


महफिल ए समा – 1
क़ालल अशरफ़: अस्सिमाअ तवाजिद उस सूफिया फि तफहिमुल मआनी अल्लज़ी यतसव्वूर मन अला सवात अल मुख्तलेफ़ा हज़रत सैय्यद मख्दूम अशरफ़ सिमनानी रज़िअल्लाह अन्हो, ‘लताएफ अशरफ़ी’ में फ़रमाते हैं कि मुख्तलिफ़ आवाज़ों को सुनकर फ़हम में जो मअानी पैदा होती हैं,...
किरपा करो सरकार…
मैं मली, तन मेरा मैला, किरपा करो सरकार। नज़रे करम सरकार, या मुहम्मद ﷺ… सरपे उठाकर पाप की गठरी, आई हूं तुम्हरे द्वार। नज़रे करम सरकार, या मुहम्मद ﷺ… मेरे खिवइया बीच भंवर में, कश्ती डूब न जाए। तेरा हूं, तू मेरी खबर ले, कौन लगाए पार। नज़रे करम सरकार, या...
मुरीद का मतलब क्या?
मीम मुर्शिद से मिला, हमको मुहब्बत का सबक़, रे से राहत मिली, और रहे हमारे मुतलक, शीन से शिर्क़ हुआ दूर दिल से, दाल से दस्त मिला और मिला दिल दिल से। हज़रत मुहम्मद ﷺ को देखकर जो ईमान लाए उसे सहाबी कहते हैं। सहाबी के मायने होते हैं ”शरफे सहाबियत” यानि सोहबत हासिल...
हज़रत राबिया बसरी
हज़रत राबिया बसरी रज़ी. ख़ुदा की खास बंदी, पर्दानशीनों में मख्दूमा, ईश्क़ में डूबी हुई, इबादत गुज़ार, वो पाक़िज़ा औरत हैं जिन्हें आलमे सूफ़िया में ”दूसरी मरयम” कहा गया। यहां छोटे बड़े का कोई फ़र्क नहीं, यहां मर्द व ज़न (औरत) का कोई फ़र्क नहीं, क्योंकि अल्लाह सूरत...