैलतुल क़द्र है ? इर्शाद फ़रमाया: “नहीं क्या तुम नहीं देखते कि मज़्दूर जब अपने कामों से फ़ारिग़ हो जाते हैं तो उन्हें उजरत दी जाती है।” (अत्तरग़ीब वत्तरहीब, जिल्द:2, स़-फ़ह़ा:56, ह़दीस़:7)
स़ग़ीरा गुनाहों का कफ़्फ़ारा :
ह़ज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा रजि़. से मरवी है, हुज़ूरे अकरमﷺ फरमाते हैं, “पांचों नमाज़ें, और जुमा अगले जुमा तक और माहे रमज़ान अगले माहे रमज़ान तक गुनाहों का कफ़्फ़ारा हैं जब तक कि कबीरा गुनाहों से बचा जाए।” (स़ह़ीह़ मुस्लिम, स़-फ़ह़ा:144, ह़दीस़:233)
तौबा का त़रीक़ा :
रमज़ानुल मुबारक में रहमतों की झमाझम बारिशें और गुनाहे स़ग़ीरा के कफ़्फ़ारे क सामान हो जाता है। गुनाहे कबीरा तौबा से माफ़ होते हैं। तौबा करने का त़रीक़ा यह है कि जो गुनाह हुआ ख़ास़ उस गुनाह का जि़क्र कर के दिल की बेज़ारी और आइन्दा उस से बचने का अ़ह्द कर के तौबा करे। म-स़लन झूट बोला, तो बारगाहे खु़दावन्दी में अ़र्ज़ करे, या अल्लाह! मैं ने जो यह झूट बोला इस से तौबा करता हूं और आइन्दा नहीं बोलूंगा। तौबा के दौरान दिल में झूट से नफ़रत हो और “आइन्दा नहीं बोलूंगा” कहते वक़्त दिल में यह इरादा भी हो कि जो कुछ कह रहा हूं ऐसा ही करूंगा जभी तौबा है। अगर बन्दे की ह़क़ तलफ़ी की है तो तौबा के साथ साथ उस बन्दे से माफ़ करवाना भी ज़रूरी है।
देखिये – तौबा और अस्तग़फ़ार
फरमाने मुस्तफाﷺ
माहे रमज़ान के फ़ज़ाइल से कुतुबे अह़ादीस़ मालामाल हैं। रमज़ानुल मुबारक में इस क़दर बरकतें और रहमतें हैं कि हमारे हुज़ूरे अकरमﷺ फरमाते हैं, “अगर बन्दों को मालूम होता कि रमज़ान क्या है तो मेरी उम्मत तमन्ना करती कि काश! पूरा साल रमज़ान ही हो।” (स़ह़ीह़ इब्ने खु़जै़मा, जिल्द:3, स़-फ़ह़ा:190, ह़दीस़:1886)
ह़ज़रते सय्यिदुना सलमान फ़ारसी रजि फ़रमाते हैं कि हुज़ूरे अकरमﷺ ने माहे शा’बान के आखि़री दिन बयान फ़रमाया : “ऐ लोगो! तुम्हारे पास अ़ज़मत वाला बरकत वाला महीना आया, वो महीना जिस में एक रात (ऐसी भी है जो) हज़ार महीनों से बेहतर है, इस (माहे मुबारक) के रोज़े अल्लाह ने फ़र्ज़ किये और इस की रात में कि़याम1 ततव्वुअ़ (यानी सुन्नत) है, जो इस में नेकी का काम करे तो ऐसा है जैसे और किसी महीने में फ़र्ज़ अदा किया और इस में जिस ने फ़र्ज़ अदा किया तो ऐसा है जैसे और दिनों में सत्तर फ़र्ज़ अदा किये। यह महीना स़ब्र का है और स़ब्र का स़वाब जन्नत है और यह महीना मुआसात (यानी ग़म ख़्वारी और भलाई) का है और इस महीने में मोमिन का रिज़्क़ बढ़ाया जाता है। जो इस में रोज़ादार को इफ़्त़ार कराए उस के गुनाहों के लिये मगि़्फ़रत है और उस की गरदन आग से आज़ाद कर दी जाएगी। और इस इफ़्त़ार कराने वाले को वैसा ही स़वाब मिलेगा जैसा रोज़ा रखने वाले को मिलेगा। बग़ैर इस के कि उस के अज्र में कुछ कमी हो।”
हम ने अ़र्ज़ की, या रसूलल्लाह हम में से हर शख़्स़ वो चीज़ नहीं पाता जिस से रोज़ा इफ़्त़ार करवाए। आप ने इर्शाद फ़रमाया: अल्लाह तआला यह स़वाब (तो) उस (शख़्स़) को देगा जो एक घूंट दूध या एक खजूर या एक घूंट पानी से रोज़ा इफ़्त़ार करवाए और जिस ने रोज़ादार को पेट भर कर खिलाया, उस को अल्लाह तआला मेरे ह़ौज़ से पिलाएगा कि कभी प्यासा न होगा। यहां तक कि जन्नत में दाखि़ल हो जाए।
यह वो महीना है कि
इस का इब्तिदाई दस दिन रह़मत है और
दरमियानी दस दिन मगि़्फ़रत है और
आखि़री दस दिन जहन्नम से आज़ादी है।
जो अपने गु़लाम पर इस महीने में तख़्फ़ीफ़ करे (यानी काम कम ले) अल्लाह तआला उसे बख़्श देगा और जहन्नम से आज़ाद फ़रमा देगा
इस महीने में चार बातों की कस़रत करो। इन में से दो2 ऐसी हैं जिन के ज़रीए़ तुम अपने रब को राज़ी करोगे और बकि़य्या दो से तुम्हें बे नियाज़ी नहीं। पस वो दो बातें जिन के ज़रीए़ तुम अपने रब को राज़ी करोगे वो यह हैं: (1) की गवाही देना (2) इस्तिग़्फ़ार करना। जब कि वो दो बातें जिन से तुम्हें ग़ना (बे नियाज़ी) नहीं वो यह हैं: (1) अल्लाह तआला से जन्नत त़लब करना (2) जहन्नम से अल्लाह की पनाह त़लब करना।” (स़ह़ीह़ इब्ने ख़ुज़ैमा, जिल्द:3, स़-फ़ह़ा:1887)
अभी जो ह़दीस़े पाक बयान की गई इस में माहे रमज़ानुल मुबारक की रहमतों, बरकतों और अ़ज़मतों का खू़ब तजि़्करा है। इस माहे मुबारक में कलमा शरीफ़ ज़्यादा ता’दाद में पढ़ कर और बार बार इस्तिग़्फ़ार यानी खू़ब तौबा के ज़रीए़ अल्लाह तआला को राज़ी करने की कोशश करनी है। और इन दो बातों से तो किसी स़ूरत में भी लापरवाही नहीं होनी चाहिये यानी अल्लाह तआला से जन्नत में दाखि़ला और जहन्नम से पनाह की बहुत ज़्यादा इल्तिजाएं करनी हैं।
रमज़ानुल मुबारक के चार नाम :
माहे रमज़ान का भी क्या खू़ब फै़ज़ान है! ह़ज़रत मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान र.अ. तफ़्सीरे नई़मी में फ़रमाते हैं: “इस माहे मुबारक के कुल चार नाम हैं (1) माहे रमज़ान (2) माहे स़ब्र (3) माहे मुआसात और (4) माहे वुस्अ़ते रिज़्क़।” मज़ीद फ़रमाते हैं, रोज़ा स़ब्र है जिस की जज़ा रब है और वो इसी महीने में रखा जाता है। इसलिये इसे माहे स़ब्र कहते हैं। मुआसात के मायने हैं भलाई करना। चूंकि इस महीने में सारे मुसल्मानों से ख़ास़ कर अहले क़राबत से भलाई करना ज़्यादा स़वाब है इसलिये इसे माहे मुआसात कहते हैं इस में रिज़्क़ की फ़राख़ी भी होती है कि ग़रीब भी ने’मतें खा लेते हैं, इसी लिये इस का नाम माहे वुस्अ़ते रिज़्क़ भी है।” (तफ़्सीरे नई़मी, जिल्द:2, स़-फ़ह़ा:208)
देखिये – रमज़ान के 13 हुरूफ़