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हज़रत उमर फ़ारूक़ؓ फ़रमाते हैं कि एक रोज़ हुज़ूरﷺ  की बारगाह में एक सफेद कपड़े पहने, काले बालों वाला शख़्स हाज़िर हुआ। उसके चेहरे से सफ़र की थकान नज़र नहीं आ रही थी।

हम में से कोई भी उसे पहचानता न था। वो शख़्स हुज़ूरﷺ  के सामने, जानू से जानू मिलाकर बैठ गया और हुज़ूरﷺ  से पूछा – बताइए इस्लाम क्या है?

हुज़ूरﷺ  फ़रमाते हैं- ये गवाही देना कि ख़ुदा के अलावा कोई माबूद नहीं और मुहम्मदﷺ  उसके रसूल हैं। और ये भी कि नमाज़ अदा करना, ज़कात देना, रमज़ान के रोज़े रखना और हैसियत हो तो हज अदा करना। तो उस शख़्स ने कहा- आप बिल्कुल सहीं फ़रमा रहे हैं। (हज़रत उमरؓ फ़रमाते हैं कि) हमें बड़ा ताज्जुब हुआ कि वो ख़ुद ही पूछ रहा है और तस्दीक भी कर रहा है।

फिर उस शख़्स ने पूछा- ईमान क्या है? हुज़ूरﷺ  ने फ़रमाया- यक़ीन रखना ख़ुदा का, उसके फरिश्तों का, उसकी किताबों का, उसके रसूलों का और कयामत के दिन का और अच्छी बुरी तक़दीर का। उसने कहा आप सहीं फ़रमाते हैं।

फिर उसने पूछा- एहसान (तसव्वुफ़) क्या है? आपने फ़रमाया- एहसान (तसव्वुफ़) ये है कि तुम ख़ुदा की इस तरह इबादत करो, मानो तुम उसे देख रहे हो। अगर उसे न देख सको तो ये समझो कि वो तुम्हें देख रहा है।

(बुखारी शरीफ़ व मुस्लिम शरीफ़)

 

पूछने वाले हज़रत जिब्रईलؑ हैं और इस हदीस को ‘हदीसे जिब्रईल’ भी कहते हैं। इसमें तीन बात कही गयी है- दीन, ईमान व एहसान। यहां ग़ौर करने वाली बात है कि जब दीन का खुलासा हो गया और फिर ईमान का खुलासा हो गया, तो फिर अब एहसान की बात करने की क्या ज़रूरत है। दरअस्ल इन्सान का दुनिया में आने का मक़सद सिर्फ दीन को जानना नहीं है और न ही सिर्फ ईमान रखने से आखि़रत की कामयाबी है। सिर्फ इबादत करना भी हमारा मक़सद नहीं है, क्योंकि इबादत तो ग़ैर अक़ीदा भी करते हैं, फ़रिश्ते भी करते हैं। शैतान ने भी इबादत की है। तो फिर इन्सान के होने का मक़सद क्या है? जबकि वो दूसरे मख़्लूक (जीवों) से बेहतर है तो उसका मक़सद भी आला होना चाहिए।

इन्सान के इस दुनिया में आने का मक़सद है- रब की मारफ़त हासिल करना। पहले तो ये यक़ीन रखना कि रब उसे देख रहा है और फिर उस मुक़ाम को हासिल करना जहां वो रब को देख रहा हो। इस दुनिया के तख़्लीक़ की वजह, दीन की वजह, ईमान की वजह, शरीअ़त की वजह, तरीक़त की वजह, हक़ीक़त की वजह- सिर्फ और सिर्फ ख़ुदा की मारफ़त है।

और बेशक हमें अपने रब की तरफ़ लौटना है।

(कुरान 43:14)

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