शबे बरात और ग़ौसपाक रहमतुल्लाह अलैह
दुआए निस्फ शबान (Shabe Barat ki Duwa) और इसकी फज़ीलत (Shabe Barat ki Fazilat) के बारे में अल्लाह फ़रमाता है-
इस (रात) में हर हिकमत वाला काम बांट दिया जाता है। (क़ुरान 44:4)
और तुम्हारा रब जिस चीज़ को चाहे पैदा करता है और चुन लेता है। (क़ुरान 28:68)
शबे बरात (Shabe Barat ki Duwa) और माहे शाबान से मुताल्लिक, ग़ौसपाक हज़रत अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं- रब ने तमाम चीज़ों में चार को बेहतर किया और उन चार में से एक को मुख़्तार किया।
फ़रिश्तों में चार यानी हज़रत जिबरईल, मीकाईल, इसराफिल व अज़़ाज़ील अलैहिस्सलाम को मुन्तख़ब किया और उनमें से हज़रत जिबरईल रज़िअल्लाह अन्हो का इंतेख़ाब किया।
अंबिया में चार यानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम, मूसा अलैहिस्सलाम, ईसा अलैहिस्सलाम और मुह़म्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को चुना और उनमें से हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को चुन लिया।
दिनों में चार दिनों यानी ईदुल फितर, ईदुल अज़़हा, यौमे अरफ़ा (9 ज़िलहिज्जा) और यौमे आशूरा (10 मुहर्रम) को मुन्तख़ब फ़रमाया। फिर उनमें से यौमे अरफ़ा को बुर्गज़िदा किया।
इसी तरह रातों में चार रातों यानी शबे बरात, शबे क़दर, शबे जुमा और ईद की रात को बेहतरीन क़रार दिया। फिर इनमें से शबे क़दर को फ़ज़ीलत बख़्शी। महीनों में चार यानी रजब, शाबान, रमज़ान व मुहर्रम को मुन्तख़ब किया और उनमें से शाबान को मुख़्तार बनाया।
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि
शाबान मेरा महीना है, रजब अल्लाह का महीना है और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है। शाबान, रजब व रमज़ान के बीच आता है और लोग उससे ग़ाफ़िल हैं। इसमें बंदो के आमाल, परवरदिगार की बारगाह में उठाए जाते हैं। लिहाज़ा मैं चाहता हूं कि जब मेरे आमाल उठाए जाएं तो मैं रोज़े की हालत में रहूं।
हज़रत अनस बिन मालिक रज़ि. फ़रमाते हैं कि शाबान का चांद देखते ही सहाबा किराम तिलावते क़ुरान में मशग़ूल हो जाते और अपने मालों की ज़कात निकालते ताकि कमज़ोर व मोहताज लोग रमज़ान के रोज़े रखने पर क़ादिर हो सके। हुक्मरां, कैदियों को रिहा करते। ताजिर, सफ़र करते ताकि क़र्ज़ अदा कर सके और रमज़ान में एतेकाफ़ कर सके।
लफ़्ज़ शाबान
लफ़्ज़ शाबान में पांच हर्फ़ है- शीन, ऐन, बे, अलिफ़ और नून। शीन से शर्फ़, ऐन से अलू (बुलंदी), बे से बादबिर (नेकी), अलिफ़ से उल्फ़त और नून से नूर। इस महीने में अल्लाह की तरफ़ से बंदों को ये चीज़ें अ़ता होती हैं। इस महीने में नेकियों के दरवाज़े खुल जाते हैं और बरकतों को नुजूल होता है। गुनाह झड़ते हैं और बुराईयां मिटा दी जाती है।
तमाम मख़्लूक़ में बेहतरीन शख़्सियत, नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की बारगाह बेकस पनाह में कसरत से हदिया ए दरूद व सलाम भेजा जाता है। ये महीना हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर दरूद व सलाम पढ़ने का महीना है। अल्लाह फ़रमाता है-
बेशक अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर दरूद शरीफ़ भेजते हैं और ऐ इमानवालों! तुम भी उन पर दरूद और खूब सलाम भेजो।(क़ुरान 33:56)
अल्लाह की तरफ़ से दरूद का मतलब रह़मत भेजना है। फ़रिश्तों की तरफ़ से दरूद का मतलब शफ़ाअ़त व इस्तग़फ़ार और मोमिन की तरफ़ से दरूद, दुआ व सना है।
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम फ़रमाते हैं- जो शख़्स मुझ पर एक बार दरूद भेजता है, अल्लाह उस पर दस रहमतें नाज़िल फ़रमाता है। लिहाज़ा हर अक्लमंद मोमिन को चाहिये कि इस महीने में ग़ाफ़िल न हो और रमज़ान मुबारक की तैय्यारी करे। इसका तरीक़ा ये है कि अगले गुनाहों से बाज़ आ जाए, पिछले गुनाहों से तौबा करे और बारगाहे खुदावंदी में आजिज़ी का इज़हार करे।
और जिस ज़ात की तरफ़ ये महीना मन्सूब है यानी नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम, उनके वसीले से बारगाहे खुदावंदी तक रसाई हासिल करे ताकि उसके दिल का फ़साद दूर हो और क़ल्बी बीमारी का इलाज हो जाए। इस काम को कल कि लिए न छोड़ो।
क्योंकि कल का दिन गुज़र चुका है और आने वाले दिन पर तेरे बस में नहीं, इसलिए आज का दिन अमल का है। जो गुज़र गया वो नसीहत है और जो आने वाला है उस पर तेरी क़ुदरत नहीं। आज का दिन ग़नीमत है।
इसी तरह रजब का महीना गुज़र गया है और रमज़ान का इंतेज़ार है, पता नहीं नसीब होगा या नहीं, लेकिन शाबान तेरे पास है, लिहाज़ा इसे ग़नीमत जान और इताअत व फ़रमाबरदारी में लग जा।
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने एक शख़्स (हज़रत उमर रज़िअल्लाह अन्हो) को नसीहत करते हैं कि 5 चीज़ों को 5 चीज़ों से पहले ग़नीमत जानो- 1. जवानी को बुढापे से पहले, सेहत को बीमारी से पहले, मालदारी को मोहताजी से पहले, फुरसत को मशगूलियत से पहले और ज़िन्दगी को मौत से पहले ग़नीमत जानो।
शबे बरात की दुआ (Shabe Barat ki Duwa)
हज़रत उमर रज़िअल्लाह अन्हो से मरवी है कि हज़रत आईशा रज़िअल्लाह अन्हा फ़रमाती हैं-
15 शाबान की रात हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सजदे में ये दुआ मांगी-
سَجَدَ لَکَ سَواَدِیْ وَجَنَانِیْ وَاٰمَنَ بِکَ فُوَادِیْ اَبُوْئُ لَکَ بِالنِّعَمِ وَاَعْتَرِفُ لَکَ بِالذُّنُوْبِ ظَلَمْتُ نَفْسِیْ فَاغْفِرْلِیْ اِنَّہٗ لَایَغْفِرُ الذُّنُوْبَ اِلَّا اَنْتَ اَعُوْذُ بِعَفُوِکَ مِنْ عَقُرْ بَتِکَ وَاَعُوْذُ بِرَحْمَتِکَ مِنْ نِّعْمَتِکَ وَاَعُوْذُ بِرِضَاکَ مَنْ سَخَطِکَ وَاَعُوْذُ بِکَ مِنْکَ لَا اُحْصِیْ ثَنَائً عَلَیْکَ اَنْتَ کَمَا اَثْنَیْتَ عَلٰی نَفْسِکَ
(या अल्लाह) मेरे जा़हिर व बातिन ने तेरे लिए सजदा किया और मेरा दिल तुझ पर ईमान लाया, मैं तेरे इनाम का मोअतरिफ़ हूं और गुनाहों का भी इक़रार करता हूं, पस मुझे बख़्श दे, क्योंकि तेरे सिवा कोई बख़्शने वाला नहीं।
मैं तेरे अफ़ू के साथ तेरे अज़ाब से पनाह चाहता हूं। तेरी रह़मत के साथ तेरे अज़ाब से पनाह का तालिब हूं। तेरी रज़ा के साथ तेरे ग़ज़ब से पनाह चाहता हूं। मैं कमा हक्कहू तेरी तारीफ़ नहीं कर सकता। तू ऐसा है जैसे तूने खुद अपनी तारीफ़ बयान फ़रमाई है।
शबे बरात की वजह तसमिया
इस रात को शबे बरात (बरअ़त) इसलिए कहते हैं कि इस में दो बरअ़तें (बेज़ारियां) हैं। बदबख़्त, रहमान से और सूफ़ीया किराम, ज़िल्लत व रुसवाई से बेज़ार होते हैं।
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम फ़रमाते हैं- जब 15 शाबान की रात होती है तो अल्लाह तबारक व तआला की अपने मख़्लूक़ पर खुसूसी तवज्जो फ़रमाता है। मोमीनों को बख़्श देता है और काफ़िरों को मोहलत देता है। किना करने वालों को उसी हालत में रहने देता है, यहां तक कि वे इसे ख़ुद छोड़ दें।
फ़रिश्तों की आसमान में ईद की दो रातें हैं जिस तरह मुसलमानों के लिए ज़मीन पर दो ईदें हैं। फ़रिश्तों की ईदें शबे बरात और लैलतुल क़दर हैं और मोमिनों की ईदें, ईदुल फितर व ईदुल अज़़हा हैं। फ़रिश्तों के लिए ईदें रात को इसलिए हैं कि वो सोते नहीं है और इंसानों की ईदें दिन में इस लिए हैं कि वो रात को सोते हैं।
see: Shabe Barat ki Duwa
शबे बरात को जा़हिर करने की हिकमत
अल्लाह ने शबे बरात को जा़हिर किया और लैलतुल क़दर को पोशीदा रखा। इसकी हिकमत के बारे में कहा गया है कि लैलतुल क़दर रह़मत, बख़्शिश और जहन्नम से आज़ादी की रात है (इसमें अज़ाब नहीं)। अल्लाह ने इसे मख़्फ़ी रखा ताकि लोग सिर्फ़ इसी पर भरोसा न कर बैठे। जबकि शबे बरात को जा़हिर किया क्योंकि वो फैसले, क़ज़ा, क़हरो रज़ा, क़ुबूलो रद्द, नज़दीको दूरी, सअ़ादतो शफ़ाअ़त और परहेज़गारी की रात है।
शबे बरात में कोई नेकबख़्ती हासिल करता है तो कोई मरदूद हो जाता है, एक सवाब पाता है तो दूसरा ज़लील होता है। एक मौत से बच जाता है तो दूसरा ज़िन्दगी से हाथ दो बैठता है। शबे क़दर में रह़मत ही रह़मत है, अज़ाब नहीं है। जबकि शबे बरात में रह़मत भी है और अज़ाब भी।
हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह निस्फ़ शाबान की रात को घर से निकले तो उनका चेहरा ऐसा था कि जैसे क़ब्र से दफ़न के बाद निकाला गया हो। आपसे सबब पूछा गया तो फ़रमाया- मुझसे ज़्यादा मुसीबत में कोई नहीं। मेरे गुनाह यक़ीनी हैं, लेकिन नेकियों पर भरोसा नहीं कि वो क़ुबूल होगी या रद्द होगी।
शबे बरात में इबादत
उम्मुल मोमेनीन हज़रत आईशा रज़िअल्लाह अन्हा फ़रमाते हैं- हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सुबह तक मुसलसल क़याम व कअदा की हालत में रहे। हालांकि आपके पांव मुबारक फुल गए। मैंने अर्ज़ किया- आप पर मेरे मां-बाप कुरबान, आपको अल्लाह वो मुक़ाम व एजाज अ़ता फ़रमाया है कि आपके सदक़े आपके पहलूओं व बच्चों के गुनाह भी माफ़ कर दिए। (तो फिर इतनी मशक्कत करने की क्या ज़रूरत) तो आपने फ़रमाया-
ऐ आईशा! तो क्या मैं अल्लाह का शुक्र अदा न करूं। क्या तुम जानती हो इस रात की क्या फ़ज़ीलत है। मैंने कहा- इस रात में क्या है? आपने फ़रमाया- आइन्दा साल में होने वाले हर बच्चे का नाम, इस रात लिखा जाता है और इसी रात आइन्दा साल मरने वालों के नाम भी लिखे जाते हैं। इसी रात बंदों के रिज़्क उतरते हैं और इसी रात लोगों आमाल व अफआल उठाए जाते हैं।
हज़रत आईशा रज़िअल्लाह अन्हा फ़रमाते हैं- हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम (शबे बरात में) नमाज़ पढ़ने लगे, मुख़्तसर क़याम किया, सूरे फ़ातेहा व छोटी सूरे पढ़ी और (रूकू के बाद) आधी रात तक सजदारेज़ रहे। फिर दूसरी रकात में खड़े हुए और पहली रकात की तरह सूरे फ़ातेहा व छोटी सूरे पढ़कर (रूकू के बाद) फ़जर तक सजदारेज़ रहे। (यानी पूरी रात में दो रकात)।
हज़रत अकरमा रज़िअल्लाह अन्हो से मरवी है कि इस रात को हर हिकमत दाए काम का फैसला होता है। अल्लाह पूरे साल के उमूर की तदबीर फ़रमाता है। (यहां तक कि) हज करने वालों के नाम भी लिखे जाते हैं।
हज़रत हकीम बिन कीसान रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि शबे बरात में अल्लाह उन लोगों पर तवज्जो करता है जो इस रात अपने आप को पाक रखते हैं। अल्लाह उसे आइन्दा शबे बरात तक पाक रखता है।
हज़रत अबूहुरैरा रज़िअल्लाह अन्हो से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया- हज़रत जिबरईल रज़िअल्लाह अन्हो शाबान की 15वीं रात को मेरे पास आए और कहा- ऐ मुह़म्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम! आसमान की तरफ़ सर उठाएं।
मैंने पूछा ये रात क्या है? फ़रमाया- ये वो रात है जिसमें अल्लाह रह़मत के दरवाज़ों में से 300 दरवाज़े खोलता है और हर उस शख़्स को बख़्श देता है, जो मुशरिक न हो, अलबत्ता जादूगर, काहिन, आदीशराबी, बार बार सूद खाने वाला और ज़िना करने वाले की बख़्शिश नहीं होगी जब तक वो तौबा न कर ले।
जब रात का चौथा हिस्सा हुआ तो हज़रत जिबरईल रज़िअल्लाह अन्हो ने अर्ज़ किया- ऐ मुह़म्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम! अपना सर उठाइये। आपने सर उठाया तो देखा कि जन्नत के दरवाज़े खुले थे और पहले दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता निदा दे रहा है- इस रात को रूकू करने वालों के लिए खुशखबरी है। दूसरे दरवाज़े पर फ़रिश्ता पुकार रहा है- इस रात में सजदा करने वालों के लिए खुशखबरी है।
तीसरे दरवाज़े पर निदा हो रही है- इस रात में दुआ करने वालों के लिए खुशखबरी है। चौथे दरवाज़े पर खड़ा फ़रिश्ता निदा दे रहा था- इस रात में ज़िक्रे खुदावंदी करने वालों के लिए खुशखबरी है। पांचवे दरवाज़े से फ़रिश्ता पुकार रहा था- अल्लाह के ख़ौफ़ से रोने वाले के लिए खुशखबरी है। छठे दरवाज़े पर फ़रिश्ता कह रहा था- इस रात तमाम मुसलमानों के लिए खुशख़बरी है।
सातवें दरवाज़े पर मौजूद फ़रिश्ता की ये निदा थी कि क्या कोई साएल है जिसके सवाल के मुताबिक़ अ़ता किया जाए। आठवें दरवाज़े पर फ़रिश्ता कह रहा था- क्या कोई बख़्शिश का तालिब है जिसको बख़्श दिया जाए।
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने पूछा- ऐ जिबरईल रज़िअल्लाह अन्हो! ये दरवाज़े कब तक खुले रहेंगे। उन्होंने कहा- रात के शुरू से तुलूअ आफ़ताब तक। फिर कहा- ऐ मुह़म्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम! इस रात अल्लाह कबीला बनू कलब की बकरियों के बालों के बराबर लोगों को (जहन्नम) से आज़ाद करता है।
हज़रत अ़ली रज़िअल्लाह अन्हो फ़रमाते हैं- मुझे ये बात पसंद है कि इन 4 रातों में आदमी ख़ुद को (तमाम दुनियावी मसरूफ़ियात से इबादते इलाही के लिए) फ़ारिग़ रखे। (वो चार रातें हैं) 1. इदुल फितर की रात, 2. ईदुल इज़हा की रात, 3. शाबान की पंद्रहवीं रात (शबे बरात) और 4. रजब की पहली रात। (इब्ने जौज़ी, अत्तबस्सुरा, 21/2)
हज़रत ताउस यमानी फ़रमाते हैं कि मैंने हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम से शबे बरात व उसमें अमल के बारे पूछा तो आपने फ़रमाया-
मैं इस रात को तीन हिस्सों में तक़सीम करता हूं। एक हिस्से में नाना जान (हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) पर दरूद पढ़ता हूं। दूसरे हिस्से में अपने रब से इस्तग़फ़ार करता हूं और तीसरे हिस्से में नमाज़ पढ़ता हूं। मैंने अर्ज़ किया कि जो शख़्स ये अमल करे उसके लिए क्या सवाब है। आपने फ़रमाया मैंने वालिद माजिद (हज़रत अ़ली रज़िअल्लाह अन्हो) से सुना और उन्होंने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से सुना- ये अमल करने वालों को मुक़र्रेबीन लोगों में लिख दिया जाता है।
एक रवायत में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि जो शख़्स शबे बरात की मग़रिब से पहले 40 मरतबा ‘लाहौल वला कुव्वता इल्ला बिल्ला हिल अलिय्यिल अज़ीम’ और 100 मरतबा दरूद शरीफ़ पढ़े तो अल्लाह उसके 40 बरस के गुनाह माफ़ फ़रमा देता है।
see: Shabe Barat ki Duwa
6 रकात नफ़िल और सूरे यासीन की तिलावत
बाद नमाज़ मग़रिब 6 रकात नफ़िल इस तरह पढ़ें-
- 2 रकात नमाज़ नफ़िल दराज़िये उम्र (उम्र में बरकत) के लिए
- 2 रकात नमाज़ नफ़िल कुशादगीये रिज़्क (कारोबार व आमदनी में बरकत) के लिए
- 2 रकात नमाज़ नफ़िल दाफए अमरोज व बलियात (आफ़तों से बचने) के लिए
हर सलाम के बाद सूरे यासीन की तिलावत करें।
फिर दुआए निस्फ़ शाबान पढ़ें।
दुआए निस्फ़़ शाबान (Shabe Barat ki Duwa)
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि जो कोई ये दुआ शबे बरात में पढ़ेगा, हक़ तआला उसे बुरी मौत से महफ़ूज़ रखेगा। (Shabe Barat ki Duwa)
शबे बरात की नमाज़ें
सलातुल ख़ैर
सौ रकात इस तरह पढ़ी जाए कि 1000 मरतबा सूरे इख़्लास पढ़ी जाए, यानी हर रकात में 10-10 मरतबा। इस नमाज़ से बरकत फैल जाती है। पहले के दौर में बुज़ुर्ग इस नमाज़ के लिए जमा होते और बाजमाअत अदा करते। इसकी फ़ज़ीलत ज़्यादा और सवाब बेशुमार है।
हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है, आपने फ़रमाया-
मुझे 30 सहाबा ने बयान किया कि जो शख़्स इस शबे बरात में ये नमाज़ पढ़े, तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त 70 मरतबा नज़रे रह़मत फ़रमाता है और हर नज़र के बदले उसकी 70 हाजात पूरी करता है। सबसे कम दरजे की हाजत मग़फ़िरत है। 14वीं को ये नमाज़ पढ़ना भी मुस्तहब है। क्योंकि इस रात को (इ़बादत के साथ) ज़िंदा रखना भी मुस्तहसन है।
सलातुत तस्बीह
सलातुत तस्बीह पढें (देखिये – सलातुत तस्बीह का तरीक़ा )
दीगर
ऽ 4 रकात नमाज़ 1 सलाम से इस तरह पढ़ें कि सूरे फ़ातेहा के बाद सूरे इख़्लास (कुलहो वल्लाहो अहद) 50 मरतबा पढ़ें। फ़ायदा- गुनाहों से मग़फ़िरत।
ऽ 2 रकात नमाज़ में सूरे फा़तेहा के बाद 1 मरतबा आयतल कुर्सी (अल्लाहो लाइलाहा इल्ला) और 15 बार सूरे इख़्लास पढ़ें और सलाम फरने के बाद 100 मरतबा दरूद शरीफ़ पढ़ें। फ़ायदा- रिज़्क में कुशादगी, मुसीबत से निजात और गनाहों से मग़फ़िरत।
ऽ 2-2 करके 14 रकात नमाज़ पढें। उसके बाद 100 बार दरूद पढ़ें। फ़ायदा- दुआ की मकबुलियत।
ऽ 2-2 करके 8 रकात नमाज़ नफ़िल पढ़ें, हर रकात में सूरे फ़ातेहा के बाद सूरे क़दर (इन्ना अन्ज़लना) 1 बार और सूरे इख़्लास 25 बार पढ़ें। फ़ायदा- गुनाह से मग़फ़िरत व बख़्शिश।