कलाम. हज़रत ख़्वाजा ग़रीबनवाज़ؓ
तजुर्मा. दर्द काकोरवी
चु मन पुर जुर्मो इस्यानम तुई ग़फ़्फ़ार या अल्लाह।
चु मन बा ऐबो नुक़्सानम तुई सत्तार या अल्लाह।
सरापा जुर्मो इसयां मैं, तु है ग़फ़्फ़ार या अल्लाह।
सरासर ऐबो नुक्सां मैं, तु है सत्तार या अल्लाह।
बख़्वाबे मस्तियो ग़फ़लत ज़े सर ता पा गुनहगारम।
ब ज़िक्रो ताअते खुद कुन मरा बेदार या अल्लाह।
मैं सर ता पा गुनाहों में हूं मस्ती और ग़फ़लत में।
तु कर दे ज़िक्रो ताअत से, मुझे बेदार या अल्लाह।
चुनीं कज़ फेएले ज़िश्ते मन ख़लाइक़ जुम्ला बेज़ारन्द।
तु बा मा बाश खुशनूदो मशौ बेज़ार या अल्लाह।
बुरे कामों से मेरे, हो गई बेज़ार सब दुनिया।
तु राज़ी रह मेरे मालिक, न हो बेज़ार या अल्लाह।
चुनीं कुन अज़ करम बर मन बिनाए तु बमुस्तहकम।
के रानम बर ज़ुबां हर लहज़ा इस्तग़फ़ार या अल्लाह।
मेरी तौबा की बुनियादों को मुस्तहकम बना दे तु।
कि मैं करता रहूं, हर लहज़ा इस्तग़फ़ार या अल्लाह।
चुनां कुन अज़ करम दर दिल बहक़्क़े अहमदे मुर्सल।
अज़ाबे मर्ग चूं गरदद मरा दुश्वार या अल्लाह।
तु कर ऐसा करम मुझ पर, बहक़्क़े अहमदे मुरसल।
कि मौला! जांकनी मुझ पर न हो दुश्वार या अल्लाह।
न याबद दर वजूदे मन ज़े नेकी हेच किरदारे।
ब बख़्शा बर मने आसीये बदकिरदार या अल्लाह।
नहीं है पास मेरे कोई नेकी का अमल मौला।
मैं आसी और हूं हद दरजा बद किरदार या अल्लाह।
र’वद हर लेहज़ा दर ताअत दिले मन जानिबे दीगर।
चुनीं वस्वासे शैतानी ज़े मन बरदार या अल्लाह।
न हो मौला इबादत में, मेरा दिल दूसरी जानिब।
तु हर वस्वासे शैतानी से, कर दे पार या अल्लाह।
चु गोरे तीरातर वहशत नुमायद बर मने मुजरिम।
बशम्मे मग़फि़रत गरदां पुरज़ अनवार या अल्लाह।
मुझे हो कब्र की तारीकि़यों से, जिस घड़ी वहशत।
तु शम्मे मग़फि़रत से कर दे, पुर अनवार या अल्लाह।
‘मुईनुद्दीन’ आसी रा के मी नालद बसद ज़ारी।
गुनाहम बख़्श ईमां रा सलामत दार या अल्लाह।
‘मुईनुद्दीनؓ’ आसी, अज़र् करता है ये रो रो कर।
सलामत रख मेरा ईमां, तु है ग़फ़्फ़ार या अल्लाह।
तसद्दुक़ आयए ला तक़्नतु का हो करम मौला।
मेरे इस ‘दर्द’ ए दिल का है, तु ही ग़मख़्वार या अल्लाह