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शुक्र अल्लाह वलहम्दोलिल्लाह

 

ऐ मेरे रब!

मुझे अपनी मेहरबानी से

इस बात पर क़ायम रख कि

मैं तेरी उन नेअमतों का शुक्र अदा करता रहूं

जो तुने मुझ पर

और मेरे मां बाप को अता किए

और मैं ऐसे नेक काम करता रहूं

जिन से तु राज़ी रहे और

मुझे अपनी रहमत से

अपने ख़ास कुर्ब वाले

नेक बंदों में दाखिल फ़रमा।

(कुरान 27:19)

 

मक़ामे ‘यक़ीन’ के 9 उसूल होते हैं. 1.तौबा, 2.शुक्र, 3.सब्र, 4.रिजाअ (उम्मीद), 5.ख़ाफै़, 6.जुहद (परहेज़गारी) 7.तवक्कल (भरोसा) 8.रज़ा 9.मुहब्बत। ‘सूफ़ीयाना’ रिसाला.2 में आपने ‘तौबा’ के बारे में पढ़ा। इस बार हम ‘शुक्र’ के बारे में बयान कर रहे हैं।

 

खुदा ने कुरान में, शुक्र को ईमान के साथ मिलाकर ज़िक्र किया है। इनको छोड़ने पर वो नाराज़ होता है और ऐसे में हमें उसके अज़ाब का सामना करना पड़ेगा। यानी खुदा का शुक्र अदा करना, ईमान के बराबर है।

अल्लाह तुम्हें अज़ाब देकर क्या करेगा, अगर तुम शुक्र अदा करो और ईमान रखो… (कुरान 4:147)

रब ही सारी कायनात का पैदा करनेवाला है। सारा निज़ाम उसी के हाथों में है। हमारा पैदा होना, खाना पीना, सोना जागना, सांसें लेना, जीना मरना, सब उसी की कुदरत का कमाल है। उसके इतने एहसान हम पर है कि हम सारे एहसान को पहचानने की भी कुदरत नहीं रखते। हम अगर कुछ कर सकते हैं तो वो है . शुक्र।

और अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारी मांओं के पेट से बाहर निकाला, जब तुम बिल्कुल नासमझ थे और तुम को कान दिए, आंख दिए, दिल दिए ताकि तुम शक्र अदा करो। (कुरान 16:78)

 

शुक्र का ईनाम

तुम मेरा ज़िक्र किया करो मैं तुम्हारा ज़िक्र करुंगा

और मेरा शुक्र अदा किया करो

और मेरी नाशुक्री न करो। (कुरान 2:152)

यानी शुक्र से रब राज़ी होता है। और जब वो राज़ी हो जाए तो फिर आप जो चाहें वो आपका हो जाए। इससे ये बात निकलती है कि पहले जो मांगना हैं मांग लें और उसका शुक्र अदा कर दें, फिर तो मांग पूरी होना तय है।

शुक्र ही सच्‍ची राह है

कुरान में ‘(शैतान कहता है.) मैं उनको तेरी सीधी राह (से भटकाने) ज़रूर बैठूंगा।’ (कुरान 7:16) की तशरीह में ‘सीधा रास्ता’ का मतलब ‘राहे शुक्र’ है और ‘उनको’ से मुराद ‘शाकिर’ (शुक्र करनेवाला) है। अगर शुक्र, राहे खुदा तक नहीं ले जाती तो शैतान उस राह को काटने की धमकी नहीं देता और अगर शाकिर अल्लाह का महबूब नहीं होता तो शैतान उन्हें नहीं भटकाता और यूं नहीं कहता कि ‘और तु उनमें से अक्सर को शुक्रगुज़ार नहीं पाएगा।’(कुरान 7:17)

हज़रत उमर ؓ ने हुज़ूरﷺ  से पूछा. हम क्या मांगें?, आपने फ़रमाया. ‘रब से ज़िक्र करनेवाली ज़ुबान और शुक्र करने वाला दिल मांगो।’

हज़रत मूसा अलैहिस्‍सलाम से खुदा ने फ़रमाया. ‘जब तुने पहचान लिया कि तमाम नेअमतें मेरी तरफ़ से हैं तो मैं तेरे इस शुक्र की वजह से तुझसे राज़ी हो गया।’

सूफ़ी का शुक्र

सूफ़ीयों का ये तरीका रहा है कि हर वक्त शुक्र अदा करते रहते हैं। जब आपस में मिलते हैं तो रब का शुक्र बयान करते हैं, जिससे सभी मिलनेवाले भी उस शुक्र में शामिल हो जाते हैं। बुजूर्गों की बारगाह में शुक्र ऐन इबादत है और शिकायत सरासर गुनाह है।

सारी कायनात एक ख़ज़ाना है और उसकी कुंजी खुदा के पास है। जैसे जैसे शुक्र बढ़ता जाएगा, वैसे वैसे ख़ज़ाने खुलते जाएंगे।

वही आसमानों और ज़मीन (सारी कायनात के ख़ज़ानों) की कुन्जियों का मालिक है,

(और) वो जिसे चाहे रिज़्क़ (व जो चाहे वो) अता करता है और (चाहे तो) रोक देता है,

बेशक वही सबकुछ जाननेवाला है। (कुरान 42:12)

अगर तुम शुक्र अदा करोगे तो मैं तुम पर नेमअतों की बारिश कर दूंगा… (कुरान 14:7)

थोड़ा होने पर भी शुक्र किया जाए और ये समझा जाए कि कम में भी खुदा की कोई हिकमत होगी, हमारा कोई भला छिपा होगा। और अगर रब ने देने से रोका है तो ज़रूर सहीं वक़्त में या बेहतर देने के लिए रोका है। तो यक़ीनन वो थोड़ा भी अब ज़्यादा हो गया। वो छोटी सी नेअमत भी अब बड़ी हो गई।

जितना ज्यादा शुक्र अदा करोगे, उतना ज्यादा नेअमतें अता की जाएगी। बहुत कम मिलने पर भी अगर ज्यादा शुक्र किया जाए तो वो ‘कम’ बदलकर ‘ज़्यादा’ हो जाएगा। एक ही नेअमत पर बार बार शुक्र किया जाए तो वो बढ़ती जाएगी।

शुक्र, दिल से अदा होना चाहिए। जो शुक्र दिल से अदा न हो, सिर्फ़ ऊपरी दिखावा बस हो, वो किसी काम का नहीं। बल्कि वो नुक़सान की वजह बनेगा।

दिल से अदा होने वाले शुक्र को कितना भी रोका जाए, वो आगे चलकर ज़ाहिर हो ही जाता है। आपके चलने फिरने से, बोलने से, कपड़ों से, रहन सहन से, यहां तक कि आपकी हर अदाओं से ये छलकने लगता है। और उस मक़ाम पर पहुंच जाता है, जहां ये झूमने पर मजबूर करने लगता है। शुक्र एक इबादत है, दिल से अदा किया जाए तो बातिनी इबादत और ज़ाहिर किया जाए तो ज़ाहिरी इबादत। और इस मुकाम पर शरीअ़त व तरीक़त मिल जाते हैं। यहां दिल रक़्स करने लगता है, आंखों में आंसू रक़्स करने लगते हैं, जिस्म के सारे रोएं अदब से खड़े होकर रक़्स करने लगते हैं। ये शुक्र ही तो है, जो बंदे को खुदा तक पहुंचाता है और खुदी से फ़ना करके खुदा से मिलाता है। सब कुछ खोकर, सब कुछ पाने को प्रेरित करता है।

हुज़ूरﷺ  सारी रात नमाज़ में खड़े रहे, यहां तक कि उनके पांव में सूजन आ गई। इस पर सहाबियों ने पूछा. हुज़ूरﷺ  आप मासूम हैं। आपसे कभी कोई गुनाह हुआ ही नहीं और न होगा। तो फिर ऐसा करने की क्या ज़रूरत है। इस पर हुज़ूरﷺ  ने फ़रमाया. तो क्या मैं अपने रब का शुक्र भी अदा न करूं। (बुखारी)

नाशुक्री

नाशुक्री, अज़ाब की सबसे बड़ी वजह है। नाशुक्रे, न दुनिया में कामयाब और न आख़िरत में। हर तरह की परेशानियों और नाकामयाबी की वजह नाशुक्री है। ये तीन तरह की होती है.

1.शुक्र अदा नहीं करना, नाशुक्री है। अल्लाह को नाशुक्रे गुनाहगार पसंद नहीं।(कुरान 2:276)

2.शुक्र अदा करने में कंजूसी करना भी नाशुक्री है। इससे नेअमतें कम होती जाती है और आख़िरकार ख़त्म होती जाती है। और हम बड़े नाशुक्रों के सिवा किसी को सज़ा नहीं देते। (कुरान 34:17)

3.शुक्र अदा नहीं करना, बल्कि शिकायत करना, सबसे बड़ी नाशुक्री है। एक सूफ़ी कहते हैं. आमतौर पर ये देखा गया है कि लोग दुआ मांगते हैं और जब वो पूरी होती है, तो शुक्र अदा करने के बजाए शिकायत करने लगते हैं। क्योंकि तब तक उनकी मांगें और बढ़ जाया करती है। इस तरह की नाशुक्री पर अल्लाह सख़्त नाराज़ होता है और दी हुई नेअमतें भी छिन ली जाती है।

…और जो शख़्स अल्लाह की नेअमत को अपने पास आ जाने के बाद बदल डाले तो बेशक अल्लाह सख़्त अज़ाब देने वाला है। (कुरान 2:211)

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